हर साल माघ माह की पूर्णिमा तिथि को श्री गुरु रविदास जी की जयंती पूरे भारतवर्ष में बड़े उत्साह और धूमधाम के साथ मनायी जाती है। वर्ष 2023 में 05 फरवरी की तारीख़ को रविवार के दिन उनकी 646वीं जन्म जयंती मनाई जा रही है। वे भारत के महान दार्शनिक, संत, गुरु, कवि, उपासक और समाज सुधारक थे जिन्होंने बड़े ही प्रभावी तरीके से ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा‘ जैसे अपने शब्दों पर लोगों को पुनः विचार करने पर मजबूर कर दिया। यह आज भी एक कहावत के तौर पर लोगों की जुबान पर आ ही जाती है।
15वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी के बीच चले भक्ति आंदोलन के चरम के दौरान, ऐसे कई महान कवि और धार्मिक गुरु हुए जिन्होंने दुनिया को अपार ज्ञान और ज्ञान दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी छिपी हुई प्रतिभा को उजागर किया है और कविताओं, भजनों, छंदों और विभिन्न प्रकार की सामग्री के माध्यम से अपने काम का प्रसार किया है। और, विभिन्न कवियों और धार्मिक गुरुओं में, रविदास लोकप्रिय रहस्यवादी कवियों और गीतकारों में से एक हैं, जो 1400 और 1500 ईस्वी के बीच रहे हैं। कवि रविदास का “भक्ति आंदोलन” पर बहुत प्रभाव था, जो हिंदू धर्म के अनुसार “आध्यात्मिक भक्ति आंदोलन” था। बाद में इस आंदोलन ने नया रूप लिया और सिख धर्म की शुरुआत हुई। रविदास के भक्ति छंदों को गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से सिख धर्मग्रंथों में शामिल किया गया था। हालाँकि, उनके अनुयायियों ने 21 वीं सदी में ‘रविदासिया’ धर्म की स्थापना की। रविदासिया के अनुयायी हर साल श्रद्धापूर्वक गुरु रविदास जयंती मनाते हैं। भक्त विभिन्न अनुष्ठान करते हैं और गुरु रविदास के गीतों और कविताओं का जाप करते हैं। सभी भक्त गुरु रविदास की तस्वीर के साथ जुलूस निकालते हैं और गंगा नदी में स्नान करते हैं। कुछ लोग रविदास को समर्पित मंदिर की तीर्थ यात्रा पर भी जाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। एक महान संत, दार्शनिक, कवी, समाज सुधारक और भारत में भगवान के अनुयायी हुआ करते थे. निर्गुण सम्प्रदाय के ये बहुत प्रसिद्ध संत थे, जिन्होंने उत्तरी भारत में भक्ति आन्दोलन का नेतृत्व किया था. रविदास जी बहुत अच्छे कवितज्ञ थे, इन्होने अपनी रचनाओं के माध्यम से, अपने अनुयायीयों, समाज एवं देश के कई लोगों को धार्मिक एवं सामाजिक सन्देश दिया. रविदास जी की रचनाओं में, उनके अंदर भगवान् के प्रति प्रेम की झलक साफ़ दिखाई देती थी, वे अपनी रचनाओं के द्वारा दूसरों को भी परमेश्वर से प्रेम के बारे में बताते थे, और उनसे जुड़ने के लिए कहते थे. आम लोग उन्हें मसीहा मानते थे, क्यूंकि उन्होंने सामाजिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बड़े बड़े कार्य किये थे. कई लोग इन्हें भगवान् की तरह पूजते थे, और आज भी पूजते है. लोग रविदास जी के गाने, वचनों को आज भी उनके जन्म दिवस पर सुनते है. रविदास जी उत्तरप्रदेश, पंजाब एवं महाराष्ट्र में सबसे अधिक फेमस और पूजनीय है।
