भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि के प्रथम शिल्पकार के रूप में पूजा जाता है। साथ ही प्रत्येक वर्ष कन्या संक्रांति के दिन भगवान विश्वकर्मा की जयंती मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार, कन्या संक्रांति के दिन ब्रह्मा जी के पुत्र भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। इन्हें स्वर्ग लोक, पुष्पक विमान, कुबेरपुरी जैसे सभी देवनगरी का रचनाकार कहा जाता है। इस विशेष दिन पर भगवान विश्वकर्मा की उपासना करने से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में आ रही परेशानियों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है और आर्थिक उन्नति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आज के समय के अनुसार सृष्टि का इंजिनियर, आर्किटेक्ट कहा जाता हैं. इनकी पूजा भी इंजिनियर और वर्कर करते हैं. इस दिन सभी निर्माण के कार्य में उपयोग होने वाले हथियारों एवम औजारों की पूजा की जाती हैं।
निर्माण एवं सृजन के देवता तथा तकनीकी जगत के भगवान विश्वकर्मा की जयंती हर साल 17 सितंबर को मनाया जाता है। विश्वकर्मा जयंती का त्यौहार दिवाली के अगले दिन भी मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है की अगर इस दिन कोई कारोबारी या व्यवसायी व्यक्ति भगवान विश्वकर्मा की पूजा करें तो उसे तरक्की मिलती है। यह त्यौहार भारत में दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक आदि राज्यों में मनाया जाता है। हर वर्ष सूर्य कैलेंडर के आधार पर 16 या 17 सितंबर यानी सृष्टि के वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा का जन्मोत्सव को मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है इस पृथ्वी पर जो भी चीजें मौजूद हैं उसका निर्माण भगवान विश्वकर्मा के द्वारा ही हुआ है। शास्त्रों के अनुसार भगवान ब्रह्रााजी ने इस समूची सृष्टि की रचना की और भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि को सुंदर तरीके से सजाया और संवारा है। भगवान विश्वकर्मा को इस सृष्टि का सबसे बड़ा इंजीनियर माना जाता है। भगवान विश्वकर्मा वास्तु की संतान थे और वास्तु के पिता भगवान ब्रह्राा जी ही थे। इस कारण से भगवान विश्वकर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक माना गया है। भगवान विश्वकर्मा ने रावण की लंका, देवलोक,भगवान कृष्ण की द्वारिका और महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया था। विश्वकर्मा जयंती पर विशेष रूप से निर्माण कार्यों में काम आने वाले सामानों और औजारों की पूजा का विधान होता है। इस दिन सभी निर्माण संस्थानों पर पूजा करने का बाद बंद रखा जाता है। बरसात के मौसम में आने वाले माघ शुक्ल त्रयोदशी तिथि को विश्वकर्मा भगवान ने दुनिया के सभी वस्तुओं को बनाया था इस वजह से हर साल इस दिन को बड़े हर्षोल्लास के साथ विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है। अगर आप विश्वकर्मा जयंती से जुड़े अन्य रोचक बातों को जानना चाहते हैं साथ ही इसके महत्व और पूजा विधि को समझना चाहते हैं तो हमारे लेख के साथ अंत तक बने रहे।
कब मनाई जाती हैं विश्वकर्मा जयंती ?
विश्वकर्मा जयंती प्रतिवर्ष कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है, इस वर्ष यह 17 सितम्बर , दिन सोमवार को मनाई जाएगी. इस दिन उद्योगों, फेक्ट्रीयों एवम कार्य क्षेत्र में विशेष पूजा की जाती हैं।
विश्वकर्मा जयंती तारीख : 17 सितम्बर
संक्रांति का समय : 07:01
विश्वकर्मा को दिव्य इंजीनियर और ब्रह्मांड के मुख्य वास्तुकार के रूप में जाना जाता है . इस दिन इंजीनियरिंग समुदाय और पेशेवरों द्वारा पूजा की जाती है. कार्यालयों और कार्यशालाओं में सभी भगवान विश्वकर्मा देव के सामने अपने उपकरणों की पूजा करते हैं . यह पूजा सभी कलाकारों, बुनकर, शिल्पकार और औद्योगिक घरानों द्वारा सितंबर के महीने में की जाती है. इस दिन को कन्या संक्रांति दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. विश्वकर्मा देव की पूजा दीपावली के समय भी की जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार इन्होने भगवान कृष्ण की नगरी द्वारिका का निर्माण किया था. इन्होने युधिष्ठिर की नगरी इन्द्रप्रस्थ का भी निर्माण किया था और अपनी कला से इसे मायावी रूप दिया था. इन्होने ने ही सोने की लंका को बसाया था. पूरी सृष्टि के निर्माण के साथ- साथ इन्होने कई औजार भी बनाये. कई दिव्य शास्त्रों का भी निर्माण किया, जिसमे देवराज इंद्र का वज्र भी हैं, जिसे इन्होने महर्षि दधिची की हड्डियों से बनाया था. महान दधिची ने जीवित रहते हुए अपने हड्डियों का दान दिया था।
