आजकल हर तरफ रुद्राक्ष की चर्चा है। देश के कोने-कोने से लोग इसे लेने सीहोर स्थित कुबेरेश्वर धाम में जुटे हैं। भगदड़ और बच्चे समेत 3 लोगों की मौत के बाद हर तरफ यह चर्चा है कि आखिर रुद्राक्ष के लिए इतनी भीड़ क्यों? आखिर इसे अनादि काल से ही इतना महत्व क्यों दिया जाता रहा है। हिन्दू धर्म में रुद्राक्ष को काफी शुभ माना गया है। देवी भागवत पुराण के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव की आंसुओं से हुई है। भगवान शिव और रुद्राक्ष का गहरा संबंध है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से सटे सीहोर जिले के चितावली हेमा गांव में कुबरेश्वर धाम का रुद्राक्ष महोत्सव इन दिनों चर्चा में बना हुआ है. लाखों श्रद्धालुओं के लिए रुद्राक्ष महोत्सव का आयोजन पंडित प्रदीप मिश्रा के द्वारा महाशिवरात्रि पर किया गया था. सोशल मीडिया पर भक्तों का आह्वान कर उन्हें सीहोर बुलाया गया था लेकिन अव्यवस्था के चलते रुद्राक्ष महोत्सव को स्थगित करना पड़ा. जिसमें तीन लोगों की मृत्यु की खबर भी निकल कर सामने आई इसके बावजूद लोगों में रुद्राक्ष के प्रति मुंह और उसको पाने की लालसा कम नहीं हुई है लोग अभी भी सीहोर जाकर रुद्राक्ष को पाने की होड़ में लगे हुए हैं। आज के इस लेख में आइए जानते हैं क्या है रुद्राक्ष, कहां पाया जाता है, और क्या है इसकी महिमा इसके पौराणिक महत्व के साथ इसका वैज्ञानिक महत्व क्या है? आइए जानते हैं रुद्राक्ष के बारे में संपूर्ण जानकारी।
हिन्दू धर्म में रुद्राक्ष को काफी शुभ माना गया है। रुद्राक्ष एक अद्भुत वस्तु है। विश्व में केवल नेपाल, जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, बर्मा, असम और हिमाचल के कई क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाला रुद्राक्ष एक सुपरिचित बीज है जिसे पिरोकर मालाएं बनाई जाती हैं लेकिन आज तक कई लोगों को इस अद्भुत तांत्रिक वस्तु के गुणों की जानकारी नहीं है। लोगों की धारणा है कि रुद्राक्ष पवित्र होता है, इसलिए इसे पहनना चाहिए। बस, इससे अधिक जानने की चेष्टा किसी ने नहीं की।ऐसी मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है। इसलिए भगवान शिव और रुद्राक्ष के बीच एक गहरा संबंध है। इनसे जुड़ी गई कथा और कहानियां प्रचलित है। लेकिन देवी भागवत पुराण के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं के मानी जाती है। इस बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। वास्तु में भी रुद्राक्ष को महत्वपूर्ण माना गया है। वास्तु के अनुसार रुद्राक्ष से घर पर पॉजिटिविटी का संचार होता है। जानते हैं कैसे हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति और क्यों भगवान शिव के साथ है इसका संबंध।
क्या होता है रुद्राक्ष?
रुद्राक्ष के जन्मदाता भगवान शंकर हैं। रुद्र का अर्थ है- शिव और अक्ष का अर्थ है- वीर्य या रक्त, अश्रु! रुद्र+अक्ष मिलकर ‘रुद्राक्ष’ बना है। यह बेर या मटर के आकार का दाना होता है। यह चार रंगों में होता है- श्वेत, लाल, मिश्रित रंग और काला। रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रिय आभूषण, दीर्घायु प्रदान करने वाला तथा अकाल मृत्यु को दूर धकेलने वाला है। भौतिक और साधनात्मक कई दृष्टियों से प्रकृति की यह अद्भुत भेंट है।वस्तुत: रुद्राक्ष में अलौकिक गुण हैं। इसके चुम्बकीय प्रभाव को, इसकी स्पर्श शक्ति को आधुनिक विज्ञानवेत्ता भी स्वीकार करते हैं। यह रोग शमन और अदृष्ट बाधाओं के निवारण में अद्भुत रूप से सफल होता है। स्वास्थ्य, शांति और श्री समृद्धि देने में भी यह प्रमुख है। रुद्राक्ष के खुरदरे और कुरूप बीज (गुठली) पर धारियां होती हैं। इनकी संख्या 1 से 21 तक पाई जाती है। इन धारियों को मुख कहते हैं। मुख संख्या के आधार पर रुद्राक्ष के गुण, प्रभाव और मूल्य में अंतर रहता है। एकमुखी दाना सर्वथा दुर्लभ होता है। दो से लेकर सातमुखी तक मिल जाते हैं, पर आठ से चौदह तक मुख वाले कदाचित ही मिल पाते हैं, फिर 15 से 21 धारी वाले तो नितांत दुर्लभ हैं। सबसे सुलभ दाना पंचमुखी है।
रुद्राक्ष का वैज्ञानिक महत्व
