चंद्रशेखर घोष बंधन बैंक के फाउंडर और मालिक हैं. घोष और उनकी कंपनी बंधन बैंक की सफलता की कहानी बहुत दिलचस्प है और प्रेरक है. आज इस बैंक को शुरू हुए 4 साल हो गए हैं. आज बंधन बैंक की मार्केट वैल्यू यानी कुल कीमत करीब 54 हजार करोड़ रुपये है. आइए आपको बताते हैं कैसे शुरू हुआ बंधन बैंक.
मंजिल उन्हीं को मिलती है, जो रास्ते की कठिनाइयों की परवाह किए बिना चलते रहते हैं. ऐसी ही कहानी चंद्रशेखर घोष की है. आपको बता दें कि चंद्रशेखर घोष बंधन बैंक के फाउंडर और मालिक हैं. घोष और उनकी कंपनी बंधन बैंक की सफलता की कहानी बहुत दिलचस्प है और प्रेरक है. आज इस बैंक को शुरू हुए 4 साल हो गए हैं. 23 अगस्त 2015 को अरुण जेटली ने इस बैंक को लॉन्च किया था. आज बंधन बैंक की मार्केट वैल्यू यानी कुल कीमत करीब 54 हजार करोड़ रुपये है. आइए आपको बताते हैं कैसे शुरू हुआ बंधन बैंक.
मिठाई की छोटी सी दुकान से शुरू हुआ सफ़र
1960 में त्रिपुरा के अगरतला में जन्मे घोष के पिता मिठाई की एक छोटी सी दुकान चलाते थे. इसमें मुश्किल से ही उनके नौ सदस्यों के परिवार का गुजारा चल पाता था. घोष ने बचपन से आर्थिक तंगी देखी. वे इसी दुकान में काम करते हुए बड़े हुए, लेकिन कभी अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी. घोष ने बांग्लादेश के ढाका विश्वविद्यालय से सांख्यिकी में मास्टर्स की डिग्री ली है. उनका परिवार मूल रूप से बांग्लादेश का ही है और आजादी के समय वे शरणार्थी बनकर त्रिपुरा में आ गए थे. ढाका में अपनी पढ़ाई पूरी करने बाद उन्होंने पहला काम भी वहीं शुरू किया.
ट्यूशन पढ़ाकर दी अपनी पढ़ाई के लिए फीस
चंद्रशेखर ने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई ग्रेटर त्रिपुरा के एक सरकारी स्कूल में की. उसके बाद ग्रैजुएशन करने के लिए वह बांग्लादेश चले गए. वहां ढाका यूनिवर्सिटी से 1978 में स्टैटिस्टिक्स में ग्रैजुएशन किया. ढाका में उनके रहने और खाने का इंतजाम ब्रोजोनंद सरस्वती के आश्रम में हुआ. उनके पिता ब्रोजोनंद सरस्वती के बड़े भक्त थे. सरस्वती जी का आश्रम यूनिवर्सिटी में ही था, इसलिए आसानी से चंद्रशेखर के वहां रहने का इंतजाम हो गया. बाकी फीस और कॉपी-किताबों जैसी जरूरत के लिए घोष ट्यूशन पढ़ाया करते थे.
पहली बार 50 रुपये की कमाई से पिता के लिए एक शर्ट खरीदी
एक मीडिया हाउस से बात करते हुए वो कहते हैं कि जब उन्हें पहली बार 50 रुपये कमाई के मिले तो उन्होंने अपने पिता के लिए एक शर्ट खरीदी और शर्ट लेकर वह गांव गए. जब उन्होंने पिता को शर्ट निकाल कर दी तो उनके पिता ने कहा कि इसे अपने चाचा को दे दो, क्योंकि उन्हें इसकी ज्यादा जरूरत है. चंद्रशेखर बताते हैं कि ऐसी ही बातों से उन्हें सीखने को मिला कि दूसरों के लिए सोचना कितनी बड़ी बात है.
