गर्भ संस्कार एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है ‘गर्भ में शिक्षा’। परंपरागत रूप से यह माना जाता है कि आपके गर्भधारण करने के साथ ही बच्चे का मानसिक और व्यवहारिक विकास शुरू हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब बच्चे का व्यक्तित्व गर्भ में आकार लेना शुरू कर देता है और यह गर्भावस्था में माँ की मनोदशा से प्रभावित हो सकता है। इसके बारे में प्राचीन शास्त्रों में भी बताया गया है और वेदों में भी यह बात शामिल है। गर्भ संस्कार के अनुसार, आपका शिशु संगीत और अन्य आवाजों के साथ-साथ आपके विचारों और भावनाओं को पहचाानने और इनके प्रति प्रतिक्रिया करने में सक्षम है। इसीलिए परिवार के बुजुर्ग जोर देते हैं कि गर्भावस्था के दौरान सकारात्मक और तनावमुक्त रहना जरुरी है।
गर्भ संस्कार का अभ्यास वैदिक काल से चल रहा है। हिंदू धर्म में 16 संस्कारों के बारे में बताया गया है, जिसमें किसी व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक किए जाने वाले संस्कार निहित होते हैं. इन सोलह संस्कारों को हिंदू धर्म में पवित्र संस्कार माना गया है. इसमें सबसे पहला संस्कार गर्भाधान संस्कार कहलाता है। गृहस्थ आश्रम अर्थात विवाह के उपरांत संतानोपत्ति करना प्रत्येक दंपति का कर्तव्य है। जहां मां बनकर एक स्त्री की पूर्णता होती है, वहीं पुरुष के लिए संतान पितृ-ऋण से मुक्ति प्रदान करने वाली होती है। आज आधुनिकीरण की अंधी दौड़ व पाश्चात्य संस्कृति के प्रवाह में हमने ‘गर्भाधान’ संस्कार की बुरी तरह उपेक्षा की है। वर्तमान समय में ‘गर्भाधान’ को एक संस्कार की तरह करना लुप्त हो गया है जिसके गंभीर दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। बिना उचित रीति व श्रेष्ठ मुहूर्त के ‘गर्भाधान’ करना निकृष्ट व रोगी संतान के जन्म का कारण बनता है। एक स्वस्थ, आज्ञाकारी, चरित्रवान संतान ईश्वर के वरदान के सदृश होती है किंतु इस प्रकार की संतान तभी उत्पन्न हो सकती है, जब ‘गर्भाधान’ उचित रीति व शास्त्रों के बताए नियमानुसार किया जाए। उत्तम व श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति के लिए गर्भाधान संस्कार महत्वपूर्ण होता है. इसमें गर्भस्थापन के बाद कई तरह के प्राकृतिक दोषों के आक्रमण से बचने के संस्कार किए जाते हैं, जिससे कि गर्भ सुरक्षित रहता है और इससे सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है. यह दर्शाता है कि किस तरह एक स्वस्थ, सुखी और बुद्धिमान बच्चे को पाया जा सकता है। गर्भ संस्कार में माता और बच्चे दोनों के लिए बहुत से लाभ हैं। गर्भ संस्कार में शामिल प्रथा इस तथ्य पर निर्भर करती है कि बच्चा गर्भ से बाहर के माहौल से प्रभावित होता है और एक सुखी बच्चा एक सुखद माहौल का परिणाम है। नीचे वर्णित प्रथाएं मां की मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक भलाई सुनिश्चित करती हैं, जो सीधे बच्चे को प्रभावित करती हैं। यह प्रथाएं बच्चे के समग्र विकास के लिए जरूरी हैं, विशेष रूप से बच्चे की बुद्धि के लिए। गर्भावस्था में खुद को भावनात्मक, मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक तौर पर अच्छी स्थिति में रखना, ताकि गर्भ में पल रहे शिशु पर अच्छा प्रभाव पड़े। गर्भ संस्कार के अनुसार, आपका शिशु संगीत और अन्य आवाजों के साथ-साथ आपके विचारों और भावनाओं को पहचाानने और इनके प्रति प्रतिक्रिया करने में सक्षम है। इसीलिए परिवार के बुजुर्ग जोर देते हैं कि गर्भावस्था के दौरान सकारात्मक और तनावमुक्त रहना जरुरी है। तो आइए जानते हैं गर्भाधान के बारे में विस्तार से…
गर्भ संस्कार क्या है?
