दुनियाभर में जंगलों एवं वन्यजीवों के संरक्षण हेतु लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से 03 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस (World Wildlife Day) मनाया जाता है। इसे मनाए जाने की शुरूआत 20 दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा की गयी थी। जिसके बाद पहला वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ डे 03 मार्च 2014 को मनाया गया था। इस साल 03 मार्च को शुक्रवार के दिन मनाए जाने वाले 11वें वर्ल्ड वाइल्डलाइफ डे 2024 की Theme “कनेक्टिंग पीपल एंड अर्थ’” रखी गई है।
विश्व वन्यजीव दिवस प्रतिवर्ष 3 मार्च को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाए जाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी। सर्वप्रथम इस दिवस को 03 मार्च 2014 मो मनाया गया था और आज तक मनाया जा रहा है। विश्व में लुप्त हो रहे वन्यजीवों की और वनस्पतियों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलना के लिए इस दिवस को मनाया जाता है। दुनिया भर में कई ऐसी प्रजातियां है विलुप्त होने की कगार पर है उन्हें विलुप्तिकरण से बचना के ये दिवस अस्तित्व में आया है। आपको बता दें की आने वाले समय में कुछ विशेषज्ञों द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार 08 हजार से अधिक प्रजातिया लुप्त होने के इस गंभीर खतरे में है। इस बहाली को रोके के लिए लोगों में इसके प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिवर्ष 03 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जाता है, ताकि इन प्रजातियों के अवास और पारिस्थिक तंत्र को स्वस्थ रखा जा सकें और विलुप्त होती जा रही प्रजातियों को संरक्षण प्रदान किया जा सकें। ये एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो हमारी प्राकृति के लिए भी महत्वपूर्ण है और इसकी तरफ ध्यान आकर्षित करने के शुरुआत इस दिन को मनाए जाने से की जा सकती है। इस दिवस के बारे में बात करते हुए एक सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है कि इस दिवस की शुरुआत कैसे हुई और क्यों इस दिवस को मनाए जाने के लिए 3 मार्च की तिथि को ही क्यों चुना गया। आइए आपको इस लेख के माध्यम से विश्व वन्यजीव दिवस से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी दें।
विश्व वन्यजीव दिवस के बारे मे जानकारी
नाम : विश्व वन्यजीव दिवस
तिथि : 03 मार्च 2024 (रविवार)
शुरूआत : 20 दिसंबर 2013
पहली बार : 03 मार्च 2014
थीम (2024) : “कनेक्टिंग पीपल एंड अर्थ”
विश्व वन्यजीव दिवस कब मनाया जाता है? (इतिहास)
03 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस मनाए जाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा 20 दिसंबर 2013 को, अपने 68वें सत्र में दुनियाभर के वन्य जीवों और वनस्पतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के मकसद से की गई थी। Wildlife Day मनाने के लिए 03 मार्च का दिन इसलिए क्योंकि 1973 में इसी दिन वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कन्वेंशन (CITES) पर कई देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। पृथ्वी पर जीवन की संभावनाओं को बनाए रखने के लिए और पर्यावरण में जीव-जंतु तथा पेड़-पौधों के महत्व को पहचानते हुए साइट्स (CITES) की स्थापना की गई। इस विशेष दिन के वैश्विक पालन के लिए CITES सचिवालय को सूत्रधार के रूप में नामित भी किया गया है।
क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड वाइल्डलाइफ डे?
हर वर्ष 03 मार्च को मनाया जाने वाला वन्यजीव दिवस अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वन्यप्राणियों, विलुप्त होने वाली प्रजातियों एवं पेड़-पौधों के संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। क्योंकि इंसानों के लालच और स्वार्थ के चलते जंगलों की अंधाधुंध कटाई से जीव-जंतुओं के आवास सिमटते जा रहे है, इसी बीच इनके अंगों की तस्करी के लिए भी इनका जमकर शिकार हुआ है। ऐसे में वन्य प्राणियों के संरक्षण और आगे से ऐसा न हो यह सुनिश्चित करने के लिए यह दिवस मनाए जाने की आचश्यकता पड़ी।इसके आलावा लुप्तप्राय हो रही जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों और वनस्पतियों की प्रजातियों की आबादी को पुनः बढ़ाना भी इसका मुख्य मकसद हो सकता है, क्योंकि पृथ्वी को जीवंत बनाए रखने के कदम में पारिस्थितिकी तंत्र के किसी भी प्राणी का लुप्त हो जाना हमारे लिए एक भारी क्षति है।
सीआईटीईएस क्या है?
जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कन्वेंशन को शॉर्ट में सीआईटीईएस (CITES) कहा जाता है। 03 मार्च 1973 में इस पर हस्तारक्ष किए गए थें और 01 जुलाई 1975 में प्रभावी हुआ था। आपको बता दें की सीआईटीईएस को वाशिंगटन कंवेंशन के रूप में भी जाना जाता है। ये एक बहुपक्षीय संधि है जिस पर 80 देशों की एक एक बैठक के दौरान हस्ताक्षर किए गए थें। इस बैठक का आयोजन प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ – आईयूसीएन के द्वारा किया गया था और इस कंवेंशन पर हस्ताक्षर भी आईयूसीएन के सदस्यों देशों द्वारा किए गए थें। आपको बता दें की सीआईटीईसी का ड्राफट का प्रस्ताव आईयूसीएन के सदस्य देशों की एक बैठक के दौरान 1963 में अपनाया गया था। सीआईटीईएस का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण वनस्पति और वन्यजीवों को विलुप्त होने के खतरों से बचाना कर उनकी रक्षा करना है।
विश्व वन्यजीव दिवस 202 की थीम
जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों के संरक्षण हेतु हर साल वर्ल्ड वर्ल्डलाइफ डे एक खास विषयवस्तु (थीम) पर आधारित होता है। यह विषय हमारे ग्रह के जंगलों और वुडलैंड्स की स्थिति और इन पर निर्भर रहने वाले लाखों लोगों की आजीविका के संरक्षण के बीच संबंधों पर प्रकाश डालना चाहता है। इस साल विश्व वन्यजीव दिवस 2024 की थीम “कनेक्टिंग पीपल एंड अर्थ’” है। विश्व वन्यजीव दिवस 2023 की थीम “Partnerships for Wildllife Conservation” थी तो वहीं साल 2022 की Theme “Recovering key species for ecosystem restoration” (पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए प्रमुख प्रजातियों को पुनर्प्राप्त करना) थी।
पिछले कुछ सालों की थीम्स:
* 2022 की थीम:- Recovering key species for ecosystem restoration (पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए प्रमुख प्रजातियों को पुनर्प्राप्त करना)
* 2021 की थीम:- Forests and livelihoods: sustaining people and planet (वन और आजीविका: लोगों और ग्रह को बनाए रखना)
* 2020 की थीम:- Sustaining All Life On Earth (पृथ्वी पर सभी जीवन का निर्वाह) थी।
* 2019 की थीम:- Life below Water: for People and Planet (पानी के नीचे जीवन: लोगों और ग्रह के लिए)
* 2018 की थीम:- Big cats – predators under threat (बड़ी बिल्लियां – शिकारियों के खतरे में है।)
* 2017 की थीम:- Listen to the young voices (युवा आवाज सुनो)
* 2016 की थीम:- The future of wildlife is in our hands”, and sub-theme The future of elephants is in our hands (वन्यजीवों का भविष्य हमारे हाथ में है”, और उप-थीम “हाथियों का भविष्य हमारे हाथों में है)
* 2015 की थीम:- It’s time to get serious about wildlife crime (वन्यजीव अपराध के बारे में अब गंभीर होने का समय है)
वन्यप्राणियों का महत्त्व
इस पृथ्वी पर सभी प्राणियों का समान अधिकार है चाहे वो बेजुबान पशु-पक्षी हो पेड़-पौधें हो या कोई इंसान… इस ग्रह को जीवंत बनाए रखने के लिए इंसानों के साथ-साथ पशु-पक्षियों का भी अहम योगदान है। आज पशु पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है और कई विलुप्त भी हो चुकी है, ऐसे में यह दिवस मनाना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। इस संसार मे जंगलों के साथ-साथ वन्यजीवों को भी एक महत्वपूर्ण संसाधन की तरह देखना चाहिए, क्योंकि ये खाद्य शृंखला और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। साथ ही ये दुनिया-जहान मे किसी भी देश की आर्थिक, मनोरंजन और सौंदर्यता को बनाए रखने में भी काफी सहायक होते