
भिलाई। लक्ष्य अगर आंखों में है तो वह रात में सोने नहीं देता है। लगन और विश्वास से किसी भी मुकाम तक पहुंचा जा सकता है। कम संसाधन और गरीबी के बीच डाक्टरी की पढ़ाई कर लेना और राज्य में नाम रोशन करना कोई इनसे सीखे। इसलिए इसे आम जनमानस धरती के भगवान (देवता) का नाम दिए हैं। उनका असली नाम है डाक्टर गोपीनाथ। जी हां आज हम अपने जिले दुर्ग के जाने-माने चिकित्सक के बारे में बात करेंगे।
कैसे बने डाक्टर उनका क्या था सपना…
डाक्टर गोपीनाथ से चर्चा करने के दौरान उन्होंने बताया कि सरकारी स्कूल में पढ़कर मैंने डाक्टरी तक पहुंचा हूं। उस दौर में पैर में चप्पल है या नहीं यह भी पता नहीं होता था। गरीबी स्थिति में दूसरे के किताबों से काम चला लेते थे। स्कूल दूर होने के कारण किसी दोस्त के सायकल में उसको बिठा कर स्कूल जाता था। दिन रात की अथक मेहनत से ही कोई भी डाक्टर बन सकता है। बाबूजी का शुरु से सपना था कि मेरे लड़के डाक्टर बनें। बाबूजी भिलाई इस्पात संयंत्र में कर्मचारी थे। हमारा परिवार बहुत बड़ा था उनके वेतन से घर चलाना और डाक्टरी की पढ़ाई करना जैसे रेत से तेल निकालने के बराबर था। संघर्ष का दौर चलता रहा। 5 भाई-बहन की पढ़ाई बाबूजी ने कराई। साथ में मामजी की भी शिक्षा-दीक्षा उन्होंने पूर्ण कराई। सेक्टर-2 सरकारी स्कूल से निकलकर साइंस कालेज में बीएससी फिर सफलता के बाद मेडिकल कालेज रायपुर में डाक्टरी की पढ़ाई।
सरकारी डाक्टर का तमगा मिलने के बाद अपनी पहली पोस्टिंग में बस्तर के सुदुर इलाके सुकमा, कोंडा, गीदम में गरीबों, आदिवासी, आम जनमानस की सेवा करने का मौका मिला। वहां जो डाक्टरी में आनंद था वह मैं दूसरी जगह नहीं पाया। मां की इच्छानुसार गरीबों का सेवा करना मेरा पहला कर्तव्य है। आज भी उन गरीबों की सेवा करने से मुझे आनंद प्राप्त होता है। रुपया-पैसा संस्कार के अनुसार मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता। गौरतलब हो कि डाक्टर गोपनीथ की धर्मपत्नी भी स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं। भाई हृदय रोग विशेषज्ञ हैं। इसी तरह इस परिवार में 8 लोग चिकित्सा के क्षेत्र में जुड़़कर सेवाएं दे रहे हैं। डाक्टर गोपीनाथ सुपेला लाल बहादुर शास्त्री चिकित्सालय में अपनी लंबी समय सेवाएं दीं।
आज को कुछ भी लाल बहादुर चिकित्सालय दिखता है वह उनके लगन मेहनत के कारण ही है। कई बार डाक्टर साहब को चलते-फिरते कोई भी कागज में दवाई लिखते देखा गया है। इसके अलावा किसी गरीब के पास दवाई के लिए पैसा न रहें तो सहज वह अपने जेब से रुपए निकाल कर भी दे देते हैं। कभी किसी मरीज के साथ धोखा नहीं किया। डाक्टरी पेशे में ईलाज के दौरान रुपए पैसे को आड़े आने नहीं दिया।