गुरु रविदास का जीवन परिचय
पूरा नाम : गुरु रविदास, अन्य नामरैदास, रोहिदास, रूहिदास
जन्म : 1377 AD
जन्म स्थान : वाराणसी, उत्तरप्रदेश
पिता का नाम : संतोख दास
:माता का नाम : श्रीमती कलसा देवी
दादा का नाम : कालू राम
दादी का नाम : श्रीमती लखपति
पत्नी : श्रीमती लोना
बेटा : विजय दास
बेटी : रविदासनी
मृत्यु : 1540 AD (वाराणसी)
रविदास जयंती तिथि : 05 फरवरी (रविवार)
पूर्णिमा तिथि : 05 फरवरी (रविवार) पूर्णिमा शुरू : 04 फरवरी (रात 09:21)
पूर्णिमा समापन : 06 फरवरी (रात 11:58)
अगली बार : 24 फरवरी 2024
संत रविदास का आगे का जीवन
रविदास जी जैसे जैसे बड़े होते जाते है, भगवान राम के रूप के प्रति उनकी भक्ति बढ़ती जाती है. वे हमेशा राम, रघुनाथ, राजाराम चन्द्र, कृष्णा, हरी, गोविन्द आदि शब्द उपयोग करते थे, जिससे उनकी धार्मिक होने का प्रमाण मिलता था. रविदास जी मीरा बाई के धार्मिक गुरु हुआ करते थे. मीरा बाई राजस्थान के राजा की बेटी और चित्तोर की रानी थी. वे रविदास जी की शिक्षा से बहुत अधिक प्रभावित थी और वे उनकी एक बड़ी अनुयायी बन गई थी. मीरा बाई ने अपने गुरु के सम्मान में कुछ पक्तियां भी लिखी थी, जैसे – ‘गुरु मिलया रविदास जी..’ मीरा बाई अपने माँ बाप की एकलौती संतान थी, बचपन में इनकी माता के देहांत के बाद इनके दादा ‘दुदा जी’ ने इनको संभाला था. दुदा जी रविदास जी के बड़े अनुयाई थे, मीरा बाई अपने दादा जी के साथ हमेशा रविदास जी से मिलती रहती थी. जहाँ वे उनकी शिक्षा से बहुत प्रभावित हुई. शादी के बाद मीरा बाई ने अपनी परिवार की रजामंदी से रविदास जी को अपना गुरु बना लिया था. मीरा बाई अपनी रचनाओं में लिखती है, उन्हें कई बार मृत्यु से उनके गुरु रविदास जी ने बचाया था।
गुरु रविदास जयंती कब और क्यों मनाते है?
भारत के महान संत, कवि और भक्त, गुरु रविदास जी की जयंती हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष माघ महीने की शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है उनका जन्म 1433 विक्रम संवत में माघी पूर्णिमा के दिन हुआ माना जाता है। भारत की एक बड़ी आबादी संत रविदास को भगवान के समान मानती और पूजती हैं। जाति प्रथा के उन्मूलन हेतु प्रयासों और भक्ति आन्दोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के कारण रविदास जी पूज्यनीय है, और यह दिन लोगों को शांति, सच्चाई और भाईचारे का संदेश देता है। संत रैदास और उनकी शिक्षाओं को याद करने के मकसद से ही प्रत्येक वर्ष माघी पूर्णिमा को उनकी जन्म जयंती के अवसर पर सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी स्थित गुरू रविदास जन्म स्थान मंदिर में भव्य उत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें दुनियाभर से श्रद्धालु आते है। इतना ही नहीं उनके उपासको द्वारा यह दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, इस दौरान सुबह नगर कीर्तन, सत्संग एवं लंगर आदि का आयोजन भी किया जाता है तथा उनके अनुयायी इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करते है।
संत रविदास जी कौन थे?
