विश्व वन्यजीव दिवस हर वर्ष 03 मार्च को मनाया जाता है. इसको मनाने के पीछे एक मात्र उद्देश्य, दुनिया के वन्य जीवों और वनस्पतियों के प्रति जागरूकता पैदा करना तथा वन्यजीवों और वनस्पतियों का संरक्षण करना रहा है. इस कार्यक्रम के लिए UN ने ‘सतत विकास लक्ष्यों‘ और CITES के द्वारा जीवों को ‘विलुप्त होती प्रजातियों’ के अंतर्गत शामिल किया जाता है
प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर आगे बढ़ने में ही सबकी भलाई है| निरंतर लुप्त होती प्रजातियों और उनके आवासों और पारिस्थितिक तंत्रों के नुकसान से पृथ्वी पर सभी के जीवन को खतरा है, जिसमें हम भी शामिल हैं| भोजन से लेकर ईंधन, दवाओं, आवास और कपड़ों तक, अपनी सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए, हम वन्यजीव और जैव विविधता-आधारित संसाधनों पर निर्भर हैं| लाखों लोग अपनी आजीविका चलाने के लिए सीधे तौर पर प्रकृति से जुड़े हैं| इसलिए लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाने के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हर साल विश्व वन्यजीव दिवस (World Wildlife Day) मनाया जाता है| आइये जानते हैं विश्व वन्यजीव दिवस कब मनाया जाता है और क्या है इस साल का विषय।
विश्व वन्यजीव दिवस का इतिहास
विलुप्त हो रहे वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं को रोकने के लिए सबसे पहले 1872 में जंगली हाथी संरक्षण अधिनियम पारित किया गया। उसके बाद सन् 2013 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 68वें बैठक में घोषणा की। पहली बार 3 मार्च 2014 को विश्व वन्यजीव दिवस मनाया गया। हर वर्ष लोगों को इसके प्रति जागरूक करने के लिए विश्व वन्यजीव दिवस पर एक थीम जारी की जाती है। कार्यक्रम, मनोरंजन का आयोजन किया जाता है।
विश्व वन्यजीव दिवस कब मनाया जाता है
प्रतिवर्ष सयुंक्त राष्ट्र के सदस्य देश लुप्त होने वाले वन्यजीवों को बचाने के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 03 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस (World Wildlife Day) मनाते हैं| दरअसल 20 दिसंबर 2013 को, अपने 68 वें सत्र में, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने थाईलैंड के प्रस्ताव पर दुनिया के कम होते जंगली जानवरों और पौधों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व वन्यजीव दिवस मनाए जाने की घोषणा करी| इसके लिए उन्होनें 03 मार्च का दिन चुना| इसी दिन 1973 में जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मलेन (CITES) पर कई देशों के हस्ताक्षर हुए थे| विश्व वन्यजीव दिवस घोषित होने के बाद अगले वर्ष की तीन मार्च, 03 मार्च 2014, को पहला विश्व वन्यजीव दिवस मनाया गया| तब से हर साल 03 मार्च को अलग-अलग विषय पर विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जा रहा है|
विश्व वन्यजीव दिवस 2022 का विषय
इस साल विश्व वन्यजीव दिवस 2022 का विषय Theme: “Recovering key species for ecosystem restoration” (“पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए प्रमुख प्रजातियों को पुनर्प्राप्त करना”) है| इस विषय पर “विश्व वन्यजीव दिवस 2022” मनाए जाने के पीछे जंगली जीवों और वनस्पतियों की कुछ सबसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों की संरक्षण स्थिति पर ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करना, और उन्हें संरक्षित करने के लिए समाधानों की कल्पना और कार्यान्वयन की दिशा में चर्चा करना है| इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के खतरे वाली प्रजातियों की लाल सूची के आंकड़ों के अनुसार, जंगली जीवों और वनस्पतियों की 8,400 से अधिक प्रजातियां गंभीर रूप से लुप्तप्राय हैं, जबकि लगभग 30,000 से अधिक को लुप्तप्राय समझा जाता है| इन अनुमानों के आधार पर, एक मिलियन से अधिक प्रजातियों को विलुप्त होने का खतरा माना जाता है| विश्व वन्यजीव दिवस 2022, सबसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाने, उनके आवासों और पारिस्थितिक तंत्रों की बहाली का समर्थन करने और मानवता द्वारा उनके स्थायी उपयोग को बढ़ावा देने के लिए अनिवार्य आवश्यकता की ओर बहस को प्रेरित करेगा|
अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव दिवस की पिछले कुछ सालों की थीम्स:
2021 की थीम:- Forests and livelihoods: sustaining people and planet (वन और आजीविका: लोगों और ग्रह को बनाए रखना)
2020 की थीम:- Sustaining All Life On Earth (पृथ्वी पर सभी जीवन का निर्वाह) थी।
2019 की थीम:- Life below Water: for People and Planet (पानी के नीचे जीवन: लोगों और ग्रह के लिए)
2018 की थीम:- Big cats – predators under threat (बड़ी बिल्लियां – शिकारियों के खतरे में है।)
2017 की थीम:- Listen to the young voices (युवा आवाज सुनो)
2016 की थीम:- The future of wildlife is in our hands”, and sub-theme The future of elephants is in our hands (वन्यजीवों का भविष्य हमारे हाथ में है”, और उप-थीम “हाथियों का भविष्य हमारे हाथों में है)
2015 की थीम:- It’s time to get serious about wildlife crime (वन्यजीव अपराध के बारे में अब गंभीर होने का समय है)
वन्यप्राणियों का महत्त्व
* इस संसार मे जंगलों के साथ-साथ वन्यजीवों को भी एक महत्वपूर्ण संसाधन की तरह देखना चाहिए, क्योंकि ये खाद्य शृंखला और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
* साथ ही ये दुनिया-जहान मे किसी भी देश की आर्थिक, मनोरंजन और सौंदर्यता को बनाए रखने में भी काफी सहायक होते है।
* इंसानों की जनसंख्या में वृद्धि, कृषि और पशुधन के साथ-साथ शहरों और सड़कों के विस्तार और बढते निर्माण, भी वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को नष्ट करने के लिए जिम्मेदार हैं। वनों की कटाई और अवैध शिकार भी जैव-विविधता को खतरे में डाल रही हैं।
* इतना ही नहीं नदियों के जल में मिलें फैक्ट्रीयों के जहरीले केमिकल्स के कारण जलीय जीवों पर भी खतरा पैदा हो गया है, कईं मछलियाँ और पानी में रहने वाले जीवों की प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं। ऐसे में हमें अब अपनी बंद आँखों को खोल विश्व वन्यजीव दिवस पर इनकी रक्षा करने का प्रण लेना चाहिए।
संसार भर में विलुप्त होती प्रजातियाँ
पूरे विश्व में जीवों और वनस्पतियों की बहुत सारी प्रजातियाँ समाप्त हो गयी हैं. परन्तु यह एक सामान्य सी बात है. एक अनुमान के मुताबिक; कोई भी प्रजाति, अस्तित्व में आने के 1 करोड़ साल बाद विलुप्त हो जाती है. और किसी समय में विद्यमान लगभग 99% प्रजातियाँ आज समाप्त भी हो गयी हैं. तो फिर इतना परेशान होने की बात क्यों है? दरअसल वर्तमान समय में मानवीय गतिविधियों के कारण, ग्रीन हाउस प्रभाव, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की समस्या जिस तरह से बढ़ी है. उसके कारण, प्रजातियों के विलुप्त होने की रफ़्तार में इज़ाफा हुआ है. तो सामान्यतः, प्रजातियों के विलुप्त होने में, जितना समय लगता था. उससे कई गुना अधिक रफ़्तार में प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं. यही चिंता का विषय है।
विलुप्त होती प्रजातियों का निर्धारण कौन करता है?
IUCN (International Union for Conservation of Nature) दुनिया भर में विलुप्त हो चुके जीव या संकटापन्न स्थिति में रहने वाले जीवों की एक list तैयार करता है. IUCN यह list, अपनी किताब -“The IUCN Red List of Threatened Species” में जारी करता है।
IUCN विश्व स्तर पर जीवों की प्रजातियों पर निगरानी रखने और उन्हें संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से बनायीं गयी संस्था है. इसका गठन 1964 में हुआ था.