गर्भ संस्कार के गहन अभ्यास में उतरने से पहले, ‘संस्कार’ की अवधारणा को समझना आवश्यक है,
॥ संस्कारस्य गुणाधानेन वा स्याद्योषप नयनेन वा ॥
ब्रह्म सूत्र के इस श्लोक में ‘संस्कारों’ को व्यक्ति में गुणों के आरोपण के रूप में समझाया गया है, लेकिन व्यापक अर्थ में, ‘संस्कार’; सांस्कृतिक और आध्यात्मिक छाप हैं जो किसी व्यक्ति की जीवन यात्रा का मार्गदर्शन करते हैं। ये छाप अनुष्ठानों, परंपराओं और प्रथाओं को शामिल करती हैं जो जन्म से मृत्यु तक किसी व्यक्ति के चरित्र, मूल्यों और विश्वासों को आकार देती हैं। जीवन के प्रत्येक चरण को विशिष्ट संस्कारों द्वारा चिह्नित किया जाता है, वास्तव में, ‘गौतम स्मृति शास्त्र’ के अनुसार 40 संस्कार होते हैं, लेकिन वर्तमान समय में, ‘महर्षि वेद व्यास स्मृति शास्त्र’ के अनुसार सोलह संस्कार लोकप्रिय हैं जिन्हें “षोडश” संस्कार भी कहा जाता है और उनमें से सबसे दिलचस्प और प्रभावशाली गर्भ संस्कार है। तो, गर्भ संस्कार क्या है? गुणों को स्थापित करने और दोषों को दूर करने की प्रक्रिया को ‘संस्कार’ के रूप में जाना जाता है, और जब ये संस्कार गर्भावस्था के दौरान ही बच्चे में डाले जाते हैं, तो इसे गर्भ संस्कार कहा जाता है ।
माँ-बच्चे के बंधन में गर्भ संस्कार की भूमिका
प्राचीन हिंदू दर्शन में इस बात पर कई बार जोर दिया गया है कि हम अपने आस-पास जो दुनिया देखते हैं, वह परिवर्तनशील है, ‘अनित्य’ या ‘परिवर्तन’ का तत्व हमारे आस-पास जो विविधता देखते हैं, उसे प्रदान करता है। यही कारण है कि हम बचपन से ही कुछ लोगों को शांत देखते हैं और कुछ लोग अव्यवस्थित होते हैं। कुछ लोगों की सीखने की क्षमता दूसरों की तुलना में बेहतर होती है। ऐसा अंतर क्यों है, इसका क्या कारण है? इसका कारण यह है कि हम मनुष्यों का जीवन दो कारकों, प्रारब्ध और संस्कारों के संयोजन से संचालित होता है:
प्रारब्ध: प्रारब्ध का अर्थ है जो हम अपने पिछले जीवन से लेकर आये हैं जिसे हम हिंदू धर्म में ” कर्म सिद्धांत ” के रूप में भी जानते हैं।
संस्कार: संस्कार का अर्थ है हमारे पालन-पोषण और हमारे आस-पास के वातावरण से प्राप्त गुण जो हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। इसका कारण स्पष्ट है कि प्रारब्ध का परिवर्तन हमारे हाथ में नहीं है, परन्तु संस्कारों के संचरण को हम नियंत्रित कर सकते हैं ।
