कृष्ण जयंती या गोकुलाष्टमी या जन्माष्टमी का त्योहार हर साल भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथी को मनाया जाता है, इसीलिए इसे कृष्ण अष्टमी या कन्हैया आठें भी कहते है। 2023 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 06 सितंबर को मनाया जा रहा है। जन्माष्टमी हिंदुओं के पवित्र त्यौहारों में से एक है जिसे भारत में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। यह लोगों के सबसे प्रिय भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन (Lord Krishna Birthday) का उत्सव है, इसीलिए इसे कृष्ण जयंती या कृष्णा अष्टमी भी कहा जाता है। इस ख़ास मौके पर हम आपको जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है? इसका महत्व और स्टोरी (कथा) के बारे में बताने जा रहे है।
हिंदू धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस विशेष दिन पर रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करने से साधक को विशेष लाभ प्राप्त होता है। प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी इस बार बेहद खास माना जा रहा है। पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि व्यापनी अष्टमी तिथि और रोहणी नक्षत्र में हुआ था। इस वर्ष 6 सितम्बर को सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है और चंद्रमा वृषभ राशि, रोहिणी नक्षत्र, बुधवार होने से एक विशेष योग 30 सालों बाद निर्मित हो रहा है। इसीलिए इस वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी सुख, समृद्धि और मनोवांछित फल देने वाली मानी जा रही है। कृष्ण जन्माष्टमी सिर्फ भारत मे ही नहीं बल्कि भारत के बाहर रहने वाले हिन्दू भी अपनी जगहो पर इस उत्सव को अपने हिसाब से मनाते है तथा श्री कृष्ण की आराधना करते है . जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जन्म दिवस के रूप मे पूरे भारत मे बहुत ही उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर मध्य रात्रि में अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा है और सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित हो रहा है। रोहिणी नक्षत्र 6 सितम्बर की सुबह 9.20 से 7 सितम्बर को सुबह 10. 25 तक रहेगा। रोहिणी को चंद्रमा की पत्नी माना जाता है और इस दिन चंद्रमा अपने उच्च अंश वृषभ राशि में होगा। ग्रहों की यह दशा पूजन अर्चन के योग से विशेष फलदायी सिद्ध हो रही है। सर्वार्थ सिद्धि योग में की गई पूजन अर्चना भक्तों को विशेष फल देगी।
कृष्ण जन्माष्टमी के बारे में जानकारी
त्यौहार का नाम : जन्माष्टमी
अन्य नाम : गोकुलाष्टमी
तिथी : श्रावण मास की पुर्णिमा के बाद आठवे दिन
तारीख 2023 : 06 सितंबर ,07 सितंबर
इष्ट भगवन : श्री कृष्ण
विशेष : कृष्ण जन्मोत्सव
त्यौहार का प्रकार : धार्मिक
धर्म : हिन्दू
जन्माष्टमी कब मनाई जाती हैं
जन्माष्टमी हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास की पुर्णिमा के बाद आठवे दिन मनाई जाती है, या यह भी कह सकते है कि भाई बहन के सबसे बड़े त्यौहार रक्षाबंधन के बाद ठीक आठवे दिन कृष्ण जन्म अष्टमी मनाई जाती है।
जन्माष्टमी का त्योंहार क्यों मनाया जाता है?
जन्माष्टमी का त्यौहार द्वापर युग में भगवान श्री हरि विष्णु के आठवें अवतार के रूप में भूलोक पर अवतरित हुए श्री कृष्ण की जयंती के उपलक्ष में मनाया जाता है। उनका जन्म लगभग 5250 वर्ष पूर्व भादों कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। हिंदू धर्म में पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर बढ़ते अधर्म, पाप और उन पापियों से अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए मनुष्य रूप में अवतार लिया था।ऐसा माना जाता है कि कृष्ण भगवान विष्णु के ऐसे स्वरूप है, जिन्होंने मानव जीवन के सभी चक्रों (जन्म, मृत्यु, सुख, दुख, प्रेम, त्याग) आदि का अनुभव किया है इसीलिए वह पूर्ण अवतार भी कहे जाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण कार्यों को पूर्ण किया और कंस का वध करने के साथ ही उन्होंने पांडवों का मार्गदर्शन कर धर्मयुद्ध में विजय भी दिलवाई। गीता में लिखे उनके श्लोक आज भी करोड़ों लोगों के प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।
वर्ष 2023 मे कृष्ण जन्माष्टमी कब है
हर साल जन्माष्टमी अगस्त, सितंबर के महीने मे ही आती है. हर साल की ही तरह इस साल भी 06-07 सितंबर, 2023 को जन्म अष्टमी का उत्सव मनाया जाएगा. वही दही हांड़ी या गोकुल अष्टमी 6-7 सितंबर को है. भक्त अपने कान्हा का जन्मोत्सव इसी दिन करेंगे तथा भक्ति मे लीन हो जाएंगे. और कान्हा अपने भक्तो पर अपनी कृपा बरसाएँगे।
कब है जन्माष्टमी?