IUCN के द्वारा निर्धारित श्रेणियां
दुनिया भर के जीवों की प्रजातियों को IUCN, निम्न 9 में से किसी 1 श्रेणी में रखता है. IUCN के द्वारा निर्धारित श्रेणियां निम्न हैं –
श्रेणी सदस्यों की विशेषता
विलुप्त (Extinct या Ex) : कोई भी सदस्य जीवित नहीं है.
वन विलुप्त (Extinct in the Wild या EW) : इस प्रजाति के जीवों के सदस्य वनों से पूरी तरह से विलुप्त हो गए हैं. ये अब केवल चिड़ियाँ घर में ही बचे हुए हैं.
घोर-संकटग्रस्त (Critically Endangered या CR) : इस प्रजाति के जीवों पर खतरा सबसे अधिक बना हुआ है. इसके सदस्य वनों से विलुप्त होने के कगार पर हैं.
संकटग्रस्त – (Endangered या EN) : इसके सदस्यों का वनों से विलुप्त होने का खतरा सबसे अधिक बना हुआ है.
असुरक्षित – (Vulnerable या VU) : इस प्रजाति के जीवों का वनों में संकटग्रस्त हो जाने की संभावना सबसे अधिक है.
संकट निकट – (Near-Threatened या NT) : इस प्रजाति के सदस्यों की निकट भविष्य में संकटग्रस्त हो जाने की पूरी संभावना है.
संकट-मुक्त – (Least Concern या LC) : इसके सदस्यों को खतरा बहुत कम है.
आंकड़ो का अभाव – (Data Deficient या DD) : इस प्रजाति के जीवों के बारे में जानकारी के अभाव में, इसके संरक्षण और संकट का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है.
अनाकलित – (Not Evaluated या NE) : इस प्रजाति के जीवों के संरक्षण का आंकलन अभी नहीं किया गया है.
विलुप्त प्राय जीवों की सूची
IUCN के द्वारा विलुप्त प्रायः जीवों की सूची इस प्रकार है
घोर संकटग्रस्त जीवों की सूची
1. Himalayan Brown Bear
(हिमालयन भूरा भालू) वैज्ञानिक नाम – उरसस आर्कटोस ईजाबेलिनस
उपजाति – भूरे भालू की
कहाँ पाए जाते हैं – उत्तरी अफगानिस्तान, उत्तरी पाकिस्तान, उत्तरी भारत, नेपाल और पश्चिमी चीन में.
लम्बाई (खड़े होने पर) – लगभग 2 मीटर
यह उत्तर पश्चिम भारत में जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते हैं. ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस प्रजाति को सबसे ज्यादा खतरा है. इसके सदस्य वनों से विलुप्त होने के कगार पर हैं. इसीलिए इसे IUCN के द्वारा घोर-संकटग्रस्त (Critically Endangered या CR) के श्रेणी में रखा गया है.
हिमालयी भूरे भालू का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ। (Chordata)
वर्ग। (Mammalia)
गण। (Carnivora)
कुल। (Ursidae)
वंश। (Ursus)
जाति। (Ursus Arctos)
उपजाति। (U.A. Isabellinus)
हिमालयी भूरे भालू के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
* जूलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि, हिमालयन ब्राउन बेयर पर निकट भविष्य में घोर संकट आने वाला है. इनकी आबादी 2050 तक आज की तुलना में लगभग 70 % कम हो सकती है.
* ऐसा उन्होंने जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघलने और इनके आवास ख़त्म होने के कारण कही है.
* रिपोर्ट में इनके 13 संरक्षित क्षेत्रों के पहचान की गयी है. जिसमे से 8 क्षेत्र 2050 तक पूरी तरह समाप्त हो जाने की आशंका बताई गयी है.
इसीलिए IUCN ने इन्हें घोर संकटग्रस्त की श्रेणी में रखा है.
