रायपुर। ईदुज्जुहा (बकरीद) में जीवित प्राणी की कुर्बानी देने के बदले केक काटकर धार्मिक रस्म अदा करने की, डॉ दिनेश मिश्र की अपील का अब धीरे धीरे असर होने लगा है। असम में एक विज्ञान शिक्षक ने अपने मेमने को एक जरूरतमंद परिवार को दान दिया कि वे उसका पालन करेंगे और उन्होंने इस त्याग के साथ ईद मनाई। वही इस बार लखनऊ, आगरा, के अलावा मुजफ्फरपुर, गाजियाबाद, सहित अनेक स्थानों से पशु की कुर्बानी के बदले केक काट कर बकरीद मनाने के उदाहरण सामने आये हैं। डॉ दिनेश मिश्र ने कहा जन जागरूकता प्रयासों के चलते देश के कुछ स्थानों से पिछले वर्ष वर्ष पहली बार जीवित प्राणी की कुर्बानी देने के बदले केक काटकर धार्मिक रस्म अदा करने के इको फेंडली ईद मनाने के उदाहरण सामने आए। जो इस बार बढ़े हैं। ईदुज्जुहा (बकरीद) पर विभिन्न जानवरों की कुर्बानी दिये जाने की रस्म है। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ दिनेश मिश्र ने कहा देश के अनेक राज्यों में पशुबलि के निषेध के सम्बंध में कानून बने हुए हैं पर उनका पालन न होने से लाखों निर्दोष मासूम पशुओं की कुर्बानी /बलि दी जाती है। जबकि सभी धर्म प्रेम, अहिंसा की शिक्षा देते हैं। अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किसी दूसरे प्राणी की जान लेना ठीक नहीं है। डॉ दिनेश मिश्र ने कहा पिछले अनेक वर्षों से विभिन्न धार्मिक अवसरों पर पशु की कुर्बानी, पशु वध/बलि की क्रूर परम्परा के विरोध में जनजागरण कर रही हैं पिछले वर्ष महाराष्ट्र के कोराडी के मंदिर में तथा कुछ अन्य स्थानों में नवरात्रि में बलि प्रथा बंद हुई है, वहीं बकरीद में भी अनेक स्थानों में मुस्लिम धर्मावलंबियों ने कुर्बानी की प्रथा का परित्याग किया पिछले कुछ समय से अन्य देशों के साथ भारत में भी लखनऊ आगरा, मेरठ, मुजफ्फरपुर, सहित अनेक स्थानों में जन जागरण के प्रयासों से लोगों ने ईदुज्जुहा (बकरीद) में बकरे के स्थान पर केक काटा, कुछ स्थानों पर तो लोगों ने केक पर ही बकरे का चित्र लगाया और बकरा केक काट कर न केवल सांकेतिक रूप से धार्मिक रस्म अदा की, बल्कि निर्दोष प्राणियों की रक्षा भी की डॉ दिनेश मिश्र ने कहा महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी भी अहिसा के सिद्धांत को प्रचारित करते रहे महावीर स्वामी ने जियो और जीने दो के सिद्धांत को प्रमुखता दी है, वही अपने उद्धरणों में महात्मा बुद्ध ने कहा है कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है यदि हम किसी को जीवन नहीं दे सकते, तो हमें किसी का जीवन लेने का अधिकार नहीं है। डॉ दिनेश मिश्र ने कहा है कुर्बानी का अर्थ त्याग करना होता है। अपनी ओर से किसी जरूरतमंद को आवश्यकतानुसार नगद राशि, दवा, कपड़े, किताबें, स्कूल फीस आदि दान कर भी आत्मसंतुष्टि पाई जा सकती है। साथ ही देश के अन्य प्रदेशों की तरह किसी जिंदा प्राणी को काट कर उसकी जान कुर्बान करने के स्थान पर केक काट कर न केवल धार्मिक रस्म अदा करने बल्कि निर्दोष प्राणी की जान बचाने की पहल की जा सकती है और आगामी वर्षों में ऐसे प्रगतिशील कदमों में और भी अधिक परिवारों के जुड़ने का विश्वास है।