
आयरिश कहावत है कि “मकान ईंट व गारे से बनता है,लेकिन बच्चों की हँसी और किलकारी उसे घर बनाती है |”
हाँ यह सही है परिवार समाज की इकाई और बच्चों की पहली पाठशाला है और माँ पहली टीचर |आज के दौर में परिवार में वक़्त के साथ बदलाव आ रहा है ,जिसका असर बच्चों की परवरिश पर पड़ रहा है |आज की अति महत्वाकांक्षी पीढ़ी काम , ज़रूरत व स्वतंत्रता के लिहाज़ से बड़े शहरों में बस रही हैं ,जहाँ संयुक्त परिवार की ज़रूरत उन्हें बोझ लगती है |कामकाजी पीढ़ी के पास बच्चों के लिए वक़्त ही नहीं कि वे उन्हें सामाजिक ,मानवीय ,मूल्य व संस्कार सिखा सकें | घर की चहारदीवारी में आया या क्रेच हाउस में पलते बच्चे कई दफ़ा वहाँ कार्यरत कुछ कर्मचारियों की बुरी आदतें भी सीखते हैं |अनुशासनहीनता जिद्दीपन उद्दंडता तो करते ही हैं ,क्रोधी व स्वार्थी भी बन जाते हैं |जहां आपको भी साफ़ भौतिक मूल्य व व्यवसायिकता नज़र आती होगी |
संयुक्त परिवार में मिलने वाला प्यार और सुरक्षा चारित्रिक विकास आदर्श सहभागिता प्रेम सम्मान अनुशासन और मेल मिलाप लाड़ प्यार से वो वंचित रह जाते हैं |मोबाइल ,कंप्यूटर और टी वी के उनका वन वे कम्युनिकेशन से कई बार वे डिप्रेशन में भी चले जाते हैं |ऐसे में सयुंक्त परिवार का महत्व समझ आता है |
हम यह भूल जाते हैं कि दादा -दादी ,नाना -नानी द्वारा सुनाए जाने वाली प्रेरक ,नीतिबोधक कहानियों से नैतिक गुण व चारित्रिक विशेषताएं तो बढ़ती
है उनके प्यार भरे स्पर्श से सुरक्षा व निश्चिंतता भी मिलती है |
शाम उनके साथ सैर या पार्क जाने से
बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास तो होता ही है वहाँ हमउम्रों के साथ दोस्ती भी होती है और मिल बांटकर हर चीज़ खेलना व खाना भी सीखते हैं |
पेरेंट्स के रूप में हमारी ज़िम्मेदारी है कि आज के बच्चे कल के ज़िम्मेदार और योग्य नागरिक बनें |यह तभी संभव है जब उनका पूर्ण विकास हो |न तो हम उन्हें सुरक्षा के नाम पर क़ैद कर दें और न ही उनकी तुलना कर नीचा दिखाएं ना मामूली गलतियों पर इतना दंडित प्रताड़ित करें कि वे अपना आत्म सम्मान आत्म विश्वास खो बैठें |उन्हें घर की ज़िम्मेदारी दें ,प्रोत्साहित करें प्रशंसा भी करें उनके साथ खेलें कम से कम उन्हें क्वालिटी टाइम दें |छुट्टियों में उन्हें आसपास किसी म्यूजियम,ऐतिहासिक स्थान ,प्राकृतिक स्थल या लाइब्रेरी ले जाने की आदत डालें
और पहले अपने घर परिवार में स्वस्थ व श्रेष्ठ वातावरण बनाएँ ,तभी तो बच्चे आपकी कही बातों से नहीं बल्कि आपके व्यवहार और आचरण से सीखेंगे |
घर -परिवार,काम और समाज में तालमेल रखते हुए हमें इन नन्हें देवदूतों को जिनमें अनेक प्रतिभाऐं हैं ,संभावनाएं हैं उनको प्यार करना है सवांरना है ,विकास करना है ,मार्गदर्शन करना है ,ताकि हमारे घर भी खिखिलाहटों व मुस्कराहटों से रौशन रहें |
लेख :- सिम्मी सिंह
शिक्षिका डीपीएस दुर्ग