
शारदीय नवरात्रि इस साल रविवार 15 अक्टूबर से मनाई जाएगी। ये 24 अक्टूबर तक चलेगी। इन नौ दिनों में माता के नौ अलग-अलग स्वरूप की पूजा की जाती है। इसके साथ ही श्रद्धालु सच्चे मन से माता के लिए व्रत रखते हैं। नवरात्रि के पहले दिन मंदिर में कलश स्थापना की जाती है। कलश स्थापना को केवल शुभ मुहूर्त में ही स्थापित किया जाना चाहिए। जानिए नवरात्रि में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पूजा सामग्री और मंत्र।
नवरात्रि भारतीय हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। हिंदू धर्म के लोग होली और दीपावली की तरह नवरात्रि का त्यौहार भी बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं। नवरात्रि व्रत देवी दुर्गा को समर्पित है जिन्हें ऊर्जा और शक्ति के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ नौ रात से है जिस के उपलक्ष में हिंदू धर्म के लोग 9 दिनों का व्रत रखते हैं और देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा अर्चना करते हैं। वैसे तो देवी दुर्गा माता पार्वती का ही एक रूप मानी जाती हैं लेकिन दुर्गा सप्तशती में बताया गया है कि देवी दुर्गा का जन्म ऊर्जा के रूप में हुआ था। नवरात्रि के 9 दिनों में दुर्गा देवी के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती हैं जिनमें देवी दुर्गा के शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री आदि रूप शामिल हैं। तो आइए इस आर्टिकल के जरिए हम देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों पर चर्चा करते हैं साथी आपको इस साल नवरात्रि के शुभ मुहूर्त और कलश स्थापना के महत्व के बारे में भी बताते हैं।
कब से शुरू होगी शारदीय नवरात्रि 2023?
शारदीय नवरात्रि 2023 की शुरुआत 15 अक्टूबर, 2023 को होगी और 24 अक्टूबर, 2023 को दशहरा के साथ समाप्त होगी। नवरात्रि कुल 9 दिनों तक चलता है। प्रत्येक दिन को नवमी के रूप में मनाया जाता है। 15 अक्टूबर को प्रतिपदा नवमी और 24 अक्टूबर को विजया दशमी होगी। नवरात्रि में देवी दुर्गा की 9 रूपों में पूजा की जाती है। भक्त लोग इस दौरान व्रत रखते हैं और देवी की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है। पंचांग के अनुसार, वैसे तो पूरे साल में कुल 4 नवरात्रि आते हैं। जिनमें दो गुप्त, एक चैत्र नवरात्रि और एक शारदीय नवरात्रि शामिल हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, पितृपक्ष के तुरंत बाद यानी आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, इस साल 15 अक्टूबर से लेकर 24 अक्टूबर तक शारदीय नवरात्र रहने वाला है।
नवरात्रि पूजा का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महिषासुर बहुत ही अत्याचारी राक्षस था। ब्रह्मा जी से अमर रहने का वरदान मांगने के बाद वह देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। उसके अत्याचार से परेशान होकर सभी देवी-देवता स्वर्ग लोक को छोड़कर त्रिदेव के पास गए और वहां उनसे महिषासुर का वध करने को कहा। जब त्रिदेव को देवताओं के दुख का पता चला, तो उन्हें बहुत क्रोध हुआ उनकी भौएं तन गई। उसी समय उनके मुख से एक बड़ा ही तेज प्रकट हुआ जो नारी के रूप में बदल गया। तब सभी देवी-देवताओं ने देवी के उस रूप को प्रणाम करते हुए उन्हें अपना अस्त्र-शस्त्र प्रदान किया। तब देवी ने देवताओं को सताने वाले महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। माता के ललकार को सुनकर महिषासुर मां दुर्गा की तरफ युद्ध करने के लिए दौड़ा। यह युद्ध 9 दिनों तक चला। दसवें दिन माता ने नव दुर्गा का रूप धारण करके देवताओं को सताने वाले दुष्ट महिषासुर का वध कर दिया। ऐसी मान्यता है कि 9 दिनों तक देवताओं ने रोज मां दुर्गा की पूजा आराधना करके उन्हें बल प्रदान किया था। तब से नवरात्रि का पर्व संसार में प्रचलित हो गया।
