
अश्वनि मास की दशमी तिथि को पूरे देश में दशहरे या विजयादशमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। इस बार यह शुभ तिथि 24अक्टूबर दिन मंगलवार को है। दशहरे के पर्व को विजयादशमी या आयुधपूजा के नाम से भी जाना जाता है। विजयादशमी के पर्व को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध भगवान राम द्वारा रावण का वध और मां दुर्गा द्वारा महिषासुर नामक राक्षस का अंत शामिल है। उनकी इस जीत की खुशी देशभर में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में इस पर्व के साथ मनाई जाती है। विजयादशमी के दिन रामलीलाओं में रावण के साथ कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों का दहन भी किया जाता है। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
दशहरे के इस पर्व को विजयादशमी भी कहा जाता है, इसे जश्न का त्यौहार कहते हैं. आज के वक्त में यह बुराई पर अच्छाई की जीत का ही प्रतीक हैं. बुराई किसी भी रूप में हो सकती हैं जैसे क्रोध, असत्य, बैर, इर्षा, दुःख, आलस्य आदि. किसी भी आतंरिक बुराई को ख़त्म करना भी एक आत्म विजय हैं और हमें प्रति वर्ष अपने में से इस तरह की बुराई को खत्म कर विजय दशमी के दिन इसका जश्न मनाना चाहिये, जिससे एक दिन हम अपनी सभी इन्द्रियों पर राज कर सके।
दशहरा 2023 में कब है?
दशहरा अश्विन माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है. यह नवरात्र खत्म होते ही अगले दिन आने वाला त्योंहार है. 2023 में 24 अक्टूबर मंगलवार के दिन मनाया जाएगा. इसे विजय पर्व या विजयदशमी के रूप में भी मनाया जाता है. भारत में कुछ जगहों पर इस दिन रावण को जलाया नहीं जाता बल्कि उसकी पूजा भी की जाती है. यह जगह इस प्रकार है – कर्नाटक के कोलार, मध्यप्रदेश के मंदसौर, राजस्थान के जोधपुर, आंध्रप्रदेश के काकीनाडा और हिमाचल के बैजनाथ इत्यादि जगहों पर रावण की पूजा की जाती है।
दशहरा या विजयादशमी महत्व
यह बुरे आचरण पर अच्छे आचरण की जीत की ख़ुशी में मनाया जाने वाला त्यौहार हैं. सामान्यतः दशहरा एक जीत के जश्न के रूप में मनाया जाने वाला त्यौहार हैं. जश्न की मान्यता सबकी अलग-अलग होती हैं. जैसे किसानो के लिए यह नयी फसलों के घर आने का जश्न हैं. पुराने वक़्त में इस दिन औजारों एवम हथियारों की पूजा की जाती थी, क्यूंकि वे इसे युद्ध में मिली जीत के जश्न के तौर पर देखते थे. लेकिन इन सबके पीछे एक ही कारण होता हैं बुराई पर अच्छाई की जीत. किसानो के लिए यह मेहनत की जीत के रूप में आई फसलो का जश्न एवम सैनिको के लिए युद्ध में दुश्मन पर जीत का जश्न हैं।
बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजय दशमी
बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजय दशमी इस साल 24 अक्टूबर को मनाई जा रही है. नवरात्रि के नौ दिवसीय लंबे त्योहार के बाद मनाया जाने वाला, विजया दशमी उत्सव दुर्गा पूजा का 10 वां और अंतिम दिन है. किंवदंतियों के अनुसार इस दिन को राक्षस रावण पर भगवान राम की जीत के साथ-साथ भैंस राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को दशहरा के नाम से भी जाना जाता है वहीं नेपाल में इस दिन को दशईं के रूप में मनाया जाता है।
