डिजिटल वर्ल्ड में तेज़ी से बदलाव आ रहे है, जिससे युवा इस ओर तीव्र गति से आकर्षित होने लगे हैं। डिजिटल युग ने व्यक्ति को चंद क्लिक्स के ज़रिए विश्वभर से जोड़ने की महारत हासिल कर ली है। मगर धीरे धीरे ये लोगों की एडिक्शन का कारण भी बनने लगा है। इंटरनेट का ये डिजिटल माध्यम लोगों को अपना एडिक्ट बना रहा है। लोग इस कदर मोबाइल से जुड़ हो चुके हैं, कि उन्हें इसके अलावा और किसी चीज़ की कोई सुध बुध नहीं है। घंटों बिना किसी से बात किए लोग रील्स, विडियो गेम और मूवीज़ पर बर्बाद कर रहे हैं, जिससे उन्हें अन्य कार्यों में विलम्ब का सामना करना पड़ता है। आइए जानते हैं नोमोफोबिया क्या है और इसके कारण व इससे बचने के उपाय भी।
पिछले एक दशक में मोबाइल फोन के उपयोग में नाटकीय वृद्धि देखी गई है, खासकर स्मार्ट स्मार्टफोन की शुरुआत के बाद से, और महामारी शीर्ष पर रही है। आज, स्मार्टफोन हमारे सामाजिक, पेशेवर, मनोरंजक और यहां तक कि पारिवारिक जीवन का एक हिस्सा हैं। लेकिन अत्यधिक उपयोग के परिणामस्वरूप निर्भरता, लत और भय की समस्याएं हो सकती हैं। जबकि कुछ लोगों को अपने फोन के बिना लंबे समय तक रहने का विचार पसंद नहीं आ सकता है, वहीं अन्य लोगों को घबराहट या चिंता महसूस हो सकती है जब उनका मोबाइल फोन कनेक्टिविटी खो देता है। इसके लिए नोमोफोबिया शब्द है।नोमोफोबिया विशेष वस्तुओं के भय से जुड़ी अन्य मानसिक बीमारियों के समान है। इसमें सामाजिक भय जैसे अन्य प्रकार के चिंता विकारों से भी कुछ समानताएँ हैं। इस लेख में नोमोफोबिया की परिभाषा, संभावित कारण, उपचार और अन्य जानकारी शामिल है।
नोमोफोबिया किसे कहते हैं?
मोबाइल फोन के इस्तेमाल की लत के कारण युवाओं और बच्चों में इसका गंभीर असर देखने को मिल रहा है। ओप्पो द्वारा किये गए इस सर्वे में कहा गया है कि मोबाइल फोन खोने या इस्तेमाल न कर पाने का डर लोगों में तेजी से बढ़ रहा है। इसी डर को नोमोफोबिया कहा जाता है। यह एक तरह का फोबिया है जिसमें आपको हमेशा यही डर लगा रहता है कि आपका फोन कहीं खो न जाए या आपको बिना फोन के रहना पड़े। नोमोफोबिया की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को नोमोफोब कहा जाता है। इस स्थिति में व्यक्ति को इस बात का भी डर लगा रहता है कि कहीं आपके फोन की बैटरी जल्दी खत्म न हो जाए। ऐसे लोगों में इस तरह के डर की शुरुआत बैटरी 50 प्रतिशत होने पर ही होती है। ऐसे लोग जो पहले से स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं उनमें यह समस्या देखने को मिलती है। सर्वे में कहा गया है कि दुनियाभर के लगभग 84 प्रतिशत लोगों में नोमोफोबिया की समस्या है।
नोमोफोबिया की उत्पत्ति
नोमोफोबिया ” नो – मो बाइल- फो ने फो बिया ” का संक्षिप्त रूप है । यह शब्द पहली बार 2008 में यूके पोस्टल ऑफिस द्वारा शुरू किए गए एक अध्ययन में गढ़ा गया था। 2,100 से अधिक वयस्कों के नमूने में, अध्ययन ने संकेत दिया कि 53% प्रतिभागियों ने नोमोफोबिया का अनुभव किया। यह स्थिति चिंता की भावनाओं की विशेषता है जब लोग अपने फोन खो देते हैं, बैटरी जीवन से बाहर हो जाते हैं, या कोई सेलुलर कवरेज नहीं होता है। अध्ययन से पता चला कि यह डर इतना शक्तिशाली हो सकता है कि कई लोग कभी भी अपना फोन बंद नहीं करते हैं, यहां तक कि रात में या उस समय भी जब वे अपने डिवाइस का उपयोग नहीं कर रहे होंगे। जब उनसे पूछा गया कि वे अपना फोन कभी बंद क्यों नहीं करते हैं, तो 55% ने परिवार और दोस्तों के साथ संपर्क में रहने की आवश्यकता का हवाला दिया, 10% ने कहा कि उन्हें काम के कारणों से संपर्क करने की आवश्यकता है, और 9% ने बताया कि अपने फोन बंद करने से उन्हें चिंता होती है। किसी चीज़ के छूट जाने का डर ही शायद कई लोगों को यह रिपोर्ट करने के लिए प्रेरित करता है कि वे कॉल या टेक्स्ट का जवाब देंगे, भले ही वे किसी और चीज़ के बीच में हों। अध्ययन से पता चला कि लोग अक्सर कॉल का जवाब देने के लिए जीवन की गतिविधियों को बाधित करने को तैयार रहते थे। अधिकांश लोग (80%) टेलीविजन देखते समय कॉल का उत्तर देने को तैयार थे, 40% खाना खाते समय कॉल का उत्तर देने को तैयार थे, और 18% तब फोन का उत्तर देने को तैयार थे जब वे किसी अन्य व्यक्ति के साथ बिस्तर पर थे।
यह कितना सामान्य है?