2. Andaman White-Toothed Shrew (अंडमान व्हाइट-टूथेड श्रू)
वैज्ञानिक नाम – Crocidura Andamanesis
कहाँ पाए जाते हैं – भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह में।
यह चूहे के जैसे दिखने वाला छोटा सा जीव है. यह भारत के दक्षिणी अंडमान में पाया जाने वाला जीव है. ये विशेष रूप से सांयकाल या रात के अँधेरे में बाहर निकलते हैं. ये हर जगह नहीं पाए जाते हैं. इनके आवास कुछ ख़ास स्थानों पर ही मिलते हैं. लेकिन इनके आवास खतरे में हैं. जलवायु परिवर्तन और सुनामी जैसी आपदा के कारण इस प्रजाति के आवास समाप्त हो रहे हैं. इसीलिए इन्हें घोर संकटग्रस्त की श्रेणी में रखा गया है.
अंडमान व्हाइट-टूथेड श्रू का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ (Chordata)
वर्ग। (Mammalia)
गण। (Eulipotyphla)
कुल। (Soricidae)
वंश। (Crocidura)
जाति। (C. Andamanesis)
3. Elvira Rat (एलविरा रेट)
वैज्ञानिक नाम – Cremnomys Elvira
कहाँ पाए जाते हैं – केवल भारत के पूर्वी घाट में.
शरीर के लम्बाई – 149 मिली मीटर
यह विशेष प्रजाति का चूहा केवल भारत के तमिलनाडु और पूर्वी घाट में पाया जाता है. यह चट्टानों के बिलों और सूखी घास के अन्दर रहना पसंद करता है. परन्तु इसके आवास खतरे में है. मानवीय अधिवास, कृषि कार्य, पशु चराई और खदानों के मलवा डंपिंग से इन प्रजाति के आवास कम होते जा रहे हैं. 2008 में IUCN ने इसे घोर संकटग्रस्त की सूची में शामिल कर लिया है. यह प्रजाति, मानव गतिविधियों के कारण संकटापन्न स्थिति में पहुँच गयी है.
Elvira Rat . का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ (Chordata)
वर्ग (Mammalia)
गण (Rodentia)
कुल (Muridae)
वंश (Cremnomys)
जाति (C. Elvira)
4. Malabar Civet (मालाबार सिवेट)
वैज्ञानिक नाम – Viverra Civettina
कहाँ पाए जाते हैं – केवल भारत के पश्चिमी घाट में.
शरीर के लम्बाई – 149 मिली मीटर
इसे कस्तूरी बिलाव कहते हैं. यह बिल्ली जैसे दिखाई देता है. परन्तु यह बिल्ली प्रजाति का जीव नहीं है. इसके प्रजाति के अन्य जीव एशिया और अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है. परन्तु यह केवल भारत के पश्चिमी घाट में रहता है. सुगन्धित पदार्थो में इसके शरीर से निकलने वाले रसायन का प्रयोग किया जाता है. इसके अवैध शिकार के कारण यह प्रजाति संकट में है. इस प्रजाति के जीव को IUCN के द्वारा घोर संकट वाले जीव की श्रेणी में रखा गया है. क्यूंकि 1990 से 2014 के बीच की गयी सर्वे में ये जीव जीवित नहीं पाए गए हैं. 1990 के शुरूआती समय में ये जीव मालाबार के दक्षिण में पाए जाते थे. लेकिन शिकार के कारण ये जीव लगभग विलुप्त हो चुके हैं. ये अब इतना दुर्लभ हो गया है कि आम लोगों के लिए इसका एक पुतला संग्रहालय में रखा गया है.
मालाबार सिवेट का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ (Chordata)
वर्ग (Mammalia)
गण (Carnivora)
उप गण (Feliformia)
कुल (Viverridae)
वंश (Viverra)
जाति विवेरा सिवेत्तीना
5. Kashmir Hangul (कश्मीर हंगुल)
कश्मीर हंगुल जम्मू और कश्मीर का राज्य पशु वैज्ञानिक नाम – Cervus Elaphus Hanglu
कहाँ पाए जाते हैं – भारत के जम्मू और कश्मीर से लेकर हिमाचल प्रदेश तक
नस्ल – लाल हिरन
इसे जम्मू और कश्मीर का ‘राज्य पशु’ का दर्जा प्राप्त है. यह भारत के कश्मीर में पाई जाने वाली प्रजाति है. यह लाल हिरन के नस्ल की है. ये जंगलों में खुले आवास में रहना पसंद करते हैं. परन्तु धीरे धीरे जंगलों के कटान के कारण और अवैध शिकार के कारण यह प्रजाति आज संकट में हैं. 1970 तक इनकी संख्या मात्र 150 थी. उसके बाद कश्मीर सरकार ने वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड के साथ इनको बचाने के लिए “प्रोजेक्ट हंगुल” नाम से एक प्रोजेक्ट शुरू किया. जिसके परिणामस्वरूप 1980 तक इनकी संख्या बढ़कर 340 हो गयी. परन्तु 2008 में इनकी संख्या पुनः 160 के आसपास पहुँच गयी है. जो कि चिंता का विषय है. इसीलिए, IUCN ने इन्हें घोर संकटग्रस्त जीवों की श्रेणी में शामिल किया है.