संत शिरोमणि रविदास एक महान दार्शनिक, कवि, महान संत, भगवान के उपासक और भारत के महान समाज सुधारकों में से एक थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश में वाराणसी के पास स्थित सीर गोवर्धन गांव में माघ की पूर्णिमा को संवत 1433 में हुआ उन्हें ‘रैदास‘ नाम से भी जाना जाता है। और इनका जन्म स्थान ‘श्री गुरु रविदास जन्म अस्थान‘ के नाम से प्रसिद्ध है। हालांकि उनके जन्म को लेकर सभी लोगों की अपनी अलग राय हैं कुछ लोगों के अनुसार आपका जन्म 1376-77 के दौरान हुआ तो वही कुछ कागजों में उल्लेख है की रविदास जी ने अपना जीवन 1450 से 1520 के बीच पृथ्वी पर बिताया।
माता-पिता और व्यावसायिक जीवन
संत रविदास के पिता का नाम ‘संतोख दास‘ (रग्घु) और माता जी का नाम ‘कर्माबाई‘ (कलसा) था। चर्मकार कुल से होने के कारण उनके पिता चमड़े के जूते बनाने और मरम्मत करने का काम किया करते थे, और रविदास भी इस व्यवसाय में अपने पिता का हाथ बटाया करते थे। हालांकि वह साधु-संतों और फकीरों को नंगे पांव देख अक्सर उन्हें मुफ्त में जूते चप्पल दे दिया करते थे, जिससे नाराज होकर उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया। घर से निकाले जाने पर उन्होंने एक कुटिया बनाई और जूते चप्पल की मरम्मत का काम शुरू किया। इससे होने वाली आमदनी से वह अपना गुजर-बसर करने लगे और साधु संतों की संगत में अपना जीवन बिताने लगे। अच्छे व्यवहार और इनके अंदर समाए ज्ञान के कारण लोग इनके आसपास रहने लगे।
सामाजिक और वैवाहिक जीवन
कथित तौर पर संत रविदास छोटी जाति से संबंध रखते थे जिसके कारण समाज में उनके साथ उस समय काफी भेदभाव किया जाता था। उनके साथ लोग जाति, धर्म और रंग के आधार पर भेदभाव करते थे। परंतु कुछ लोग उन्हें भगवान द्वारा भेजे गए ‘धर्म रक्षक‘ के रूप भी मानते थे। रविदास जी का विवाह ‘लोना‘ नामक कन्या से हुआ। इनकी दो संताने हुई, पुत्र का नाम ‘विजय दास‘ था और पुत्री का नाम ‘रविदासिनी‘ था।
रविदास जी सामाजिक जीवन
लोगों का कहना है, भगवान् ने धर्म की रक्षा के लिए रविदास जी को धरती में भेजा था, क्यूंकि इस समय पाप बहुत बढ़ गया था, लोग धर्म के नाम पर जाति, रंगभेद करते थे. रविदास जी ने बहादुरी से सभी भेदभाव का सामना किया और विश्वास एवं जाति की सच्ची परिभाषा लोगों को समझाई. वे लोगों को समझाते थे कि इन्सान जाति, धर्म या भगवान् पर विश्वास के द्वारा नहीं जाना जाता है, बल्कि वो अपने कर्मो के द्वारा पहचाना जाता है. रविदास जी ने समाज में फैले छुआछूत के प्रचलन को भी ख़त्म करने के बहुत प्रयास किये. उस समय नीची जाति वालों को बहुत नाकारा जाता था. उनका मंदिर में पूजा करना, स्कूल में पढाई करना, गाँव में दिन के समय निकलना पूरी तरह वर्जित था, यहाँ तक कि उन्हें गाव में पक्के मकान की जगह कच्चे झोपड़े में ही रहने को मजबूर किया जाता था. समाज की ये दुर्दशा देख रविदास जी ने समाज से छुआछूत, भेदभाव को दूर करने की ठानी और समान के लोगों को सही सन्देश देना शुरू किया. रविदास जी लोगों को सन्देश देते थे कि ‘भगवान् ने इन्सान को बनाया है, न की इन्सान ने भगवान् को’ इसका मतलब है, हर इन्सान भगवान द्वारा बनाया गया है और सबको धरती में समान अधिकार है. संत गुरु रविदास जी सार्वभौमिक भाईचारे और सहिष्णुता के बारे में लोगों को विभिन्न शिक्षायें दिया करते थे. रविदास जी द्वारा लिखे गए पद, धार्मिक गाने एवं अन्य रचनाओं को सिख शास्त्र ‘गुरु गोविन्द ग्रन्थ साहिब’ में शामिल किया गया है. पांचवे सिख गुरु ‘अर्जन देव’ ने इसे ग्रन्थ में शामिल किया था. गुरु रविदास जी की शिक्षाओं के अनुयायियों को ‘रविदास्सिया’ और उनके उपदेशों के संग्रह को ‘रविदास्सिया पंथ’ कहते है।
संत शिरोमणि रविदास जी के गुरू कौन थे?