हालाँकि इस घटना पर शोध अभी भी सीमित है, उपलब्ध निष्कर्ष बताते हैं कि नोमोफोबिया काफी आम है। भारत में छात्रों के एक अध्ययन में पाया गया कि 22% से अधिक प्रतिभागियों में गंभीर नोमोफोबिया के लक्षण दिखे। अध्ययन में भाग लेने वाले लगभग 60% लोगों में इस स्थिति के मध्यम लक्षण थे।
कैसे जानें कि आप हैं नोमोफोबिया के शिकार
हर व्यक्ति फोन को अपने हाथ, पॉकेट या बैग में महफूज़ तरीके से रखता है, जो न केवल बातचीत का एक ज़रिया है बल्कि मनोरंजन का भी मुख्य साधन बनता जा रहा है। वे लोग जो दिनभर अपने कार्यों के लिए इस पर निर्भर रहते हैं। उन्हें डिजिटल एडिक्ट कहा जाता ळैं। जानें डिजिटल एडिक्ट के कुछ लक्षण।
* क्या आप खाली समय बिताने के लिए डिजिटल माध्यम का सहारा लेने लगे हैं।
* घंटों तक बिना किसी से बातचीत किए अपने मोबाइल में ही व्यस्त रहते हैं।
* मित्रों से मेलजोल कम हो रहा हैं आपका फ्रेंड सर्कल दिनों दिन कम होने लगा है।
* अपने महत्वपूर्ण कार्योंं को करने के दौरान कुछ कुछ देर के लिए रूककर डिजिटल वर्ल्ड से कनेक्ट हो जाते हैं।
* मोबाइल की एब्सेंस में या इंटरनेट कनेक्टीविटी न होने पर खुद को खाली और परेशान महसूस करने लगते हैं।
* आउटिंग के दौरान भी आपका ध्यान अपने फोन से ज्यादा देर तक हट नहीं पाता है।
नोमोफोबिया के साइड इफेक्ट्स
नोमोफोबिया की समस्या में इंसान को हर समय इस बात की चिंता बनी रहती है कि कहीं उसका फोन खो न जाए या उसे बिना फोन के रहना पड़े। इस स्थिति को काफी गंभीर और चिंताजनक माना गया है। यह स्थिति मानसिक बीमारी या सिंड्रोम का रूप ले सकती है। इस समस्या के कारण लोगों में स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल करने की लत लग जाती है और इसके कारण सेहत पर कई गंभीर प्रभाव भी पड़ सकते हैं। नोमोफोबिया की वजह से आपको इस तरह के नुकसान का खतरा रहता है-
* कंप्यूटर विजन सिंड्रोम
* रीढ़ की हड्डी पर गंभीर असर
* किडनी से जुड़ी परेशानियां
* स्किन से जुड़ी समस्याएं
* नींद से जुड़ी परेशानी
* मानसिक तनाव बढ़ना
* आत्मविश्वास की कमी
नोमोफोबिया के शिकार लोग फोन चार्ज होते समय भी इसका इस्तेमाल करते हैं। ऐसे लोग फोन की बैटरी को लेकर काफी स्ट्रेस में रहते हैं। रिपोर्ट से पता चला है कि नोमोफोबिया वाले लोग बैटरी 50 प्रतिशत होने पर परेशान होने लगते हैं और तुरंत चार्जिंग में लगा देते हैं। ऐसा करने से वाले लोगों में मानसिक तनाव और आत्मविश्वास की कमी जैसे साइड इफेक्ट्स का खतरा बढ़ जाता है।
जानें इससे बाहर आने के उपाय
यदि आपको लगता है कि आपको नोमोफोबिया है या आपको लगता है कि आप अपने फोन पर बहुत अधिक समय बिता रहे हैं, तो कुछ चीजें हैं जो आप अपने डिवाइस के उपयोग को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिए कर सकते हैं।
समय निर्धारित करें : अपने डिजिटल उपकरण को बार बार देखने की जगह उसके लिए एक समय निर्धारित करें। खाली वक्त में कुछ देर के लिए मेल बॉक्स, चैट वॉक्स और आवश्यक विडियोज़ देखें। हमेशा टाइमर सेट करके ही डिजिटल उपकरण के साथ समय बिताएं।
एक संतुलन खोजें : अन्य लोगों के साथ आमने-सामने संपर्क से बचने के लिए अपने फ़ोन का उपयोग करना बिल्कुल आसान हो सकता है। हर दिन दूसरों के साथ कुछ व्यक्तिगत बातचीत करने पर ध्यान दें।
