भिलाई 11 अक्टूबर 2025। सम्पूर्ण क्रांति के प्रणेता भारतरत्न लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 124 वीं जयंती पर श्रद्धांजलि सभा और वैचारिक गोष्ठी का आयोजन शनिवार को किया गया। भारतरत्न लोकनायक जयप्रकाश नारायण स्मारक प्रतिष्ठान की ओर से आयोजित मुख्य कार्यक्रम में जेपी प्रतिमा स्थल पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन सुबह किया गया। जहां राजनीतिक, सामाजिक व साहित्य जगत से जुड़े लोगों ने जेपी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए और ‘जयप्रकाश नारायण अमर रहे’ के नारे लगाए।
इसके उपरांत एचएससीएल कॉलोनी रूआबांधा में सुबह 10:00 बजे से परिचर्चा का आयोजन किया गया । ‘यूथ फॉर डेमोक्रेसी लोकतंत्र के लिए युवा शक्ति का आह्वान जेपी’ विषय पर आयोजित इस परिचर्चा में विभिन्न क्षेत्रों से वक्ताओं ने अपने विचार रखे। इसके पहले उपस्थित सभी लोगों ने स्व. जयप्रकाश नारायण के चित्र पर माल्यार्पण कर अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। मुख्य अतिथि सेवानिवृत्त प्राध्यापक और सामाजिक चिंतक प्रो. डीएन शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि जेपी पर महात्मा गांधी जी का बड़ा प्रभाव था। वे कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों से प्रभावित थे और लोहिया का समाजवाद उनके अंतर्मन में था। इन तीनों तत्वों का समावेश करते हुए जेपी ने संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था। प्रो. शर्मा ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद जेपी ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने ‘जेन-जी’ का महत्व और उसकी ताकत को उस वक्त पहचान लिया था और तब की युवा पीढ़ी को लेकर उन्होंने आंदोलन छेड़ा था। आयोजन की अध्यक्षता कर रहे छत्तीसगढ़ शासन के पूर्व राज्यमंत्री बदरुद्दीन कुरैशी ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्र भारत में जेपी का योगदान अतुलनीय रहा है। आज जरूरत उनके कार्यों और विचारों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की है। उन्होंने कहा कि समग्र उद्देश्यों को लेकर आंदोलन करने वाले जेपी अग्रणी व्यक्तित्व थे।
इससे पहले स्वागत भाषण में प्रतिष्ठान के अध्यक्ष आर पी शर्मा ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए 50 साल पहले आपातकाल की परिस्थितियों पर अपनी बात रखी। उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ अपने संस्मरणों का उल्लेख करते हुए बताया कि पटना में जब जेपी लाठी चार्ज में घायल हुए थे तो उनके पास कम लोग ही थे। इस दौरान उन्होंने सुशील मोदी व दूसरे युवा नेताओं को तुरंत खबर कर बुलवाया और फिर बाद में आंदोलन ने जो गति पकड़ी वह अपने आप में इतिहास है। श्री शर्मा ने इस बात पर खेद जताया कि जब भिलाई में अंडरब्रिज निर्माण के लिए जेपी प्रतिमा हटाने की नौबत आ गई थी तो कोई भी मीसा बंदी खुलकर सामने नहीं आया और उन्हें अकेले ही संघर्ष करना पड़ा।
आयोजन में विशिष्ट वक्ता के तौर पर उपस्थित साहित्यकार प्रो. सुधीर शर्मा ने आपातकाल के दौरान अपने बचपन से जुड़ी प्रतिक्रिया का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए बताया कि तब वह 10 साल के थे और अपने शहर में जगजीवन राम, मोरारजी देसाई, राजनारायण और मधु लिमये के भाषण सुनकर संपूर्ण क्रांति को लेकर उनकी एक समझ बनीं थी। उन्होंने कहा कि 1977 की क्रांति केवल सत्ता परिवर्तन की क्रांति रही इसलिए 2.5 साल में इसमें बिखराव आ गया। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि देश के युवाओं में राजनीतिक विवेक आज तक ठीक से जागृत नही हो पाया।
जनता पार्टी के युवा नेता रहे अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि तब लोहिया दिवंगत हो चुके थे और जेपी भी स्वास्थ्य मामले में नाजुक मोड़ पर आ गए। इसलिए संपूर्ण क्रांति का वो परिणाम नहीं मिला जो मिलना चाहिए था। जबकि उस वक्त इस संपूर्ण क्रांति के जनसंघ जैसे कुछ अन्य हिस्सेदार वैचारिक रूप से संगठित थे, और बाद में भारतीय जनता पार्टी के रूप में अपने संगठन के बल पर आगे बढ़े और आज सरकार में है।
आयोजन में मीसा बंदी डॉ. राम पाटणकर ने कहा कि 1975 में सही मायनों में हमको वैचारिक आजादी मिली थी, जो लोकतंत्र को पुख्ता करने वाली आजादी थी। जिसके पुरोधा जयप्रकाश नारायण थे। इस दौरान त्रिलोक मिश्रा, अधिवक्ता गुलाब सिंह पटेल और एडवोकेट अजहर अली सहित अन्य लोगों ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
आयोजन समिति की ओर से मीसा बंदी डॉ. राम पाटणकर का सम्मान किया गया। इस अवसर पर सुबेदार सिंह यादव, के.के. अग्रवाल, श्याम मनोहर सिंह, राजेंद्र शर्मा, नथुनी भगत, अभयराम यादव, रामउदार पंडित, जयराम यादव, शिवकुमार प्रसाद, शिवशंकर प्रसाद सिन्हा, एपी सिंह, सुरेखा नागवंशी, शीतल चंद्र, मुकेश्वरी देवी, त्रिभुवन मिश्रा, अवधकिशोर साहू, राजेंद्र, कन्हैया लाल, मदन प्रसाद श्रीवास्तव, त्रिलोक सिंह, टिकेश साहू और शैलेष साहू सहित अन्य लोग उपस्थित थे। आभार प्रदर्शन समाजवादी जनता पार्टी (चंद्रशेखर) छत्तीसगढ़ के महासचिव नंदकिशोर साहू ने किया।
भारतरत्न लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 124 वीं जयंती पर श्रद्धांजलि सभा और वैचारिक गोष्ठी का आयोजन

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