है। इंसानों की जनसंख्या में वृद्धि, कृषि और पशुधन के साथ-साथ शहरों और सड़कों के विस्तार और बढते निर्माण भी वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को नष्ट करने के लिए जिम्मेदार हैं। वनों की कटाई और अवैध शिकार भी जैव-विविधता को खतरे में डाल रही हैं। इतना ही नहीं नदियों के जल में मिलें फैक्ट्रीयों के जहरीले केमिकल्स के कारण जलीय जीवों पर भी खतरा पैदा हो गया है, कईं मछलियाँ और पानी में रहने वाले जीवों की प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं। ऐसे में हमें अब अपनी बंद आँखों को खोल विश्व वन्यजीव दिवस पर इनकी रक्षा करने का प्रण लेना चाहिए।
जीव-जंतुओं की 8,400 से ज्यादा प्रजातियां संकट में
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के आंकड़ों के मुताबिक, जंगली जीव-जंतुओं की 8,400 से ज्यादा प्रजातियां संकट में हैं, वहीं, 30,000 से अधिक को लुप्तप्राय या खतरे में है। इन आंकड़ों के आधार पर यह सलाह दी जाती है कि 10 लाख से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।
हर कोई प्रकृति पर है निर्भर
गौरतलब है कि पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान से मानव समेत धरती पर सभी तरह के जीवन के सामने चुनौती बनी हुई है। हर जगह लोग भोजन से लेकर कपड़ों, ईंधन, दवाओं, आवास तक यानी सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए वन्य जीवन और जैव विविधता-आधारित संसाधनों पर निर्भर हैं। यानी हर कोई कुदरत पर निर्भर है। ऐसे में अगर वन्य जीव लुप्त होंगे तो आने वाले समय में इंसानों पर बड़ा खतरा मंडरा सकता है। इसलिए वन्य जीवों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हर वर्ष 3 मार्च को वन्यजीव दिवस मनाया जाता है।
भारत में कितनी वन्यजीव सैंक्चुअरी है
भारत में हाल में 567 सैंक्चुअरी हैं। जिसने भारत के भूभाग में 122,564 किलोमीटर का क्षेत्र ले रखा है। क्योंकि भारत में भी कई ऐसी प्रजातियां है जो विलुप्त होने की कगार पर है और कई ऐसी है जिनकों आवास देने के लिए नई सैंक्चुअरी निर्माण का कार्य चल रहा है। आने वाले समय में भारत में और 218 नई सैंक्चुअरी बनेंगी। विश्व स्तर पर बात करें तो विश्व में कुल 1600 वन्यजीव अभयारण्य (सैंक्चुअरी) है। जहां कई वन्यजीवों को विलुप्त होने से रोकने के लिए कार्य चल रहा है व साथ ही विलुप्ती होती प्रजातियों को संरक्षित किया जा रहा है।
क्यों होता है वन्यजीवों का विलुप्तीकरण
प्रमुख तौर पर वन्यजीवों का विलुप्तीकरण प्राकृतिक कारणों से होता है। जिसमें आपदाएं आदि शामिल होती है। आइए आपको बताएं इसके मुख्य कारण
1. प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन
2. प्रदूषण
3. भूकंप, ज्वालामुखी विस्पोट और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएं
4. आवास की हानी
5. मनुष्यों द्वारा आवास और कृषि आदि के लिए वनों को खत्म करना
6. पेड़ों की कटाई
7. वन्यजीवों का शिकार
8. अक्रामक जीवों के कारण कमजोर प्रजातियां का शिकार
आइए वन्यजीवों की रक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा की जा रही कुछ सबसे महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर नजर डालते हैं।
1. प्रोजेक्ट टाइगर: प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत 1972 में हुई थी। इसका लक्ष्य न केवल बाघों बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना था। इस परियोजना के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा भुगतान किया गया था। लगभग 47 बाघ अभ्यारण्य 17 से अधिक क्षेत्रों में फैले हुए हैं। कॉर्बेट नेशनल पार्क और रणथंभौर नेशनल पार्क उनमें से दो हैं। टाइगर टास्क फोर्स कई बाघों, उनके आवास और वे कैसे शिकार करते हैं, इस पर नज़र रखती है। निस्संदेह, प्रोजेक्ट टाइगर ने बाघों के आवास को बहाल करने और बाघों की संख्या बढ़ाने में मदद की।
