‘सत्य ही मानव का आभूषण है’, ‘मनखे-मनखे एक समान’। सत्य और अहिंसा का संदेश जन-जन तक पहुंचाने वाले संत शिरोमणि बाबा गुरु घासीदास की आज 267वीं जयंती है। हर साल 18 दिसंबर को सतनामी समाज की ओर से बाबा गुरु घासीदास बाबा की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है. समाज के लोग दूर-दूर से छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के गिरौदपुरी धाम बाबा के दर्शन करने आते हैं।
18 दिसंबर 1756 को गुरु घासीदास का जन्म ऐसे समय हुआ जब समाज में ऊंच-नीच, छुआछूत, झूठ और कपट का बोलबाला था। कसडोल ब्लॉक के छोटे से गांव गिरौदपुरी में एक अनुसूचित जाति परिवार में पिता महंगूदास और माता अमरौतिन बाई के यहां बाबा गुरु हुआ था। पिता मंहगू दास तथा माता अमरौतिन के घर जन्मे गुरु घासीदास ने समाज को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा दी। उनकी सत्य के प्रति अटूट आस्था थी, उसी कारण उन्होंने बचपन में कई चमत्कार दिखाए, जिसका लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा। कहा जाता है कि बाबा का जन्म अलौकिक शक्तियों के साथ हुआ था. घासीदास ने समाज में व्याप्त बुराइयों को जब देखा तब उनके मन में बहुत पीड़ा हुई तब उन्होंने समाज से छुआछूत मिटाने के लिए ‘मनखे-मनखे एक समान’ का संदेश दिया। गुरु घासीदास जी ने जहां समाज में एकता बढ़ाने का कार्य किया, वहीं भाईचारे और समरसता का संदेश भी दिया। उन्होंने न सिर्फ सत्य की आराधना की, बल्कि समाज में नई जागृति पैदा करने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। अपनी तपस्या से प्राप्त ज्ञान और शक्ति का उपयोग उन्होंने मानवता के सेवा कार्य के लिए किया। उनके इस व्यवहार और प्रभाव के चलते लाखों लोग उनके अनुयायी बन गए और इस तरह छत्तीसगढ़ में ‘सतनाम पंथ’ की स्थापना हुई।
सतनामी समाज के जनक
जोंक नदी के संगम पर स्थित गिरौदपुरी धाम में जन्में बाबा को सतनामी समाज का जनक कहा जाता है. उन्होंने समाज को सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलने का उपदेश दिया. उन्होंने मांस और मदिरा सेवन को समाज में पूरी तरह से बंद करवा दिया था. उनके द्वारा दिये गए उपदेश को जिसने आत्मसात कर जीवन में उतारा उसी समाज को आगे चलकर सतनामी समाज के रूप में जाना जाने लगा। सतनाम संप्रदाय के लोग गुरु घासीदास को अवतारी पुरुष के रूप में मानते हैं। उन्होंने अपनी तपस्या से अर्जित की शक्तियों से कई चमत्कारिक कार्य करके लोगों को दिखाएं। समाज के लोगों को उनके द्वारा दिया गया प्रेम, मानवता का संदेश और उनकी शिक्षा आज भी प्रासंगिक है। उनके भक्त मानते हैं कि गुरु घासीदास जी द्वारा बताया गया रास्ता अपना कर ही अपने जीवन तथा परिवार की उन्नति हो सकती है। गुरु घासीदास के मुख्य रचनाओं में उनके 7 वचन सतनाम पंथ के ‘सप्त सिद्धांत’ के रूप में प्रतिष्ठित हैं। जिसमें सतनाम पर विश्वास, मूर्ति पूजा का निषेध, वर्ण भेद एवं हिंसा का विरोध, व्यसन से मुक्ति, परस्त्रीगमन का निषेध और दोपहर में खेत न जोतना आदि हैं, इसलिए सतनाम पंथ का संस्थापक भी गुरु घासीदास को ही माना जाता है।
होती है मन्नत पूरी
