
सनातन धर्म में करवाचौथ व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को महिलाएं बड़े ही बेसब्री से इंतजार करती हैं। करवा चौथ के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस साल करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर को दिन बुधवार को पड़ रहा है। इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान कार्तिकेय का पूजा का विधान है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से पति की आयु लंबी होती है। साथ ही वैवाहिक जीवन में खुशहाली और समृद्धि आती है। आपको बता दें, करवा चौथ का व्रत कहीं-कहीं कुंवारी कन्याएं भी रखती हैं। इससे कन्या को सुयोग्य वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है। तो आइए, जानते हैं करवा चौथ का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि क्या है?
हिंदू धर्म की धार्मिक मान्यताओं एवं परंपराओं के बीच मनाए जाने वाले त्योहारों की झड़ी शुरू हो चुकी है। कार्तिक मास में दीपावली के साथ-साथ करवा चौथ व्रत, धनतेरस जैसे महत्वपूर्ण त्योहारों को धूमधाम से मनाया जाता है। पति-पत्नी के संबंध को दीर्घायु बनाने हेतु पत्नियों द्वारा रखे जाने वाले करवा चौथ व्रत को आज हम विस्तारपूर्वक जानने वाले हैं। सुहागन स्त्रियों द्वारा इस वर्ष करवा चौथ का व्रत 01 नवंबर करवा चौथ व्रत बुधवार के दिन रखा जाने वाला है। करवा चौथ व्रत धार्मिक परंपराओं के बीच पति पत्नी के संबंध को अटूट बंधन में बांधने का काम करता है। यह व्रत वर्ष में एक बार ही पत्नी द्वारा अपने पति की लंबी उम्र की कामनाओं के साथ रखा जाता है। करवा चौथ व्रत धारण एवं पारण करने की विधि आज हम इस लेख में जानने वाले हैं। इसलिए अंत तक इस लेख को जरूर पढ़ते रहे। चलिए हम करवा चौथ की विस्तार पूर्वक जानकारी प्राप्त करते हैं।
करवा चौथ व्रत कब है?
हर साल करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। कार्तिक मास में हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्योहार दीपावली को धूमधाम से मनाया जाता है। इस मास में करवाचौथ, धनतेरस, दीपावली भाई दूज जैसे महत्वपूर्ण त्योहारों को मनाया जाता है। 2023 में करवा चौथ का व्रत 01 नवंबर बुधवार के दिन रखा जाएगा। वहीं द्रिक पंचांग के अनुसार चतुर्थी तिथि रात 9:30 बजे शुरू होती है। 31 अक्टूबर को और रात 9:19 बजे समाप्त होगा। 1 नवंबर को सुबह की पूजा के लिए शुभ समय सुबह 7:55 बजे से 9:18 बजे तक है। इसके बाद सुबह 10:41 बजे से दोपहर 12:04 बजे तक पूजा की जाएगी। इस दौरान शुभ चौघड़िया भी अनुकूल माना जाता है। शाम को 4 बजकर 13 मिनट के बीच करवा चौथ की रस्म पूरी करनी चाहिए. और शाम 5:36 बजे लाभ चौघड़िया काल के दौरान। पंचांग के अनुसार करवा चौथ पर व्रत की अवधि सुबह 6:33 बजे से रात 08:15 बजे तक रहेगी |
करवा चौथ व्रत के बारे में जानकारी
त्योहार का नाम : करवा चौथ
वर्ष : 2023
कहां मनाया जाता है : लगभग सम्पूर्ण भारत में
व्रत दिनांक : 01 नवंबर 2023
वार : बुधवार
तिथि : चतुर्थी
माह : कार्तिक मास
मुहूर्त : 01 नवंबर की रात्रि 1:59 पर करवा चौथ का समय शुरु होता है।
माह पक्ष : शुक्ल पक्ष
करवा चौथ व्रत में क्या किया जाता है?