2. प्रोजेक्ट एलिफेंट: 1992 में, भारत सरकार ने हाथियों और उनके आवास की रक्षा के लिए प्रोजेक्ट एलिफेंट शुरू किया। उन्होंने विज्ञान और सुविचारित प्रबंधन की मदद से प्रवासी मार्गों के निर्माण पर भी काम किया। यह परियोजना घरेलू हाथियों के कल्याण और लोगों और हाथियों के बीच संघर्ष को कम करने के तरीकों पर भी ध्यान देती है।
3. मगरमच्छ संरक्षण परियोजना: भारत सरकार ने मगरमच्छों को बचाने के लिए एक परियोजना शुरू की। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कुछ प्रकार के मगरमच्छ लगभग विलुप्त हो चुके हैं। परियोजना का मुख्य लक्ष्य शेष मगरमच्छों की रक्षा करना और उनके प्राकृतिक वातावरण में रहने के लिए सुरक्षित स्थान स्थापित करना है। यह कैद में प्रजनन को भी प्रोत्साहित करेगा, प्रबंधन में सुधार करेगा और स्थानीय लोगों को परियोजना में शामिल करेगा।
4. UNDP समुद्री कछुआ परियोजना: नवंबर 1999 में देहरादून में भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा ओलिव रिडले कछुओं की सुरक्षा के लिए शुरू की गई थी। यह परियोजना भारत के लगभग 10 तटीय राज्यों, विशेष रूप से ओडिशा, जहां समुद्री कछुओं के घोंसले के शिकार स्थलों का नक्शा बनाया गया था, के बारे में है। समुद्री कछुओं के घोंसले और तट के किनारे रहने के स्थान पाए गए, और उनके प्रवास मार्गों को ट्रैक किया गया। इन परियोजनाओं के अलावा, भारत सरकार ने इंडिया राइनो विजन (IRV) 2020 और गिद्ध संरक्षण भी शुरू किया है। आइए अंत में उन महत्वपूर्ण पर्यावरण और जैव विविधता अधिनियमों को देखें जिन्हें भारत सरकार ने पारित किया है।
• मत्स्य अधिनियम 1897
• भारतीय वन अधिनियम 1927
• खनन और खनिज विकास विनियमन अधिनियम 1957
• पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960
• वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972
• जल (प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1974
• वन संरक्षण अधिनियम 1980
• वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981
• 1986 के पर्यावरण अधिनियम का संरक्षण
• 2002 का जैव विविधता अधिनियम
• अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006
भारत ने अपने आस-पास के देशों के साथ कई अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं और योजनाओं पर भी हस्ताक्षर किए हैं।इसलिए, वन्यजीवों की रक्षा करना महत्वपूर्ण है, और सरकार के साथ-साथ यह हमारा काम है कि हम पौधों और जानवरों की रक्षा करें और ऐसा करने के लिए कदम उठाएं।
पिछले साल बजट 2023 में सरकार ने वन्यजीव के लिए बढ़ाया बजट
बजट 2023 पेश करते समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ‘अमृत धरोहर’ योजना के ज़रिए जलीय जैव विविधता और स्थानीय समुदायों के विकास की बात की है। यह बजट की 07 प्राथमिकताओं में से एक ‘Green Development’ के अंतर्गत आता है। साथ ही संसद में दिए गए अपने बजट भाषण के दौरान सीतारमण ने कहा, “माननीय प्रधान मंत्री ने पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली के आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए ‘LiFE’ (Lifestyle For Environment) योजना का मार्गदर्शन दिया है। आपको बता दें कि बजट 2023-24 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का बजट 3079.40 करोड़ रखा गया है जो पिछले बजट से 24% ज़्यादा है।
