हालांकि विश्व भर में पहले से ही भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियां ‘आयुर्वेद (Ayurveda)’ और ‘योग (Yoga)’ उत्तम स्वास्थ्य प्रदान कर रही हैं लेकिन भारत की ही एक और परंपरागत चिकित्सा पद्धति है जो न केवल संपूर्ण स्वास्थ्य की बात करती है बल्कि रोगी को खुद चिकित्सक बनने की सलाह देती है. बेहद खास है कि यह पैथी व्यक्ति के आसपास मौजूद प्राकृतिक संसाधानों (Natural Resources) जैसे हवा, पानी, पेड-पौधे, धूप, खानपान, दिनचर्या, फल-फूल आदि से बीमारियों के इलाज का तरीका बताती है. यह पद्धति है ‘प्राकृतिक चिकित्सा’ यानि ‘नेचुरोपैथी’।
भारत में हर साल 18 नवंबर को राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस (National Naturopathy Day) मनाया जाता है। औषधि रहित चिकित्सा पद्धति के माध्यम से सकारात्मक मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना, जिसे प्राकृतिक चिकित्सा कहा जाता है। आयुष मंत्रालय (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी), भारत सरकार द्वारा 18 नवंबर, 2018 को यह दिवस घोषित किया गया था। 1945 में आज ही के दिन महात्मा गांधी ऑल इंडिया नेचर क्योर फाउंडेशन ट्रस्ट (All India Nature Cure Foundation Trust) के आजीवन अध्यक्ष बने थे और सभी वर्गों के लोगों को नेचर क्योर के लाभ उपलब्ध कराने के उद्देश्य से विलेख पर हस्ताक्षर किए थे। भारत सरकार द्वारा 18 नवंबर को आयुष मंत्रालय के गठन के बाद 2018 में पहली बार 18 नवंबर को प्राकृतिक चिकित्सा दिवस (नेचरोपैथी डे) मनाया गया। इस बार भी 18 नवंबर को यह दिवस मनाया जाएगा।
राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस 2023 के बारे में जानकारी
आयोजन : राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस
2023 : तारीख18 नवंबर 2023
दिन : शनिवार
प्रस्तावना : आयुष मंत्रालय, भारत सरकार
उत्सव का उद्देश्य : बिना किसी दवा के स्वाभाविक रूप से प्रत्येक व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक कल्याण को बढ़ावा देना।
आवृत्ति : वार्षिक
राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस समारोह 2023
राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान (एनआईएम) और केंद्रीय योग और प्राकृतिक चिकित्सा अनुसंधान परिषद (सीसीआरवाईएन) मुख्य निकाय हैं जो भारत में राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस मनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इसके अलावा, कई अस्पताल, प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान, कॉलेज आदि भी इस दिन को मनाने के लिए अपनी गतिविधियों का आयोजन करते हैं। लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए सेमिनार, कार्यशालाएं, शैक्षिक शिविर और सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं। एक व्यक्ति के रूप में, इस दिन को प्राकृतिक चिकित्सा और इसके लाभों के बारे में अधिक जानने के अवसर के रूप में लें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें।
प्राकृतिक चिकित्सा
प्राकृतिक रहन-सहन एवं खान-पान का प्रयोग करते हुए स्वस्थ रहना या बीमार होने पर प्रकृति द्वारा दिये गये तत्वों का प्रयोग करके निरोग हो जाना ही प्राकृतिक चिकित्सा है। इसी क्रम मे विभिन्न प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करके प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का जन्म हुआ।