कहा जाता है कि गिरौदपुरी धाम में बुधारू नामक व्यक्ति को जब जहरीले सर्प ने काटा तब बाबा ने उनके ऊपर जल छिड़ककर उनको दोबारा जीवित कर दिया था. इस चमत्कार के बाद समाज बाबा को भगवान की तरह पूजने लगा. मान्यता है कि बाबा को स्मरण कर जो मन्नत मांगी जाती है, उसे वे पूरा करते हैं. मन्नत पूरा होने पर श्रद्धालु जमीन में लोटते हुए उनके द्वार तक पहुंचते हैं।
श्रद्धांजलि
सरकार ने समानता पर आधारित समाज की स्थापना और जाति व्यवस्था को खत्म करने के प्रयास में उनके योगदान के लिए गुरु घासीदास को कई श्रद्धांजलि दी हैं। वर्ष 1987 में उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया था। संजय-दुबरी टाइगर रिजर्व के एक हिस्से का नाम गुरु घासीदास के नाम पर रखा गया था। उस हिस्से को अब गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान कहा जाता है। उनके नाम पर एक केंद्रीय विश्वविद्यालय का नाम भी रखा गया, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय।
सत्य और अहिंसा का संदेश
घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी धाम में हर साल उनके वंशज और धर्म गुरु मुख्य मंदिर में पालो चढ़ावा करते हैं. बाबा की वंदना पंथी नृत्य के माध्यम से होती है. गिरौदपुरी धाम में सत्य और अहिंसा का संदेश देने के लिए दिल्ली के कुतुबमीनार से भी ऊंचे श्वेत जैतखाम का निर्माण किया गया है. इस खूबसूरत जैतखाम की ऊंचाई 77 मीटर है।
गुरु घासीदास के सात सिद्धांत –
1- सतनाम पर अडिग विश्वास रखो।
2 – मूर्ति पूजा मत करो।
3 – जाति-पाती के प्रपंच में मत पडो।
4 – जीव हत्या मत करो।
5 – नशा का सेवन मत करो।
6 – पराई स्त्री को माता-बहन मानो।
7 – चोरी और जुआ से दूर रहव।
गुरु घासीदास बाबा के प्रचलित 42 अमृतवाणी (उपदेश) –
1 – सत ह मनखे के गहना आय। (सत्य ही मानव का आभूषण है।)
2 – जन्म से मनखे मनखे सब एक बरोबर होथे फेर कर्म के आधार म मनखे मनखे गुड अऊ गोबर होथे। (मनखे-मनखे एक बरोबर)
3- सतनाम ल जानव,समझव, परखव तब मानव।
4 – बइला-भईसा ल दोपहर म हल मत चलाव।
5 – सतनाम ल अपन आचरण में उतारव।
6 – अंधविश्वास, रूढ़िवाद, परंपरावाद ल झन मानव।
7 – दाई-ददा अउ गुरू के सनमान करिहव।
8 – सतनाम ह घट घट में समाय हे, सतनाम ले ही सृष्टि के रचना होए हावय।
9 – मेहनत के रोटी ह सुख के आधार आय।
10 – पानी पीहु जान के अउ गुरू बनावव छान के।
11 – मोर ह सब्बो संत के आय अउ तोर ह मोर बर कीरा ये। (चोरी अउ लालच झन करव।)
12- पहुना ल साहेब समान जानिहव।
13 – इही जनम ल सुधारना साँचा ये। (पुनर्जन्म के गोठ झूठ आय।)
14 – गियान के पंथ किरपान के धार ये।
15 – दीन दुःखी के सेवा सबले बड़े धरम आय।
16 – मरे के बाद पीतर मनई मोला बईहाय कस लागथे। पितर पूजा झन करिहौ, जीते-जियात दाई ददा के सेवा अऊ सनमान करव।
17 – जतेक हव सब मोर संत आव।
18 – तरिया बनावव, कुआँ बनावव, दरिया बनावव फेर मंदिर बनई मोर मन नई आवय। ककरो मंदिर झन बनाहू।
19 – रिस अउ भरम ल त्यागथे तेकरे बनथे।
20 – दाई ह दाई आय, मुरही गाय के दुध झन निकालहव।
21 – बारा महीना के खर्चा सकेल लुहु तबेच भले भक्ति करहु नई ते ऐखर कोनो जरूरत नई हे।
22 – ये धरती तोर ये येकर सिंगार करव।
23 – झगरा के जर नइ होवय ओखी के खोखी होथे।
24 – नियाव ह सबो बर बरोबर होथे।
25 – मोर संत मन मोला काकरो ल बड़े कइही त मोला सूजगा मे हुदेसे कस लागही।