सुहागन स्त्रियों द्वारा रखे जाने वाले करवा चौथ का व्रत पति पत्नी के संबंध को अटूट बनाता है। इस व्रत से दोनों के बीच प्रेम प्रभाव के साथ-साथ शक्ति का प्रादुर्भाव होता है। पत्नी के द्वारा पति की सुख शांति समृद्धि एवं दीर्घायु होने का आशीर्वाद प्राप्ति के लिए रखे जाने व्रत में कुछ विशेष कार्यक्रम शामिल है जैसे:-
* सुहागन स्त्रियों द्वारा सुबह जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्ति के बाद करवा चौथ व्रत का संकल्प लिया जाता है।
* करवा चौथ के दिन माता सती सावित्री एवं सत्यवान की कथा सुनी जाती है।
* पत्नियों द्वारा चद्रोदय होने तक निर्जला व्रत का पालन किया जाता है।
* चद्रोदय को जल का अर्घ्य देने के बाद ही जल ग्रहण किया जाता हैं।
* साथ ही स्त्रियों द्वारा बड़ी स्त्रियां एवं सास को गिफ्ट देने के साथ-साथ सुहागन रहने का आशीर्वाद भी लिया जाता है।
करवा चौथ की पूजा कैसे करते हैं?
ज्योतिष के अनुसार इस व्रत को करने से दाम्पत्य जीवन सुखदायी और आपसी सामंजस्य बरकार रहता है। करवा चौथ मुख्य रूप से सुहागिन स्त्रियों का त्योहार है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सभी शादीशुदा महिलाएं पति की दीर्घायु और सफलता के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत करती हैं। और हाँ यदि कोई कुंवारी कन्या इस व्रत को धारण करती हैं तो इसका उद्श्ये भाई को दीर्घायु बनता हैं। कुछ मान्यता ये भी हैं कुंवारी कन्या अपने भावी पति (इच्छा वर) के लिए इस व्रत को धारण करती हैं। इस दिन मुख्य रूप से चंद्रमा की पूजा की जाती है और इसे अर्घ्य दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा की पूजा से जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है और भावी जीवन सुखमय होता है।
चौकी स्थापना और इसकी विधि
जहां आप करवा चौथ की पूजा करना चाहती हैं उस स्थान को साफ करके चौकी लगाने से पहले उस स्थान को हल्दी से लीप लें, फिर रोली और हल्दी से स्वस्तिक बनाएं। उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) या पूर्व दिशा में चौकी की स्थापना करें। चौकी पर गंगाजल छिड़क कर साफ लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं। इस पर करवा माता की प्रतिमा रख लें। साथ ही भगवान शिव-पार्वती, गणेश जी और भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा रखकर इनकी पूजा करें।
करवा स्थापना का महत्व
करवाचौथ के दिन करवा का बड़ा महत्व होता है। आप मिट्टी से बने करवा (karva pot) का उपयोग करें तो अच्छा है। आप किसी धातु से बने करवा का भी उपयोग कर सकती हैं। करवा को हल्दी-कुमकुम लगाएं। इसके मुख पर मौली बांधे। इस करवा को अपनी क्षमतानुसार अन्न, शक्कर, या सूखे मेवे से भरें। साथ में एक सिक्का भी रखें और इसका मुख दीये से ढक दें।
करवा चौथ पूजा विधि
पत्नियों द्वारा करवा चौथ का व्रत पालन एवं पूजा विधि को हम विस्तारपूर्वक बताने का प्रयास कर रहे हैं। साथ ही आपको करवा चौथ के दिन बोले जाने वाले मंत्र का भी उल्लेख कर रहे हैं। अतः आप करवा चौथ के दिन इसमें लगने वाली सामग्री जैसे माता गोरी का चित्र, भगवान गणेश, प्रसाद, फूल माला, सामग्री को जुटा लें।
* व्रत के दिन दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के पश्चात व्रत का संकल्प लें।
* जिन मंत्रों को आप आसानी से बोल सकते हैं उनका जाम करें जैसे ( ओम नमः गणेशाय, ओम नमः शिवाय, ऊँ अमृतांदाय विदमहे कलारूपाय धीमहि तत्रो सोम: प्रचोदयात, चंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए ‘ॐ सोमाय नमः’ और ॐ षण्मुखाय नमः मंत्र का जाप करें)
* माता सती सावित्री एवं सत्यवान की कथा सुने।
* निर्जला व्रत संकल्प ले।
* निर्जला व्रत में पूरे दिन अन्न और जल ग्रहण न करें और चंद्रोदय दर्शन और पूजन के बाद की कुछ खाएं।
* शाम के समय पूजन करते हुए पति की दीर्घायु की कामना करते हुए चन्द्रमा से प्रार्थना करें और व्रत का पारण करें।
