आवश्यकता अविष्कार की जननी है। यह कहावत तो पुरानी है। पर मनुष्य के सामने हमेशा चुनौतियां पेश करती रही है और अगर यह चुनौती किसी मां की ममता को दी जाये तो वह ”सार्थक कदमÓÓ के रूप में सामने आती है। दोस्तो संडे पाजिटीव मे आज हम कुछ ऐसे लोगों के बारे में आपको बताते है। जिन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति, लगन और मेहनत के बल पर न केवल अपने मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों को सक्षम बनाकर समाज के मुख्य धारा से जुडऩे के काबिल बनाया बल्कि ऐसे बच्चों की समस्याओं को समझ कर अन्य लोगों के लिए भी एक शिक्षण संस्थान की स्थापना की।
आईये अब हम आपकों थोड़ा विस्तार से बताते है। पूर्व माध्यमिक शाला सेक्टर 10 में संचालित मानसिक दिव्यांग बच्चों के लिए कार्यरत संस्था ”सार्थक कदम संस्थानÓÓ का परिचय एवं उनके द्वारा इस क्षेत्र में किये जा रहे कार्यो के बारे में सार्थक कदम संस्थान की प्रार्चाया श्रीमती जी.वाणीश्री बताती है। लगभग 10 वर्ष पूर्व हम जैसे कुछ पालक एकत्रित हुये और अपने अपने मानसिक दिव्यांग बच्चों के बारे में विचार-विमर्श एवं उनको होने वाली समस्याओं के समाधान के लिए बैठक की। इस बैठक में हम अभिभावकों ने यह तय किया कि संगठित होकर अपने बच्चों को स्वालम्बी बनाने तथा उन्हे समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के लिये कोई ठोस कदम उठाये। समस्या बड़ी थी शुरूआत कैसे करे इसका अंत कहां होगा कुछ समझ नहीं आ रहा था। तब हमने आसपास ऐसे बच्चों के अभिभावको से मिलकर उन्हे जागरूक बनाने का कार्य किया। इस कार्य में सबसे बड़ी बाधा अभिभावकों का अपने बच्चों को दिव्यांग के रूप में स्वीकारना है। जो कि ज्यादातर अभिभावक नहीं कर पाते जितनी जल्द हम सच्चाई को स्वीकार करते है। समस्या के समाधान के लिये उतना ही अच्छा है।
प्रारंभ में हर पखवाडे किसी एक परिवार के घर बैठक कर मानसिक दिव्यांग बच्चों को व्यवहारिक जानकारी देना उन्हे उचित ढंग से रहना, बोलना, चलना, कपड़े पहनना, टायलेट ट्रेनिंग, आसपास के खतरों से अवेयर करना तथा स्वालम्वन का प्रशिक्षण देना होता था। इन बच्चों को समाज समझ नहीं पाता एवं इनसे दुरी बनाये रखता है। हम उम्र बच्चे इनका मजाक बनाते है।
इसलिए हम लोग बच्चों को समय-समय पर सार्वजनिक स्थानों, उद्यानों, शापिंग मॉल, दुर्गा-गणेश पंडालों पर नि:संकोच लाना ले जाना करते रहे। इसे आगे क्या करे यह जानकारी नहीं थी तब हम अभिभावकों ने स्वयं प्रशिक्षण लिया, वोकेशनल ट्रेनिंग लिया, स्कूल ज्वाईन कर कोर्स किया, फिर संस्था बनाकर छत्तीसगढ़ राज्य फम्र्स एवं सोसाइटीज से तथा भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालन के दि नेशनल ट्रस्ट से संबद्ध संगठन ”परिवारÓÓ से पंजीकृत कराया। हमारे कार्यो से प्रभावित होकर बीएसपी प्रबंधन ने सेक्टर-10 स्थित पूर्व माध्यमिक शाला उपलब्ध कराया है। अभी संस्थान में 4 से 26 वर्ष तक के 25 बच्चे पढ़ रहे है।
यहां सकारात्मक बात यह है कि 6 शिक्षिकायें एवं दो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी है। जो सभी प्रशिक्षित होने के साथ ही पेरेंट्स भी है। प्रतिदिन आधे घंटे का फिजीकल पिरियेड होता है। जिसमें योग सूर्य नमस्कार तथा शारिरीक लचकता के लिये विशेष प्रकार के योग आसन कराये जाते है। डांस-ड्रामा, ड्राईंग के अलावा विशेषज्ञों द्वारा फिजिकल थेरेपी एवं स्पीज थेरेपी भी दी जाती है। बच्चों को स्वालंबी बनाने के लिये कम्प्युटरर्स ट्रेनिंग, स्क्रीन प्रिंटिंग एवं गाडिय़ों के नंबर प्लेट कटिंग सहित अन्य प्रकार के प्रशिक्षण दिये जा रहे है।
संस्था का उद्देश्य मानसिक दिव्यांग बच्चों को समाज की मुख्य धारा में शामिल कर उनका शारीरीक एवं मानसिक विकास कर आत्मनिर्भर बनाना है।
मानसिक दिव्यांग बच्चों को समाज के मुख्यधारा से जोडऩे का प्रयास…..एक सार्थक कदम
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