26 – भीख मांगना मरन समान ये न भीख मांगव न दव, जांगर टोर के कमाए ल सिखव।
27 – सतनाम ह जीवन के आधार आय।
28 – खेती बर पानी अऊ संत के बानी ल जतन के राखिहव।
29 – पशुबलि अंधविश्वास ये एला कभू झन करहु।
30 – जान के मरइ ह तो मारब आएच आय फेर कोनो ल सपना म मरई ह घलो मारब आय।
31 – अवैया ल रोकन नहीं अऊ जवैया ल टोकन झन।
32 – चुगली अऊ निंदा ह घर ल बिगाडथे।
33 – धन ल उड़ावव झन, बने काम में लगावव।
34 – जीव ल मार के झन खाहु।
35 – गाय भैंस ल नागर म झन जोतहु।
36 – मन के स्वागत ह असली स्वागत आय।
37 – जइसे खाहु अन्न वैसे बनही मन, जइसे पीहू पानी वइसे बोलहु बानी।
38 – एक धुबा मारिच तुहु तोर बराबर आय।
39 – काकरो बर काँटा झन बोहु।
40 – बैरी संग घलो पिरीत रखहु।
41 – अपन आप ल हीनहा अउ कमजोर झन मानहु, तहु मन काकरो ले कमती नई हावव।
42 – मंदिरवा म का करे जईबो अपन घट के ही देव ल मनईबो।
गुरु घासीदास जयंती के प्रमुख आकर्षण
प्रात: प्रभात फेरी – गुरु घासीदास की जयंती, जिसे शांति का प्रतीक माना जाता था, स्थानीय लोगों के बीच बहुत उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस त्यौहार के अवसर पर, सतनामी संप्रदाय के लोगों द्वारा सुबह जल्दी प्रभात फेरी निकाली जाती है। लोग गुरु के दोहों का जाप करते हुए भक्ति में नाचते भी हैं। इस उत्सव में उपस्थित रहना अपने आप में एक अविस्मरणीय अनुभव होगा। गुरु घासीदास की जन्मस्थली एवं तपोभूमि एवं सतनामी समाज का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल गिरौदपुरी में भक्तों का मेला लगता हैं, जहां उनके चरणकुंड, अमृतकुंड, छाता पहाड़ आदि स्थलों के दर्शन का वे लाभ लेते हैं। गुरु घासीदास की जयंती पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में 18 दिसंबर से करीब एक माह तक बड़े पैमाने पर उत्सव के रूप में पूरे मनाई जाती है। सद्विचार तथा एकाग्रता बढ़ाने के लिए बाबा घासीदास की जयंती मनाना अतिआवश्यक हो जाता है, क्योंकि इससे लोगों को सद्कार्य करने की प्रेरणा मिलती हे।
सामाजिक कल्याण बैठकें और सामुदायिक भवन कार्य – गुरु घासीदास जयंती के अवसर पर, कई बैठकें होती हैं ।साथ ही सामाजिक समारोह स्थानीय स्तर पर विभिन्न स्थलों पर आयोजित किए जाते हैं। इन बैठकों और कार्यों का मुख्य उद्देश्य समाज का कल्याण होता है और लोगों की समग्र भलाई में सुधार के लिए क्या निश्चित उपाय किए जा सकते हैं, उस पर चर्चा होती है।
शोभायात्रा निकालकर दिया सतनाम का संदेश
गुरु घासीदास सेवा समिति भिलाई नगर के तत्वावधान में प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी गुरु घासीदास बाबा की 268 वीं जयंती का तीन दिवसीय आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर 17 दिसंबर को सतनाम संदेश एवं शोभायात्रा निकाली गई जिसमें हजारों की संख्या में समाज के लोग शामिल हुए यात्रा के दौरान प्रत्येक चौक चौराहों पर स्वागत किया गया। इसके पूर्व 16 दिसंबर को निशुल्क चिकित्सा शिविर का भी आयोजन किया गया। गुरु घासीदास सेवा समिति भिलाई के अध्यक्ष राम दयाल देशलरा ने बताया कि 18 दिसंबर सन 1956 को छत्तीसगढ़ की पावन धरा पर गिरौदपुरी धाम में गुरु घासीदास बाबा का अवतरण हुआ था उस समय मानव समाज की दिशा और दशा, मानव के बीच भेदभाव, जाति पाती, अन्याय, अत्याचार अपने चरम पर था। बाबा जी ने छाता पहाड़ के एकांत जगह पर चिंतन मनन कर सतनाम रूपी ज्ञान प्राप्त कर समस्त मानव समाज को सत उपदेश, सत संदेश, व अपने अमर वाणीयों के माध्यम से सत्य के रास्ते बताए। ऐसे महान संत, पथ प्रदर्शक परम पूज्य गुरु घासीदास बाबा की 268 वी जयंती समारोह के पावन अवसर पर तीन दिवसीय समारोह का आयोजन किया गया है जिसमें सभी श्रद्धालुओं एवं संत जनों को सादर आमंत्रित है।
