
भीषण संघर्ष हुआ था छत्तीसगढ़ राज्य बनने के लिए। उससे भी ज्यादा संघर्ष करना पड़ा था कांग्रेसियों को मुख्यमंत्री बनने के लिए। तब राज्य में मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह थे। राज्य मध्यप्रदेश से अलग हुआ और बन गया छत्तीसगढ़। शैशवकाल में छत्तीसगढ़ का संघर्ष को सुधारने संवारने का मौका मिला अजीत प्रमोद कुमार जोगी को। जी हां जो बहुत ही काबिल राजनेता थे। जो अफसर से राजनेता बने थे। यही अफसरशाही और तानाशाही ने उनकी गद्दी छीन ली। फिर मौका मिला कई सालों के बाद भाजपा के डॉ. रमन सिहं को जिसने अपने दम पर खूब लम्बी पारी खेली और 15 वर्षों तक छत्तीसगढ़ में राज किया। एकतरफा भाजपा की तूती बोलने लगी। सरल, सहज एवं सौम्य चेहरा का भरपूर लाभ उठाये। पार्टी ने भी खुली छूट दे रखी थी। इसके चलते डॉ. रमन सिंह का एक और नाम पड़ गया चाउर वाले बाबा। चाउर वाले बाबा के रुप में खूब प्रसिद्धि पाई। तब आम जनमानस यही सोचते थे अब छत्तीसगढ़ राज्य से भाजपा को उखाड़ पाना मुश्किल है, क्योंक समय के साथ भाजपा बदलाव ही मुख्य उद्देश्य था। चाहे जो भी हो सफल राजनेता का अक्सर यही गुण होता है।
समय देकर कार्य करना जैसे को तैसे। इसी भारी सत्ता के बीच उदय हुआ भूपेश बघेल का जिन्हें छ.ग. कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाया। उनके कंधों पर राज्य की जिम्मेदारी सौंपी गई। सत्ता और विपक्ष का भारी घमासान चलता रहा। एक और निहत्थे सैनिक तो दूसरी और सारे साजो समान से लैस सैनिक। युद्ध चलता रहा। आन्दोलन में आंदोलन घर से लेकर बाहर तक पुलिसिया कार्यवाही, लेकिन भूपेश बघेल ने अपने लक्ष्य को लेकर चलते रहे। एक समय ऐसा भी आया की अध्यक्ष को ऐन-केन-प्रकारेण पैसे के बल पर खरीदो देखो किसमें मानेगा। लेकिन जिद्दी और हठी प्रवृत्ति के भूपेश बघेल के सामने सारे हथकंडे फेल हो गए, तथा भूपेश बघेल अपने लक्ष्य में सफल हो गए, तथा भूपेश बघेल अपने लक्ष्य में सफल हो गए। कब कैसे कहां गठित करना है यह दाएं हाथ से बाएं को पता चलने नहीं देते हैं यह उनकी खासियत है। अपने इसी जिद के कारण आज के सत्ता पर काबिज है। एक ऐसा मुख्यमंत्री जिन्हें जनता और किसान छत्तीसगढ़ियां मुख्यमंत्री मान रही है। 8 महीने के कार्यकाल में कई बदलाव तथा घोषणाएं कर दिये है। जो जनहित में है।
सी.जी. संदेश से खिलावन सिंह चौहान एवं सालोमन
तीनों मुख्यमंत्री में एक समानता है-चश्मा लगाना, तीन अक्षर का नाम, वाकपटूता