नवरात्रि के सातवें दिन दुर्गाजी की सातवीं शक्ति देवी कालरात्रि की पूजा का विधान है। मां कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी भी कहा जाता है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं अर्थात इनकी पूजा से शनि के दुष्प्रभाव दूर होते हैं। दुर्गा पूजा के दिन साधक का मन ‘सहस्त्रार चक्र’ में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूरी तरह से माँ कालरात्रि के स्वरूप में स्थित रहता है। यह शुभंकरी देवी हैं इनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती।
आज 28 मार्च, मंगलवार के दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि है। आज चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन है और आज के दिन माता कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस विशेष दिन को महासप्तमी के रूप में जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन शुभ मुहूर्त में मां कालरात्रि की उपासना करने से साधक के सभी दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं और उन्हें धन, वैभव और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पंचांग के अनुसार आज एक अत्यंत शुभ योग का निर्माण हो रहा है, जिसमें पूजा-पाठ करने से साधक को विशेष फल प्राप्त होता है। आइए पंचांग से जानते हैं सूर्योदय का समय, शुभ मुहूर्त और राहुकाल की अवधि।
आज का पंचांग
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि समाप्त- 28 मार्च, मंगलवार को शाम 05 बजकर 32 पर
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि प्रारंभ- 28 मार्च, मंगलवार को शाम 05 बजकर 32 से
मॄगशिरा नक्षत्र- शाम 04 बजकर 02 मिनट तक
द्विपुष्कर योग- सुबह 06 बजकर 16 मिनट से शाम 04 बजकर 02 मिनट तक
विशेष- चैत्र नवरात्रि माता कालरात्रि पूजा
शुभ समय
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04 बजकर 40 मिनट से सुबह 05 बजकर 28 मिनट तक
विजय मुहूर्त- दोपहर 02 बजकर 15 मिनट से दोपहर 03 बजकर 03 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त- शाम 06 बजकर 12 मिनट से शाम 06 बजकर 36 मिनट तक
अमृत काल- सुबह 06 बजकर 28 मिनट से सुबह 08 बजकर 13 मिनट तक
अशुभ समय
राहुकाल- दोपहर 03 बजकर 15 मिनट से शाम 04 बजकर 44 मिनट तक
गुलिक काल- दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से दोपहर 01 बजकर 45 मिनट त
भद्राकाल- शाम 05 बजकर 32 मिनट से 29 मार्च सुबह 06 बजकर 16 मिनट तक
सूर्योदय और सूर्यास्त का समय
सूर्योदय- सुबह 06 बजकर 16 मिनट से
सूर्यास्त- शाम 06 बजकर 14 मिनट पर
चंद्रोदय और चन्द्रास्त का समय
चंद्रोदय- दोपहर 12 बजकर 28 मिनट से
चन्द्रास्त- रात्रि 11 बजकर 22 मिनट पर
हिन्दू मास एवं वर्ष
शक सम्वत – 1944 शुभकृतविक्रम सम्वत – 2080दिन काल – 12:20:05मास अमांत – चैत्रमास पूर्णिमांत – चैत्रशुभ समय – 12:01:55 से 12:51:16 तक
मां का स्वरूप
पुराणों के अनुसार देवी दुर्गा ने राक्षस रक्तबीज का वध करने के लिए कालरात्रि को अपने तेज से उत्पन्न किया था। इनकी उपासना से प्राणी सर्वथा भय मुक्त हो जाता है। इनके शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह एकदम काला है और सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है व इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के सामान चमकीली किरणें प्रवाहित होती रहती हैं।इनकी नासिका के श्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं एवं इनका वाहन गर्दभ है।इनके ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं तथा दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है।बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खडग धारण किए हुए हैं। माँ कालरात्रि का स्वरुप देखने में अत्यंत भयानक है,लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं।इसी कारण इनका एक नाम शुभंकरी भी है अतः इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।
मां कालरात्रि की पूजा विधि
मां दुर्गा की इस शक्ति को कालरात्रि कहा जाता है. माता की पूजा से आरोग्य की प्राप्ति होती है और निगेटिव शक्तियों से छुटकारा मिलती है. माता अपने भक्तों को आशीष प्रदान करती हैं और शत्रुओं का संहार करती हैं. परिवार में सुख-शांति आती है. चलिए आपको बताते हैं कि किस तरह से माता की पूजा करनी चाहिए।