कश्मीर हंगुल का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ (Chordata)
वर्ग (Mammalia)
गण (Artiodactyla)
कुल (Cervidae)
उप कुल (Cervinae)
वंश (Cervus)
जाति (C. Hanglu)
उप जाति (C.h. Hanglu)
6. Pygmy Hog (पिग्मी हॉग)
वैज्ञानिक नाम – Porcula Salvania
कहाँ पाए जाते हैं – नेपाल, पूर्वी भारत विशेष रूप से असम और पश्चिम बंगाल में.
नस्ल – सुअर
यह सुअर की प्रजाति का जीव है. इसकी सबसे मुख्य विशेषता यह है कि यह जीव छत के सहारे अपना घर बनाते हैं. भारत के असम में इन्हें संरक्षित करने के लिए इन्हें असम के ‘मानस राष्ट्रीय उद्यान’ में रखा गया है. इनके संरक्ष्ण के लिए विशेष प्रोग्राम “Pygmy Hog conservation Program’ शुरू किया गया है. यह विशेष रूप से असम में पाया जाता है. यह दुनिया का सबसे छोटा सुअर है. असम के गुआहाटी में इसके संरक्षण के लिए एक विशेष चिड़ियाघर का निर्माण किया गया है.
पिग्मी हॉग का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ (Chordata)
वर्ग (Mammalia)
गण (Artiodactyla)
कुल (Suidae)
वंश (Porcula)
जाति (P. Salvania)
7. Kondana Soft-Furred Rat (कोंडाना सॉफ्ट-फ़र्ड रैट)
कोंडाना सॉफ्ट-फ़र्ड रैट वैज्ञानिक नाम – Millardia Kondana
कहाँ पाए जाते हैं – यह भारत के महाराष्ट्र के पठारी क्षेत्रों और पुणे में पाए जाते हैं.
नस्ल – चूहा
यह भारत के महाराष्ट्र और पुणे में पाया जाने वाला जीव है. यह जीव बढ़ते पर्यटन के कारण अपना आवास खो रहा है.
कोंडाना सॉफ्ट-फ़र्ड रैट का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ (Chordata)
वर्ग (Mammalia)
गण (Rodentia)
कुल (Muridae)
वंश (Millardia)
जाति (M. Condana)
8. Namdapha Flying Squirrel (नमदाफा उड़ने वाली गिलहरी)
नमदाफा उड़ने वाली गिलहरी वैज्ञानिक नाम – Biswamoyopterus Biswasi
कहाँ पाए जाते हैं – यह भारत के अरुणाचल प्रदेश में पाए जाते हैं. नस्ल – गिलहरी
जीवनकाल – लगभग 6 वर्ष
इसे उड़ने वाली गिलहरी कहते हैं. यह एक रात्रिचर जीव है. यह दिन में सोता है और रात में विचरण करता है. इनकी अनुमानित जनसँख्या के बारे में कोई भी अनुमान नहीं है. केवल इनके आवास के बारे में जानकारी है कि ये उत्तर पूर्वी भारत में बहने वाली दिहिंग नदी की घाटी में रहते हैं. इनके नाम से ही यहाँ पर “नामदफा नेशनल पार्क” 1981 में बनाया गया है. भारत में इसकी 12 प्रजातियाँ पाई जाती हैं.