जलाये जाते हैं रावण के पुतले
हालांकि दशहरा नवरात्रि या दुर्गा पूजा का हिस्सा नहीं है, यह उनके साथ जुड़ा हुआ है क्योंकि इस दिन देवी दुर्गा की मूर्तियों को पवित्र जल में विसर्जित किया जाता है. दूसरी ओर, दशहरा उत्सव के एक भाग के रूप में रावण, मेघनाद और कुनभाकरण के पुतले जलाए जाते हैं।
देवी जया और विजया का करें पूजन
दशहरे के पर्व से वर्षा ऋतु की समाप्ति और शरद ऋतु का आरंभ हो जाता है। इस दिन अपराजिता देवी के साथ देवी जया और विजया की भी पूजा की जाती है। जो जातक हर साल दशहरे पर जया और विजया की पूजा करते हैं, उनकी शत्रु पर हमेशा विजय होती है और कभी असफलता का मुख नहीं देखना पड़ता। ये देवी पार्वती की दो सहचरियां हैं, इनको पराजय को हरने वाली और विजय प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। मान्यता है कि भगवान राम नौ दिन तक मां दुर्गा की उपासना की और फिर जया-विजया देवियों का पूजन किया था। इसके बाद राम रावण से युद्ध करने निकले थे।
विजयादशमी तिथि 2023
दशमी तिथि प्रारंभ- दशमी तिथि 23 अक्तूबर को शाम बजकर 44 मिनट से शुरू
दशमी तिथि समाप्त- 24 अक्तूबर 2023 को दोपहर 03 बजकर 14 मिनट तक
विजयादशमी शस्त्र पूजा और रावण दहन का शुभ मुहूर्त 2023
अभिजित मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 43 मिनट से दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक
पहला विजयी मुहूर्त- दोपहर 01 बजकर 58 मिनट से 02 बजकर 43 मिनट तक
दूसरा विजयी मुहूर्त- इस विजय मुहूर्त की अवधि शाम के समय होती जब आसमान में तारे दिखाई देते हैं।
अपराह्र पूजा का समय- दोपहर 01 बजकर 13 मिनट से 03 बजकर 28 मिनट तक
गोधूलि पूजा मुहूर्त- शाम 05 बजकर 43 मिनट से 06 बजकर 09 मिनट तक
दशहरा 2023 शुभ योग
दशहरा वाले दिन 24 अक्टूबर 2023 को रवि योग, त्रिग्रही योग का संयोग बन रहा है. ऐसे में इस दिन पूजा और खरीदारी का विशेष लाभ मिलेगा।
रवि योग – सुबह 06.27 – दोपहर 03.28 (24 अक्टूबर 2023)
त्रिग्रही योग – दशहरा वाले दिन मंगल, सूर्य और बुध तुला राशि में विराजमान रहेंगे. इन तीन ग्रहों की युति से त्रिग्रही योग का निर्माण होगा. ये एक दुर्लभ संयोग है. इसके प्रभाव से साधक को हर कार्य में सफलता और आर्थिक लाभ मिलता है।
अबूझ मुहूर्त है विजयादशमी
दशहरा का पूरा दिन शुभ होता है, इस दिन व्यापार शुभारंभ, यात्रा, शस्त्र-पूजा, कार्यालय शुभारंभ, संपत्ति क्रय-विक्रय आदि के लिए दिन में कोई मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं है, हालांकि दशहरा के समय देवशयन चल रहा होता है. इसलिए इस मुहूर्त में विवाह और वास्तु पूजा नहीं की जाती है।
रावण दहन का मुहूर्त
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में रावण दहन करना शुभ माना जाता है। ऐसे में 24 अक्तूबर को शाम 05 बजकर 43 मिनट के बाद रावण दहन किया जा सकता है। वहीं रावण दहन का सबसे उत्तम समय शाम 07 बजकर 19 मिनट से रात 08 बजकर 54 मिनट के बीच का रहेगा।
दशहरा पूजा विधि