छोटे-छोटे ब्रेक लें : मोबाइल फ़ोन की आदत को छोड़ना कठिन हो सकता है, लेकिन छोटी शुरुआत से परिवर्तन आसान हो सकता है। शुरुआत छोटे-छोटे कामों से करें जैसे भोजन के दौरान या जब आप किसी अन्य गतिविधि में व्यस्त हों तो अपना फोन दूसरे कमरे में छोड़ दें।
नोटिफिकेशन को बंद कर दें : नोटिफिकेशन कई बार काम के बीच बाधा का कारण बनने लगती हैं। इससे फोकस डाइवर्ट होने लगता है, जिसका असर कार्यक्षमता पर भी दिखता है। वर्कप्लेस पर नोटिफिकेशन को बंद करके रखें। इससे फोन की ओर ध्यान आकर्ष्ज्ञित होने से बच सकता है।
फोन को सोते वक्त पास न रखें : नींद की गुणवत्ता को बढ़ाने और फोन से खुद को दूर रखने के लिए रात को सोने से पहले फोन का इस्तेमाल करने से परहेज करें। इससे आंखों पर पड़ने वाले ब्लू लाइट के प्रभाव से भी बचा जा सकता है। फोने से दूरी बनाए रखने के लिए डिजिटल उपकरण को हर समय अपने साथ रखने से बचना चाहिए।
सोशल सर्कल बढ़ाए : फोने पर अपना अधिक समय बिताने की जगह लोगों से मिलजुले और सोशन सर्कल को बढ़ाने का प्रयास करें। इससे व्यक्ति अन्य लोगों के संपर्क में आने लगता है और फोन के प्रति उसका आर्कषण कम हो जाता है। आवश्यकतानुसार ही फोन का इस्तेमाल करें।
आउटडोर एक्टीविटीज़ हैं ज़रूरी : हर पल चार दीवारी में खुद को कैद रखने की जगह घर से बाहर निकलने का प्रयास करें और इंडोर की जगह आउटडोर गतिविधियों में समय व्यतीत करें। इससे शारीरिक स्वास्यि के साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा मिलने लगता है।
अपना समय व्यतीत करने के अन्य तरीके खोजें : यदि आप पाते हैं कि आप बोरियत के कारण अपने फोन का अत्यधिक उपयोग कर रहे हैं, तो अपने डिवाइस से ध्यान भटकाने के लिए अन्य गतिविधियों की तलाश करें। किताब पढ़ने, टहलने जाने, कोई खेल खेलने या किसी ऐसे शौक में शामिल होने का प्रयास करें जिसका आप आनंद लेते हैं।
प्रौद्योगिकी के उपयोग से जुड़े अन्य भय और व्यवहार संबंधी व्यसनों के साथ-साथ नोमोफोबिया एक बढ़ती हुई समस्या है। यह देखते हुए कि काम, स्कूल, समाचार, मनोरंजन और सामाजिक जुड़ाव के लिए बहुत से लोग अपने मोबाइल फोन पर कितने निर्भर हैं, इसे दूर करना एक अविश्वसनीय रूप से कठिन समस्या हो सकती है। सेल फोन का उपयोग पूरी तरह से बंद करना यथार्थवादी नहीं है, लेकिन आप अपने फोन को अपने जीवन को नियंत्रित करने की कितनी अनुमति देते हैं, इस पर सीमाएं और सीमाएं कैसे निर्धारित करें, यह सीखने से मदद मिल सकती है। अपने फोन से कभी-कभार ब्रेक लेना, अपने फोन से अलग गतिविधियों में शामिल होना, और अपने फोन पर बिना सोचे-समझे खेलने के बजाय खुद को व्यस्त रखने के लिए ध्यान भटकाना, ये सभी शुरुआत करने के लिए अच्छी जगहें हैं।
हालांकि नोमोफोबिया के लिए कोई विशिष्ट उपचार नहीं है, फिर भी यदि आपके पास नोमोफोबिया के लक्षण हैं या यदि आपको लगता है कि आपके मोबाइल फोन का उपयोग आपके जीवन में समस्याएं पैदा कर रहा है, तो मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से बात करने से मदद मिल सकती है।
यह टिप्स और सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन्हें किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर नहीं लें। बीमारी या संक्रमण के लक्षणों की स्थिति में विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह जरूर लें।