विश्कर्मा पूजा पर बना शुभ योग
सर्वार्थ सिद्धि योग – 17 सितंबर 2023 को सुबह 06 बजकर 07 मिनट से सुबह 10 बजकर 02 मिनट तक
द्विपुष्कर योग – 17 सितंबर 2023 को सुबह 10 बजकर 02 मिनट से सुबह 11 बजकर 08 मिनट तक
ब्रह्म योग – 17 सितंबर 2023 को प्रात: 04 बजकर 13 मिनट से 18 सितंबर 2023 को सुबह 04 बजकर 28 मिनट तक
अमृत सिद्धि योग – 17 सितंबर 2023 को सुबह 06 बजकर 07 मिनट से सुबह 10 बजकर 02 मिनट तक
हस्त्र नक्षत्र- 17 सितंबर को हस्त्र नक्षत्र सुबह 10 बजकर 02 मिनट तक है और उसके बाद से चित्रा नक्षत्र
विश्वकर्मा पूजा का समय
पूजा के लिए शुभ मुहूर्त- 17 सितंबर की सुबह 10 बजकर 15 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक कर सकते हैं। इसके बाद विश्वकर्मा पूजा पर आज भगवान की पूजा के दो शुभ दोपहर 1 बजकर 58 मिनट से दोपहर 3 बजकर 30 मिनट तक पूजा का मुहूर्त रहेगा। इस दोनों शुभ मुहूर्त में पूजा की जा सकती है।
जन्म के संबंध में पौराणिक कथा
कहते हैं सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने अवतार लिया था, उनकी नाभि में कमल पुष्प में ब्रह्म देव विराजमान थे. ब्रह्म देव को सृष्टि का रचयिता कहा जाता हैं, अतः उन्होंने सबसे पहले धर्म को जन्म दिया. धर्म ने वस्तु नामक एक कन्या जो कि प्रजापति दक्ष की एक पुत्री थी, से विवाह किया जिनसे उन्हें वास्तु नामक पुत्र की प्राप्ति हुई, वास्तु भी शिल्पकार थे. वास्तु की संतान थे, विश्वकर्मा जो कि अपने पिता के समान ही श्रेष्ठ शिल्पकार बने और ब्राह्मण का निर्माण किया।
विश्वकर्मा पूजा की कथा
पौराणिक युग में एक व्यापारी था, जिसकी एक पत्नी थी दोनों मेहनत करके जीवन व्यापन करते थे, लेकिन कितना भी करे सुख सुविधायें उनके नसीब में न थी. उनकी कोई संतान भी न थी, इसलिए दोनों दुखी रहते थे. तभी किसी सज्जन ने उन्हें विश्वकर्मा देव की शरण में जाने कहा. उन दोनों ने बात मानी और अमावस के दिन विश्वकर्मा देव की पूजा की व्रत का पालन किया. जिसके बाद उन्हें संतान भी प्राप्त हुआ और सभी ऐशों आराम भी मिले. इस प्रकार विश्वकर्मा देव की पूजा का महत्व मिलता हैं।
विश्वकर्मा जयंती क्यों मनाई जाती है? (महत्व)
मान्यता है कि इस दिन घर में रखे हुए लोहे, मशीनों और वाहनों आदि की पूजा करने से वह जल्दी खराब नहीं होते और भगवान उन पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। यह भी मान्यता है कि इस दिन जो कारोबारी विश्वकर्मा भगवान की उपासना करते हैं उन्हें अपने कार्य में तरक्की मिलती है। अथार्त यह पूजन कारोबार में वृद्घि करने के साथ ही आपको धनवान बनाने का भी काम करता है।जब विश्व भर की चीजों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा के द्वारा किया गया तब इंसानों का जीवन सरल हो पाया जिस वजह से हर साल भगवान विश्वकर्मा को धन्यवाद और उनके कार्य के लिए उनकी पूजा करने का अवसर विश्कर्मा जयंती के रूप में तय किया गया है। महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे भारत के उत्तर और पश्चिमी भागों में इसे माघ शुक्ल की त्रयोदशी तिथि (जनवरी-फरवरी में) को मनाया जाता है।
विश्वकर्मा जयंती पूजा विधि
इनकी प्रतिमा को विराजित कर इनकी पूजा की जाती हैं. इनके भिन्न- भिन्न चित्र पुराणों में उल्लेखित हैं।
* इस दिन इंजिनियर अपने कार्य स्थल, निर्माण स्थल (भूमि) की पूजा करते हैं।
* इस दिन मजदुर वर्ग अपने औजारों की पूजा करते हैं।
* उद्योगों में आज के दिन अवकाश रखा जाता हैं।
* बुनकर, बढ़ई सभी प्रकार के शिल्पी इस दिन विश्वकर्मा देव की पूजा करते हैं।
* इस दिन कई जगहों पर यज्ञ किया जाता हैं।
विश्वकर्मा जी की पूजा कैसे करें?