भारत में 73 प्रजातियां हैं खतरे में :
हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने प्रकृति के संरक्षण के लिए International Union for Conservation of Nature(IUCN) की 2011 की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए राज्यसभा को सूचित किया कि भारत में 73 प्रजातियां गंभीर रूप से संकटग्रस्त है। इन 73 प्रजातियों में 9 मैमल्स (mammals), 18 पक्षी, 26 रेप्टाइल्स (reptiles) और 20 एम्फीबिअन्स (amphibians) शामिल हैं। इसके साथ ही पर्यावरण मंत्री ने राज्य सभा में कहा कि सरकार अब उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान करने के लिए वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में सबसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों को शामिल करने पर विचार कर रही है।
जानें वो पौधे जो लुप्त हो चुके हैं
1. होपिया शिंकेंग- ये पौधा पूर्वी हिमालय में कभी बड़ी संख्या में पाया जाता था, लेकिन बीते 100 सालों से ये नजर नहीं आ रहा।
2. आइलेक्स गार्डनेरियाना- ये सदाबहार प्रजाति का वृक्ष है. अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के अनुसार ये अब भारत में खत्म हो चुका है. इसके खत्म होने की मुख्य वजह तेजी से जंगलों की कटाई को माना गया है।
3. मधुका इंसिग्निस- ये पौधा कभी कर्नाटक में पाया जाता था, लेकिन अब ये वर्षों से नजर नहीं आया है. आईयूसीएन की 1998 में जारी सूची में इसे विलुप्त की श्रेणी में रखा गया है।
4. स्टरकुलिया खासियाना- मेघालय के खासी जनजातीय पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाने वाला ये पौधा भी भारत में बहुत तेजी से खत्म हुआ है. आईयूसीएन ने इसे भी लुप्त हो चुके पादपों की श्रेणी में रखा है. हालांकि इसकी सह प्रजातियों के जरिए इसे फिर से जंगल में लौटाने का प्रयास किया जा रहा है।
जीव-जंतु जो हो चुके हैं लुप्त
1. नॉर्दर्न वाइट राइनोसॉरस- नॉर्दर्न वाइट राइनोसॉरस अंतिम नर की 2018 के मार्च में मृत्यु हो गई थी. अब आखिरी दो जीवित उत्तरी वाइट राइनोसॉरस हैं और दोनों मादा हैं. जाहिर है कि दोनों जन्म देने में असमर्थ हैं. ऐसे में इस प्रजाति को विलुप्त माना जा रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह इनका शिकार है।
2. डोडो- डोडो एक पक्षी था जो कभी मॉरीशस में पाया जाता था. आखिरी बार डोडो को 1660 के दशक में देखा गया था. नाविकों ने डोडो का खूब शिकार किया और तमाम जानवरों ने इनके अंडे खाए, जिसके कारण ये प्रजाति विलुप्त हो गई।
3. पैसेंजर पीजन- पहले पैसेंजर पीजन (यात्री कबूतर) की संख्या लाखों में हुआ करती थी, लेकिन अब ये नजर नहीं आते. कहा जाता है कि लोगों ने इनका जमकर शिकार किया, जिसकी वजह से ये गायब हो गए।
4. गोल्डन टॉड- गोल्डन टॉड आखिरी बार 1989 में देखा गया था. इसके बाद ये कभी नजर नहीं आया. साल 1994 में इसे विलुप्त घोषित कर दिया गया. माना जाता है कि एक घातक त्वचा रोग ने इसकी आबादी को नष्ट कर दिया था. प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और चिट्रिड त्वचा संक्रमण आदि को इसके विलुप्त होने की वजह माना जाता है।
5. डच बटरफ्लाई- एल्कॉन ब्लू कलर की डच बटरफ्लाई की एक उप-प्रजाति मुख्य रूप से नीदरलैंड के घास के मैदानों में पाई जाती थी. आखिरी बार इसे 1979 में देखा गया था. खेती और घरों के ज्यादा निर्माण से एल्कॉन ब्लू के घरों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और धीरे-धीरे ये विलुप्त हो गई।
अभी वन्यजीवन के साथ क्या गलत है
