इस साल सावन माह की मासिक शिवरात्रि 2 अगस्त को मनाई जाएगी। मासिक शिवरात्रि भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन भोलेनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है। बता दें कि प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। भगवान शिव के अनन्य भक्त प्रत्येक मासिक शिवरात्रि को व्रत रखते हैं व श्रद्धापूर्वक शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते हैं। वैसे तो सावन का पूरा महीना ही भगवान शिव को समर्पित है और उनकी पूजा करने के लिए शुभ है। लेकिन सावन मास में आने वाली शिवरात्रि का विशेष महत्व होता है, इसे सावन शिवरात्रि या श्रावण शिवरात्रि कहते हैं। तो आइए जानते हैं पूजा मुहूर्त से लेकर विधि तक के बारे में।
इस वर्ष सावन शिवरात्रि का पर्व 2 अगस्त यानि आज है। हिंदू पंचांग के अनुसार, श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को सावन शिवरात्रि मनाई जाती है। महाशिवरात्रि के बाद सावन शिवरात्रि को शिव जी की सबसे प्रिय शिवरात्रि मानी जाती है। सावन की शिवरात्रि हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और खास मानी जाती है। सावन की शिवरात्रि का पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी दिखाता है. माना जाता है कि इस दिन पूजा-अर्चना करने से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होकर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और उनपर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं. इस दिन व्रत रखने से भक्तजनों को सुख, शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. अखंड सौभाग्य और संतान प्राप्ति की कामना के लिए ये व्रत रखा जाता है. यह अवसर भगवान शिव की आराधना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होता है. इस दिन, भक्तगण उपवास रखकर शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद, और बेलपत्र चढ़ाते हैं, और पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करते हैं। इस साल सावन शिवरात्रि पर काफी दुर्लभ योग बन रहे हैं। ऐसे में शिव जी की पूजा करने से कई गुना अधिक फलों की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं सावन शिवरात्रि का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, शिव मंत्र के साथ-साथ आरती…
मासिक शिवरात्रि का महत्व
मासिक शिवरात्रि के दिन भगवान शंकर को बेलपत्र, पुष्प, धूप-दीप और भोग चढ़ाने के बाद शिव मंत्र का जप किया जाता है। कहते हैं ऐसा करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है और जीवन में चल रही सभी समस्याओं का समाधान भी निकलता है। इसके अलावा आज जो भक्त मास शिवरात्रि का व्रत करते हैं, भगवान शिव उनसे प्रसन्न होकर उनके सभी कामों को सफल बनाते हैं। दांपत्य जीवन में खुशियां ही खुशियां आती हैं। साथ ही अविवाहित जातक के विवाह में आ रही अड़चनें दूर हो जाती है और सुयोग्य वर या वधू की प्राप्ति होती है।
सावन शिवरात्रि की तिथि
वैदिक पंचांग के अनुसार, श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 02 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 26 मिनट पर शुरू हो रही है, जो अगले दिन यानी 03 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 50 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन पूजा निशिता काल में की जाती है। इसलिए इस सावन शिवरात्रि 2 अगस्त 2024 को होगी।
सावन शिवरात्रि का शुभ मुहूर्त
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय- रात 07:11 से रात 09:49 तक रहेगा।
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय- रात 09:49 से देर रात 12:27बजे तक रहेगा।
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय- देर रात 12:27 से 03:06 बजे तक रहेगा।
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय- 3 अगस्त की सुबह 03:06 से सुबह 05:44 बजे तक रहेगा।
सर्वार्थ सिद्धि योग- सुबह 10:59 AM से 3 अगस्त को सुबह 05:44 तक
निशिता मुहूर्त- 3 अगस्त को सुबह 12:06 से 12:49 तक
ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 31 मिनट से 05 बजकर 15 मिनट तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 02 बजकर 45 मिनट से 03 बजकर 37 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त – शाम 07 बजकर 08 मिनट से 08 बजकर 13 मिनट तक
निशिता मुहूर्त – रात 12 बजकर 12 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक
सर्वार्थ सिद्धि योग – 2 अगस्त को सुबह 10 बजकर 59 मिनट से 3 अगस्त को सुबह 6 बजकर 2 मिनट तक
सावन शिवरात्रि की पूजा सामग्री क्या है?
सावन शिवरात्रि की पूजा में सामग्री के तौर पर शिव प्रतिमा, जनेऊ, बेलपत्र, भांग, शमी के पत्ते, मदार के फूल, फूल माला, गंगाजल, गाय का दूध, गाय का घी, सफेद चंदन, दीया, शिवलिंग का भोग लगाने के लिए मिठाई, शिव चालीसा, शिव आरती और शिवरात्रि व्रत कथा की पुस्तक आदि चीजें शामिल करें।
सावन शिवरात्रि के लिए भोग क्या है?
सावन शिवरात्रि के दिन भगवान शिव को खीर, हलवा, मालपुआ, सफेद बर्फी, पंचमेवा आदि चीजों का भोग लगा सकते हैं। मान्यता है कि इन चीजों का भगवान शिव को भोग लगाने से घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं रहती है और भगवान शिव की असीम कृपा व्यक्ति और उसके परिवार पर बरसती है।
सावन शिवरात्रि में आर्द्रा नक्षत्र
करीब 19 साल बाद यानी साल 2005 के बाद इस साल सावन शिवरात्रि पर आर्द्रा नक्षत्र बन रहा है। बता दें कि 27 नक्षत्रों में से आर्द्रा छठा नक्षत्र है। इस नक्षत्र के अधिपति देवता भगवान शिव के रुद्र रूप को माना जाता है। इस दिन आर्द्रा नक्षत्र सूर्योदय से सुबह 10 बजकर 59 मिनट तक है।
सावन शिवरात्रि की पूजा विधि
सावन शिवरात्रि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें और शिव का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें। इसके बाद शिव मंदिर जाएं। इसके लिए घर से ही एक लोटे में जल लें और बोले हे भोले बाबा इस जल में अपने घर की दशा लेकर आ रहा हूं। इसके बाद इसे शिवलिंग में चढ़ाकर अपनी कामना कहें। इसके साथ ही जल या गंगा जल चढ़ाएं। उसके बाद दूध, दही, घी, शहद चीनी से उनका अभिषेक करें। फिर मौली, जनेऊ, चावल, फूल, बेलपत्र, सफेद चंदन, धतूरा, आक का फूल, भांग, माला, फूल, कनेर, गुलाब या अपराजिता के फूल, शमी पत्र, भस्म, मौसमी फल के साथ भोग लगाएं। इसके बाद घी का दीपक और धूप जलाकर शिव मंत्र का जाप कर लें। सावन शिवरात्रि के रात को निशिता काल में शिव पूजा करने का विशेष महत्व है। इसलिए रात के समय स्नान आदि करने के बाद शिव जी की विधिवत पूजा करें। इसके साथ ही सावन शिवरात्रि व्रत कथा, शिव चालीसा, शिव मंत्र के साथ-साथ शिव के नामोंका जाप करें। अंत में आरती कर लें। इसके साथ ही भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
शिव मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात्।।
ॐ शिवाय नम:
ॐ नमः शिवाय
ॐ ऐं ह्रीं शिव गौरीमय ह्रीं ऐं ऊं।
ॐ ह्रीं नमः शिवाय ह्रीं ॐ।
शिव जी आरती
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥
(Disclaimer: ”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”)