भारत में प्राकृतिक चिकित्सा का प्रचार-प्रसार सर्वप्रथम महात्मा गांधी ने रिर्टन टू नेचर के अध्ययन से प्रभावित होकर किया था। गांधीजी प्राकृतिक चिकित्सा के प्रबल समर्थक थे। गांधीजी के प्रभाव से अनेक राजनेताओं में इसका प्रचलन बढा, जिनमें मुख्यतः स्वर्गीय मोरारजी देसाई, वी. वी. गिरी एवं विनोबा भावे प्रमुख रहे। पाचन शक्ति की कमी से शरीर में मल मूत्र एवं हानिकारक तत्व एकत्रित होते रहते है। अतः इन हानिकारक तत्वों का विभिन्न प्राकृतिक उपायो से शरीर से बाहर निकालना तथा रोगग्रस्त मनुष्य को प्रकृति की ओर लाना ही प्राकृतिक चिकित्सा का उद्देश्य है। भारतीय दर्शन एवं आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश नामक पंच महाभूतो से मिलकर बना होता है, इन्ही तत्वों के भली प्रकार से उपयोग द्वारा मनुष्य को स्वस्थ भी रखा जा सकता है। प्रकृति मे रहने वाले अधिकतर जीव-जन्तु स्वंय का उपचार किसी ना किसी प्राकृतिक विधि द्वारा ही करते है। प्राकृतिक चिकित्सा मुख्य रूप से विजातीय तत्वों के शरीर मे संचय होने, रक्त की अशुद्धि एवं शरीर मे जीवनीय शक्ति की कमी होने को रोगों का मुख्य कारण मानती है। प्राकृतिक चिकित्सा मे आहार को ही औषधि माना गया है, इसीलिए आहार के विभिन्न प्रकार और उपयोग का विस्तृत वर्णन प्राकृतिक चिकित्सा मे मिलता है।
राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस का महत्व
प्राकृतिक उपचार लंबे समय तक शरीर और दिमाग के इष्टतम स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है। प्राकृतिक चिकित्सा किसी भी विकार या बीमारी के इलाज के लिए आहार, व्यायाम, चिकित्सा आदि पर आधारित प्राकृतिक उपचारों का उपयोग करने पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य बिना कोई दवा बताए शरीर की उपचार क्षमता विकसित करना भी है। मानव जीवन में प्राकृतिक चिकित्सा के विभिन्न लाभों का जश्न मनाने के लिए, भारत में हर साल 18 नवंबर को राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस मनाया जाता है।
महात्मा गांधी ने की थी इस खास दिन की शुरुआत
भारत में हर साल 18 नवंबर को राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस (National Naturopathy Day) मनाया जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से उपचार में बहुत विश्वास था। महात्मा गांधी ने आज ही के दिन 18 नवंबर 1945 को ‘ऑल इंडिया नेचर क्योर फाउंडेशन ट्रस्ट’ की स्थापना की थी। इसीलिए आज़ादी के बाद देश में प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने 18 नवंबर को प्राकृतिक चिकित्सा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी।
प्राकृतिक चिकित्सा के बारे में अधिक जानकारी
प्राकृतिक चिकित्सा या प्राकृतिक चिकित्सा एक ऐसी प्रणाली है जो शरीर को स्वयं ठीक करने की अनुमति देने के लिए प्राकृतिक उपचार और प्रक्रियाओं का उपयोग करती है। यह एक स्वस्थ जीवन शैली के माध्यम से स्वस्थ शरीर को बढ़ावा देता है और आहार प्रथाओं, स्वच्छ पानी और सूरज की रोशनी जैसे प्राकृतिक तत्वों, शारीरिक और मानसिक व्यायाम और अन्य पर आधारित है। प्राकृतिक चिकित्सा भी इस तरह से उपचार प्रदान करने का प्रयास करती है जिसका लंबे समय तक शरीर पर कोई दुष्प्रभाव न हो। बुनियादी स्वास्थ्य के अलावा, प्राकृतिक चिकित्सा विशिष्ट बीमारियों का भी इलाज कर सकती है। प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ रोगियों के इलाज के लिए निम्नलिखित प्रथाओं पर भरोसा करते हैं:
* एक स्वस्थ और संतुलित आहार
* जीवनशैली में बदलाव
* योग और व्यायाम
* शारीरिक एवं मानसिक चिकित्सा
* DETOXIFICATIONBegin के
* मालिश और दबाव
* हर्बल चिकित्सा और होम्योपैथी
प्राकृतिक चिकित्सा की अनेक पद्धतियां
प्राकृतिक चिकित्सा दिवस प्रकृति के माध्यम से जीवन शक्ति का पोषण विषय के साथ-साथ मनाया जाता हैं। प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत अनेक पद्धतियां हैं। जैसे-जल चिकित्सा, होमियोपैथी, सूर्य चिकित्सा, एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर, मृदा चिकित्सा आदि। प्राकृतिक चिकित्सा के प्रचलन में विश्व की कई चिकित्सा पद्धतियों का योगदान है।
क्या है प्राकृतिक चिकित्सा प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति पंच तत्वों पर आधारित है. जिनमें आकाश तत्व, अग्नि तत्व, भूमि, वायु और जल तत्व शामिल है.