नवरात्रि व्रत का महत्त्व
नवरात्रि का व्रत शुभ फलदाई होता है खासकर जब यह व्रत कलश स्थापना के साथ रखा गया हो। विधि विधान से नवरात्रि व्रत रखकर देवी दुर्गा का पूजन और दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से उपवास रखने वाले भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उनके परिवार में सुख समृद्धि आ जाती है। नवरात्रि का व्रत रखने से धन समृद्धि में वृद्धि होती है, पुत्र धन का लाभ होता है, समाज और देश दुनिया में यश कीर्ति बढ़ती है, संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है, परिवार पर आने वाले विघ्न और भी विपत्तियों का नाश हो जाता है, दुर्घटना टल जाती है और अकाल मृत्यु नहीं होती। इस तरह नवरात्रि व्रत के अनेक महत्व है इसलिए चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र में 9 दिन का व्रत जरूर रखना चाहिए और यदि आप दोनों नवरात्र में नहीं रख सकते तो किसी एक नवरात्र में यह व्रत जरूर रखना चाहिए। नवरात्रि के दिन भारत के विभिन्न राज्यों में भव्य दुर्गा पूजा का आयोजन भी किया जाता है जिनमें पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और गुजरात आदि शामिल हैं। दुर्गा पूजा का आयोजन कर देवी दुर्गा का पंडाल बनाया जाता है और इसी पांडाल में उनकी मूर्तियां स्थापित की जाती है। मूर्ति स्थापना और कलश स्थापना के बाद देवी के नौ स्वरूपों का पूजन किया जाता है और दुर्गा सप्तशती का पाठ भी किया जाता है। 9 दिन पूरे होने के बाद दशहरे के दिन पांडाल में स्थापित देवी दुर्गा की मूर्ति का जल में विसर्जन कर दिया जाता है।
नवरात्रि पर कलश स्थापना का महत्व
हिंदू धर्म के पूजा पाठ और यज्ञ अनुष्ठान में कलश स्थापना को विशेष महत्व दिया जाता है। हिंदू धर्म के शास्त्रों में कलश को सुख समृद्धि मंगल और ऐश्वर्या का प्रतीक माना गया है बिना इसकी स्थापना के कोई भी यज्ञ अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता न ही कोई पूजा फलीभूत होती है। नवरात्रि का व्रत शुरू होने के दौरान भी कलश की स्थापना की जाती है ताकि नवरात्रि का व्रत और देवी दुर्गा की पूजा अर्चना फलीभूत हो जाए। कलश को स्थापना के पूर्व हल्दी कुमकुम से रंगा जाता है और इस पर स्वास्तिक बनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कलश स्थापना के समय इस पर स्वास्तिक बनाने से भगवान सूर्य विराजमान होते हैं। कलश की स्थापना के समय वरुण देवता का आह्वान किया जाता है। कलश स्थापना के पूर्व सजाया जाता है जिसके बाद बालू की विधि बनाकर उस पर स्थापित किया जाता है। कलश को स्थापना के लिए जाते समय हल्दी की गांठ सुपारी और दूब तथा जौ का इस्तेमाल किया जाता है। इन सबके अलावा रोरी रक्षा और नारियल का उपयोग भी कलश स्थापना के लिए किया जाता है। कलश के मुख पर नारियल रखते समय आम्र पत्र लगाए जाते हैं और अक्षत को रंग कर कलश में डाला जाता है। कलश की स्थापना में जौ के उपयोग की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे सृष्टि की पहली फसल माना जाता है तथा अन्य के रूप में भी इसका प्रतिनिधित्व है जो देवी अन्नपूर्णा का आवाहन करता है। हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में कहा गया है कि कलश के मुख पर भगवान विष्णु का निवास होता है जबकि इसकी गर्दन पर भगवान शंकर विराजमान होते हैं। जबकि इस कलश के मूल यानी आधार पर में ब्रह्मा जी विराजमान होते हैं और अंदर रिक्त स्थान में सभी देवगण और देवियां विराजमान होते हैं। मूर्ति विसर्जन के समय कलश के मुख पर रखे गए नारियल को जल में बहा देना चाहिए। हालांकि बहुत से लोग इस कलश को भी ब्राह्मणों को दान कर देते हैं। कलश की स्थापना नवरात्रि व्रत के लिए शुभ फलदाई होता है। अब आप समझ गए होंगे कि आखिर यह कलश स्थापना नवरात्रि के व्रत में कितना महत्वपूर्ण है अगर आप नवरात्रि का व्रत रखते हैं तो आपको कलश स्थापना जरूर करनी चाहिए।