गर्भ संस्कार , गर्भकाल के दौरान शिशु के मन, बुद्धि और व्यक्तित्व को पोषित करने का सर्वोत्तम प्रयास है। शास्त्र और विज्ञान इस बात पर एकमत हैं कि गर्भ में पल रहे शिशु का मन, बुद्धि और स्वास्थ्य उसके वातावरण और परिवेश से बहुत प्रभावित होता है। इस घटना के उदाहरण शास्त्रों और पुराणों में भी मिलते हैं कि गर्भ में शिशु अत्यंत संवेदनशील होता है, जैसे: महाभारत में अभिमन्यु; अभिमन्यु ने 16 वर्ष की आयु में उस चक्रव्यूह को तोड़ा जिसे बड़े-बड़े विशेषज्ञ भी नहीं भेद सके, क्योंकि जब अर्जुन सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदना सिखा रहे थे, तब अभिमन्यु गर्भ में था। हमारे पुराणों और शास्त्रों में ऐसी कई कहानियां दर्ज हैं जो गर्भ संस्कार के महत्व और प्रमाण को दर्शाती हैं और अब कई आधुनिक वैज्ञानिक शोध भी गर्भ संस्कार के पक्ष में आंकड़े पेश करते हैं।
गर्भ संस्कार की परंपरा में किन चीजों का अभ्यास शामिल है?
गर्भावस्था में माँ जितना खुश और सकारात्मक रहे, उतना शिशु के लिए अच्छा है। इसमें मदद करने के लिए गर्भ संस्कार में बहुत से अभ्यास और तरीके बताए गए हैं:
* संगीत सुनना
* सकारात्मक सोच रखना और तनाव मुक्त रहना
* सेहतमंद भोजन खाना
* योग करना
* ध्यान (मेडिटेशन) और प्रार्थना करना
* रचनात्मक कार्य करना
* अपने अजन्मे शिशु के साथ बातचीत करना
उपर बताए गए सभी गर्भ संस्कार अभ्यास गर्भ में बच्चे के विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में मदद करते हैं। ये अभ्यास माँ को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ भी रखते हैं और गर्भावस्था को एक यादगार अनुभव बनाते हैं। आपने शायद किसी गर्भवती महिला को अपने पेट पर हाथ फेरते या गर्भ में पल रहे शिशु से बात करते हुए देखा होगा और आपको शायद यह अजीब भी लगा होगा। मगर, हो सकता है वह ऐसा इसलिए कर रही हों क्योंकि वे गर्भ संस्कार का अभ्यास कर रही हैं।
आप की भावनाओं और विचारों का असर मेरे गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है।
माना जाता है कि गर्भ में शिशु का मस्तिष्क 60 प्रतिशत तक विकसित हो जाता है। यह बात भी अब और अधिक स्पष्ट होती जा रही है कि अजन्मा शिशु आवाज, रोशनी और हलचल जैसे बाहरी प्रभावों के प्रति प्रतिक्रिया करने में सक्षम है। हालांकि, आपको अपने शिशु के विकास को बढ़ावा देने के सक्रिय प्रयास करने चाहिए या नहीं और इसका क्या असर होगा, इस बारे में राय अलग-अलग है। परंपरागत रूप से माना जाता है कि यदि आप खुश रहें और ऐसी चीजें करें जो आपको शांत और संतुष्ट रखें, तो यह सब आपके गर्भस्थ शिशु पर सकारात्मक असर पड़ता है। इसलिए, उदाहरण के तौर पर, यदि आप गर्भावस्था में कोई कॉमेडी फिल्म देखती हैं, और इसे देखकर