दशहरे की पूजा दोपहर के समय करना उत्तम रहता है। इस दिन घर के ईशान कोण में 8 कमल की पंखुड़ियों से अष्टदल चक्र बनाया जाता है। इसके बाद अष्टदल के बीच में अपराजिताय नमः: मंत्र का जप करना चाहिए और मां दुर्गा के साथ भगवान राम की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद माता जया को राइट और विजया को लेफ्ट तरफ स्थापित करें। अब माता को रोली, अक्षत, फूल आदि पूजा की सामग्री अर्पित करें और भोग लगाएं। माता की आरती भी करें और जयकारे भी लगाएं। कुछ जगहों पर गाय के गोबर से 9 गोले व 2 कटोरियां बनाई जाती हैं। इन कटोरियों में से एक में सिक्के और दूसरी रोली, चावल, जौ व फल रख दें। इसके बाद प्रतिमा पर जौ, केले, मूली और गुड़ आदि अर्पित कर दें। अगर बहीखाते या शस्त्रों की पूजा कर रहे हैं तो पूजा स्थल पर इन चीजों को भी रख दें और इन पर भी रोली व अक्षत लगाएं। इसके बाद यथाशक्ति अनुसार दान-दक्षिणा दें और गरीबों व अवश्य को भोजन अवश्य कराएं। शाम के समय रावण दहन हो जाए तो शमी की पत्तियां अपने परिजनों को दे दें फिर सभी घर के बड़े-बुजुर्गों के चरण स्पर्श करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।
दशहरा शस्त्र और शस्त्रों की पूजा
सनातन धर्म में यह परंपरा आज से नहीं बल्कि सालों से चली आ रही है, हर वर्ष दशहरे के दिन विधि-विधान से इस परंपरा का पालन किया जाता है. इस दिन शस्त्र-शास्त्रों के पूजन का खास विधान है. ऐसा माना जाता है कि क्षत्रिय इस दिन शस्त्र और ब्राह्मण इस दिन खासतौर से शास्त्रों का पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन जो भी कार्य शुरु किया जाए उसमें निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है. प्राचीन काल से ही यह परंपरा चली आ रही है उस समय में भी योद्धा युद्ध पर जाने के लिए दशहरे के दिन का चयन करते थे।
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शस्त्र पूजा शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि दोपहर 03 बजकर 14 मिनट तक है। इसके पश्चात, एकादशी तिथि शुरू हो जाएगी। अतः 3 बजे तक दशहरा है। वहीं, शस्त्र पूजा के लिए शुभ समय दोपहर 01 बजकर 58 मिनट से लेकर 02 बजकर 43 मिनट तक है। इस दौरान शस्त्र पूजा कर सकते हैं।
पूजा विधि
आज दैनिक कार्यों से निवृत होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इसके बाद विधि-विधान से भगवान श्रीराम और जगत-जननी आदिशक्ति मां जगदंबा की पूजा करें। इस समय एक चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर शस्त्र रखें। शस्त्र से कारतूस निकाल दें। साथ ही बच्चों को भी शस्त्र से दूर रखें। अब निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
आश्विनस्य सिते पक्षे
दशम्यां तारकोदये।
स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यार्थसिद्धये॥
इसके पश्चात पंचोपचार कर शस्त्र की पूजा करें। शस्त्र पर कुमकुम लगाएं, लाल रंग के फूल अर्पित करें। इस समय काली चालीसा और काली कवच का पाठ करें। साथ ही राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें। पूजा के अंत में मां काली की आरती कर वीरता, विजय और पराक्रम का वरदान मांगें। इसके पश्चात, घर के बड़े लोगों के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करें। शस्त्र पूजा के पश्चात, रावण दहन किया जाता है।