अब हम बात करेंगे इसके वैज्ञानिक महत्व की। रुद्राक्ष का वानस्पतिक नाम इलियोकारपस गैनिस्ट्रस है। इसके वृक्ष पूर्वी हिमालय(भारत) नेपाल इंडोनेशिया जकार्ता और जावा में पाए जाते हैं। विश्व में इसके सर्वाधिक पौधे इंडोनेशिया में होते हैं। रुद्राक्ष का जैव रासायनिक या बायो केमिकल विश्लेषण करें तो इसमें कोबाल्ट, जस्ता, निकल, लोहा, मैग्नीज, फास्फोरस, एल्यूमीनियम, कैल्शियम, सोडियम, पोटेशियम, सिलिकॉन एवं गंधक के तत्व मौजूद रहते हैं। इससे इनका घनत्व बढ़ जाता है और यह पानी में डूब जाता है। कहा जाता है, यही इसके अच्छी क्वालिटी के होने की पहचान है। इसके अलावा इसे दो तांबे के सिक्कों के बीच में रखने पर इसमें कंपन होता है, जो कि विद्युत चुंबकीय गुण तथा डायनेमिक पैरेललिटी के कारण होता है।
भगवान शिव की आंसू से हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर के आंसू से हुई है। भगवान महादेव से जुड़े होने के कारण रुद्राक्ष को बेहद ही शुभ माना गया है। देवी भागवत पुराण के अनुसार त्रिपुरासुर नाम का एक राक्षस ऋषि-मुनियों और देवताओं को काफी प्रताड़ित करता था। त्रिपुरासुर के आतंक को खत्म करने के नियत से सभी देवता जन भगवान शिव के पास समाधान निकलवाने के लिए गए। उनकी पीड़ा से अभिभूत होकर भोलेनाथ योग निद्रा में लीन हो गए। फिर जब उन्होंने अपना नेत्र खोला तो उनकी आंखों से आंसू की कुछ बूंदे धरती पर गिर गई। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव की उन्ही आंसुओं की बूंदों से रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई। रुद्राक्ष अर्थात नाम से ही स्पष्ट है शिव और नेत्र। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के नेत्रों की आंसुऐं धरती पर जहां जहां गिरी उस स्थान पर रुद्राक्ष का पौधा उग गया। यही कारण है कि रुद्राक्ष भगवान शिव को बहुत प्रिय है। रुद्राक्ष धारण कर शिव की आराधना करने से भगवान भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न होते हैं।सामान्यत: प्रयास करने पर 1 से 13 मुखी तक के दाने मिल जाते हैं। इन सभी के अलग-अलग देवता है। प्रत्येक दाने में (धारियों के कोटि क्रम से) उसके देवता की शक्ति समाहित रहती है और उसके धारक को उस देवता की कृपा सुलभ हो जाती है। यूं तो सभी रुद्राक्ष शिवजी को प्रिय हैं और उनमेें से किसी को भी धारण करने से साधक शिव कृपा का पात्र हो जाता है।
कैसे धारण करें रुद्राक्ष?
रुद्राक्ष का दाना अथवा माला जो भी सुलभ हो, गंगाजल या अन्य पवित्र जल स्नान करा, शिवजी की भांति चंदन, अक्षत, धूप-दीप से पूजना चाहिए। पूजनोपरांत ॐ नम: शिवाय’ मंत्र का 1100 जप करके 108 बार हवन करना चाहिए। तत्पश्चात रुद्राक्ष को शिवलिंग से स्पर्श कराकर पुन: ॐ नम: शिवाय’ मंत्र जपते हुए पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके धारण कर लेना चाहिए।धारण करने के बाद हवन कुंड की भस्म का टीका लगाकर शिव प्रतिमा को प्रणाम करना चाहिए। इस विधि से धारण किया गया रुद्राक्ष त्वरित और निश्चित प्रभावी होता है। यह रुद्राक्ष धारण करने की सरलतम पद्धति है। वैसे समर्थ साधकों को चाहिए कि वे (यदि संभव हो तो) अपने रुद्राक्ष को पंचामृत से स्नान कराकर, अष्टगंध अथवा पंचगंध से भी नहलाएं (उसमें डुबोएं), फिर पूर्ववत् पूजा करके उस रुद्राक्ष से संबंधित मंत्र विशेष का (धारियों के आधार पर) 1100 जप करें और 108 बार आहूति देकर हवन करें, तदोपरांत उसी मंत्र को 5 बार जपते हुए रुद्राक्ष धारण करें और भस्म लेपन के पश्चात शिव प्रतिमा को प्रणाम करें। रुद्राक्ष की माला (108 दाने की) अमिट प्रभावकारी होती है। पांचमुखी के कम से कम तीन दाने और अन्य का एक दाना भी बाहु या कंठ में धारण करने से पूर्ण लाभ होता है। ये समस्त रुद्राक्ष व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, भौतिक कष्टों का शमन करके उसमें आस्था, शुचिता और देवत्व के भाव जागृत करते हैं। भूत-बाधा, अकाल मृत्यु, आकस्मिक दुर्घटना, मिर्गी, उन्माद, हृदय रोग, रक्तचाप आदि में रुद्राक्ष धारण का चमत्कारी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। रुद्राक्ष लाल धागे में पिरोकर धारण करना चाहिए।
रुद्राक्ष धारण करने के नियम क्या हैं ?
