नई दिल्ली। आज से 54 साल पहले आज ही के दिन भारतीय फौज ने पाकिस्तान से लड़ाई करते हुए 19 सौ वर्ग किलोमीटर का इलाका जीत लिया था। यह भारत के लिए बहुत बड़ी सफलता थी। साल 1965 में जब भारत के साथ पाकिस्तान की जंग हुई तो देश का हर बच्चा, बुढ़ा और जवान युद्ध के लिए उठ खड़ा हुआ था। भारतीय सेना के जवानों में इतना हौसला भरा हुआ था। 6 सितंबर को भारत की ओर से इस युद्ध की शुरुआत की आधिकारिक घोषणा की गई। यह युद्ध 23 सितंबर 1965 को खत्म हुआ था। इस युद्ध में भारत और पाक के बीच हुई इस जंग में टैंकों का प्रयोग सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद सबसे ज्यादा हुआ था। 28 अगस्त, 1965 को भारतीय सेना ने पीओके में 8 किलोमीटर अंदर जाकर हाजी पीर समेत कुछ और पोस्ट पर कब्जा कर लिया था।
पाक के पास उस समय अमेरिका में बने कई बेहतरीन टैंक्स थे जिनमें पैटन एम-47, एक-48 और एम-4 शैरमैन टैंक्स शामिल थे। इन टैंक्स की वजह से पाक ने शुरुआत में भारत पर हावी होने की कोशिशें भी कीं थीं। इस युद्ध के बाद दुनिया और एशिया में भारत की एक नई पहचान बनी थी। उस समय टाइम मैगजीन ने लिखा था कि साफ हो गया है कि भारत अब दुनिया में नई एशियन ताकत बनकर उभर रहा है। 17 दिन तक चला युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच यह युद्ध 17 दिनों तक चला। 1965 की जंग में चीन के हाथों मिली शिकस्त के तीन साल बाद ही हुई थी, जब देश अभी भी हार के सदमे से उबर नहीं पाया था। चीन की शैतानी चाल का मोहरा बना पाकिस्तान हमें कमजोर समझने की भूल कर बैठा था। वो मौके का फायदा उठाना चाहता था, लेकिन हिंदुस्तानियों को समझने में वो एक बार फिर भूल कर बैठा था। वीरों की गाथा, शहीदों की सर्वोच्च बलिदान की ये कहानियां इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है।
देश की दशा और दिशा बदलकर रख दी
भारत और पाकिस्तान के बीच जो कुछ भी हुआ वह ऐतिहासिक था, उस समय की गाथाएं आज भी याद है। इस युद्ध ने दोनों देशों की दिशा और दशा बदलकर रख दी। इस युद्ध को आज 28 अगस्त को 50 साल पूरे हो गए। भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 की जंग की आधारशिला 1947 में आजादी के समय ही तैयार हो गई थी। उस समय कई मुद्दों के बीच ही कश्मीर भी दोनों देशों के बीच बड़ा मुद्दा था, जो इस युद्ध के विवाद की वजह था। कश्मीर विवाद से अलग गुजरात में मौजूद कच्छ की सीमा भी उस समय विवादित थी। इस सीमा पर पाक ने जनवरी 65 से गश्त शुरू की थी। इसके बाद यहां पर एक के बाद एक दोनों देशों के बीच 8 अप्रैल से पोस्ट्स को लेकर विवाद शुरू हो गया। उस समय के ब्रिटिश पीएम हैरॉल्ड विल्सन ने दोनों देशों के बीच इस विवाद को सुलझाने में बड़ी भूमिका अदा की थी। इस विवाद को खत्म करने के लिए एक ट्रिब्यूनल का गठन किया गया था।
साल 1968 में सुलझा विवाद