2023 में शारदीय नवरात्रि प्रारंभ तिथि
पंचांग के अनुसार, अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 14 अक्तूबर 2023 रात 11 बजकर 24 मिनट से शुरू होगी और 16 अक्तूबर को आधी रात 12 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार, नवरात्रि उत्सव 15 अक्तूबर 2023, रविवार से प्रारंभ होगा। इस दिन घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 44 मिनट से दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा।
शरद नवरात्रि 2023 के लिए घटस्थापना मुहूर्त
कलश स्थापना से ही दुर्गा पूजा की शुरुआत होती है। 15 अक्तूबर 2023, सोमवार को आश्विन मास की घटस्थापना की जा सकती है। इसका शुभ मुहूर्त सुबह 06:21 से लेकर 10:12 तक, यानि 03:51 मिनट तक रहेगा। साथ ही, प्रतिपदा तिथि 14 अक्तूबर को रात 23:25 बजे से प्रारंभ होकर 15 अक्तूबर को रात 24:33 बजे समाप्त होगी। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और प्रतिपदा तिथि को मिट्टी के बर्तन में जौ बोते हैं। फिर कलश को मिट्टी के ऊँचे चबूतरे पर स्थापित करते हैं, जिस पर देवी की मूर्ति सजी होती है। स्थापना अनुष्ठान के बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हुए देवी की पूजा आरंभ की जाती है।
शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
पंचांग के तदनुसार शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त/ Auspicious time for establishing Kalash 15 अक्तूबर को सुबह 11:48 से दोपहर 12:36 बजे तक रहेगा। अतः इस वर्ष कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त केवल 48 मिनट का ही होगा।
घटस्थापना तिथि – रविवार, 15 अक्तूबर 2023
घटस्थापना मुहूर्त – प्रात: 06:30 से प्रात: 08:47 तक
अभिजित मुहूर्त – सुबह 11:48 से दोपहर 12:36 तक
नवरात्रि के लिए पूजन सामग्री लिस्ट
नवरात्रि का पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। आइए जानते हैं कलश स्थापना के लिए क्या- क्या सामग्री चाहिए होती है? कलश स्थापना के लिए थोड़ी सी मिट्टी, मिट्टी की ढक्कन, नारियल, कलावा, गंगाजल, लाल रंग का कपड़ा, हल्दी, अक्षत, एक मिट्टी का दीपक, पाने के पत्ते, फूल, भोग के लिए फल और मिठाईयां, जौ, मां दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर, चौकी, चौकी पर बिछाने के लिए लाल कपड़ा, लाल चुनरी, पाठ के लिए दुर्गासप्तशती की पुस्तक, दुर्गा चालीसा की किताब।
नवरात्रि में ऐसे करें पूजा
सबसे पहले मां दुर्गा की चौकी को अच्छे से सजा लीजिए और उस पर माता की प्रतिमा या फोटो रखिए। इसके बाद माता के सामने विधिवत नियम से मिट्टी के बर्तन में जौ डाले और उसमें पानी का छिड़काव करें। इसके बाद उस बर्तन में कलश रखें। कलश को सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। मां दुर्गा को फूल चढ़ाए और पूजा अर्चना करें। इसके बाद अखंड दीप जलाकर आरती करें और बाद में प्रसाद को भोग लगाएं।
नवरात्रि में गाएं मां दुर्गा की ये आरती
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
मांग सिंदूर विराजत, टीको जगमद को।
उज्जवल से दो नैना चन्द्रवदन नीको।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी।।
ओम जय अम्बे गौरी
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति।।
ओम जय अम्बे गौरी।
शुंभ निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
ब्रम्हाणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शव पटरानी।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
तुम ही जग की माता, तुम ही भरता।
भक्तन की दुख हरता सुख संपत्ति करता।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।।