नेचुरोपैथी की वायु चिकित्सा में योग और प्राणायाम कराए जाते हैं.
चूंकि इन पांच तत्वों से ही मिलकर शरीर बना है, ऐसे में प्राकृतिक चिकित्सा कहती है कि इन तत्वों के असंतुलित होने से ही शरीर में रोग आते हैं और इनके संतुलित रहने पर ही स्वास्थ्य प्राप्त होता है. लिहाजा यह पूरी तरह वैज्ञानिक द्रष्टिकोण पर कार्य करती है. आज व्यक्ति के आसपास प्रकृति में जो भी चीजें मौजूद हैं, शरीर की जरूरत और मांग को ध्यान में रखते हुए उनका संतुलित इस्तेमाल इसी के अंतर्गत आता है. ऐसे में यह पद्धति लोगों को व्यवस्थित जीवन जीना भी सिखाती है, जिसके चलते बीमारियां पैदा ही नहीं होती. वहीं अगर बीमारियां पैदा होती हैं तो प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र इन पांच तरह से चिकित्सा प्रदान करते हैं।
1. आकाश चिकित्सा- उपवास, रसाहार और अल्पाहार से चिकित्सा
2. वायु चिकित्सा- प्राणायाम और योग से चिकित्सा
3. सूर्य चिकित्सा- सूर्य की किरणों के माध्यम से चिकित्सा, रंग चिकित्सा या क्रोमोथेरेपी आदि
4. जल चिकित्सा- स्नान के माध्यम से चिकित्सा
5. भूमि चिकित्सा- मिट्टी से चिकित्सा
प्राकृतिक चिकित्सा मे वायु एंव आतप का महत्व
प्राकृतिक चिकित्सा मे प्रकृति से प्राप्त तत्वों का ही उपयोग शरीर के स्वास्थ्य के लिए किया जाता है, जैसे हवा, पानी, सूर्यप्रकाश, मिट्टी आदि। वायु का स्वास्थ्य में विशेष महत्व है। बिना श्वांस लिए हम जीवित नहीं रह सकते। श्वांस छोडते समय हम कार्बनडाईअक्साइड के साथ-साथ विजातीय तत्वों को भी बाहर निकालते है। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार स्वास्थ्य के लिए वायु का प्रयोग निम्न रूप से किया जा सकता है-
* प्रतिदिन शुद्ध वातावरण मे बैठकर लम्बे-लम्बे गहरे श्वांस लेकर।
* मुंह बन्द करके नाक से श्वांस लेते हुए शुद्ध वातावरण मे तेज गति से टहलकर।
* शुद्ध वातावरण मे खुले बदन टहलने से वायु का शरीर पर स्पर्श होता है और शरीर की जीवनीय श्क्ति बढ़ती है।
* योग प्रशिक्षक से नाड़ी शोधन प्राणायाम कापालभाति आदि के अभ्यास द्वारा।
इसी प्रकार सूर्य के प्रकाश का भी उपयोग चिकित्सा मे किया जाता है। प्रकाश के सात अलग-अलग रंगो से भी स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। जैसे बैंगनी रंग का प्रकाश रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, नीला प्रकाश शरीर में शीतलता लाता है, आसमानी प्रकाश क्रोध को शांत करता है, हरा प्रकाश रक्त शोधक एवं नेत्रों की दृष्टि बढ़ाने वाला है, पीला प्रकाश बुद्धि को बढ़ाता है और शरीर को उत्तेजित करता है, नारंगी रंग का प्रकाश भूख में वृद्धि करता है तथा मानसिक शक्तिवर्धक है, लाल रंग का प्रकाश शरीर की संवेदनाएं बढ़ाता है एवं नाडी दर में वृद्धि करता है। इसके अतिरिक्त प्रातः काल खुले बदन सूर्य के प्रकाश में घुमने से जीवनीय शक्ति एवं विटामिन डी की प्राप्ति होती है। विभिन्न प्रकार के रंगो के उपयोग के लिए उन्हीं रंगो की कांच की बोतलो में पानी अथवा तेल भरकर उसे तीन से चार घन्टे सूर्य प्रकाश में रखें फिर उसका उपयोग स्वास्थ्य के लिए बाह्य एवं आभ्यातंर रूप से किया जा सकता है। स्नान से पूर्व सूर्य की किरणों में पन्द्रह से बीस मिनट लेटना भी आतप स्नान/सन बाथ कहलाता है।