6 सितम्बर, दिन बुधवार को 3 बजकर 39 मिनट पर अष्ठमी की तिथि लग रही है। यह तिथि 7 सितम्बर को 4 बजकर 16 मिनट तक रहेगी 6 सितम्बर की रात अष्ठमी और रोहिणी दोनों का संयोग है।
निशिता पूजा समय : 24:03+ से 24:49+
अवधि : 46 मिनट
आधी रात का समय रात 11 बजकर 56 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट (6 सितम्बर)
जन्माष्टमी 2023 पूजन शुभ मुहूर्त-
निशिता पूजन मुहूर्त: 06 सितंबर को रात 11 बजकर 57 मिनट पर प्रारंभ होगा और 07 सितंबर को सुबह 12 बजकर 42 मिनट पर समाप्त होगा। जन्माष्टमी के लिए शुभ मुहूर्त 06 सितंबर को रात 11 बजकर 57 मिनट से प्रारंभ होगा। जन्माष्टमी व्रत पारण का समय 07 सितंबर को शाम 04 बजकर 14 मिनट है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की कथा
श्री कृष्ण वसुदेव तथा देवकी की आठवी संतान थे, परंतु श्री कृष्ण के जन्म के तुरंत बाद वसुदेव उन्हे कंस से सुरक्षित रखने के लिए अपने मित्र नन्द बाबा के घर छोड़ आये थे. इसलिए श्री कृष्ण का लालन पोषण नन्द बाबा तथा यशोदा मैया ने किया. उनका सारा बचपन गोकुल मे बीता. उन्होने अपनी बचपन की लीलाए गोकुल मे ही रचाई तथा बड़े होकर अपने मामा कंस का वध भी किया. श्री कृष्ण जी भगवान विष्णु का अवतार भी माने जाते है. भारत विभिनता मे समानता का देश है, इसी का उदहारण है कि जन्माष्टमी को कई नामो से जाना जाता है. जैसे :- अष्टमी रोहिणी, श्री जयंती, कृष्ण जयंती, रोहिणी अष्टमी, कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी आदि।
कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि
निर्धारित समय : श्री कृष्ण का जन्म वसुदेव तथा देवकी के घर रात्री 12 बजे हुआ था. इसलिए पूरे भारत मे कृष्ण जन्म को रात्री मे ही 12 बजे मनाया जाता है। हर साल भादव मास की अष्टमी के दिन रात्रि मे 12 बजे हर मंदिर तथा घरो मे प्रतीक के रूप मे लोग श्री कृष्ण का जन्म करते है. जन्म के बाद उनका दूध, दही तथा शुध्द जल से अभिषेक करते है, तथा माखन मिश्री, पंजरी तथा खीरा ककड़ी का भोग लगाते है. तत्पश्चात कृष्ण जी की आरती करते है, कुछ लोग खुशी मे रात भर भजन कीर्तन करते तथा नाचते गाते है. माखन मिश्री कृष्ण जी को बहुत प्रिय था. अपने बाल अवतार मे उन्होने इसी माखन के लिए कई गोपियो की मटकिया फोड़ी थी और कई घरो से माखन चुरा कर खाया था. इसलिए उन्हे माखन चोर भी कहा जाता है. और इसी लिए उन्हे माखन मिश्री का भोग मुख्य रूप से लगाया जाता है. कई जगह पर मटकी फोड़ प्रतियोगिता भी की जाती है, इसमे एक मटकी मे माखन मिश्री भरकर इसे उची रस्सी पर बांध दिया जाता है और विभिन्न जगह से मंडलीया आकर इसे तोड्ने का प्रयास करती है और कृष्ण जन्म उत्सव मनाती है. कुछ लोग इस दिन पूरे दिन का व्रत/उपवास रखते है और कृष्ण जन्म के पश्चात भोजन गृहण करते है. इस दिन के व्रत/उपवास की विधि एकदम साधारण होती है कुछ लोग निराहार रहकर व्रत करते है, तो कुछ लोग फल खाकर व्रत करते है, तो कुछ लोग फरियाल खाकर व्रत/उपवास करते है क्योकि व्रत/उपवास के लिए कोई नियम नहीं है. श्रद्धालु अपनी इच्छा अनुसार व्रत/उपवास कर सकते है और श्री कृष्ण की भक्ति कर सकते है. यह बात हमेशा याद रखिए कि अगर आप व्रत/करने मे समर्थ नहीं है, तो व्रत/उपवास करना जरूरी नहीं है. आप अपने मन मे श्रद्धा रखकर भी पूजन करते है, तो माखन चोर कान्हा आप पर कृपा करते है. आपकी भक्ति स्वीकार करते है, और आपको अपना परम आशीर्वाद देते है।