आप खुश और प्रफुल्लित महसूस करती हैं, तो माना जाता है कि आपकी यह खुशी और सकारात्मक भावना कुछ हद तक शिशु तक भी पहुंचती है। इस तरह के सकारात्मक अनुभव शिशु के शुरुआती व्यक्तित्व को रचनात्मक तरीके से आकार देने में मदद कर सकते हैं। इस तरह के अनुभवों से शायद वह एक संतुष्ट और खुशमिजाज़ व्यक्ति बन सकेगा। चाहे यह वैज्ञानिक रूप से सच हो या न हो, मगर यह निश्चित रूप से आपको खुशी और संतुष्टी अवश्य देगा। इस तरह आपने अपने शिशु के साथ पहले से ही एक प्यार भरा बंधन बना लिया होगा और साथ ही उसके जन्म लेने के लिए एक शानदार माहौल भी होगा।
आजीवन संबंध को बढ़ावा देना
“एक माँ अपने बच्चों को अपने दिल में रखती है” – यह बात सच हो सकती है क्योंकि गर्भधारण के बाद बच्चे और माँ के बीच आजीवन संबंध बन जाता है। गर्भावस्था के दौरान गर्भ संस्कार का अभ्यास करने से यह संबंध मजबूत होता है।आधुनिक विज्ञान बताता है कि मातृ कोशिकाएँ प्लेसेंटा के माध्यम से शिशु के साथ संपर्क करती हैं। और प्लेसेंटा शिशु के विकास के लिए निम्नलिखित कार्य करता है:
* आपके शिशु को सुरक्षित रखता है
* ऑक्सीजन और पोषक तत्व पहुंचाता है
* आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता आपके शिशु तक पहुँचती है
* हानिकारक पदार्थों और कार्बन डाइऑक्साइड का उन्मूलन
लेकिन इसमें और भी बहुत कुछ है। प्लेसेंटा सेरोटोनिन भी स्रावित करता है जो भ्रूण के मस्तिष्क के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब सेरोटोनिन सामान्य स्तर पर होता है, तो आपकी भावनाएं स्थिर होती हैं, और आप खुश और शांत महसूस करते हैं। सेरोटोनिन महत्वपूर्ण है लेकिन इसकी अधिकता से बच्चे का मस्तिष्क न्यूरॉन्स का उत्पादन बंद कर सकता है। इसी तरह, बहुत कम सेरोटोनिन के भी बुरे परिणाम होते हैं। सेरोटोनिन उत्पादन को सामान्य स्तर पर बनाए रखने के लिए, आपको सकारात्मक रहना होगा। आप सकारात्मक रह सकते हैं और प्राचीन गर्भ संस्कार अभ्यास के साथ अपने बच्चे के उचित मानसिक विकास को सुनिश्चित कर सकते हैं। शोध से पता चलता है कि मस्तिष्क के विकास का केवल आधा हिस्सा ही जीन पर निर्भर करता है। शिशु के आस-पास का वातावरण बाकी आधे हिस्से को उत्तेजित करता है। इसलिए एक माँ के लिए सकारात्मक रहना ज़रूरी है। अपने शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखें। गर्भ संस्कार की गतिविधियाँ गर्भ से ही आपके बच्चे में बहुत बड़ा विकास ला सकती हैं। यह उन्हें शांत, गुणी और स्वस्थ भी बनाएगा।
चमत्कारिक गर्भ संस्कार कैसे होता है?