प्राकृतिक चिकित्सा में उपवास, विश्रमण, जल एवं मृतिका का उपयोग
उपवासः– उपवास, प्राकृतिक चिकित्सा की महत्वपूर्ण एवं लाभकारी विधि है। सामान्यतः उपवास का अर्थ भोजन ग्रहण न करना होता है, परन्तु प्राकृतिक चिकित्सा में यह स्वास्थ्य रक्षा एंव रोगियों की चिकित्सा की अत्यन्त प्रभावकारी विधि है। प्राचीन काल से ही उपवास को धार्मिक उपक्रम के रूप में अपनाने के पीछे इसकी स्वास्थ्य में उपयोगिता ही है। आधुनिक समय में विकृत खान-पान से भोजन का पाचन उचित रूप में नही होने से आम का निर्माण होता है, जिससे उदर रोग एवं अनेक बीमारियां होती है। पाचन शक्ति के कम होने से उपापचय की क्र्रियाओं में भी विकृति आ जाती है। प्राकृतिक चिकित्सा में इन विकृतियों का उपचार उपवास द्वारा किया जाता है। उपवास द्वारा आमाशय खाली रहने के कारण आकाश तत्व की समावस्था बनी रहती है। उपवास से पाचक अग्नि तीव्र होती है, उदर रोगों में लाभ होता है एवं शरीर व मन हल्का होता है। स्वस्थ व्यक्ति को समय-समय पर उपवास करना चाहिए एवं रोगी व्यक्ति को अपने शरीर के सामथ्र्य को ध्यान मे रखते हुए उपवास करना चाहिए। यदि उपवास के समय दुर्बलता महसूस हो तो मुनक्का, किशमिश, नारियल पानी, फलों का रस या नींबू का रस थोडी-थोडी मात्रा में लेना चाहिए। उपवास दो प्रकार का है- पूर्ण निराहार एवं फलाहार। इसके अतिरिक्त निर्जल एंव सजल उपवास भी प्रचलित है।
विश्रमणः– विश्राम हमारी दिनचर्या का महत्वपूर्ण भाग है। लगातार शारीरिक श्रम करने, मानसिक श्रम करने अथवा खेल-कूद आदि के बाद शरीर थक जाता है और शरीर में ऊर्जा कम होने लगती है। शरीर एवं मन को पुनः तरो-ताजा करने के लिए सुखमय वातावरण में शवासन की अवस्था में थोडे समय के लिए आराम पूर्वक लेटकर विश्रमण का अभ्यास करना चाहिए। मन में सकारात्मक चिंतन के साथ श्वांस एवं प्रश्वांस पर ध्यान केंद्रित करने से शीघ्र स्वास्थ्य लाभ होता है।
जल चिकित्साः– प्राकृतिक चिकित्सा में जल का बहुत अधिक महत्व है। डा जे.एच. किलोग ने जल चिकित्सा पर बहुत अधिक कार्य किया। इनकी “रेशनल हाइड्रोथैरेपी” जल चिकित्सा की सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक है। जल की तरलता, अवशोषण, घुलनशीलता, विसर्जन एवं तापनियामक गुणों के कारण यह शरीर से विजातीय तत्वों के साथ-साथ उपापचय से बने अन्य विषैले तत्वों को भी शरीर से बाहर निकालने में सहायता करता है। जल का उपयोग आभ्यांतर एवं बाह्य दो विधियों से किया जाता है। बाह्य विधियों में कटि स्नान, मेहन स्नान, पाद स्नान, तरेरा नीप, पिण्डली स्नान, पृष्ठवंश स्नान, हस्त स्नान एवं जलमग्न स्नान, आदि विभिन्न स्नानों एवं ठण्डे व गर्म जल की पट्टीयों तथा लपेटों के माध्यम से चिकित्सा की जाती है। ये भी तापमान के आधार पर शीतल एवं उष्ण दो प्रकार के होते है। आभ्यांतर प्रयोग में उषापान, कुंजल, जलनेति, जलबस्ति आदि विधियों को लिया जाता है।
