धनतेरस के दिन भगवान धनवन्तरि की पूजा करने और औषधियों को दान करने का विधान है। ऐसा करने से व्यक्ति को आरोग्य और रोगमुक्त जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। भगवान धनवन्तरि की जयंती को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है, जो 25 अक्टूबर को हैं। समुद्र मंथन के समय कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को ही भगवान धनवन्तरि अमृत कलश लेकर उत्पन्न हुए थे। वह देवताओं के वैद्य और महान चिकित्सक माने जाते हैं, जिनको देव पद प्राप्त है।
देव धनवन्तरि को भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना जाता है। उनकी भी चार भुजाएं हैं, जिनमें से ऊपर के दोनों हाथों में चक्र और शंख धारण करते हैं। उनके अन्य दो हाथों में से पहले में औषधि और जलूका तथा दूसरे हाथ में अमृत कलश होता है। भगवान धनवन्तरि आयुर्वेद के प्रणेता कहलाते हैं। इन्होंने कई जीवनदायी औषधियों की खोज की थी। ये आरोग्य के देवता भी कहलाते हैं। भगवान विष्णु ने धनवन्तरि को देवों का चिकित्सक नियुक्त किया। वे सभी वनस्पतियों और औषधियों के स्वामी भी हैं। भगवान धनवन्तरि के आशीर्वाद से ही सभी वनस्पतियों में रोगनाशक शक्ति पायी जाती है।
भगवाण धनवन्तरि की साधना के लिए साधारण मंत्र है…
ओम धन्वंतरये नम:॥
दूसरा मंत्र
ओम नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवन्तरि स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नम:॥
अर्थ : परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरी कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्वभय नाशक हैं, सभी रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धनवन्तरि को नमन है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान धनवन्तरि लोगों को सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति दिलाते हैं, इस कारण से हर वर्ष धनतेरस या धन त्रयोदशी को उनकी विधि विधान से पूजा अर्चना करना चाहिए।
GOOD MORNING : धनतेरस पर विशेष
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