संत रविदास जी के गुरु ‘पंडित शारदानंद‘ थे, जिनसे उन्होंने बचपन से ही शिक्षा लेना आरंभ कर दिया था। उन्हें ऊंच-नीच भेदभाव के कारण पाठशाला में पढ़ने नहीं दिया गया था, जिसके बाद पंडित शारदानंद ने रविदास को व्यक्तिगत तौर पर पढ़ाना आरंभ किया। रविदास शुरू से ही काफी होनहार और प्रतिभाशाली थे। उनके गुरु शारदानंद ने शुरू से ही उनमें एक अच्छा अध्यात्मिक गुरु और समाज सुधारक बनने की झलक देख ली थी। कई स्थानों पर यह उल्लेख मिलता है कि स्वामी रामानंद ही संत रविदास और उनके गुरूभाई संत कबीर के गुरू थे, परन्तु इस बात का कोई आधिकारिक प्रमाण नही है की रामानंद ही उनके गुरू थे। कुछ जगहों पर पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब को उनका गुरु तो कुछ लोग गुरुनानक देव को रैदास का गुरु बताते हैं। बताया तो यह भी जाता है कि श्रीकृष्ण की अन्नय भक्त मीराबाई जब स्वामी रामानंद के पास उनकी शिष्या बनने गयी तो उन्होंने उन्हें रविदास के पास जाने को कहा। जिसके बाद रविदास ने मीराबाई को शिष्या के रूप में स्वीकार कर लिया और उनके गुरू बने।
रविदास जी की मृत्यु कब और कैसे हुई?
रविदास जी की मृत्यु का षड्यंत्र उनके दिन-प्रतिदिन बढ़ते अनुयायियों और भगवान के प्रति उनके प्रेम सद्भावना, मानवता और सच्चाई से जलने वाले कुछ ब्राह्मणों ने रचा। बताया जाता है कि रविदास जी के विरोधियों द्वारा एक सभा का आयोजन किया गया, और उस सभा में रविदास जी को भी बुलाया गया। रविदास जी इन ब्राह्मणों की चाल से अच्छी तरह वाकिफ थे। जिससे वह तो बच जाते हैं लेकिन गलती से उनके मित्र ‘भला नाथ‘ को मार दिया गया। गुरुजी के उपासको और अनुयायियों की माने तो रविदास जी ने अपने 120-126 वर्ष के शरीर को 1540 AD में वाराणसी में ही प्राकृतिक रूप से त्याग दिया और अपनी अंतिम सांस ली। संत शिरोमणि कवि रविदास जी से हम सभी एकाग्रता, सहनशीलता, कार्य प्रियता, लक्ष्य प्राप्ति पर ध्यान केंद्रित करना, कार्यों को लगन, ईमानदारी और सच्चाई तथा भगवान के प्रति ध्यान लगाना और कई अन्य अच्छी बाते सीख सकते हैं।
संत रविदास जी के योगदान
रविदास जी 15वीं शताब्दी के महान संत, कवि और ईश्वर के भक्त थे, उन्होंने मीरा बाई जैसी कृष्ण भक्त और सिकंदर लोधी जैसे शासकों और करोडो लोगों का उद्धार किया। रविदास जी ने जातिवादी और अध्यात्मिकता वादी विचारों के खिलाफ महत्वपूर्ण कार्य किए और सभी भेदभावों का डटकर मुकाबला किया। वे अक्सर लोगों को यह समझाया करते थे कि ‘इंसान जाति, धर्म या भगवान पर विश्वास के आधार पर नहीं जाना जाता, इंसान केवल अपने कर्मों से ही दुनिया में पहचाना जाता है‘। उनके अनुसार ‘भगवान ने इंसान को बनाया है इंसान ने भगवान को नहीं‘। इसका तात्पर्य यह है कि भगवान द्वारा बनाए गए इंसानों में भेदभाव कैसे हो सकता है? सभी इंसान एक समान है।सिक्खों के पवित्र धर्म ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब‘ में रविदास जी के करीब 40 पद सम्मिलित किए गए हैं।