हमारी समुद्री प्रजातियों का बहुत तेजी से उपयोग किया जा रहा है, जो पूरे ग्रह के लिए एक समस्या है। मानव प्रभाव ने न केवल प्रदूषण और तटीय आवासों को नष्ट कर दिया है, बल्कि इससे ऐसी क्षति भी हुई है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता है।
* संकटग्रस्त प्रजातियाँ पौधे या जानवर हैं जो विलुप्त होने के करीब हैं।
* लुप्तप्राय प्रजातियाँ: कोई भी पौधे या पशु प्रजातियाँ जो विलुप्त होने के खतरे में हैं
* विलुप्त प्रजातियां (जंगली में): पौधे और जानवर जो अब जंगल में नहीं रहते हैं।
* विलुप्त प्रजातियां पौधे और जानवर हैं जो अब मौजूद नहीं हैं।
कई जानवर जो जंगली में रहते थे लेकिन अब नहीं रहते हैं वे चिड़ियाघरों, वनस्पति उद्यानों या यहां तक कि हमारे अपने यार्डों में भी रह सकते हैं। ब्लू-टेल्ड स्किंक और रोडोडेंड्रोन केनेहिराई दो प्रजातियां हैं जो जंगली में रहती थीं लेकिन अब नहीं रहती हैं। दूसरा अभी भी आसपास है क्योंकि यह लोकप्रिय है। स्प्लिटफिन बटरफ्लाई, भले ही बटरफ्लाई स्प्लिटफिन जंगली में आधिकारिक रूप से विलुप्त हो चुकी है, लेकिन मेक्सिको में अभी भी उनका एक छोटा समूह है। जीवित रहने वाली मछलियां, जिन्हें बटरफ्लाई गुडीड्स (अमेका स्प्लेंडेंस) भी कहा जाता है, अपनी आबादी को होम एक्वेरियम में रखती हैं।
इसका समाधान कैसे किया जा सकता है
हमें यह सीखने की जरूरत है कि कैसे अधिक सतत रूप से जीना है और प्रकृति की विविधता का सम्मान करना और उसकी रक्षा करना है। हमें विलुप्त होने के खतरे वाली सभी प्रजातियों के प्राकृतिक आवासों को बचाने और संरक्षित करने के लिए अपनी सरकारों पर दबाव बनाने की आवश्यकता है। अपने ग्रह और खुद को बचाने के लिए हम सभी को मिलकर काम करने की जरूरत है।
विश्व वन्यजीव दिवस पर, आप क्या मदद कर सकते हैं
आप स्थानीय कार्यक्रमों में भाग ले सकते हैं और अपने क्षेत्र के जानवरों के बारे में अधिक जान सकते हैं। आप अपना समय या पैसा उन समूहों को दे सकते हैं जो स्थानीय या दुनिया भर में वन्यजीवों की रक्षा करते हैं। आप अपनी सरकार को लिख सकते हैं या याचिकाओं पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। आप अपने दोस्तों और परिवार को फिल्में, फोटो और लेख दिखा सकते हैं। उन्हें सोशल मीडिया पर साझा करें और किसी भी तरह से शब्द को बाहर निकालें। आप हैशटैग #WorldWildlifeDay और #DoOneThingToday का उपयोग करके वैश्विक बातचीत में शामिल हो सकते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या करते हैं, आप अकेले नहीं होंगे। दुनिया भर से लाखों लोग समारोह में शामिल होंगे और हमारे ग्रह के बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष करेंगे।
प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर आगे बढ़ने में ही सबकी भलाई है| निरंतर लुप्त होती प्रजातियों और उनके आवासों और पारिस्थितिक तंत्रों के नुकसान से पृथ्वी पर सभी के जीवन को खतरा है, जिसमें हम भी शामिल हैं| भोजन से लेकर ईंधन, दवाओं, आवास और कपड़ों तक, अपनी सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए, हम वन्यजीव और जैव विविधता-आधारित संसाधनों पर निर्भर हैं| लाखों लोग अपनी आजीविका चलाने के लिए सीधे तौर पर प्रकृति से जुड़े हैं| विश्व वन्यजीव दिवस मनाने का महत्व लोगों को शिक्षित करना, वन्यजीव मुद्दों के संबंध में वैश्विक समस्याओं को दूर करने के लिए आवश्यक उपाय करना और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में उपलब्धियों का जश्न मनाना और सिक्योर करना है. विश्व वन्यजीव दिवस हर साल हमारे जीवन और ग्रह के स्वास्थ्य में सभी जंगली वनस्पतियों और जीवों की प्रजातियों के योगदान का जश्न मनाने का दिन है।