भिलाई। डॉ.रतन तिवारी शहर का एक जाना माना पहचाना नाम है। वे चिकित्सा के क्षेत्र में कई नये आयाम गढ़े है। देश ही नहीं आपितु विदेश में भी अपने कार्य के बदौलत सम्मानित हो चुके है। डॉक्टर साहब नाक, कान एवं गला रोग विशेषज्ञ है। खुर्सीपार भिलाई के एक छोटे से हिन्दी माध्यम स्कूल से अध्ययन कर आज एमबीबीएस, डीएलओ, एमसीसीपी, बीएससी, एमआईएमए, एफसीसीपी (दिल्ली), एमएआईआरएस, एमएओआई की डिग्री प्राप्त कर शहर में सेवाएं दे रहे है। गरीबों की मदद करना इनके फितरत में है। सैकड़ों ऑपरेशन कर भैरापन को दूर किये है। डॉक्टर साहब ने सीजी संदेश संवाददाता से बातचीत करते हुए बताया कि…..
(डॉ.रतन तिवारी)
कान के मरीजों के लिये सावधानियाँ
1. कान को नमी या पानी से बचाएँ । नहाते समय, सिर धोते, शैम्पू या शॉवर लेते समय कान को वैसलीन या हल्का तेल या कोल्ड क्रीम लगी हुई रुई लगाकर बन्द कर लें। सिर को पूरी तरह तौलिये से सुखाने के बाद रुई को कान से निकालें।
2. कान में तेल नहीं डाले। तेल कानों की नमी को सुखाने से रोकता है, जिससे कानों में फफूंद हो जाती है।
3. कान में कोई भी दवा विशेषज्ञ की सलाह के बगैर नहीं डालें। लगातार दवा डालना कान के सूराख वाले परदे के लिए हानिकारक हो सकता है।
4. कान में खुजली होने पर ईयर बड, कानों के पिन, नाखुन, सुई, सिलाई पिन, टूथ पिक या माचिस की तिली का दुरुपयोग नहीं करें।
5. सर्दी, जुखाम होने पर तुरंत ईलाज कराएँ। नाक को बार-बार साफ नहीं करें, ताकि नाक का रिसाव कान में नहीं जाए।
6. कान में मवाद आने की तकलीफ के मरीजनदी, तालाब, समुद्र या स्वीमिंग पूल में नहीं नहाएँ। कान में पानी जाने से बचाएँ।
7. तेज सर्दी जुकाम के समय हवाई यात्रा के समय सावधानी बरतें। यात्रा के समय जहाज के आसमान में चढ़ते या उतरते समय,
कुछ चबाते रहें ताकि तालू के ऊपर की कान की नली हवा का दबाव सामान्य करती रहे।
8. छोटे बच्चों/नवजात शिशु को सिर ऊंचा करके दूध पिलायें। दूध पिलाने के बाद कुछ देर कंधे से लगाकर रखें। इससे दूध कानों में यूस्टेशियन नली द्वारा प्रवेश नहीं कर पाता और कान में सर्दी जुकाम के समय होने वाले संक्रमण नही हो पाता।
9. कानों के परदों/हड्डी या पिस्टन आपरेशन वाले मरीज नियमित जाँच करायें। ऑपरेशन के रिकार्ड सम्भालकर रखें।
10. पिस्टन आपरेशन वाले मरीजों को अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता होती है:-
(अ) हरी सब्जी, सलाद, पानी का सेवन अधिक करें, जिससे शौच क्रिया में अधिक दबावनलगाना पड़े।
(ब) सर्दी या खाँसी होने पर तुरन्त इलाज कराएँ।
(स) दो माह तक हवाई यात्रा से बचें।
(द) सड़क यात्रा के समय सड़क पर उछलने वाले वाहन से यात्रा न करें।
कान के ऑपरेशन कब और क्यों?