यह जानना कि बच्चे और मां के बीच एक जटिल संबंध है जो सही तरीके से व्यवहार किए जाने पर चमत्कार कर सकता है। आपके दिमाग में एक सवाल आ सकता है: यह “गर्भ संस्कार” कैसे काम करता है? लेकिन यह कोई जादू नहीं है। ऐसा लग सकता है कि यह जादू की तरह काम करता है, लेकिन यह वैज्ञानिक है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च एंड रिव्यू में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार , “गर्भ संस्कार मातृ तनाव, चिंता, चिकित्सा सह-रुग्णता और ऑपरेटिव प्रसव की घटनाओं को कम करने में अत्यधिक प्रभावी है और बेहतर विकास, जन्म के समय वजन और एपीजीएआर के संदर्भ में बेहतर नवजात परिणाम देता है। और इन सबके लिए कुछ नहीं बल्कि एक मां की अपने बच्चे को सर्वोत्तम संभव वातावरण देने की इच्छा और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कुछ कार्यों की आवश्यकता होती है।आप पूछ सकते हैं कि कौन सी कार्रवाई? आराम से बैठिए और इस लेख को पढ़िए, बेशक। क्योंकि हमने आपको इसके लिए तैयार कर लिया है।
गर्भ संस्कार की कला, जो आपके शिशु के गर्भ विकास के लिए समृद्ध गतिविधियाँ है।
प्राचीन वैदिक गर्भ संस्कार परंपरा के अनुसार गर्भावस्था के दौरान सकारात्मक बने रहने के लिए महिला का शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य उत्कृष्ट होना चाहिए।
गर्भ संस्कार में किस तरह का संगीत सुनना : आपका गर्भस्थ शिशु सातवें महीने के बाद से आवाजों को सुन सकता है और उनके प्रति प्रतिक्रिया दे सकता है। इसलिए यदि आप संगीत सुन रही हैं, तो संभावना है कि वह भी इसे सुन रहा होगा। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि संगीत सुनने से आपके बच्चे के मस्तिष्क का विकास होगा और साथ ही उसकी सुनने की क्षमता भी विकसित होगी। आप सितार, बांसुरी या वायलिन जैसे वाद्ययंत्रों की सुरीली धुनें सुन सकती हैं। आप गर्भावस्था के श्लोकों का जाप भी कर सकती हैं या अपने शिशु को गाने गाकर सुना सकती हैं। आप पारंपरिक रागों पर आधारित हमारे गर्भावस्था के श्लोकों को सुन सकती हैं, जो गर्भवती मांओं के लिए शांति देने वाला संगीत हैं। बहुत से म्यूजिक स्टोर में विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं के लिए बनाया गया संगीत उपलब्ध होता है। गर्भ में पल रहे शिशु को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ, संगीत सुनना आपके लिए भी तनाव कम करने का बेहतरीन तरीका हो सकता है।
खुद को तनावमुक्त और सकारात्मक रखें
चाहे कोई इंसान कितना भी खुशमिजाज़ हो, मगर उनके भी उदासी भरे दिन होते हैं या वे भी तनाव और चिंता के शिकार होते हैं। गर्भावस्था के दौरान हार्मोनों का बढ़ा हुआ स्तर आपको सामान्य से अधिक भावुक बना सकता है। इसलिए भले ही आप प्रेगनेंसी में पूरे समय खुश और तनाव मुक्त रहना चाहें, लेकिन आपके मनोभावों में उतार-चढ़ाव रह सकता है। आप खुद को खुश रखने के लिए ऐसी चीजों के बारे में सोचे जो आपको पसंद हों और उनके लिए समय निकालने की पूरी कोशिश करें। अपनी पहली गर्भावस्था में ऐसा करना आपके लिए आसान होगा। अगर आपके पास अपनी रुचि या शौक पूरा करने के लिए समय नहीं है, तो किताबें पढ़ने या अच्छी फिल्म देखने से भी आपका मन बहल सकता है। गर्भ संस्कार के अनुसार, माना जाता है कि गर्भावस्था के दौरान शिक्षाप्रद किताबें पढ़ने से बच्चे तक भी इसका ज्ञान पहुंचता है। इसलिए सदियों से गर्भवती महिलाओं को पौराणिक कहानियों और शास्त्रों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता रहा है, ताकि उनके बच्चों को अच्छे नैतिक मूल्य मिल सकें। यदि आप कुछ और आधुनिक चाहती हैं, तो कुछ अन्य किताबें पढ़ सकती हैं। आप वह पढ़ें जिससे आपको खुशी मिलती हो, चाहे फिर वह खाना बनाने के बारे में हो, रोमांस हो, नर्सरी राइम या परियों की कहानियां हों। सुखद अंत वाली एक अच्छी कॉमेडी फिल्म भी आपके मूड को अच्छा कर सकती है। इस तरह के सकारात्मक अनुभव शिशु के शुरुआती व्यक्तित्व को रचनात्मक तरीके से आकार देने में मदद कर सकते हैं। इस तरह के अनुभवों से शायद वह एक संतुष्ट और खुशमिजाज़ व्यक्ति बन सकेगा।आप अपने जीवन के अच्छे पलों को याद कर सकती हैं, या छुट्टी पर जा सकती हैं और प्रकृति के मनोहर दृश्यों का आनंद ले सकती हैं। या आप अपने आस-पास अपने प्रियजनों की तस्वीरें लगा सकती हैं। यदि आप अपने जीवन में कठिन दौर से गुजर रही हैं, तो तनाव से निपटने में मदद के लिए हमारे कुछ सुझावों को आजमा सकती हैं।
गर्भ संस्कार के अनुसार किस तरह के भोजनों का सेवन अच्छा है?