भेदभाव पर मुहतोड जवाब
दूसरों की क्या कहें? उनकी जाति वाले भी उन्हें आगे बढ़ने से रोकते थे और अक्सर उन्हें यह कहा जाता था, कि तिलक, गेरुए कपड़े और जनेऊ केवल ब्रह्मण और ऊंची जाति वाले लोग पहन सकते हैं हम शुद्र लोग नहीं। परंतु रविदास जी ने जब इन सभी की बातों का खंडन करते हुए, तिलक, जनेऊ और धोती पहनी तो ब्राह्मणों ने उनके खिलाफ राजा से शिकायत कर दी और राजा ने जब उन्हें सभा में बुलाया तो रविदास जी ने बड़े प्यार से उत्तर दिया कि ‘शूद्र में भी वही लाल रक्त, ह्रदय और दूसरों की तरह ही समान अधिकार है‘। ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने भरी सभा में सबके सम्मुख अपनी ‘छाती चीरकर चारों युगों‘ सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग की तरह ही उनके लिए 4 जनेऊ बना दिए जो सोना, चांदी, तांबा, और कपास से बने थे। यह देख सभा में शामिल सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए और शर्मसार होकर उनके पैरो को छूकर माफी मांगी और उन्हें सम्मानित किया। इस पर रविदास जी ने उन्हें माफ करते हुए कहा कि ‘जनेऊ पहनने से किसी को भगवान नहीं मिल जाता‘ और अपना जनेऊ राजा को दे दिया जिसके बाद उन्होंने अपने जीवन काल में ना ही जनेऊ पहना और ना तिलक लगाया।
गुरु नानक देव का प्रभाव
अधिकांश विद्वानों का मानना है कि रविदास सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक से मिले थे और उनसे काफी प्रभावित थे। सिख धर्मग्रंथों में इनकी पूजा की जाती है, इसलिए रविदास की 41 कविताओं को सिख धर्मग्रंथ में शामिल किया गया है। ये कविताएँ उनके विचारों और साहित्यिक कार्यों के सबसे पुराने प्रमाणित स्रोतों में से एक हैं। 1693 में रविदास की मृत्यु के 170 साल बाद रचित, पाठ को भारतीय धार्मिक परंपरा के सत्रह संतों में से एक के रूप में शामिल किया गया है। 17वीं शताब्दी के नाभादास के भक्तमाल और अनंतदास के पारसी दोनों में रविदास पर अध्याय हैं। इसके अलावा, सिख परंपरा ग्रंथों और हिंदू दादूपंथी परंपराओं, रविदास (रविदास के अनुयायी) सहित रविदास के जीवन के बारे में अधिकांश अन्य लिखित स्रोत, 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में या उनकी मृत्यु के लगभग 400 साल बाद रचे गए थे।
रविदास और मुगल शासक बाबर
भारत के इतिहास के अनुसार बाबर मुग़ल साम्राज्य का पहला शासक था, जिसने 1526 में पानीपत की लड़ाई जीत कर, दिल्ली में कब्ज़ा किया था. बाबर गुरु रविदास जी के आध्यात्मिक शक्तियों के बारे में बहुत अच्छे से जानता था, वो उनसे मिलना चाहता था. फिर बाबर, हुमायूँ के साथ उनसे मिलने जाता है, वो उनके पैर छुकर उन्हें सम्मान देता है. गुरु जी उसे आशीर्वाद देने की जगह उसे दंडित करते है, क्यूंकि उसने बहुत से मासूम लोगों मारा था. गुरु जी बाबर को गहराई से शिक्षा देते है, जिससे प्रभावित होकर बाबर रविदास जी का अनुयाई बन जाता है और अच्छे सामाजिक कार्य करने लगता है।
