लखनऊ. प्रसव के बाद दी जाने वाली डुफ ास्टन 10 एमजी का जनवरी में जारी होने वाले बैच की कीमत 566.79 रुपये थी। अगस्त में यह 623.46 रुपये हो गई। थायराइड के मरीजों को दी जाने वाली थायरोनॉर्म की जनवरी में कीमत 145 रुपये थी। यही दवा अगस्त में नए बैच के साथ जारी हुई तो इसकी कीमत 156.49 रुपये हो गई। मधुमेह रोगियों को दी जाने वाली जॉयरल एम के दाम जनवरी में 145.02 रुपये थे। अगस्त में यह 172.00 रुपये हो गए। माइग्रेन की दवा माइग्रनेक्स 10 एमजी बैच संख्या 0231 अगस्त में 49 रुपये की थी। बाजार में अक्तूबर माह में यह बैच संख्या 703 के साथ 51.87 रुपये की हो गई।
एक ओर सरकार दवाएं सस्ती करने का दावा करती हैं, वहीं हर छह माह में इनके दाम करीब 10 फ ीसदी बढ़ रहे हैं। इसकी बानगी ये उदाहरण हैं। दवा कंपनियां नए बैच नंबर के साथ कीमत बढ़ाने का खेल करती हैं। बाजार में दवाओं की मांग बढ़ते ही नया बैच जारी कर दिया जा रहा है।
दवा कंपनियां अपने उत्पादन के हिसाब से नया बैच नंबर तय करती हैं। छोटी कंपनियां कम उत्पादन दिखाकर लगातार बैच नंबर बदलती रहती हैं। इसके साथ ही दवा का मूल्य भी बढ़ा देती हैं। राजधानी के बाजार में जिस दवा की मांग अधिक होती है, उसका अगला बैच उतनी ही जल्दी आता है। उसे दाम बढ़ाकर तुरंत बाजार में उतार दिया जाता है। ऐसे में मरीज या तीमारदार जब दोबारा दवा लेने आता है तो उसे नए बैच की दवा मिलती है। यदि कोई मरीज पहली बार एक हजार की दवा लेकर गया है तो अगले माह उसे 1100 की दवा खरीदनी पड़ती है। इसे लेकर दवा दुकानदार और खरीदार में विवाद भी होता है।
दवा कंपनियों की लूट : हर छह माह में 10 प्रतिशत दवाओं के दाम बढ़ रहे है…. मरीज, गरीब परेशान
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