ये विवाद सन 1968 में जाकर सुलझा लेकिन उससे पहले ही दोनों देशों के बीच जंग हो गई। दरअसल पाक को लगने लगा था कि उसके सेना प्रमुख जनरल अयूब खान ने जब कच्छ सीमा के विवाद को हल तक पहुंचाने में मदद की है तो फिर वह भारत से कुछ भी हासिल कर सकते हैं। कच्छ के बाद पाक ने कश्मीर को अपने कब्जे में लेने के लिए रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी। इस रणनीति के दम पर उसने भारतीय सेना को कश्मीर में घेरने की योजना बनाई। लेकिन उसकी एक नहीं चली और भारतीय सेना ने उसे करारा जवाब दिया।
सैनिकों ने पार की लाइन ऑफ कंट्रोल
5 अगस्त 1965 को भारत के 26,000 और पाकिस्तान 33,000 सैनिकों ने लाइन ऑफ कंट्रोल को पार किया था। कश्मीरी लोकल्स के अंदाज में यह सैनिक कश्मीर के कई इलाकों में पहुंच गए। 15 अगस्त को भारतीय सैनिकों ने उस समय तय की हुई सीजफायर लाइन को पार कर डाला। पाकिस्तान ने कश्मीर के उरी और पुंछ जैसे इलाकों पर अपना कब्जा कर लिया था तो वहीं भारत ने पीओके से करीब 8 किलोमीटर दूरी पर स्थित हाजी पीर पास को अपने कब्जे में कर लिया था। इसके बाद पाकिस्तान ने एक सितंबर 1965 को ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम के नाम से एक खास मिशन शुरू किया। इसका मकसद जम्मू के अखनूर सेक्टर को अपने कब्जे में लेना था। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना को खासा नुकसान पहुंचाया, पाक ने कई सप्लाई रूट्स को क्षतिग्रस्त कर दिया।
हाजी पीर को किया कब्जे में
पाक की ओर से हो रहे हमलों के बाद भी भारतीय सेनाओं ने पाक को मुंहतोड़ जवाब दिया और हाजी पीर पास को अपने कब्जे में कर लिया। पाक की ओर से चलाया गया ऑपरेयान ग्रैंड स्लैम बुरी तरह से फेल हो गया था। अपने ऊपर हमले बढ़ते देखकर पाक ने कश्मीर के साथ ही पंजाब को निशाना बनाना शुरू किया लेकिन इस बार भी उन्हें मुंह की खानी पड़ी। इस युद्ध ने सम्पूर्ण दुनिया को यह अहसास कराया कि भारत अहिंसक राष्ट्र है परन्तु युद्ध क्षेत्र में उसका कोई सानी नहीं हैं। पाकिस्तान और भारत दोनों हाजी पीर को एक अभेद्य लक्ष्य मानते थे। ये पास एक ऐसी जगह पर था जहां से इसका बहुत कम लोगों के साथ बचाव किया जा सकता था। हाजी पीर पास की ओर चढ़ाई धीमी, गहरी और लंबी थी। यहां पर सिर्फ़ रात के अंधेरे में ही पहुंचने के लिए सोचा जा सकता था। मेजर दयाल समय के खिलाफ भी लड़ रहे थे। बारिश के तेज़ थपेड़ों और घोर अंधेरे के बावजूद उन्हें सुबह तक चोटी तक पहुंचना था वर्ना दिन की रोशनी में चोटी पर तैनात पाकिस्तानी सैनिकों के लिए वो सिटिंग डक (आसानी से शिकार होने वाले सैनिक) साबित होते।
मेजर आरएस दयाल को महावीर चक्र दिया गया
हाजी पीर में साहसपूर्ण प्रदर्शन के लिए मेजर आरएस दयाल को महावीर चक्र दिया गया था, पहाड़ों पर लड़ाई हमेशा चोटियों पर होती है। हर किसी पास पर कब्ज़ा कर भी लिया जाए लेकिन अगर चोटियों पर कब्ज़ा नहीं हैं तो उसका कोई सामरिक महत्व नहीं होता है और उनका बचाव करना भी मुश्किल होता है। हाजी पीर का सामरिक महत्व ये था कि अगर इस दर्रे पर किसी का कब्ज़ा हो तो श्रीनगर और पुंछ की दूरी मात्र 50-55 किलोमीटर रह जाती है अगर ऐसा न हो तो पुंछ से श्रीनगर जाने के लिए पहले जम्मू जाना पड़ता है, फिर वहां से श्रीनगर और वहां से ऊड़ी, ये रास्ता करीब 600-650 किलोमीटर का होता है। इस पर कब्ज़ा करने के लिए उस पर दो तरफ़ से हमला करने की योजना बनाई गई। पश्चिमी तरफ़ से एक पैरा को चोटियों पर कब्ज़ा करने के आदेश मिले और पूर्व की ओर से पंजाब रेजिमेंट को हमला करने के लिए कहा गया।