ओम जय अम्बे गौरी।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
नवरात्रि कलेंडर
पहला दिन 15 अक्टूबर : प्रतिपदा तिथिमां शैलपुत्री की पूजा
दूसरा दिन 16 अक्टूबर : द्वितीया तिथिमां ब्रह्मचारिणी की पूजा
तीसरा दिन 17 अक्टूबर : तृतीया तिथिमां चंद्रघंटा की पूजा
चौथा दिन 18 अक्टूबर : चतुर्थी तिथिमां कुष्मांडा की पूजा
पांचवां दिन 19 अक्टूबर : पंचमी तिथि मां स्कंदमाता की पूजा
छठा दिन 20 अक्टूबर : षष्ठी तिथिमां कात्यायनी की पूजा
सातवां दिन 21 अक्टूबर : सप्तमी तिथिमां कालरात्रि की पूजा
आठवां दिन 22 अक्टूबर : अष्टमी तिथिमां महागौरी पूजा
नौंवा दिन 23 अक्टूबर : नवमी तिथि,मां सिद्धिदात्री की पूजा
दसवां दिन 24 अक्टूबर : दशमी तिथिविजया दशमी, विसर्जन
देवी दुर्गा माता के 9 स्वरूपों की पूजा का महत्व
देवी दुर्गा के नौ स्वरूप माने जाते हैं जिनकी पूजा नवरात्रि के नौ दिन एक-एक करके होती है। दुर्गा माता के इन नौ स्वरूपों की पूजन विधि एक दूसरे से अलग होती है साथ ही यह 9 दिन और नौ स्वरूप अपना अलग-अलग विशेष महत्व रखते हैं। नवरात्र में पूरे 9 दिन देवी के इन्हीं स्वरुपों की पूजा की जाती हैं।
1. शैलपुत्री – प्रतिप्रदा
नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री जी की पूजा की जाती है जिन्हें देवी दुर्गा का पहला स्वरूप माना जाता है। शैलपुत्री देवी को हिमालय पर्वत की पुत्री माना जाता है इसीलिए उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। इस दिन माता दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप को देसी गाय के घी का भोग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन शैलपुत्री देवी को भी का भोग लगाने से व्रती को आरोग्य जीवन प्राप्त होता है।
2. ब्रह्मचारिणी – द्वितीया
देवी दुर्गा के दूसरे स्वरूप का नाम ब्रह्मचारिणी है जिनकी पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। दुर्गा माता का यह अवतार तपस्विनी स्वरूप है। ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शंकर को वर के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या और साधना की थी जिस कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ गया। माता ब्रह्मचारिणी को मुख्य रूप से शक्कर का भोग लगाना चाहिए ऐसा करने से उपवास रखने वाले की आयु और उसके परिवार के सदस्यों की आयु बढ़ती है।
3. चंद्रघंटा – तृतीया
नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है जिन्हें दुर्गा माता का तीसरा स्वरूप माना जाता है। चंद्रघंटा अवतार में माता दुर्गा के माथे पर तिलक के रूप में अर्धचंद्र विराजमान होता है। देवी चंद्रघंटा को दूध से बनी मिठाई और खीर का भोग लगाएं। ऐसा करने से आपको मनोवांछित फल प्राप्त होगा साथ ही परिवार में सुख समृद्धि भी आएगी।
4. कुष्मांडा – चतुर्थी
नवरात्रि का चौथा दिन माता कुष्मांडा को समर्पित है जिन्हें देवी दुर्गा का चौथा अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि कुष्मांडा अवतार में देवी दुर्गा के गर्भ से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी। ब्राह्मणों का मानना है कि देवी कुष्मांडा को मैदे की पूरी यानी कि मालपुए का भोग लगाना चाहिए ऐसा करने से परिवार के सारे शोक और विघ्न दूर हो जाते हैं तथा परिवार में सुख समृद्धि आ जाती है।
5. स्कंदमाता – पंचमी
स्कंदमाता को देवी दुर्गा का पांचवा स्वरूप माना जाता है और नवरात्रि के पांचवे दिन इनकी पूजा की जाती है। स्कंद माता को भोग में मुख्य रूप से केले चढ़ाए जाते हैं। स्कंदमाता को कार्तिकेय की माता भी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पांचवें दिन स्कंदमाता को केले का भोग जमाने से स्वास्थ्य का लाभ होता है तथा जटिल से जटिल रोगों से मुक्ति हो जाती है।
6. कात्यायनी – षष्टि
