बीते साल मार्च में कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन लगाया गया था और सभी स्कूल बंद कर दिए गए थे। लगभग 1 साल बाद फिर से स्कूल खुलने लगे हैं। इस दौरान बच्चों की पढ़ाई पर असर न पड़े इसलिए ऑनलाइन क्लासेज़ के ज़रिए एक नई तरह की व्यवस्था बनी और बच्चों ने पाठ्यक्रम की अपनी पढ़ाई जारी रखी. लेकिन, अब कुछ राज्यों में नौवीं कक्षा से तो कुछ में छठी कक्षा से स्कूल खुल रहे हैं।
राजधानी दिल्ली में नौवीं से 12वीं तक की कक्षाओं के लिए स्कूल खुल चुके हैं. राजस्थान और बिहार में आठ फरवरी से छठी से आठवीं कक्षा तक के स्कूल खुल गए हैं. उत्तर प्रदेश में दस फरवरी से छठी से आठवीं तक और एक मार्च से पहली से पांचवी तक की कक्षा के छात्रों के लिए स्कूल खुलेंगे।
पंजाब में प्राथमिक कक्षाएं और नौवीं से 12वीं तक की कक्षाएं खुल चुकी हैं. महाराष्ट्र में कुछ शहरों में पांचवी से 12वीं तक स्कूल खुल चुके हैं. हालांकि मुंबई में अभी स्कूल नहीं खुले हैं। वहीं तमिलनाडु में 10वीं और 12वीं की कक्षाएं पहले ही खुल चुकी हैं और आठ फरवरी से नौवीं और ग्यारहवीं की कक्षाएं खोली गई हैं। इनके अलावा हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, पश्चिम बंगाल और केरल और अन्य दूसरे राज्यों में स्कूल खुल चुके हैं या जल्द ही खुलने वाले हैं।
“बच्चे को स्कूल भेजना चाहते हैं लेकिन कोरोना का डर भी है”
“क्या बच्चे सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रख पाएंगे?”
“क्या बच्चों को कोरोना की वैक्सीन लगवाने के बाद ही स्कूल भेजें?”
ऐसे कई सवाल हैं जिनसे आजकल लगभग हर माता-पिता जूझ रहे हैं. कई राज्यों में सरकार ने स्कूल खोलने के आदेश दिए हैं लेकिन अब अभिभावकों को बच्चों को स्कूल भेजने का फ़ैसला लेना है।
क्या है माता-पिता की उलझन
कोरोना वायरस संक्रमण के मामले आना कम ज़रूर हुए हैं, लेकिन पूरी तरह ख़त्म नहीं हुए हैं. ऐसे में बच्चों को सुरक्षित रखने की माता-पिता की चिंता भी बढ़ गई है। बच्चे अब तक घर के सुरक्षित माहौल में थे लेकिन अब उन्हें अन्य बच्चों के बीच भेजना और उन्हें संक्रमण से बचाए रखना अभिभावकों के लिए बड़ी चुनौती है।
स्कूलों का दबाव
हालांकि, ऐसी बातें भी कही जा रही हैं कि कुछ स्कूल माता-पिता पर दबाव डाल रहे हैं। कई स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास बंद कर दी है और वो ज़बरदस्ती बच्चों को स्कूल में आने के लिए कह रहे हैं, जबकि सरकार ने इसके लिए माता-पिता की सहमति को अनिवार्य कहा है।
स्कूलों के सामने चुनौतियां
स्कूल शुरू होने के आदेश के बाद अगली बड़ी जिम्मेदारी स्कूलों पर भी आ जाती है. उन्हें बच्चों को सुरक्षित माहौल प्रदान करना है और माता-पिता को भी भरोसा दिलाना है। लेकिन, बच्चों की संख्या, उनका घुलना-मिलना, ट्रांसपोर्ट और साफ-सफाई ऐसी चुनौतियां हैं जिनका स्कूलों को सामना करना है।
“दूसरी चुनौती ये है कि बच्चों को संक्रमण का ख़तरा सिर्फ़ शिक्षकों से ही नहीं है बल्कि सहायक स्टाफ़ से भी है. हमें सहायक स्टाफ़ की जांच करानी होगी. हर एक स्कूल का अपना फॉर्मूला होगा, उनकी अपनी तैयारियां होगी क्योंकि हर स्कूल में बच्चों की संख्या अलग होती है, उनके सामने संसाधन अलग होते हैं.”
ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों एक साथ
सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के मुताबिक़ बच्चों को स्कूल बुलाने के लिए माता-पिता की सहमति ज़रूरी है. लोगों के पास ये विकल्प है कि वो अपने बच्चों को स्कूल भेजें या नहीं. ऐसे में सभी बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं लेकिन स्कूल को तो सभी को पढ़ाना है। ऐसे में स्कूल को ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों की तरह क्लासेज़ की व्यवस्था करनी होगी. ये देखना होगा कि एक ही समय पर शिक्षकों को कैसे मैनेज करें कि वो ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों कक्षाएं स्कूल से ही लें.”
बच्चों के साथ बरतें संयम
कोरोना वायरस के डर के अलावा बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण मसला नई दिनचर्या का भी है. जब से कोरोना महामारी शुरू हुई है बच्चों की दिनचर्या बदल गई है. ऐसे में फिर से स्कूल के माहौल में सामंजस्य बैठाने में उन्हें वक़्त लग सकता है। डॉक्टर कहते हैं कि बच्चों के साथ थोड़ा धीरज रखना होगा, कुछ बातों का ध्यान रखने की सलाह देते हैं।
स्कूल जाने के लिए बच्चों को जल्दी उठना होगा और फिर जल्दी सोना भी होगा. इसलिए ये ना सोचें की स्कूल खुलने पर अपने आप रूटीन बदल जाएगा. पहले से ही इसमें बदलाव लाने की कोशिश करें।
लगभग एक साल से बच्चे घर से सहज माहौल में अपने माता-पिता के साथ क्लास कर रहे थे. लेकिन, अब ऐसा नहीं होगा तो उनकी तरफ से कुछ आनाकानी देखने के मिल सकती है. ऐसे में आनेवाले वक्त में बच्चों में व्यवहार संबंधी परेशानियां, चिड़चिड़ापन और भावनात्मक मुश्किलें भी देखने को मिल सकती है. इसलिए माता-पिता और शिक्षकों को चाहिए कि वो थोड़ा संयम बरतें।
महामारी के कारण बच्चों की पढ़ाई का तरीका बदल गया है. उन्होंने लिखना कम कर दिया है जो कि स्कूल में ज़रूरी होता था. ऐसे में स्कूल खुलने से पहले ही इस पर काम करना शुरू कर देना चाहिए।
बीते कुछ महीनों से बच्चे तकनीक का (फ़ोन, लैपटॉप, कंप्यूटर) का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं, इस पर भी नियंत्रण करना होगा।
माता-पिता बच्चों के लिए लंच घर से बना कर भेजें. साथ ही उसके बैग में सैनिटाइज़र और मास्क भी रखें।
बच्चों को समझाकर कोविड-19 से सावधानी के लिए मानसिक रूप से तैयार करना होगा. उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग, साफ-सफाई और खाने की शेयरिंग को लेकर समझाना भी ज़रूरी होगा।
बच्चे अपने आसपास के माहौल से ही सीखते हैं. अगर उनके स्कूल और घर में कोरोना को लेकर सावधानी बरती जाती है तो वो भी उससे सीखेंगे. अगर घर में लोग लापरवाह हैं तो बच्चे को भी उसकी गंभीरता समझ नहीं आएगी।
स्कूल में होने वाली पढ़ाई की अपनी अहमियत है और माता-पिता व स्कूल की चिंताएं और डर अपनी जगह है. ऐसे में दोनों बातों का ध्यान रखते हुए ही आगे कदम बढ़ना होगा।