कई वेलफेयर सोसाइटीज में काम महिलाओं को सशक्त बनाया
साल 1985 उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. मास्टर्स खत्म करने के बाद उन्हें ढाका के एक इंटरनेशनल डेवलपमेंट नॉन प्रॉफिट ऑर्गैनाइजेशन (BRAC) में जॉब मिल गई. यह संगठन बांग्लादेश के छोटे-छोटे गांवों में महिलाओं को सशक्त करने का काम करता था.
घोष कहते हैं कि वहां महिलाओं की बदतर स्थिति देखकर मेरी आंखों में आंंसू आ जाते थे. उनकी हालत इतनी बुरी होती थी कि उन्हें बीमार हालत में भी अपना पेट भरने के लिए मजदूरी करनी पड़ती थी. उन्होंने BRAC के साथ लगभग डेढ़ दशक तक काम किया और 1997 में कोलकाता वापस लौट आए. 1998 में उन्होंने विलेज वेलफेयर सोसाइटी के लिए काम करना शुरू कर दिया. यह संगठन लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए काम करता था.
ऐसे मिला बैंक का लाइसेंस
दूर-दराज वाले इलाके के गांवों में जाकर उन्होंने देखा कि वहां की स्थिति भी बांग्लादेश की महिलाओं से कुछ ज्यादा भिन्न नहीं थी. घोष के अनुसार, महिलाओं की स्थिति तभी बदल सकती है, जब वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनें. लेकिन उस वक्त अधिकांश महिलाएं अशिक्षित रहती थीं, उन्हें बिजनेस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. इसी अशिक्षा का फायदा उठाकर पैसे देने वाले लोग उनका शोषण करते थे.
2009 में घोष ने बंधन को रिजर्व बैंक द्वारा NBFC यानी नॉन बैंकिंग फाइनैंस कंपनी के तौर पर रजिस्टर्ड करवा लिया. उन्होंने लगभग 80 लाख महिलाओं की जिंदगी बदल दी. वर्ष 2013 में RBI ने निजी क्षेत्र द्वारा बैंक स्थापित करने के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे. घोष ने भी बैंकिंग का लाइसेंस पाने के लिए आवेदन कर दिया. RBI ने जब लाइसेंस मिलने की घोषणा की तो हर कोई हैरान रह गया था. क्योंकि इनमें से एक लायसेंस बंधन को मिला था. बैंक खोलने का लायसेंस कोलकाता की एक माइक्रोफाइनेंस कंपनी को मिलना सच में हैरत की बात थी. 2015 से बंधन बैंक ने पूरी तरह से काम करना शुरू कर दिया.
12 कर्मचारियों के साथ शुरू की कंपनी
समाज में महिलाओं की खराब स्थिति को देखते हुए घोष ने महिलाओं को लोन देने के लिए माइक्रोफाइनेंस कंपनी बनाई. लेकिन उस वक्त नौकरी छोड़कर खुद की कंपनी खोलना आसान काम नहीं था. यह जानते हुए भी कि नौकरी छोड़ने पर उनकी माता, पत्नी और बच्चों को दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा, उन्होंने नौकरी छोड़ दी. चंद्रशेखर घोष ने अपने साले और कुछ लोगों से 2 लाख रुपये उधार लेकर अपनी कंपनी शुरू थी. हालांकि उस वक्त उनके करीबी लोगों ने उन्हें समझाया कि वह नौकरी न छोड़ें, लेकिन घोष को खुद पर यकीन था और इसी यकीन पर उन्होंने बंधन नाम से एक स्वयंसेवी संस्था शुरू की. उस वक्त किसी से कर्ज लेकर उसे चुकाना काफी दुष्कर माना जाता था. 2002 में उन्हें सिडबी की तरफ से 20 लाख का लोन मिला. उस साल बंधन ने लगभग 1,100 महिलाओं को 15 लाख रुपये का लोन बांटा. उस वक्त उनकी कंपनी में सिर्फ 12 कर्मचारी हुआ करते थे. चालू वित्त वर्ष के अंत तक बैंक 187 नयी शाखाएं खोलेगा. इससे बंधन बैंक की शाखाओं की कुल संख्या 1,187 हो जाएगी.