छत्तीसगढ़ में लगातार हो रही बारिश के बाद भी प्रदेश की खेती-किसानी पर मंडरा रहा संकट टला नहीं है। भले ही खेती-किसानी से जुड़े वैज्ञानिक इसे फसलों के लिए अच्छा बता रहे हों, लेकिन किसानों का कहना है कि बहुत अच्छा भी हुआ तो न्यूनतम 35 फीसदी आैर अधिकतम 70% फसल ही बच पाएगी। यानी किसान सीधे 30% नुकसान को लेकर अभी भी आशंकित हैं।
किसानों का कहना है कि आज से गणेश चतुर्थी शुरू हो रही है। इसके बाद पितृ पक्ष आता है आैर पितृ पक्ष के दौरान ही 90 दिन में पकने वाली फसलें तैयार होने लग जाती हैं। यानी कंसे में धान कड़ा होना शुरू हो जाता है। ऐेसे में जिनमें दस बालियां आनी हैं उनमें सिर्फ दो या तीन बाली ही आने की संभावना जताई जा रही है। क्योंकि फसल में पर्याप्त ग्रोथ नहीं हो पाया है। साथ ही खेतों में घास काफी उग गई है जिसके कारण अभी भी कई खेतों में निंदाई का काम ही चल रहा है। किसानों का कहना है कि धान बोनी के समय से लगभग पानी के अभाव में 15 से 20 दिन की पिछड़ी खेती अच्छी बारिश से सुधर जाती है लेकिन इस बार पानी रुक-रुक कर गिरने से फसलों की स्थिति नहीं सुधर पाई है। शेष|पेज 9
इसलिए शुरू में जैसा ग्रोथ फसलों का हुआ था वैसी ही ग्रोथ अभी तक बनी हुई है।
सिर्फ यहां स्थिति थोड़ी चिंताजनक : मौसम विज्ञानियों के अनुसार राज्य में सबसे कम 57 फीसदी बारिश सरगुजा जिले में हुई है। 1 सितंबर तक यहां 1005 मिमी बारिश होनी चाहिए जबकि अब तक यहां 577.8 मिमी बारिश हुई है। जशपुर में 36 फीसदी कम, जांजगीर में 33 फीसदी कम, बालोद में 30 और कोरबा मंे 28 फीसदी कम बारिश हुई है।
गंगरेल, तांदुला बांधों में पानी कम : राज्य में अब तक हुई बारिश के बाद कई प्रमुख बांधों में पानी पर्याप्त है, वहीं कुछ में कम पानी है। राज्य के दूसरे सबसे बड़े बांध गंगरेल मंे अभी 45 फीसदी ही पानी है। तांदुला में भी करीब 34 फीसदी ही पानी है, जबकि कोरबा के मिनीमाता बांगो में 74 फीसदी, सिकासार में 96 फीसदी, मनियारी मंे 100 फीसदी पानी भर चुका है। राज्य के सभी 44 बांधों में जलभराव स्तर औसत 64.91 प्रतिशत है।
आैसत से तीन फीसदी कम बारिश : मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि राज्य में औसत से अब सिर्फ तीन फीसदी ही बारिश कम है। 1 जून से 1 सितंबर तक राज्य में 917.3 मिमी बारिश हुई है। इस दौरान 942.1 मिमी बारिश होनी चाहिए। राज्य के ज्यादातर जिलों में पर्याप्त बारिश हो चुकी है। चिंताजनक स्थिति कुछ ही क्षेत्रों में है। वहां भी इतनी बारिश हो चुकी है कि कृषि को बहुत अधिक नुकसान नहीं है।