नाबालिग बच्चों को रखा जाता है दूर
वैसे लगभग हर पूजा में बच्चों को शामिल किया जाता है, लेकिन शस्त्र पूजा इकलौती ऐसी पूजा है जिसमें बच्चों को दूर ही रखा जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि किसी भी बच्चे को किसी भी तरह की हिंसक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन ना मिले।
भारतीय सेना भी इस दिन करती है शस्त्र पूजा
इस शुभ अवसर पर हमारे देश की सेना भी शस्र पूजा करती है, इससे ही दशहरे के दिन शस्र पूजा के महत्व का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. इस दिन पूजा में मां भगवती की दोनों योगनियां जया और विजया की पूजा करने का विधान है, जिसके बाद शस्त्र पूजन किया जाता है. इस शुभ अवसर पर मां दुर्गा से हर युद्ध में जीत और सीमाओं की सुरक्षा का वचन लिया जाता है।
शस्त्र पूजा में रखें इन बातों का ध्यान
* दशहरे पर शस्त्र पूजा करते समय अपने शस्त्रों को बेहद सावधानी के साथ साफ करें।
* शस्त्र पूजा करते समय शस्त्रों से छोटे बच्चों को विशेष रूप से दूर रखें।
* शस्त्र पूजन के दिन किसी भी शस्त्र के साथ खिलवाड़ करने की भूल नहीं करना चाहिए।
दशहरा के दिन नीलकंठ पक्षी का दिखना होता है बेहद शुभ
मान्यता है कि नीलकंठ पक्षी महादेव का प्रतिनिधित्व करता है. पौराणिक कथा के अनुसार जिस समय भगवान राम दशानन का वध करने जा रहे थे. तब उन्हें नीलकंठ पक्षी के दर्शन हुए थे. उसी के बाद उन्हें लंकेश का वध करने में सफलता प्राप्त हुई। कहा जाता है कि नीलकंठ पक्षी के दर्शन ने व्यक्ति का भाग्य चमक उठता है. उसे हर कार्य में सफलता मिलने लगती है.
विजयादशमी पर सिंदूर खेला की रस्म
दशमी के सबसे प्रमुख अनुष्ठानों में से एक हैं सिंदूर खेला की परंपरा. यह विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में महिलाओं के द्वारा निभाई जाती है, जहां विवाहित हिंदू महिलाएं देवी को अलविदा कहते हुए एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं. शमी पूजा, अपराजिता पूजा और सीमा हिमस्खलन कुछ ऐसे अनुष्ठान हैं जिनका पालन विजयदशमी के दिन किया जाता है. दृिक पंचांग के अनुसार, इन अनुष्ठानों को अपराहन समय के दौरान किया जाना चाहिए।
रावण को मना जाता है महाज्ञानी
रावण महान ज्ञानी थे. श्री राम के ब्रह्म बाण नाभि में लगने के बाद और रावण के धराशाही होने के बीच कालचक्र ने जो रचना की उसने रावण को पूजने योग्य बना दिया. यह वह समय था जब राम ने लक्ष्मण से कहा था कि रावण के पैरों की तरफ खड़े होकर सम्मान पूर्वक नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करो, क्योंकि धरातल पर न कभी रावण के जैसा कोई ज्ञानी पैदा हुआ है और न कभी होगा. रावण का यही स्वरूप पूजनीय है और इसी स्वरुप को ध्यान में रखकर कानपुर में दशहरे के दिन रावण की पूजा करने का विधान है।
दशहरा पर्व की कहानी क्या है, क्यों मनाया जाता है?