कृष्ण जन्माष्टमी भोग कैसे बनाये
श्री कृष्ण जी भोग स्वरूप माखन मिश्री, खीरा ककड़ी, पंचामृत तथा पंजरी का भोग लगाया जाता है. ध्यान रखिए श्री कृष्ण को लगाया हुआ भोग बिना तुलसी पत्र के स्वीकार नहीं होता है. इसलिए जब भी आप कृष्ण जी को भोग लगाए, उसमे तुलसी पत्र डालना ना भूले. श्री कृष्ण जी के भोग मे बने पंचामृत मे दूध, दही, शक्कर, घी तथा शहद मिला रहता है, तथा भोग लगते वक़्त इसमे तुलसी पत्र मिलाये जाते है. श्री कृष्ण जी को जो पंजरी भोग मे लगाई जाती है वह भी साधारण पंजरी से अलग होती है. वैसे तो पंजरी आटे की बनती है, परंतु जो पंजरी कृष्ण जी को अर्पित करते है, उसे धनिये से बनाया जाता है. पंजरी बनाने के लिए पिसे हुये धनिये को थोड़ा सा घी डालकर सेका जाता है. और इसमे पिसी शक्कर मिलाई जाती है. लोग इसमे अपनी इच्छा अनुसार सूखे मेवे मिलाते है, कुछ लोग इसमे सोठ भी डालते है और फिर श्री कृष्ण को भोग लगाते है.
जन्म अष्टमी का भारत मे उत्सव
* वैसे तो पूरे भारत मे श्री कृष्ण जन्म उत्सव बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है, परंतु गोकुल, मथुरा, वृन्दावन श्री कृष्ण की लीलाओ के प्रमुख स्थान थे. इसलिए यहा पर इस दिन का उल्लास देखने लायक होता है. मंदिरो मे पूजा अर्चना, मंत्रो उच्चार, भजन कीर्तन किए जाते है. इस दिन मंदिरो की साज सज्जा भी देखने लायक होती है. श्री कृष्ण के भक्त भी यही चाहते है, इस दिन कान्हा के दर्शन इन जगहो पर हो जाये.
* महाराष्ट्र के मुंबई तथा पुणे जन्माष्टमी पर अपने विशेष दही हांडी उत्सव को लेकर मशहूर है. तथा यहा इस दिन होने वाली दही हांडी प्रतियोगिता मे दी गयी इनाम की राशी आकर्षण का केंद्र है. यह ईनाम की राशि ही है, जिसके कारण यहा पर दूर दूर से आई मंडलियों का उत्साह देखते ही बनता है. यहा पर बंधी दही की हांडी को फोड़ने के लिए मंडलीया कई दिनो से तैयारियो मे जुट जाती है, तथा कई लड़को का समूह इस दिन एक के उप्पर एक चढकर इसे फोड़ने का प्रयास करता है, तथा जो लड़का सबसे उप्पर होता है तथा दही की हांडी को फोड़ता है उसे गोविंदा कहकर पुकारा जाता है. जैसे ही गोविंदा दही हांडी फोड़ता है, उसमे भरा माखन सारी मंडली पर गिरता है और उस जगह एक अलग ही माहोल बन जाता है।
* गुजरात मे द्वारिका जहा कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने अपना राज्य स्थापित किया था. वहा जन्माष्टमी का उत्सव वहा के मशहूर मंदिर मे विशेष पूजा अर्चना करके तथा दर्शन करके मनाया जाता है . तो जम्मू मे इस दिन पतंग उड़ाने का रिवाज है।
* उड़ीसा, पूरी तथा बंगाल मे इसदिन रात्री मे पूजा अर्चना की जाती है, तथा दूसरे दिन नन्द उत्सव मनाया जाता है. इस दिन लोग नाचते गाते तथा कीर्तन करते है. नन्द उत्सव के दिन यहा के लोग तरह तरह के पकवान बनाते है, तथा अपना वृत/उपवास तोड़ते है. वही दक्षिण मे इसे गोकुल अष्टमी नाम दिया गया है, तथा वहा भी इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना की जाती है. इसी प्रकार सभी स्थानो की अपनी अलग पूजा अर्चना की विधिया है. परंतु अगर मध्य भारत की बात की जाए, तो वहा पर मध्य मे होने के कारण हर तरफ की प्रथाओ का अनुसरण किया जाता है, तथा कृष्ण जन्म, भजन कीर्तन, मंदिरो मे विशेष पूजन साज सज्जा तथा दही हांडी सारी प्रथाये अच्छी तरह से निभाई जाती है।
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