* चावल के आटे में हल्दी मिलाकर आयपन बनाएं और इससे जमीन पर सात घेरे बनाते हुए चित्र बनाएं।
* जमीन पर बने इस इस चित्र के ऊपर करवा रखें और इसके ऊपर नया दीपक रखें। करवा में आप 21 सींकें लगाएं और करवा के भीतर खील बताशे (करवे में क्या भरा जाता है), चूरा और साबुत अनाज डालें।
* करवा के ऊपर रखे दीपक को प्रज्ज्वलित करें। इसके पास आटे की बनी पूड़ियां, मीठा हलवा, खीर, पकवान और भोग की सभी सामाग्रियां रखें।
* इस पूजा में मुख्य रूप से चावल के आटे का प्रसाद तैयार किया जाता है और व्रत खोलते समय जल के बाद सबसे पहले इसी प्रसाद को ग्रहण करना चाहिए।
* करवा के साथ आप सुहाग की सामग्री भी चढ़ा सकती हैं। यदि आप सुहाग की सामग्री चढ़ा रही हैं। तो सोलह श्रृंगार चढ़ाएं। करवा के पूजन के साथ एक लोटे में जल भी रखें। इससे चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। पूजा करते समय करवा चौथ व्रत कथा का पाठ करें।
* चांद निकलने के बाद छलनी की ओट से पति को देखें फिर चांद के दर्शन करें। चन्द्रमा को जल से अर्घ्य दें।
सरगी का महत्व
करवा चौथ का व्रत सरगी के साथ आरम्भ होता है। करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले किया जाने वाला भोजन होता है। जो महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं उनकी सास उनके लिए सरगी बनाती हैं। आपको बता दें, करवा चौथ का व्रत सरगी के साथ आरम्भ होता है। करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले किया जाने वाला भोजन होता है।
चंद्र पूजा और चांद देखने का समय
1 नवंबर, 2023 को चंद्रोदय 8 बजकर 26 मिनट पर होगा। वहीं इस दिन शाम 5 बजकर 44 मिनट से 7 बजकर 02 मिनट तक करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त है। चंद्र पूजा के लिए पूजा की थाली में हल्दी, कुमकुम, अक्षत, पुष्प, जल कलश, दीपक छलनी आदि रखें। इसके बाद किसी ऊंचे स्थान या छत से चन्द्रदर्शन करें। चंद्र को हल्दी-कुमकुम-अक्षत-पुष्प अर्पित करें। इसके बाद चंद्र को अर्घ्य दें। अब एक केले के पत्ते पर भोग-मिष्ठान्न रखकर इसे चंद्रदेव को अर्पण करें। चंद्रदेव का दर्शन करने के बाद अपने पति को तिलक लगाएं और उनकी आरती उतारें। छलनी से ही पहले चाँद को देखें और फिर अपने पति को देखें। साथ ही पति देव की लंबी आयु और अच्छी स्वास्थ्य की कामना करें। अंत में चंद्र देवता को नमस्कार करें। इसके बाद अपने पति के हाथों से जल ग्रहण करके अपना निर्जला व्रत पूर्ण करें। इस तरह से आपकी पूजा संपन्न हो जाएगी।
करवा चौथ व्रत कथा/करवा चौथ की कहानी
करवा चौथ की कहानी एक पौराणिक घटना से जुड़ी हुई है। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार एक सती सावित्री नाम की पतिव्रता स्त्री थी। जो केवल अपने पति को ही सर्वशक्तिमान मानती थी। कालक्रम में घटनाओं के चलते सती सावित्री के पति सत्यवान को यमराज के यमदूत प्राण हरने को पहुंच जाते हैं। अभी माता सती यमराज से अपने पति के प्राणों की रक्षा करने का आह्वान करती है। परंतु यमराज नीति विरुद्ध बता कर टालने का प्रयास करते हैं। बहुत मन्नतों के बाद जब यमराज के दूत नहीं माने तो माता सावित्री ने अपने तपोवन से यमराज को श्राप देने की घोषणा करने लगी। इससे यमराज भयभीत हो गए। उन्हें लगा कि पतिव्रता स्त्री के श्राप से में मुक्त नहीं हो पाऊंगा, और उन्होंने माता सती से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा। तब माता सती ने अपने पति को फिर से जीवित करने का वरदान मांगती है और यमराज उसके वरदान को स्वीकार कर लेते हैं। इसी घटनाक्रम के चलते आज भी सनातन धर्म में करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। ताकि अपने पति की दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
विसर्जन
किसी भी पूजा करने के बाद दान और विसर्जन करना बेहद महत्वपूर्ण होता है। अतः अगले दिन पूजा में रखा गया करवा और श्रृंगार की सामग्री अपने घर की किसी सुहागन महिला को दान करें।
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