देवी दुर्गा का छठवां रूप कात्यायनी है जिनके पूजा नवरात्रि के छठवें दिन की जाती है। ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के नाते उनका नाम कात्यायनी पड़ा था। माता कात्यायनी को सुंदर स्वरूप और श्रृंगार का दाता माना जाता है। नवरात्रि के छठवें दिन माता कात्यायनी को शहद का भोग लगाने से सौंदर्य और गुणों का लाभ मिलता है l।
7. कालरात्रि – सप्तमी
नवरात्रि का सातवां रूप माता कालरात्रि को समर्पित है जिन्हें मां काली कहकर भी बुलाया जाता है। माता कालरात्रि को काल और बुरी शक्तियों का विनाशक माना जाता है। माता काली को विशेष रूप से गुड़ का भोग लगाना चाहिए ऐसा करने से अकाल मृत्यु और घर परिवार पर आने वाली सभी विपादाओ का विनाश हो जाता है।
8. महागौरी – दुर्गा अष्टमी
देवी दुर्गा के आठवें स्वरूप को महागौरी कहा जाता है। दरअसल देवी दुर्गा के दौर स्वरूप के कारण उनका यह अवतार महागौरी कहलाता है। माता महागौरी को नारियल का भोग लगाना चाहिए ऐसा करने से उपासक की निसंतानता दूर हो जाती है और घर में सुख समृद्धि आने लगती हैं।
9. सिद्धिदात्री – नवमी
देवी दुर्गा का नवें और अंतिम स्वरुप का नाम सिद्धिदात्री है जिन्हें सिद्धि का दाता भी कहा जाता है। नवरात्रि के अंतिम दिन पूरे विधि विधान से इनकी पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि माता सिद्धिदात्री को गुड और तिल का भोग लगाने से सभी कार्य सिद्ध होने लगते हैं और दुर्घटना तथा अकाल मृत्यु का संकट टल जाता है।
तो इस तरह नवरात्रि के 9 दिन माता दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है और उन्हें अलग-अलग भोग चढ़ाए जाते हैं।
साल भर में कितनी बार मनाई जाती है नवरात्रि
वैसे तो आप लोग चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्र के बारे में जानते होंगे लेकिन आपको बता दें कि साल भर में 4 बार नवरात्रि का पर्व आता है। लेकिन इन चार नवरात्रों में केवल दो नवरात्रों को विशेष रूप से मनाया जाता है जबकि बाकी की दो नवरात्रि गुप्त होती है। चैत्र नवरात्रि की शुरुआत चैत्र महीने के हिंदू नव वर्ष की तिथि से होती है जबकि शारदीय नवरात्र पितृपक्ष की समाप्ति के बाद अश्विन मास के साथ प्रारंभ होती है। हालांकि हिंदू मान्यताओं के अनुसार गुप्त नवरात्रों का महत्त्व चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्र के बराबर ही होती है। खासकर तंत्र मंत्र की विद्या को सीखने और साधना करने के लिए गुप्त नवरात्रि अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है।
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि – यह नवरात्रि हिंदू कैलेंडर के आषाढ़ महीने में मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर का आषाढ़ महीना जून और जुलाई के बीच पड़ता है। इस नवरात्रि की खास बात यह है कि इसे गायत्री नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है।
पौष गुप्त नवरात्रि – पौष नवरात्रि का त्योहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार पौष महीने में मनाया जाता है जो माघ मास के पहले पड़ती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह महीना जनवरी और दिसंबर के बीच का होता है।
चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में अंतर
भले ही चैत्र नवरात्रि और शारदी नवरात्रि अपने महत्त्व को लेकर एक समान है लेकिन दोनों की अपनी अलग-अलग मान्यताएं हैं जिनके आधार पर दोनों में अंतर बताया जा सकता है।
* दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि जब पृथ्वी पर महिषासुर दानव का अत्याचार बढ़ने लगा तो देवता उसके बढ़ते आतंक से भयभीत हो गए और जाकर माता पार्वती से प्रार्थना करने लगे। दरअसल महिषासुर को यह वरदान था कि कोई भी देवता उस पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता इसलिए महिषासुर को पराजित करना बहुत मुश्किल था। देवताओं के अनुरोध पर माता पार्वती ने अपने शक्ति स्वरूप को जन्म दिया और इससे नौ रूपों में विभक्त किया।