दशहरा के दिन के पीछे कई कहानियाँ हैं, जिनमे सबसे प्रचलित कथा हैं भगवान राम का युद्ध जीतना अर्थात रावण की बुराई का विनाश कर उसके घमंड को तोड़ना।
राम अयोध्या नगरी के राजकुमार थे, उनकी पत्नी का नाम सीता था एवम उनके छोटे भाई थे, जिनका नाम लक्ष्मण था. राजा दशरथ राम के पिता थे. उनकी पत्नी कैकई के कारण इन तीनो को चौदह वर्ष के वनवास के लिए अयोध्या नगरी छोड़ कर जाना पड़ा. उसी वनवास काल के दौरान रावण ने सीता का अपहरण कर लिया। रावण चतुर्वेदो का ज्ञाता महाबलशाली राजा था, जिसकी सोने की लंका थी, लेकिन उसमे अपार अहंकार था. वो महान शिव भक्त था और खुद को भगवान विष्णु का दुश्मन बताता था. वास्तव में रावण के पिता विशर्वा एक ब्राह्मण थे एवं माता राक्षस कुल की थी, इसलिए रावण में एक ब्राह्मण के समान ज्ञान था एवम एक राक्षस के समान शक्ति और इन्ही दो बातों का रावण में अहंकार था. जिसे ख़त्म करने के लिए भगवान विष्णु ने रामावतार लिया था। राम ने अपनी पत्नी सीता को वापस लाने के लिए रावण से युद्ध किया, जिसमे वानर सेना एवम हनुमान जी ने राम का साथ दिया. इस युद्ध में रावण के छोटे भाई विभीषण ने भी भगवान राम का साथ दिया और अन्त में भगवान राम ने रावण को मार कर उसके घमंड का नाश किया। इसी विजय के स्वरूप में प्रति वर्ष विजियादशमी मनाई जाती हैं।
दशहरा पर्व से जुड़ी कथाएं –
1. राम की रावन पर विजय का पर्व।
2. राक्षस महिसासुर का वध कर दुर्गा माता विजयी हुई थी।
3. पांडवों का वनवास।
4. देवी सती अग्नि में समां गई थी।
आज दहशरा कैसे मनाया जाता हैं ?
आज के समय में दशहरा इन पौराणिक कथाओं को माध्यम मानकर मनाया जाता हैं. माता के नौ दिन की समाप्ति के बाद दसवे दिन जश्न के तौर पर मनाया जाता हैं. जिसमे कई जगहों पर राम लीला का आयोजन होता है, जिसमे कलाकार रामायण के पात्र बनते हैं और राम-रावण के इस युद्ध को नाटिका के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
दशहरा का मेला
* कई जगहों पर इस दिन मैला लगता है, जिसमे दुकाने एवम खाने पीने के आयोजन होते हैं. उन्ही आयोजनों में नाट्य नाटिका का प्रस्तुतिकरण किया जाता हैं।
* इस दिन घरों में लोग अपने वाहनों को साफ़ करके उसका पूजन करते हैं. व्यापारी अपने लेखा का पूजन करते हैं. किसान अपने जानवरों एवम फसलो का पूजन करता हैं. इंजिनियर अपने औजारों एवम अपनी मशीनों का पूजन करते हैं।
* इस दिन घर के सभी पुरुष एवम बच्चे दशहरे मैदान पर जाते हैं. वहाँ रावण, कुम्भकरण एवम रावण पुत्र मेघनाथ के पुतले का दहन करते है. सभी शहर वासियों के साथ इस पौराणिक जीत का जश्न मनाते हैं. मैले का आनंद लेते हैं. उसके बाद शमी पत्र जिसे सोना चांदी कहा जाता हैं उसे अपने घर लाते हैं. घर में आने के बाद द्वार पर घर की स्त्रियाँ, तिलक लगाकर आरती उतारकर स्वागत करती हैं. माना जाता हैं कि मनुष्य अपनी बुराई का दहन करके घर लौटा है, इसलिए उसका स्वागत किया जाता हैं. इसके बाद वो व्यक्ति शमी पत्र देकर अपने से बड़ो के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेता हैं. इस प्रकार घर के सभी लोग आस पड़ोस एवम रिश्तेदारों के घर जाकर शमी पत्र देते हैं एवम बड़ो से आशीर्वाद लेते हैं, छोटो को प्यार देते हैं एवम बराबरी वालो से गले मिलकर खुशियाँ बाटते हैं।