मृतिका उपयोगः- प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार यह शरीर मिट्टी से बना है, एवं मिट्टी में पैदा हुए अन्न, आहार आदि से ही शरीर का निर्माण एवं वर्धन होता है। मिट्टी के रंगो के आधार पर एवं स्थान के आधार पर उनके अलग-अलग उपयोग प्राकृतिक चिकित्सा मे बताए गये है। मिट्टी मे त्वचा के रोगों को एवं घावों को ठीक करने की अद्भुत क्षमता होती है। विभिन्न प्रकार के लेप एवं पट्टीयों के रूप में मृतिका का उपयोग किया जाता है। कील-मुहांसो के लिए मुलतानी मिट्टी का लेप एवं बालों की समस्या में तालाब की मिट्टी का लेप तो भारत में घर-घर में प्रचलित है। मिट्टी में घुलाने व अवशोषण करने की शक्ति होती है जिससे यह विजातीय द्रव्यो को घुलाकर अवशोषित कर लेती है। ऊनी या सूती वस्त्र खण्ड के माध्यम से गीली मिट्टी को यथा स्थान बांध देना ही मृतिका-पुलटिस है। मिट्टी की पट्टी गर्मी को खीचती है और विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालती है। प्राकृतिक चिकित्सा में मृतिका स्नान भी किया जाता है। एडाल्फ जस्ट के अनुसार पाचन क्रिया को ठीक करने के लिए जमीन पर सोने से बढकर दूसरा कोई उपाय नही है। उन्होंने भूमि सेवन के दो उपाय बताये- नंगे पांव जमीन पर चलना एवं टहलना तथा जमीन पर लेटना व सोना। धरती के सीधे सम्पर्क से पृथ्वी की जीवनीय शक्ति प्राप्त होती है।
खुद डॉक्टर बनें, घर पर करें इलाज
अन्य पैथियों में डॉक्टर इलाज करता है लेकिन नेचुरोपैथी कहती है कि आप खुद इलाज कीजिए. यह बताती है कि आपके शरीर में क्या रोग है इसकी सबसे बेहतर और सटीक जानकारी आपको होती है जो आप चिकित्सक को दिखाने जाते हैं तो बताते हैं लेकिन आप इसका इलाज घर पर ही कर सकते हैं. जो चीजें आपके शरीर को नुकसान पहुंचा रही हैं, उनका इस्तेमाल घटाकर, लाभ की चीजों का इस्तेमाल बढ़ा सकते हैं. नेचुरोपैथी स्वास्थ्य के लिए ‘दो रसोई’ के सिद्धांत पर भी काम करती है।
दो रसोई सिद्धांत, कैसे चुनें और इस्तेमाल करें
प्राकृतिक चिकित्सा कहती है हर व्यक्ति के पास दो रसोई उपलब्ध हैं, एक प्रकृति की रसोई और दूसरी मानव की रसोई. आजकल बीमारियों का कारण है कि मानव प्राकृतिक रसोई से ज्यादा मानव रसोई का इस्तेमाल कर रहा है।
प्रकृति की रसोई– इस रसोई में प्राकृतिक रूप से सभी मुफ्त मिलने वाली चीजें शामिल हैं जैसे पेड़ पौधे, फल, फूल, पानी, हवा, अन्न या अनाज, धूप आदि. नेचुरोपैथी के अनुसार शरीर शोधन के लिए प्रकृति की रसोई से 60 से 80 फीसदी भोजन किया जाना चाहिए. व्यक्ति फलों का जूस पीएं, सलाद खाएं, प्राकृतिक रूप में मौजूद सब्जी और फलों का उपयोग करे. यानि प्रकृति से जैसे मिल रहे हैं वैसे ही इस्तेमाल करें।