गर्भ संस्कार गर्भावस्था के दौरान सात्विक आहार या शुद्ध आहार के सेवन की सलाह देते हैं। इसका मतलब है कि केवल ताजी सब्जियों से बना ताजा खाना ही खाना है। इसका मतलब संयम से खाना भी है। सात्विक व्यंजन वह है जिसमें जरुरी पोषक तत्व संतुलित मात्रा में होते हैं। सात्विक भोजन में भी सभी प्रकार के स्वाद भी होते हैं – मीठा, कड़वा, खट्टा, नमकीन, तीखा और कसैला। सात्विक आहार का मतलब मसालेदार, किण्वित और प्रिजर्वेटिव वाले भोजन से परहेज करना भी है।माना जाता है कि ऐसा आहार आपको और गर्भ में पल रहे शिशु को स्वस्थ और शुद्ध रखेगा। बेशक, अगर आपको चॉकलेट खाने की इच्छा हो, तो कभी-कभार इसका सेवन करने में कोई हर्ज नहीं है! गर्भावस्था के दौरान क्या खाना चाहिए, अपने आहार में कोई भी बड़ा बदलाव करने से पहले अपनी डॉक्टर से बात करें।
गर्भावस्था के दौरान नियमित योग करना भी गर्भ संस्कार का हिस्सा : माना जाता है कि गर्भावस्था में योग करने के निम्नांकित फायदे हैं:
* इससे मांसपेशियों का लचीलापन बढ़ेगा, जो प्रसव के दौरान काफी काम आएगा।
* आपके रक्त परिसंचरण में सुधार आएगा, जो गर्भावस्था से जुड़े पीठ दर्द और टांगों में ऐंठन कम करने में मदद करेगा।
* गर्भावस्था और प्रसव के दौरान दर्द सहने की क्षमता बढ़ाएगा।
* वजन नियंत्रित रखने में मदद करेगा।
* इससे आपको शांति और आराम मिलेगा। योग की प्राणायाम और श्वसन तकनीकों से विशेषतौर पर आराम मिलता है।
ध्यान लगाना और प्रार्थना करती हैं मदद : ध्यान (मेडिटेशन,) योग और गर्भ संस्कार का एक अभिन्न हिस्सा है। इससे मन की शांति मिलती है और एकाग्रता में भी सुधार होता है। इनका अभ्यास करने से आप अपने शिशु की भी उसी तरह मदद कर रही हैं। आप उसे तनावपूर्ण परिस्थितियों में भी शांत रहने की क्षमता विकसित करने में मदद कर रही हैं। मेडिटेशन में ‘मन को शून्य अवस्था’ में लाने का प्रयास किया जाता है। ऐसा तब होता है जब आप कुछ भी नहीं सोच रही होती और आपका दिमाग खाली होता है। जब आप ध्यान लगाने की कोशिश करें, तो मन में अपने बच्चे की कल्पना कर सकती हैं और प्रत्येक सांस के साथ उन सभी अद्भुत अनुभवों के बारे में सोचें, जिन्हें आप उसके साथ साझा करना चाहती हैं। कई मांओं को लगता है कि यह प्रक्रिया उन्हें खुशी देती है और उन्हें अपने गर्भस्थ शिशु के साथ बेहतर ढंग से जुड़ने में मदद करती है। प्रार्थना और अन्य आध्यात्मिक गतिविधियां गर्भ संस्कार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। माना जाता है कि ये आपके बच्चे के आध्यात्मिक विकास में मदद करते हैं। कुछ ऐसे मंत्र और श्लोक हैं जो विशेष रूप से अजन्मे बच्चे के लिए पढ़े जाते हैं। इनमें शिशु को बुद्धि, अच्छा स्वास्थ्य, खुशी और नैतिक मूल्यों जैसे गुणों का आशीर्वाद देने की प्रार्थना शामिल होती है। गर्भवती माँ और उसके बच्चे की सुरक्षा के लिए आप हमारे गर्भावस्था के श्लोक सुन सकती हैं।