कान शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है जो सुनाई के साथ-साथ शरीर का संतुलन स्थापित करता है। बाहर से साधारण सी दिखने वाली शरीर की यह रचना अंदर से संरचनात्मक रूप से अत्यंत जटिल होती है तथा इसमें होने वाले बीमारियों का समय पर उचित इलाजन कराया जाय तोजानलेवा भी सिद्ध हो सकता है। डॉ. रतन तिवारी ने बातया की कान मुख्यत: तीन भागो में बना हुआ है:-
बाह्य कर्ण- जिससे कगान का बाहरी भाग पिन्ना तथा कान कीनली एक्टरनल आडिटरी मियेटस।
मध्यकर्ण- जो कि कान का पर्दा सुनाई और छोटी-छोटी तीन हड्डियों मैलियस इन्कस एवं स्टैपीस तथा कुछ माँसपेशियों।
अंत:कर्ण- कॉक्लिया तथा वेस्टीव्यूल होती है। कान के बहने के कारणों के संबंध में यह सामान्य बाह्य कर्ण या मध्यकर्ण में इन्फेक्शन के कारण होता है। कान की नली में साधारण फोड़ा-फुसी अथवा फफूंद आदि की वजह से हो तो कोई चिंता की बात नहीं रहती। साधारण इलाज से तीव्र पीड़ा, बहना, खुजलाना आदि ठीक हो जाता है किन्तु यदि कान का बहना मध्यकर्ण में इन्फेक्शन की वजह से हो तो यह घातक भी हो सकता है तथा यदि कान के पर्दे में छेद अथवा कान की हडीयों में हुई खराबियों की वजह से जानलेवा भी हो सकता है।
प्रश्न (1) कान के पर्दे में छेद होने के क्या कारण है? उत्तर – कान के पर्दे में छेद मुख्यत: दो कारणों से होता । प्रथम-अत्याधिक सर्दी आदि होने से नाक एवं कान के बीच की नलीइयूस्टीशियन व्यूब बंद हो जाती है जिसकी वजह से मध्यकर्ण में द्रवधीरे-धीरे करके जमा हो जाता है, जिससे कान बंद एवं भारी लगने लगता है तथा पर्दे पर दबाव पडऩे के कारण तेज दर्द के साथ-साथ कम सुनाई देने लगता है। तत्पश्चात अत्याधिक दबाव से पर्दे पर छोटा सुराख हो जाता है तथा कान बहने लगता है अन्य कारणों से यदि कान के पर्देमें किसी कारण से चोट से झापड़ मारने से यदि असावधानीपूर्वक स्वयं कान की सफाई करने से भी कान के पर्दे में छेद हो जाता है।
प्रश्न (2) किन परिस्थितयों में पर्दे के छेद हुए भी ऑपरेशन की आवश्यकता नहीं पड़ती है? उत्तर – यदि बच्चों अथवा बड़ो में प्रारम्भिक सर्दी आदि की वजह से कान के पर्दे में प्रारंभिक अवस्था में छोटे से छेद आदि साधारण इलाज से प्राकृतिक रूप से बंद हो जाते हैं तथा कान बहना भी ठीक हो जाता है उसी प्रकार कान के पर्दे में चोट अथवा तेज फटाके की आवाज के कारण यदि पर्दे मे छेद हो गया हो तो इंफेक्शन न हुआ हो तो थोड़े बड़े आकार के छेत हुए भी ऑपरेशन की आवश्यकता नहीं पड़ती है तथा करीब 30 से 45 दिन में वे अपने आप ठीक हो जाते हैं।
प्रश्न (3) किन परिस्थितयो में कान के पर्दे में छेद हेतु आपरेशन की आवश्यकता पड़ती है? उत्तर – कान के पर्दे में छेद कि स्थिति में ऑपरेशन की आवश्यकता पर जोर देते हुए डॉ. रतन तिवारी ने कहा कि यदि पर्दे का छेद बड़ा काफी पुराना हो कान बार-बार बहता तथा बीच-बीच में कुछ समय के लिये सुख जाता है जहाँ तक की छोटे छेद भी यदि केमिकल कॉटरी से ठीक न हो रहे हो अथवा कान वहड्डी सें सडऩ शुरु हो गई हो तो जिसमें तीखी बदबू के साथ मवाद आता है, चक्कर तथा कान में सीटी बजने के साथ-साथ सुनाई अत्याधिक कमी हो तो ऑपरेशन की आवश्यकता रहती है।
प्रश्न (4) कान का ऑपरेशन किस वक्त करना चाहिये और कहा जाता है कि यह ऑपरेशन अक्सर सफल नहीं रहता है। उत्तर – यदि कान के पर्दे में सिर्फ छेद है तो पर्दे का साधारण सा प्रत्यारोपण सामान्य तौर पर 10 से 12 वर्ष की उम्र के पश्चात किया जाता है। किन्तु यदि हड्डी में सडऩ हो तो उम्र की कोई सीमा नहीं होती। ऑपरेशन की सफलता के बारे में यह मिथ्या धारणा है यह सफलता सर्जन की कार्यकुशलता पर निर्भर फिर भी 90 से 95 प्रतिशत तक सफल होते हैं।
प्रश्न (5) क्या कान की बिमारी जान लेवा हो सकती है? उत्तर – हाँ, यदि कान की हड्डी गलने वाली बिमारी हो और समय पर ऑपरेशन न करवाया जाए तो कान की हड्डी गलाते-गलाते कान के दिमाग से अलग करने वाली हड्डी ड्यूरुल प्लेट या साईनस प्लेट को गलाकर दिमाग के अंदर इंफेक्शन पैदाकर सकती है जिससे तेज सिर दर्द एवं बुकार के साथ-साथ मरीज की मृत्यु तक हो सकती है।