रायपुर. किसानों से धान खरीदी के लिए गठित राज्य की सभी 1333 कृषि साख सहकारी समितियों को भंग कर दिया गया है। प्रदेश में समितियों के पुनर्गठन योजना 2019 लागू करने के साथ ही इसमें कार्यरत सभी सदस्यों का कार्यकाल स्वमेव समाप्त हो गया है। सभी जिला पंजीयकों को इसका आदेश जारी कर दिया गया है। समितियां भंग करने के साथ ही विभागीय अधिकारियों को प्राधिकृत अधिकारी नियुक्त कर दिया गया है। बताया गया है कि भाजपा जब सत्ता में थी, तब दो बार सहकारी समितियों के पुनर्गठन की कोशिश की गई थी। साल 2007 और 2017 में इसके लिए कवायद हुई, लेकिन सफल नहीं हो सकी। अब कांग्रेस ने प्रदेशभर में पुनर्गठन योजना लागू कर दी है। दरअसल किसानों तक कांग्रेस सरकार की उपलब्धियों को ठीक ढंग से नहीं पहुंच पाने के कारण ऐसा करने की बात कही जा रही है।
क्योंकि कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही दो घंटे के भीतर किसानों की ऋणमाफी पर हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद लगातार सरकार ने किसानों की ऋण माफी, 25 सौ रुपए समर्थन मूल्य पर धान खरीदी समेत किसानों से संबंधित कई अहम फैसले लिए हैं, लेकिन सरकार अपनी इन योजनाआें का प्रचार सही तरीके से नहीं कर पा रही है। क्योंकि किसान जिन सोसायटियों में धान बेचने जा रहे थे वहां 15 साल पुराने लोग काम कर रहे थे।
बताया गया है कि इनमें से अधिकांश सोसायटियों में भाजपा से जुड़े लोगों का कब्जा था। सरकार के आदेश जारी होने के बाद से प्रदेशभर में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है।
अब आगे क्या? : बताया गया है कि समितियों से पुनर्गठन के लिए जल्द ही प्रस्ताव मंगाया जायेगा। इसके बाद दावा आपत्ति व शासन स्तर पर अनुशंसा की कार्रवाई की जाएगी। शासन का मानना है, कि बरसों पुरानी इन समिति के सदस्यों की संख्या बढ़ गई है। वहीं ऋण व्यवसाय 4 से 5 करोड़ तक पहुंच चुका है जबकि, सामान्य क्षेत्र की ऐसी समितियां एक करोड़ तक का ही ऋण व्यवसाय कर सकती हैं। वहीं अनूसूचित क्षेत्र की समितियां के ऋण व्यवसाय की सीमा 50 लाख निर्धारित की गई है। अब नई पुनर्गठन योजना 2019 के मुताबिक किसी भी समिति को अधिकतम दो समिति में विभक्त किया जायेगा, वहीं जरूरत पड़ने पर कृषक सदस्यों को दूसरी समितियों में जोड़ा जायेगा। इस तरह से समितियों के ऋण व्यवसाय व सदस्यों की संख्या में एकरूपता लाने की योजना है।
कई तरह से सवाल उठने लगे : सहकारी संस्थाओं के चुने हुए प्रतिनिधियों का कहना है कि सरकार निर्वाचित लोगों की संस्था को भंग कैसे करती है? इनका चुनाव किसानों के बीच से होता है। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि यह सरकार का विशेषाधिकार है यदि वह चाहे तो ऐसा कर सकती है लेकिन निर्वाचन प्रक्रिया पूर्ण कर आए प्रतिनिधियों के संबंध में ऐसा करना थोड़ा मुश्किल भी है। कुछ जिलों में इन संस्थानाें में बैठे पदाधिकारियों को तीन साल भी नहीं हुआ था ऐसे लोगों को अपनी राजनीतिक जमीन ही खिसक गई है।