नमदाफा उड़ने वाली गिलहरी का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ (Chordata)
वर्ग (Mammalia)
गण (Rodentia)
कुल (Sciuridae)
वंश (Biswamoyopterus)
जाति (B. Biswasi)
संकटग्रस्त जीवों की सूची
1. Tiger (बाघ)
बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है. वैज्ञानिक नाम – Panthera Tigris
कहाँ पाए जाते हैं – यह एशिया के अधिकांश देशों में पाए जाते हैं.
नस्ल – बिल्ली
यह भारत, नेपाल, भूटान और इंडोनेशिया में अधिक पाया जाता है. जबकि तिब्बत, श्रीलंका और अंडमान द्वीप समूह में नहीं पाया जाता है. अपने सुनहरे धारीदार शरीर के कारण यह शिकारियों के निशाने पर अधिक रहता है. जिस कारण आज यह प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है.
बाघ का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ Chordata
वर्ग Mammalia
गण Carnivora
कुल Felidae
उपकुल Pantherinae
वंश Panthera
जाति P. tigris
2. Red Panda (लाल भालू)
लाल भालू वैज्ञानिक नाम – Ailurus
कहाँ पाए जाते हैं – यह भारत के सिक्कीम, असम, अरुणाचल प्रदेश और चीन में पाए जाते हैं.
नस्ल – भालू
यह भालू के नस्ल का जीव है. यह बहुत खूबसूरत जीव है. यह आमतौर पर शांत ही रहता है. और इसकी आवाज चूहों की तरह चूं-चूं करती हुई आती है. 2008 के बाद से इन्हें IUCN ने असुरक्षित के श्रेणी में रखा है. यह भारत, नेपाल और भूटान के हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है.
लाल पांडा का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
वर्ग Mammalia
गण Carnivora
उपगण Caniformia
अधिकुल Musteloidea
कुल Ailuridae
वंश Ailurus
3. Eld’s Deer (एल्ड डीयर)
एल्ड डीयर (संगाई) मणिपुर का राज्य पशु है.
वैज्ञानिक नाम – Rucervus eldii
कहाँ पाए जाते हैं – यह भारत के केवल मणिपुर में पाए जाते हैं.
नस्ल – हिरन
यह भारत के मणिपुर राज्य में पाया जाता है. यह हिरन की प्रजाति का जीव है, जो कि संकटापन्न स्थिति में है. इनकी संख्या इतनी कम हो गयी है कि इन्हें केवल मणिपुर के राष्ट्रीय उद्यान ‘केयबुल लामजाओ’ में देखा जा सकता है. मानवीय अतिक्रमण के कारण इनके आवास तेजी से कम होते जा रहे हैं.
एल्ड के हिरण का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ Chordata
वर्ग Mammalia
गण Artiodactyla
कुल Cervidae
उप कुल Cervinae
वंश Rucervus
जाति R. eldii
4. White Bellied Musk Deer ( कस्तूरी मृग )
कस्तूरी मृग उत्तराखंड का राज्य पशु है.
वैज्ञानिक नाम – Moschus Leucogaster
कहाँ पाए जाते हैं – यह भारत के उत्तराखंड,कश्मीर, सिक्कीम में पाए जाते हैं.
नस्ल – हिरन
यह उत्तराखंड राज्य का राज्य पशु है. अपनी कस्तूरी के कारण यह शिकारियों की नजर में रहता है.
सफेद पेट वाले कस्तूरी मृग का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ Chordata
वर्ग Mammalia
गण Artiodactyla
कुल Moschidae
वंश Moschus
जाति M. Leucogaster
सफेद पेट वाले कस्तूरी मृग के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य ( कस्तूरी मृग )
* इसके पेट से एक सुगन्धित तरल पदार्थ निकलता है, जिसके कारण यह विश्व विख्यात बन गया है.
* अपनी इसी सुगन्धित पदार्थ (कस्तूरी) के कारण यह शिकारियों की नजर में रहता है.
* इसकी याददाश्त क्षमता काफी अधिक होती है. यह शिकार के लिए अगर दूर भी निकल जाए, तो वापिस अपने ही आवास में लौट आता है.
* इसकी एक विशेष आदत यह है कि, यह अपने आवास को आसानी से नहीं छोड़ता है. भले ही तूफ़ान आये या कितनी भी ठण्ड पड़े.