भगवान विश्वकर्मा की विधि-विधान से की गई पूजा-अर्चना विशेष फल देती है। इसके लिए फैक्टरी, वर्कशॉप, ऑफिस, दुकान आदि के मालिक को स्नान करके अपनी पत्नी के साथ पूजा के लिए बैठना होता है।
जरूरी सामग्री: अक्षत, चंदन, फल, फूल, धूप, अगरबत्ती, दही, रोली, सुपारी, रक्षा सूत्र, मिठाई, आदि को एक साथ रख लें।
* सबसे पहले अष्टदल की बनी रंगोली पर सतनजा बनाएं।
* पूर्ण विश्वास तथा श्रद्धा के साथ विश्वकर्मा जी की मूर्ति/फोटो पर फूल चढाए।
* इसके बाद सभी मौजूद औजारों पर तिलक और अक्षत लगाएं फिर फूल चढ़ाकर और सतनजा पर कलश रख दें।
* इसके बाद कलश को रोली-अक्षत लगाएं फिर दोनो को हाथ में लेकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें।
ॐ पृथिव्यै नमः
ॐ अनंतम नमः
ॐ कूमयि नमः
ॐ श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नमः
* इसके बाद शुद्ध जल या गंगा जल लेकर सभी मशीनों, औजारों और कलश पर चारों तरफ छिड़क दें।
* हल्दी, अक्षत, फूल और फल-मिठाई आदि अर्पित करें।
* इसके बाद आरती करें और प्रसाद को सभी में बांट दें।
विश्वकर्मा जयंती आरती
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा। सकल सृष्टि के करता,रक्षक स्तुति धर्मा ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा। आदि सृष्टि मे विधि को, श्रुति उपदेश दिया। जीव मात्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,जय श्री विश्वकर्मा। ऋषि अंगीरा तप से,
शांति नहीं पाई । ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुःखा कीना॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा । जब रथकार दंपति, तुम्हारी टेर करी । सुनकर दीन प्रार्थना, विपत सगरी हरी ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा । एकानन चतुरानन, पंचानन राजे। त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप साजे ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा । ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे । मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,जय श्री विश्वकर्मा । श्री विश्वकर्मा की आरती,
जो कोई गावे । भजत गजानांद स्वामी, सुख संपति पावे ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा । सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा ॥
भगवान विश्वकर्मा कौन है?
सनातन धर्म में भगवान विश्वकर्मा को ही सृजन और निर्माण का देवता और सभी रचनाकारों और शिल्पकारों का भी ईष्ट देव माना गया है। वह दुनिया के पहले इंजीनियर तथा एक काबिल वास्तुकार भी है। पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार विश्वकर्मा ब्रह्मा जी के पुत्र धर्म की सातवीं संतान वास्तु के पुत्र थे। इस तरह वास्तुकला के आचार्य भगवान विश्वकर्मा के पिता वास्तुदेव तथा माता अंगिरसी हैं।
भगवान विश्वकर्मा द्वारा किए गए निर्माण कार्य?
विश्वकर्मा जी ने इस सृष्टि को सजाने-संवारने का काम किया, वे देवताओं के अस्त्र-शस्त्र, आभूषण तथा महल आदि बनाने का काम किया करते थें। उन्होंने ही सतयुग में स्वर्गलोक, त्रेतायुग में सोने की लंका, द्वापर युग में द्वारिका नगरी और कलियुग में यमपुरी, वरुणपुरी, पांडवपुरी, कुबेरपुरी, शिवमंडलपुरी तथा सुदामापुरी के साथ साथ भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की विशाल मूर्तियों आदि का निर्माण किया। ऋगवेद में इनके महत्व का वर्णन 11 ऋचाएं लिखकर किया गया है।
इस प्रकार पुरे देश में विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती हैं. सुंदर विश्व के निर्माण में आज के समय में इंजिनियर ही विश्वकर्मा देव के रूप हैं. देव की कृपा बनी रहे इसलिए इस पर्व को प्रेम के साथ मनाया जाता हैं. कलाओ का दाता विश्वकर्मा देव को ही माना जाता हैं. उनके द्वारा बनाई गई शिल्प की कला को आज के विज्ञान के साथ जोड़ कर इन साधारण मनुष्यों ने दुनियाँ को वही माया देने की कोशिश की है, जो भगवान विश्वकर्मा ने इन्द्रप्रस्थ में दी थी। वह आध्यात्मिक युग सतयुग था, जहाँ भगवान की लीलायें भरी पड़ी थी, उस युग से वर्तमान कलयुग की तुलना ही व्यर्थ हैं, लेकिन इस युग में विज्ञान का ज्ञान ऊँचाई पाने की होड़ में लगा हुआ हैं. उस वक़्त की मायावी कलाओं को इस युग में विज्ञान के द्वारा साधारण मनुष्य चरितार्थ करने में लगा हुआ हैं. ऐसे में विश्वकर्मा देव का आशीर्वाद बहुत आवश्यक हैं।
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