रचनात्मक काम करना है फायदेमंद : गर्भावस्था के दौरान अपनी रुचि (हॉबी) का काम करने से दिमाग सक्रिय रहता है और माना जाता है कि यह गर्भस्थ शिशु के संपूर्ण विकास को बढ़ावा देता है। आप पेंटिंग, मिट्टी के बर्तन बनाने और बुनाई करने जैसे विभिन्न रचनात्मक कार्यों में अपना हाथ आजमा सकती हैं। कई गर्भवती माताएँ अपने शिशु का दिमाग तेज करने की कोशिश में गणित, वर्ग पहेली, शास्त्रीय संगीत, शतरंज या विज्ञान आधारित गतिविधियों को करना पसंद करती हैं। यदि और कुछ नहीं, तो इससे आपको कुछ दिलचस्प काम करने को मिल जाता है और इससे तनाव भी कम होता है। आप अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल अपने बच्चे के लिए पसंदीदा नामों की एक छोटी सूची बनाने में भी कर सकती हैं। ऐसा करने से शिशु के जन्म के बाद आपको एक नाम चुनने में आसानी होगी। बच्चे के लिए सही नाम खोजने में मदद के लिए हमारे पास बहुत सारे संसाधन हैं। आप बेबी नेम फाइंडर में नाम ढूंढ़ सकती हैं या फिर बेबी नेम आइडियाज में इसे देख सकती हैं। आप लोकप्रिय भारतीय नामों के बारे में भी जान सकती हैं और यदि नाम रखने को लेकर कोई असमंजस हो तो उसका भी हल यहां मिल सकता है।
अपने गर्भस्थ शिशु से कर सकती हैं बातचीत : अपने पेट पर हाथ फेरना, उसे देखते हुए बातें करना और गाना गाकर सुनाना आदि गर्भस्थ शिशु से बातचीत करने के लोकप्रिय तरीके हैं। आप और आपके पति बारी-बारी से आपके पेट को सहला सकते हैं। आप अपने शिशु से हर दिन एक अलग विषय पर बात कर सकती हैं। उसे बताएं कि आप उसे अपने जीवन में पाकर कितनी खुश हैं, परिवार के बारे में मजेदार किस्से उसके साथ साझा करें, या उसके भविष्य के लिए अपनी योजनाओं के बारे में बात करें। शुरुआत में आपको यह अजीब लग सकता है। थोड़ा समय दें, आप जल्द ही इसमें सहज महसूस करेंगी।गर्भस्थ शिशु से बातचीत करना यानि गर्भ संवाद को गर्भ संस्कार का सबसे महत्वपूर्ण पहलू माना जाता है। माना जाता है कि यह शिशु की इंद्रियों को उत्तेजित करता है, और उसके मानसिक और शारीरिक विकास में मदद करता है। यह आपके और आपके शिशु के बीच एक मजबूत बंधन बनाने में भी आपकी मदद कर सकता है।
गर्भ संस्कार की कार्यशाला में क्या सिखाया जाता है?