* अगर एक पंक्ति में कहे तो यह पर्व आपसी रिश्तो को मजबूत करने एवम भाईचारा बढ़ाने के लिए होता हैं, जिसमे मनुष्य अपने मन में भरे घृणा एवम बैर के मेल को साफ़ कर एक दुसरे से एक त्यौहार के माध्यम से मिलता हैं।
* इस प्रकार यह पर्व भारत के बड़े- बड़े पर्व में गिना जाता हैं एवम पुरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं।
* हमारे देश में धार्मिक मान्यताओं के पीछे बस एक ही भावना होती हैं, वो हैं प्रेम एवं सदाचार की भावना. यह पर्व हमें एकता की शक्ति याद दिलाते हैं जिन्हें हम समय की कमी के कारण भूलते ही जा रहे हैं, ऐसे में यह त्यौहार ही हमें अपनी नींव से बाँधकर कर रखते हैं।
दशहरे का बदलता रूप
आज के समय में त्यौहार अपनी वास्तविक्ता से अलग जाकर आधुनिक रूप ले रहे हैं, जिसने इसके महत्व को कहीं न कहीं कम कर दिया हैं| जैसे-
* दशहरे पर एक दुसरे के घर जाने का रिवाज था, अब ये रिवाज मोबाइल कॉल एवम इंटरनेट मेसेज का रूप ले चुके हैं।
* खाली हाथ नहीं जाते थे, इसलिए शमी पत्र ले जाते थे, लेकिन अब इसके बदले मिठाई एवम तौहफे ले जाने लगे हैं, जिसके कारण यह फिजूल खर्च के साथ प्रतिस्पर्धा का त्यौहार बन गया हैं।
* रावण दहन के पीछे उस पौराणिक कथा को याद रखा जाता था, जिससे एक सन्देश सभी को मिले कि अहंकार सर्वनाश करता हैं, लेकिन अब तरह- तरह के फटाके फोड़े जाते हैं, जिनके कारण फिजूल खर्च बढ़ गया हैं. साथ ही प्रदुषण की समस्या बढ़ती जा रही हैं एवम दुर्घटनायें भी बढती जा रही हैं।
* इस प्रकार आधुनिकरण के कारण त्यौहारों का रूप बदलता जा रहा हैं. और कहीं न कहीं आम नागरिक इन्हें धार्मिक आडम्बर का रूप मानकर इनसे दूर होते जा रहे हैं. इनका रूप मनुष्यों ने ही बिगाड़ा हैं. पुराणों के अनुसार इन सभी त्योहारों का रूप बहुत सादा था. उसमे दिखावा नहीं बल्कि ईश्वर के प्रति आस्था थी. आज ये अपनी नींव से इतने दूर होते जा रहे हैं कि मनुष्य के मन में कटुता भरते जा रहे हैं. मनुष्य इन्हें वक्त एवम पैसो की बर्बादी के रूप में देखने लगा हैं।
* हम सभी को इस वास्तविक्ता को समझ कर सादगी के रूप में त्यौहारों को मनाना चाहिये. देश की आर्थिक व्यवस्थता को सुचारू रखने में भी त्यौहारों का विशेष योगदान होता हैं इसलिए हमें सभी त्यौहार मनाना चाहिये।
दशहरा का महत्व व सीख
दशानन रावण प्रकांड पंडित और विद्वान था, परंतु उसके मन का अहंकार उसकी मृत्यु का कारण बना। दशहरा अहंकारी रावण के पतन की कहानी कहता है। यह दिन न सिर्फ धर्म पर अधर्म की जीत को दर्शाता है अपितु इंसान को अहंकार न करने और सदमार्ग पर चलने की सीख भी देता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष तिथि को भगवान राम ने युद्ध में रावण का वध किया था। माना जाता है कि भगवान श्री राम ने भी मां दुर्गा की पूजा कर शक्ति का आह्वान किया था, इसके पश्चात दशमी के दिन प्रभु श्री राम ने रावण का अंत किया। इसलिए यह दिन अपार शक्ति मां जगदंबा के पूजन का भी माना जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार, इसी दिन माता दुर्गा ने महिषासुर का संहार भी किया था।
यह दिन है जीत का, जश्न का, मेले का, ख़ुशी का और सीख का। सीख की भले कितना भी विलंब क्यों ना हो जाए, सच और अच्छाई की जीत ज़रूर होती है और जब जीत हासिल हो जाती है तो पूरी दुनिया उसका जश्न मनाती है।
”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”