
रायपुर। छत्तीसगढ़ में करीब छह लाख से अधिक विदेशी नागरिक रह रहे हैं। इनमें बांग्लादेशियों के साथ पाकिस्तानी भी शामिल हैं। कई दशक से रह रहे इनमें से अधिकांश के पास न केवल वोटर आईडी, राशनकार्ड है, बल्कि आधार कार्ड भी बन गया है। विदेशी नागरिकों के छत्तीसगढ़ आने का सिलसिला अब भी जारी है। हर वर्ष आठ- दस की संख्या में यहां विदेशी आकर रह जाते हैं। विदेशी नागरिकों के लिए संपत्ति खरीद पर रोक होती है, लेकिन यहां वे संपत्ति भी खरीद रहे हैं। राजधानी में दो-तीन परिवारों पर एफआईआर भी हो चुकी है।
पिछले दिनों निखिल भारत बंगाली उद्बास्तु समन्वय समिति ने भारत में बंगाली शरणार्थियों का विवरण साझा किया था। इसमें छत्तीसगढ़ रह रहे बंगाली शरणार्थियों की संख्या पांच लाख बताई गई। इनमें बस्तर संभाग में रहने वालों की संख्या एक लाख से अधिक है। बंगाली शरणार्थी राज्य के कई अंदरुनी क्षेत्रों में है। बस्तर के बाद इनकी सबसे ज्यादा आबादी रायगढ़ जिले और सरगुजा संभाग के अधिकांश जिलों में है।
वहीं, पाकिस्तानी से आए लोगों की आबादी शहरी क्षेत्रों में अधिक है। विशेष रुप से रायपुर, भाटपारा, बिलासपुर, राजनांदगांव और भिलाई- दुर्ग में। पाकिस्तान से हर वर्ष बड़ी संख्या में पाकिस्तानी पर्यटक के रुप में आते हैं। सूत्रों के अनुसार इसमें से कुछ यहीं रुक जाते हैं।
पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आकर यहां रहने वालों को करीब चार वर्ष पहले नागरिकता देने की पहल की गई थी। इसमें सौ से अधिक लोगों को नागरिकत दी भी गई थी। इसके बावजूद अवैध रुप से रहने वालों की संख्या अब भी हजारों में है।
बस्तर में टकराव के हालात- 1960-61 और 1971-72 में छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में बंग्लादेशियों को लाकर बसाया गया। रायपुर के माना कैंप जैसे राज्य के कई जिलों में आज भी उसकी निशानी बनी हुई है। रायपुर के माना कैंप में आज भी बड़ी संख्या में बंग्लादेशी शरणार्थी रहते हैं। बस्तर संभाग में तो अक्सर आदिवासियों और बंग्लादेशियों के बीच टकराव की खबरें आती रहती हैं। कई बार आंदोलान हो चुका है।
केवल 503 को लाया गया अब संख्या लाख में पहुंच गई- सर्व आदिवासी समाज का आरोप है कि बस्तर में 60 और 70 के दशक में बसाये गए लोगों की संख्या महज 503 थी और दशकीय वृद्घि के हिसाब से यह आंकड़ा चार दशकों में लगभग 50 हजार होनी थी लेकिन केवल पखांजूर तहसील में ही इनकी जनसंख्या डेढ़ लाख के आसपास है।
वोट बैंक की राजनीति- बंग्लादेश और पाकिस्ता से आए करीब 80 फीसद से अधिक शरणार्थी अब बड़ा वोट बैंक बन गए हैं। यही वजह है कि कोई भी राजनीतिक दल इस मामले में बोलने से बचते हैं।