संत रविदास पर साहित्य
पीटर फ्रीडलैंडर ने रविदास की जीवनी लिखी है, हालांकि यह उनकी मृत्यु के काफी समय बाद लिखी गई। उनका साहित्य भारतीय समाज के भीतर के संघर्ष को दर्शाता है, जहां रविदास का जीवन विभिन्न प्रकार के सामाजिक और आध्यात्मिक विषयों को व्यक्त करने का साधन प्रदान करता है। एक स्तर पर, यह तत्कालीन प्रचलित विधर्मी समुदायों और रूढ़िवादी ब्राह्मणवादी परंपरा के बीच संघर्ष को दर्शाता है।
संत रविदास जी की चमत्कारिक कथा
रविदास जी और उनके गुरु शारदा नंद जी के बेटे में काफी अच्छी मित्रता थी एक बार की बात है जब दोनों लुका छुपी का खेल खेल रहे थे तो खेलते-खेलते रात हो गई। और दोनों ने अगले दिन पुनः इस खेल को जारी रखने का फैसला किया और सोने चले गए। जब अगले दिन जब रैदास को अपने मित्र के साथ खेलने जाना था तो खबर मिली कि उनके दोस्त का देहांत हो गया है। उनमें बचपन से ही अलौकिक शक्तियों का वास था लेकिन मित्र की अचानक मृत्यु की बात सुनकर वे अचंभे रह गए और अपने मित्र के पास पहुंचकर उससे बस इतना कहा मित्र उठो यह समय सोने का नहीं है चलो मेरे साथ खेलो। यह सुनते ही उनका मरा हुआ दोस्त उठ खड़ा हुआ और यह सब देख वहां खड़े सभी लोग हक्के बक्के रह गए।
मन चंगा तो कठौती में गंगा की कहानी
एक बार की बात है जब रविदास जी के एक पड़ोसी मित्र ने उनसे गंगा स्नान पर चलने को कहा, परंतु अधिक कार्य और समय ना होने के कारण उन्होंने अपने मित्र को एक सुपारी देते हुए कहा कि ‘यह सुपारी आप मेरी तरफ से गंगा मैया को अर्पित कर दें‘। जब वह पड़ोसी मित्र गंगा स्नान के दौरान संत रविदास जी के नाम पर मां गंगा को वह सुपारी अर्पित करता है तो उन्हें एक कंगन मिलता है। कंगन पाकर वह लालच में आ जाता है और उस कंगन को राजा को देकर बदले में इनाम ले लेता है।राजा उस कंगन को जब रानी को भेट में देते हैं तो रानी को वह कंगन बहुत पसंद आता है और रानी, राजा से इसके दूसरे जोड़े की मांग करती है। दूसरा कंगन मांगने पर व्यक्ति परेशान होकर मदद के लिए रविदास जी से मिलता है और सभी सच्चाई बताते हुए अपने लालच करने पर शर्मिंदा होकर उनसे माफी भी मांगता है। अपने पड़ोसी मित्र को परेशान देख रविदास जी उसे माफ कर देते हैं और पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से माता गंगा का ध्यान करते हुए अपनी कठौती में हाथ डालकर दूसरा कंगन निकाल देते हैं।यह देख उनका पड़ोसी मित्र की खुशी का ठिकाना नहीं रहता और वह रविदास जी से इस चमत्कार के पीछे का राज पूछता है तो रविदास जी कहते हैं कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा‘।
एक दयालु और ईश्वरीय व्यक्ति के रूप में, उन्होंने समानता और एकमात्र महाशक्ति की व्यवस्था का प्रचार किया जहां जाति और धर्म के आधार पर कोई अंतर नहीं किया गया था। हम आज इस महान व्यक्ति का अनुकरण कर सकते हैं।
डिस्क्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।’