मानव की रसोई– वहीं दूसरी है मानव रसोई. इस रसोई में मानव या मनुष्यों के द्वारा तैयार किया गया भोजन आता है. नेचुरोपैथी कहती है कि सिर्फ 20 से 40 फीसदी तक ही मानव निर्मित रसोई से भोजन करना चाहिए. जैसे पकाया हुआ, भुना और तला हुआ भोजन. जंक फूड, फास्ट फूड आदि।
स्वस्थ रहने के तीन नियम, नींद, आहार और ब्रह्मचर्य
प्राकृतिक चिकित्सा में ये तीन चीजें स्वस्थ रहने का मूलमंत्र हैं लेकिन इनमें से ब्रह्मचर्य को हटा दिया जाए तो नींद और आहार या भोजन दो प्रमुख चीजें हैं, इन्ही की वजह से बीमारियां फैल रही हैं. इन्हें संतुलित किया जाए तो स्वस्थ रहा जा सकता है. नेचुरोपैथी कहती है कि इतना श्रम या मेहनत करें कि आपको भूख लगे और ऐसा भोजन करें कि आपको नींद आ जाए. इसका तात्पर्य है कि सुबह उठकर मेहनत, वर्कआउट, व्यायाम या काम करें, ताकि भूख लगने लगे और प्रकृति की रसोई में से ज्यादा से ज्यादा भोजन करें ताकि अच्छी नींद आ जाए. सिर्फ इन दो चीजों से स्वस्थ रहा जा सकता है।
हमें दिनचर्या को बदलना होगा
हमें जीवन में सही आहार नियमित व्यायाम सही मानशिक दृष्टिकोण और जीवन शैली में परिवर्तन के द्वारा प्रतिरक्षा में सुधार करने के लिए दिनचर्या को बदलना पड़ेगा। जिससे वैश्विक महामारी कोरोना कोविड:19 में व्यक्ति की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ सके।
प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़े रोचक तथ्य
इस राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस पर प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य देखें:
* प्राकृतिक चिकित्सा केवल रोग के उपचार पर ही नहीं बल्कि समग्र रूप से रोगी पर ध्यान केंद्रित करती है।
* माना जाता है कि प्रारंभिक प्राकृतिक चिकित्सा आंदोलन जर्मनी में शुरू हुआ था।
* प्राकृतिक चिकित्सा की मदद से तीव्र और पुरानी दोनों स्थितियों का इलाज किया जा सकता है।
* कई चिकित्सा समुदाय प्राकृतिक चिकित्सा को यह कहते हुए अस्वीकार करते हैं कि इसका अपर्याप्त वैज्ञानिक आधार है।
* यूनानी “चिकित्सा के जनक” हिप्पोक्रेट्स को प्राकृतिक चिकित्सा का पहला समर्थक माना जाता है।
* बेनेडिक्ट लस्ट को माना जाता है “अमेरिकी प्राकृतिक चिकित्सा के जनक”।
यूं तो भारत में चिकित्सा की यह पद्धति सदियों पुरानी है लेकिन आज बीमारियों और महामारियों के बढ़ते प्रकोप के दौरान शरीर को स्वस्थ रखने के लिए यह काफी अहम हो गई है. नेचुरोपैथी लोगों को बीमार न पड़ने के अचूक नुस्खे बताती है, साथ ही आपात स्थिति में खुद का इलाज कैसे करें, इसके उपाय और तरीके भी बताती है. सबसे बड़ी बात है कि एक सामान्य व्यक्ति भी थोड़ी सी समझ और स्वचिकित्सा के माध्यम से खुद को बीमारियों से दूर रख सकता है. ये पैथी अस्पतालों के चक्कर नहीं कटवाती, बल्कि अस्पतालों से मुक्ति दिलाती है।