– रुद्राक्ष कलाई , कंठ और ह्रदय पर धारण किया जा सकता है. इसे कंठ प्रदेश तक धारण करना सर्वोत्तम होगा।
– कलाई में बारह,कंठ में छत्तीस और ह्रदय पर एक सौ आठ दानो को धारण करना चाहिए।
– एक दाना भी धारण कर सकते हैं पर यह दाना ह्रदय तक होना चाहिए तथा लाल धागे में होना चाहिए।
– सावन में, सोमवार को और शिवरात्री के दिन रुद्राक्ष धारण करना सर्वोत्तम होता है।
– रुद्राक्ष धारण करने के पूर्व उसे शिव जी को समर्पित करना चाहिए तथा उसी माला या रुद्राक्ष पर मंत्र जाप करना चाहिए।
– जो लोग भी रुद्राक्ष धारण करते हैं उन्हें सात्विक रहना चाहिए तथा आचरण को शुद्ध रखना चाहिए अन्यथा रुद्राक्ष लाभकारी नहीं होगा।
रुद्राक्ष धारण कर करें शिव की पूजा
भगवान शिव की आंसुओं से उत्पन्न होने के कारण रुद्राक्ष उन्हें बहुत प्रिय है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार रुद्राक्ष धारण करके शिवजी की आराधना करने से भगवान भोलेनाथ शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। वैसे तो कई तरह के रुद्राक्ष पाए जाते हैं। लेकिन कहा जाता है कि एकमुखी रुद्राक्ष में भगवान शिव का स्वरूप होता है। एकमुखी रुद्राक्ष धारण करने से शिवजी के साथ ही सूर्यदेव का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।
विभिन्न रुद्राक्ष और उनका महत्व-
1 – एक मुखी – यह साक्षात शिव का स्वरुप माना जाता है. सिंह राशी वालों के लिए यह अत्यंत शुभ होता है. जिनकी कुंडली में सूर्य से सम्बंधित समस्या हो ऐसे लोगों को एक मुखी रुद्राक्ष जरूर धारण करना चाहिए।
2 – दो मुखी- यह अर्धनारीश्वर स्वरुप माना जाता है. कर्क राशी के जातकों को यह अत्यंत उत्तम परिणाम देता है. अगर वैवाहिक जीवन में समस्या हो या चन्द्रमा कमजोर हो दो मुखी रुद्राक्ष अत्यंत लाभकारी होता है।
3 – तीन मुखी- यह रुद्राक्ष अग्नि और तेज का स्वरुप होता है. मेष राशी और वृश्चिक राशी के लोगों के लिए यह उत्तम परिणाम देता है. मंगल दोष के निवारण के लिए इसी रुद्राक्ष का प्रयोग किया जाता है।
4 – चार मुखी- यह रुद्राक्ष ब्रह्मा का स्वरुप माना जाता है. मिथुन और कन्या राशी के लिए सर्वोत्तम. त्वचा के रोगों और वाणी की समस्या में इसका विशेष लाभ होता है।
5 – पांच मुखी- इसको कालाग्नि भी कहा जाता है, इसको धारण करने से मंत्र शक्ति तथा अदभुत ज्ञान प्राप्त होता है. जिनकी राशी धनु या मीन हो या जिनको शिक्षा में लगातार बाधाएँ आ रही हों ,ऐसे लोगों को पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
6 – छः मुखी- इसको भगवान कार्तिकेय का स्वरुप माना जाता है. इसको धारण करने से व्यक्ति को आर्थिक और व्यवसायिक लाभ होता है. अगर कुंडली में शुक्र कमजोर हो अथवा तुला या वृष राशी हो तो छः मुखी रुद्राक्ष धारण करना शुभ होता है।
7 – सात मुखी– यह सप्तमातृका तथा सप्तऋषियों का स्वरुप माना जाता है. मारक दशाओं में तथा अत्यंत गंभीर स्थितियों में इसको धारण करने से लाभ होता है. अगर मृत्युतुल्य कष्टों का योग हो अथवा मकर या कुम्भ राशी हो तो यह अत्यंत लाभ देता है।
8 – आठ मुखी- यह अष्टदेवियों का स्वरुप है तथा इसको धारण करने से अष्टसिद्धियाँ प्राप्त होती हैं. इसको धारण करने से आकस्मिक धन की प्राप्ति सहज होती है तथा किसी भी प्रकार के तंत्र मंत्र का असर नहीं होता. जिनकी कुंडली में राहु से सम्बन्धी समस्याएँ हों ऐसे लोगों को इसे धारण करना शुभ होता है।
9 – ग्यारह मुखी- एकादश मुखी रुद्राक्ष स्वयं शिव का स्वरुप माना जाता है. संतान सम्बन्धी समस्याओं के निवारण के लिए तथा संतान प्राप्ति के लिए इसको धारण करना शुभ होता है।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।)