तगड़ी लड़ाई के बाद कंपनी कर सकी कब्जा
तगड़ी लड़ाई के बाद अरविंदर सिंह की कंपनी कब्ज़ा करने में सफल हो गई, उसके बाद उनका वहां काम ख़त्म था, हाजी पीर पर हमला किसी और कंपनी को बोलना था लेकिन मेजर दयाल ने अनुमति मांगी कि उनकी कंपनी को हाजी पीर पर हमला करने की इजाज़त दी जाए। उनके सामने 1500 फ़ीट की लगभग सीधी चढ़ाई थी, अनुमति मिलने के बाद दयाल के सैनिकों ने ऊपर चढ़ना शुरू किया, ब्रिगेडियर अरविंदर सिंह बताते हैं कि मौसम बहुत ख़राब था लेकिन फ़ौज में कहा जाता है कि जितना ख़राब मौसम हो, आक्रमण करने वालों के लिए उतना ही अच्छा होता है क्योंकि सामने वाली टीम सुस्त हो जाती हैं। उस इलाके में जमीन दलदली हो चुकी थी, इस पर कब्ज़ा करने के लिए हमे तकरीबन 1500 फ़ीट ऊपर चढ़ना था और चढ़ाई का कोण लगभग 55 से 60 डिग्री था। वो बताते हैं कि रास्ते में हमें एक झोपड़ी दिखाई दी, उसमें से कुछ आवाज़ आ रही थी जब हमने उसका दरवाज़ा खटखटाया तो उसमें से 11 पाकिस्तानी सैनिक निकले, उन लोगों को घेरकर कब्जे में ले लिया गया।
पाकिस्तानी सैनिकों से उठवाया सामान
अभियान में शामिल लेफ़्टिनेंट जिमी राव याद बताते हैं कि हमने उन पाकिस्तानी सैनिकों को न सिर्फ़ बंदी बनाया बल्कि उन्हें अपना भारी सामान उठाने के लिए कुली की तरह इस्तेमाल किया। दयाल और उनके सैनिक तड़के साढ़े चार बजे हाजी पीर जाने वाली सड़क पर पहुंच गए थे, उन्होंने अपने सैनिकों को दो घंटे का विश्राम दिया फिर ऊपर चढ़ना शुरू किया, जब वो सुबह 8 बजे चोटी पर पहुंचे, तब तक पाकिस्तानी सैनिक भारी गोला बारूद छोड़ कर वहां से भाग चुके थे, अपने पीछे वो इतना खाना छोड़ गए थे जिससे 1000 लोगों को एक महीने तक खाना खिलाया जा सकता था।
65 सैनिकों के साथ किया था हमला
मेजर अरविंदर ने वहां जो देखा, उससे उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, वहां पर बहुत बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिक थे जो भारतीय सैनिकों पर जवाबी हमला करने की तैयारी कर रहे थे। अरविंदर ने उसी समय उन पर हमला बोलने का फ़ैसला किया हालांकि उनके पास उस समय सिर्फ़ 65 सैनिक थे। अरविंदर कहते हैं कि हमारी पाकिस्तानियों से हाथों से लड़ाई हुई, अगर में उन्हें नहीं मारता तो वो मुझे मार डालते, इस हमले में 23 भारतीय सैनिक हताहत हुए लेकिन हमने हाजी पीर पर पूरा नियंत्रण कर लिया। उस समय बाकी बचे हुए सैनिकों में इतना भी दम नहीं था कि वो अपने पैरों पर खड़े हो पाते। वो बताते हैं कि मेरे ऊपर एक ग्रनेड फेंका गया और मैं नीचे गिर गया, मेरे पैर का एक हिस्सा उड़ गया लेकिन ताज्जुब की बात थी कि मुझे बिल्कुल दर्द नहीं हो रहा थी जबकि मेरा घाव इतना गहरा था कि मुझे अपनी हड्डी तक दिखाई दे रही थी। इस तरह से अपने जिस्म के महत्वपूर्ण अंगों को गंवाने के बाद सैनिकों ने वहां पर कब्जा किया।