
किसी भी देवी-देवता की पूजा के अंत में क्षमा याचना करने का नियम है। इस संबंध में मान्यता है कि पूजा में हुई जानी-अनजानी गलतियों के लिए हमें भगवान से क्षमा मांगनी चाहिए। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार शास्त्रों में प्रार्थना, स्नान, ध्यान, भोग के मंत्रों की तरह ही क्षमा याचना के मंत्र भी बताए गए हैं। हम इस धर्म-कर्म को परंपरा और सही विधि से पूरा करने का प्रयास करते हैं, लेकिन जाने-अनजाने हम से कोई न कोई भूल हो ही जाती है। क्षमा याचना इन्हीं गलतियों को सुधारती है। जब हम गलतियों के लिए भगवान से क्षमा मांगते हैं, तभी पूजा पूर्ण मानी जाती है।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन। यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे॥
इस मंत्र का सरल अर्थ यह है कि हे भगवान, मैं आपको बुलाना नहीं जानता हूं और न ही विदा करना जानता हूं। पूजा करना भी नहीं जानता। कृपा करें, मुझे क्षमा करें। मुझे न मंत्र याद है और न ही क्रिया। मैं भक्ति करना भी नहीं जानता। फिर भी मेरी समझ के अनुसार पूजा कर रहा हूं, कृपया पूजा में हुई जानी-अनजानी भूल क्षमा करें और इस पूजा को पूर्ण करें।
पूजा में क्षमा मांगने का एक संदेश है। क्षमा मंत्र बोलने की इस परंपरा का आशय यह है भगवान तो हर जगह है, उन्हें न आमंत्रित करना होता है और न विदा करना। यह जरूरी नहीं कि पूजा पूरी तरह से शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार ही हो, मंत्र और क्रिया दोनों में चूक हो सकती है। इसीलिए भगवान से भक्त कहता है कि मेरा अहंकार दूर करें, क्योंकि मैं आपकी शरण में हूं। इस नियम का पालन करने पर अहंकार की भावना खत्म होती है। ये परंपरा शिक्षा देती है कि हमें गलतियां होने पर तुरंत ही क्षमा याचना कर लेनी चाहिए।