
रायपुर। नगरीय निकाय चुनाव का पहला बिगुल वार्डों के परिसीमन के दिन बजा, दूसरा बुधवार को महापौर पद के आरक्षण पर। तीसरा 26 सितंबर को वार्ड पार्षदों के पद के आरक्षण के दिन बजेगा। चौथा चुनाव के दिन। इसके बाद जो जीतेगा वह बैंड-बाजा बजाएगा। लेकिन इसके पहले न सिर्फ पार्टियों के लिए अच्छे उम्मीदवार चुनने की चुनौती है, चयन के बाद जनता के दिल जीतने की भी। प्रत्याशी कौन होगा, इसका मंथन पार्टियों के भीतर शुरू हो गई है। इस बार चयन प्रक्रिया आसान नहीं है, क्योंकि रायपुर की सीट अनारक्षित है। यानी हर वर्ग का नेता दावेदारी कर सकता है। नेताजी कहते हैं ‘मैं भी महापौर बनना चाहता हूं…’। इसलिए जमकर घमासान मचना तय है। अब पार्टी किसी नेता, कार्यकर्ता, जाति-वर्ग को नाराज भी नहीं कर सकती, क्योंकि महापौर पद के लिए वोट अलग से पड़ता है। उसे सभी पार्षद प्रत्याशियों का समर्थन मिलना जरूरी है।
तभी जीत संभव हो सकेगी। ‘नईदुनिया’ पड़ताल में सामने आया कि सभी को उम्मीद थी कि 2014 में महिला आरक्षण था, 2015 में सामान्य सीट थी। इस बार महिला, महिला ओबीसी, पुरुष ओबीसी आरक्षण हो सकता है। मगर ऐसा हुआ नहीं। सीट अनारक्षित है, इसलिए किसी का विरोध भी नहीं है।
पार्टियों में उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो सीट सामान्य होने पर अनारक्षित वर्ग से पार्टी अपना प्रत्याशी चुनेगी। ओबीसी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के मतदाता संख्या इतनी नहीं है कि वह महापौर चुनाव को प्रभावित कर सके। निगम मुख्यालय से लेकर निगम के जोन कार्यालयों तक अफसरों के बीच रायपुर सीट अनारक्षित होना चर्चा का विषय बना रहा। अफसरों का मत या फिर गणित कहें तो महिला आरक्षण, अनारक्षित की पर्ची डाली नहीं जानी चाहिए थी क्योंकि पूर्व के चुनावों में इन वर्गों का आरक्षण था। इस बार महिला, महिला ओबीसी और पुरुष ओबीसी की पर्चियां होनी थी।
कांग्रेस- नागभूषण राव, राधेश्याम विभार, श्रीकुमार मेनन, एजाज ढेबर, सतीष जैन, सतनाम सिंह पनाग। इनके अलावा पूर्व महापौर डॉ. किरणमयी नायक का नाम भी चर्चा में है।
भाजपा- सूर्यकांत राठौर, प्रफुल्ल विश्वकर्मा, रमेश सिंह ठाकुर, हेमलता चंद्राकर, मीनल छगन चौबे। निगम में पूर्व सभापति नेता संजय श्रीवास्तव, पूर्व नेताप्रतिपक्ष सुभाष तिवारी।
सूत्रों के मुताबिक दोनों ही पार्टियों में विधानसभा चुनाव लड़ चुके प्रत्याशियों के नाम भी महापौर पद के लिए चर्चा में हैं। इनमें दोनों ही पार्टियों के हारे-जीते प्रत्याशियों के द्वारा जोर आजमाइश की जा रही है। अगर ऐसा होता है तो निगम की राजनीति में सक्रिय कुछ पार्षदों का कहना है कि उनकी तरफ से कड़ा विरोध होगा। एक व्यक्ति को दो-दो पदों के लिए टिकट कैसे, किस आधार पर मिल सकता है। हालांकि कोई खुलकर इस पर नहीं बोल रहा है।