इसके संरक्षण के लिए
उत्तराखंड में ‘अस्कोट वन्य जीव अभ्यारण्य’,
‘केदारनाथ वन्य जीव अभ्यारण’, ‘कंचुला कोरक वन्य जीव अभ्यारण्य’ स्थापित किया गया है.
5. Hog Deer(हॉग डियर)
हॉग डियर वैज्ञानिक नाम – Axis Porcinus
कहाँ पाए जाते हैं – यह भारत, नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश में पाए जाते हैं.
नस्ल – हिरन
यह संकटापन्न हिरन प्रजाति का जीव है. यह उत्तरी भारत से लेकर दक्षिणी पूर्वी एशिया तक पाया जाता है.
हॉग हिरण का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ Chordata
वर्ग Mammalia
गण Artiodactyla
कुल Cervidae
उप कुल CervinaeवंशAxis
जाति A. Porcinus
6. Nilgiri Tahr (नीलगिरि तहरी)
नीलगिरि तहरी वैज्ञानिक नाम – Nilgiritragus Hylocrius
कहाँ पाए जाते हैं – यह भारत केरल और तमिलनाडु के पूर्वी और पश्चिमी घाटों में पाए जाते हैं.
नस्ल – बकरी और भेड़
यह भारत के नीलगिरी पर्वत और पश्चिमी घाट में पाया जाने वाला जीव है. यह जंगली भेड़ से मिलता जुलता जीव है. यह संकटग्रस्त प्रजाति का जीव है.
नीलगिरि तहरी का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ Chordata
वर्ग Mammalia
गण Artiodactyla
कुल Bovidae
उपकुल Caprinae
वंश Nilgiritragus
जाति N. Hylocrius
7. Asiatic Lion (एशियाई शेर)
एशियाई शेर वैज्ञानिक नाम – Panthera Leo Leo
कहाँ पाए जाते हैं – यह भारत गुजरात में पाए जाते हैं.
नस्ल – बिल्ली
यह एशियाई शेर गुजरात के गिर जंगलों में पाया जाता है. हालाँकि यह एक संकटापन्न प्रजाति का जीव है. परन्तु, हाल ही में इसकी संख्या में बढ़ोतरी देखी गयी है.
एशियाई शेर का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ Chordata
वर्ग Mammalia
गण Carnivora
उप गण Feliformia
कुल Felidae
उप कुल Pantherinae
वंश Panthera
जाति P. Leo
उप जाति P. l. Leo
8. Golden Langur (गोल्डन लंगूर)
गोल्डन लंगूर वैज्ञानिक नाम – Trachypithecus Geei
कहाँ पाए जाते हैं – यह भारत के असम और भूटान में पाए जाते हैं.
नस्ल – बन्दर
यह विशेष प्रजाति का बन्दर केवल भारत और भूटान में पाया जाता है. यह विलुप्त प्रायः जीवों की श्रेणियों में आता है. हाल ही में ये चर्चा के केंद्र में रहे थे. क्यूंकि, इन बंदरों में गर्भपात की स्थिति उत्पन्न हो रही थी.
स्वर्ण लंगूर का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ Chordata
वर्ग Mammalia
गण Primates
उप गण Haplorhini
कुल Cercopithecidae
वंश Trachypithecus
जाति T. Geei
गोल्डन लंगूर के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
* गोल्डन लंगूर के संरक्षण के लिए असम में ‘गोल्डन लंगूर संरक्षण कार्यक्रम’ की शुरुआत की गयी है.
* इस कार्यक्रम के तहत असम के असम राज्य चिड़ियाघर, गुवाहाटी को चुना गया है.
* इसके लिए इस चिड़ियाघर में एक मादा (लवली) और एक नर (बोलिन) लंगूर को प्रजनन के लिए लाया गया.
* खुशखबरी की बात यह है कि 26 जनवरी 2019 को एक बच्चे को जन्म दिया है.
9. Kharai Camel (खराई ऊंट)
इस प्रजाति के ऊंट केवल गुजरात के भुज में पाए जाते हैं. इन्हें तैरने वाले ऊंट के नाम से भी जाना जाता है.