* मां कालरात्रि की पूजा करने के लिए सुबह जल्द जगना चाहिए. स्नान करके साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
* मान्यता है कि माता को लाल रंग पसंद है. इसलिए मां को लाल रंग का वस्त्र अर्पित करना चाहिए।
* मां को स्नान कराने के बाद फूल चढ़ाना चाहिए।
* मां को मिठाई, पंच मेवा और 5 प्रकार का फल अर्पित करना चाहिए।
* माता कालरात्रि को रोली कुमकुम लगाना चाहिए।
ध्यान मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
पूजा का शुभ मुहूर्त
चैत्र शुक्ल सप्तमी तिथि – 27 मार्च, शाम 05.27 बजे से 28 मार्च, रात 07.02 बजे तक
द्विपुष्कर योग –28 मार्च, सुबह 06.16 बजे से शाम 05.32 बजे तक
सौभाग्य योग – 27 मार्च, रात 11.20 बजे से 28 मार्च, रात 11.36 बजे तक
निशिता काल मुहूर्त – 28 मार्च, मध्यरात्रि 12.03 बजे से प्रात: 12.49 बजे तक
पूजा फल
माता कालरात्रि अपने उपासकों को काल से भी बचाती हैं अर्थात उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती।इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत,प्रेत,राक्षस और सभी नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं।माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं एवं ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं।इनके उपासक को अग्नि-भय,जल-भय,जंतु-भय,शत्रु-भय,रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते अतः हमें निरंतर इनका स्मरण,ध्यान और पूजन करना चाहिए। सभी व्याधियों और शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए माँ कालरात्रि की आराधना विशेष फलदायी है।
मां कालरात्रि को भोग
मां कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीजें पसंद हैं. इसलिए नवरात्रि के सातवें दिन गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है और माता को प्रसन्न किया जाता है. इससे भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है।
मां कालरात्रि की पूजा का महत्व
माता कालरात्रि की पूजा से सभी कष्ट दूर होते हैं. माता का ये रूप दुष्टों और शत्रुओं का संहार करने वाला है. माता की पूजा से निगेटिव शक्तियों का नाश होता जाता है. माता की पूजा सुबह में भी होती है. लेकिन रात्रि के समय पूजा का विशेष महत्व है. माना जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा से साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित होता है।
मां कालरात्रि आरती
कालरात्रि जय जय महाकाली, काल के मुंह से बचाने वाली।
दुष्ट संहारिणी नाम तुम्हारा, महा चंडी तेरा अवतारा।
पृथ्वी और आकाश पर सारा, महाकाली है तेरा पसारा।
खंडा खप्पर रखने वाली, दुष्टों का लहू चखने वाली।
कलकत्ता स्थान तुम्हारा, सब जगह देखूं तेरा नजारा।
सभी देवता सब नर नारी, गावे स्तुति सभी तुम्हारी।
रक्तदंता और अन्नपूर्णा, कृपा करे तो कोई भी दुःख ना।
ना कोई चिंता रहे ना बीमारी, ना कोई गम ना संकट भारी।
उस पर कभी कष्ट ना आवे, महाकाली मां जिसे बचावे।
तू भी ‘भक्त’ प्रेम से कह, कालरात्रि मां तेरी जय।
मां कालरात्रि की उत्पत्ति की कथा
तीनों लोकों में राक्षस शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने हाहाकार मचा रखा था. सभी देवता चिंतित थे. सभी देवी देवता मिलकर भगवान शंकर के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की. तब महादेव ने मां पार्वती से असुरों का अंत कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा. इसके बाद माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया. माता के सामने असली चुनौती राक्षस रक्तबीज ने पेश की. जैसे ही मां दुर्गा रक्तबीज को मारती और उसका खून धरती पर गिरती. उससे लाखों रक्तबीज पैदा हो जाते. इससे माता क्रोधित हो गईं और उनका वर्ण श्यामल हो गया. इसी स्वरूप से मां कालरात्रि का प्राकट्य हुआ. मां कालरात्रि ने रक्तबीज का वध करती और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को धरती पर गिरने से पहले ही पी जातीं. इस तरह से माता ने सभी राक्षसों का वध किया और धरती की रक्षा की।
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