* शक्ति को महिषासुर से युद्ध करने के लिए देवी देवताओं ने भिन्न-भिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र उन्हें भेंट किए। देवताओं के अस्त्र-शस्त्र भेंट करने का यह क्रम चैत्र महीने की प्रतिपदा से शुरू हुआ और अगले 9 दिनों तक चला यही कारण है कि चैत्र महीने की प्रतिपदा से चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होती है और 9 दिनों तक चलती है।
जबकि शारदीय नवरात्र के दौरान माना जाता है कि दुर्गा माता ने 9 दिनों तक महिषासुर के साथ घोर संग्राम किया जिसके बाद दशमी की तिथि पर उसका वध किया यही कारण था कि शरद ऋतु के दौरान अश्विन मास में शारदीय नवरात्र मनाया जाता है।
* चैत्र नवरात्रि का अंत रामनवमी की तिथि से होता है जिस दिन हिंदुओं के आराध्य प्रभु श्री राम का जन्म हुआ था। जबकि शारदीय नवरात्रि का अंत महानवमी की तिथि से होता है जिसके अगले दिन विजयदशमी की तिथि आती है और इसी दिन माता शक्ति ने महिषासुर का वध किया था और भगवान श्री राम ने राक्षस रावण का।
* हालांकि चैत्र नवरात्रि का व्रत कठिन साधना का व्रत माना जाता है जबकि शारदीय नवरात्रि को सात्विक साधना और उत्सव का त्योहार माना जाता है
नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार नवरात्रि की शुरुआत के पीछे अलग-अलग कथाएं हैं। राक्षसों के राजा महिषासुर ने स्वर्ग में देवताओं के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया था। उसका मुकाबला करने के लिए, शिव, ब्रह्मा और विष्णु की त्रिमूर्ति सहित सभी देवताओं ने अपनी दिव्य शक्तियों में शक्ति और शक्ति की माँ को जन्म दिया। इस प्रकार देवी दुर्गा का अवतार हुआ और उन्होंने अपनी शक्ति और ज्ञान से महिषासुर के खिलाफ नौ रातों की भयंकर लड़ाई के बाद उसे मार डाला। इस प्रकार विजय का दसवां दिन विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है- बुराई पर अच्छाई की जीत का दिन। भगवान राम सीता को लंका में कैद से छुड़ाने के लिए रावण के खिलाफ युद्ध शुरू करने वाले थे। युद्ध शुरू करने से पहले, राम ने देवी दुर्गा की पूजा की और उनका आशीर्वाद लिया। पूजा के लिए उन्हें 108 कमल चाहिए थे। गिनती पूरी करने के लिए, जब राम अपनी एक आंख को हटाने वाले थे, तो देवी दुर्गा प्रकट हुईं और उन्हें अपनी दिव्य ‘शक्ति’ का आशीर्वाद दिया। उस दिन राम ने युद्ध जीत लिया था और इसलिए इसको विजय दशमी के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है कि हिमालय के राजा दक्ष की बेटी उमा नवरात्रि के दौरान दस दिनों के लिए घर आती है। उमा ने भगवान शिव से विवाह किया और यह त्योहार उनके घर पृथ्वी पर आने का जश्न के रूप में मनाया जाता है |
नवरात्रि पर क्या करें, क्या न करें
नवरात्रि के दौरान कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, जिनमें शामिल हैं:
क्या करें: प्रतिदिन स्नान-ध्यान और पूजा-अर्चना अवश्य करें।
* घर को साफ-सुथरा रखें और दीपक जलाएं।
* फल, दूध, फलसा आदि नैवेद्य चढ़ाएं।
* प्रतिदिन देवी कथा का पाठ और आरती करें।
* व्रत-उपवास तथा ब्रह्मचर्य का पालन करें।
क्या न करें: निंदा-चुगली, झूठ आदि से बचें।
* किसी के साथ कलह न करें और क्रोध न करें।
* मांस, मदिरा और अन्य निषिद्ध वस्तुओं का सेवन न करें।
* शुभ कार्यों के अलावा अन्य कोई शुभ मुहूर्त न देखें।
इस प्रकार नवरात्रि के पावन पर्व को श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाने से जीवन में सकारात्मकता आती है। देवी कृपा से सभी कामनाएं पूरी होती हैं और जीवन सुखमय बना रहता है।
”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”