गर्भ संस्कार की अवधारणा तेजी से लोकप्रिय हो रही है। नतीजतन, गर्भवती महिलाओं को गर्भ संस्कार के बारे में समझाने और इसका अभ्यास करने में मदद करने के लिए कई गर्भ संस्कार कार्यशालाएं बन गई हैं। कुछ कार्यशालाओं ने नई तकनीकों को पेश किया है, मगर इनका आधार माँ और शिशु के विकास को सकारात्मक रूप से बढ़ावा देने का पुराना सिद्धांत ही है। नई तकनीकों में शामिल हैं:
ऑटोसजेशन और ऑटोहिप्नोसिस: यह मेडिटेशन की ही तकनीक है, जो इस सिद्धांत पर काम करती है है कि आपके दिमाग में जो बातें चल रही हैं, उन्हें हकीकत में बदला जा सकता है। इसलिए इस तकनीक में गर्भवती माँ का दिमाग एकदम खाली होना चाहिए और इसके बाद उन्हें कल्पना करनी चाहिए कि गर्भ में पल रहा उनका शिशु सही ढंग से बढ़ रहा है और स्वस्थ है। इस तरह आप चाहती हैं कि आपका शिशु सेहतमंद हो और आप उसके साथ सकारात्मक बंधन भी बना रही हैं।
कलर थेरेपी: इसमें आपकी शारीरिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक या मानसिक ऊर्जा को संतुलित करने के लिए रोशनी और रंग का उपयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस तरह की थेरेपी आपका मूड बेहतर कर सकती है और परिणामस्वरूप आपके शिशु को भी इससे फायदा होगा। कुछ का मानना है कि इससे आपके बच्चे की आंखों का विकास होता है।
अरोमाथेरेपी: इसमें आपके शरीर और दिमाग को शांत करने और पांचों इंद्रियों को तेज करने के लिए एसेंशियल ऑयल और अन्य सुगंधित तत्वों का उपयोग किया जाता है। कुछ कार्यशालाएं हर्बल दवाएं या अनुपूरक भी प्रदान करती हैं। इनमें से कोई भी लेने से पहले अपनी डॉक्टर से पूछ लें।
अन्य संस्कृतियों में भी है गर्भ संस्कार जैसी धारणा
ऐसी अन्य संस्कृतियां भी हैं जो ‘गर्भ में शिक्षा’ की अवधारणा को मानती हैं, जो गर्भ संस्कार पर ही आधारित है। उदाहरण के लिए कोरिया में यह बहुत लोकप्रिय है। कई पश्चिमी संस्कृतियों में भी माना जाता है कि विशेष प्रकार के संगीत का गर्भस्थ शिशु पर सकारात्मक असर पड़ता है। विश्व भर की विभिन्न संस्कृतियां गर्भ संस्कार की तरह ही माँ और गर्भस्थ शिशु के बीच के बंधन को मजबूत करने को बढ़ावा देती हैं। इसलिए दुनिया भर में गर्भवती माँ और पिता भी गर्भ में पल रहे शिशु से बात करते हैं।
गर्भ संस्कार एक गहन और समय-सम्मानित अभ्यास है जो माँ के गर्भ में अजन्मे बच्चे के पालन-पोषण और शिक्षा पर केंद्रित है। यह प्रसवपूर्व देखभाल के लिए एक समग्र दृष्टिकोण है जो बच्चे के विकास के लिए शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह से एक आदर्श वातावरण बनाने के महत्व पर जोर देता है। गर्भ संस्कार के पीछे यह मान्यता है कि माँ की मानसिक और भावनात्मक स्थिति बच्चे की समग्र भलाई को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है, जिसमें उसकी बुद्धि, व्यक्तित्व और शारीरिक स्वास्थ्य शामिल है।