शोभायात्रा में अध्यक्ष आरडी देशलहरा, उपाध्यक्ष श्रीमती मंजू कुर्रे, महासचिव कांतिलाल मिर्चे, कोषाध्यक्ष जीपी भास्कर, सह सचिव रमेश चंदवानी, सह सचिव रामकुमार मारकंडे, सह सचिव रेशम दृत लहरें, कार्यकारिणी सदस्य गरीबदास बंजारे, कार्यकारणी सदस्य रूपेश बारले, कार्यकारिणी सदस्य अशोक सूर्यवंशी, कार्यकारिणी सदस्य सतीश डहरे, कार्यकारिणी सदस्य राजेंद्र खुटेल, कार्यकारिणी सदस्य श्रीमती शकुंतला देश लहरे, कार्यकारिणी सदस्य टेकराम बंजारे, कार्यकारिणी सदस्य हेमप्रकाश अनंत, कार्यकारिणी सदस्य नोहर कुर्रे, कार्यकारणी सदस्य लोकेश भारती, कार्यकारिणी सदस्य दीपक बघेल, कार्यकारिणी सदस्य दिवाकर गायकवाड, कार्यकारिणी सदस्य सुरेंद्र वाघमारे, और सेक्टर 1 से सेक्टर 10, कैंप 1 व 2, सुपेला राम नगर, कृष्णा नगर, मोरम खदान, संजय नगर, रिसाली, मरोदा, प्रगति नगर, आशीष नगर, चंद्र नगर, उमरपोटी, अवधपुरी, कोहका, कुरूद, हाउसिंग बोर्ड, गुरु घासीदास नगर, कातुल बोर्ड, स्मृति नगर, जुनवानी एवं खमरिया, दुर्ग बोरसी, ताल पुरी, भिलाई 3, चरोदा, चिखली, नगपुरा की समितियों शोभायात्रा में शामिल हुई।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने ने आज सतनाम पंथ के संस्थापक बाबा गुरु घासीदास की 18 दिसम्बर को जयंती के अवसर पर प्रदेशवासियों को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। साय ने कहा है कि बाबा गुरु घासीदास ने अपने उपदेशों के माध्यम से दुनिया को सत्य, अहिंसा और सामाजिक सद्भावना का मार्ग दिखाया। उन्होंने ‘मनखे-मनखे एक समान’ के प्रेरक वाक्य के साथ यह संदेश दिया कि सभी मनुष्य एक समान है। उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ सामाजिक समरसता और सबके उत्थान की दिशा में काम किया।
बाबा गुरु घासीदास की जयंती से हमें पूजा करने की प्रेरणा मिलती है और पूजा से सद्विचार तथा एकाग्रता बढ़ती है। इससे समाज में सद्कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। घासीदास ने सामाजिक असमानता को खत्म करने की इच्छा जताई क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में बहुत पहले ही जाति व्यवस्था का अनुभव कर लिया था। गुरु घासीदास ने छत्तीसगढ़ में सतनाम, जिसका अर्थ सत्य और समानता है, के आधार पर सतनामी समुदाय की स्थापना की। शिक्षाएँ हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म के समान हैं। जाति व्यवस्था की सामाजिक असमानताओं को चुनौती देने और अन्य सामाजिक मुद्दों का समाधान खोजने के लिए, गुरु घासीदास ने पूरे छत्तीसगढ़ में व्यापक रूप से यात्रा की। उन्होंने क्रूर और दमनकारी भारतीय समाज में एक नई जागृति पैदा की। गुरु घासीदास के कार्यों की विरासत छत्तीसगढ़ में उनके लाखों अनुयायियों के माध्यम से जीवित है।