खराई ऊंट का वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत जंतु
संघ Chordata
वर्ग Mammalia
गण Artiodactyla
कुल Camelidae
वंश Camelus
खराई ऊंट के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
* ये ऊंट ‘तैरने वाले ऊंट’ के नाम से प्रसिद्ध हैं.
* ये केवल गुजरात के भुज में पाए जाते हैं.
* भारत में ऊंट की 9 नस्लें पायी जाती हैं. खराई ऊंट को भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् के द्वारा एक ‘पृथक नस्ल’ के रूप में मान्यता 2015 में दी गयी है.
* गुजरात का भुज क्षेत्र समुद्र के उच्च ज्वार के प्रभाव में रहता है. जिस कारण वहां पर दलदल की स्थिति बनी रहती है.
* खराई ऊंट इन्ही दलदलों में रहते हैं.
* ये यहाँ पर उगने वाली मंग्रोव वनस्पति को खाते हैं. यही इनका मुख्य भोजन है. इनकी तलाश में ये समुद्र के अंदर तक तैर कर चले जाते हैं. इसीलिए इन्हें तैरने वाले ऊंट के नाम से जाना जाता है.
* 2019 में इनकी संख्या लगभग 5000 बताई गयी है.
* इसमें मादा ऊंट का दूध बहुत ही फायदेमंद साबित होता है. इसका प्रयोग मधुमेह जैसी बीमारी को ठीक करने में काम आता है.
* वर्तमान समय में मंग्रोव वनस्पति की कमी और चराई की कमी के कारण इनकी संख्या में तेजी से कमी देखी गयी है. साथ ही दूध की बदती लोकप्रियता के कारण इनका शोषण बढता जा रहा है।
विश्व वन्यजीव दिवस पर आप कैसे अपना योगदान दे सकते हैं
वन्यजीवों के लुप्त होने के सबसे बड़े कारणों में से एक इंसानों का बढ़ता दखल, उनका हैबिटैट खोना है| बहुत से वन्यजीव ग्लोबल वार्मिंग, वनों की कटाई, बढ़ते प्रदूषण, अवैध शिकार के कारण अपना निवास स्थान खो देते हैं| लेकिन कुछ आसान क़दम उठाकर हर कोई विश्व वन्यजीव दिवस के लक्ष्यों को प्राप्त करने में अपना योगदान दे सकता है|
ऊर्जा बचाएँ: ऊर्जा बचाकर जैसे जरूरत नहीं होने पर बिजली उपकरण बंद करना, आदि| कोयले और तेल संसाधनों का दोहन हमारे पर्यावरण और जानवरों को नुकसान पहुंचाता है|
प्लास्टिक से बचें: खरीदारी के लिए जाते समय अपने कपड़े के बैग का उपयोग करें| प्लास्टिक बैग अक्सर प्रकृति में फेंक दिया जाता है, जहां जानवर उन्हें भोजन समझकर गलती से खा लेते हैं|
पानी बचाएं: नहाते समय या ब्रश आदि करते समय पानी व्यर्थ में बर्बाद करने से बचें|
पर्यावरण को बचाएं: अपनी साइकिल और पब्लिक बस का उपयोग करें| यह पर्यावरण के साथ हमारे अपने श्वसन प्रणालियों के लिए भी अच्छा है|
मछली और मांस: कई समुद्रों को मछली पकड़ने के अधीन किया गया है जिससे प्राकृतिक पर्यावरण अपना संतुलन खो देते हैं| इसके अलावा, बड़े जंगलों को केवल मवेशियों के लिए बड़े चरागाह बनाने के लिए काटा जा रहा है|
अपने क्षेत्र के भोजन को बढ़ावा दें: क्षेत्रीय उत्पादों को विमान, ट्रकों के द्वारा हजारों मील के लिए परिवहन करने की जरूरत नहीं, यह प्रकृति को बचाने में मदद करता है|
तो देखा आपने, आखिर दुनिया भर में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए किस प्रकार प्रयास किये जाते हैं ? मानवीय गतिविधियों के कारण, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण, प्रजातियाँ बहुत तेजी से विलुप्त हो रही हैं. इन्ही विलुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण के लिए दुनिया भर में World Wildlife Day मनाया जाता है.