भारत एक विविधता से भरा देश है जहाँ हर संस्कृति और समुदाय की अपनी अनूठी परंपराएँ हैं। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण त्योहार है बंगाली नववर्ष, जिसे पोइला बोइशाख के नाम से जाना जाता है। यह दिन बंगाली पंचांग के अनुसार नए साल की पहली तारीख को मनाया जाता है और वर्ष 2025 में यह दिन विशेष उल्लास और उमंग के साथ मनाया जा रहा है।
भारत की विशेषता अनेकता में एकता है. इस देश में विभिन्न जातियों और समुदायों के लोग अपने-अपने अलग नववर्ष का उत्सव मनाते हैं. नववर्ष के भिन्न होने के कारण कैलेंडर भी अलग-अलग होते हैं. एक ही देश के भीतर कई क्षेत्रीय कैलेंडर प्रचलित हैं. भारत में ‘हिंदू चंद्र-आधारित’, ‘हिंदू सूर्य-आधारित’, ‘इस्लामिक चंद्र कैलेंडर’ और ‘बंगाली कैलेंडर’ का उपयोग किया जाता है. बंगाली कैलेंडर के अनुसार, बंगाली नववर्ष किसी वर्ष 14 तो किसी वर्ष 15 अप्रैल को आरंभ होता है, और इसके पहले दिन को ‘पोइला बैशाख’ के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष पोइला बैशाख 15 अप्रैल को मनाया जाएगा, अर्थात आज मंगलवार से बंगाली नववर्ष की शुरुआत होगी।
पोइला बोइशाख 2025: तिथि और समय
पोइला बोइशाख, बंगाली कैलेंडर के पहले महीने “बोइशाख” का पहला दिन होता है। वर्ष 2025 में यह पर्व 15 अप्रैल को मनाया जा रहा है, जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार वसंत ऋतु का समय होता है। यह समय फसलों के कटाई का भी होता है, इसलिए यह त्योहार न केवल एक सांस्कृतिक परंपरा है, बल्कि कृषि जीवन से भी गहराई से जुड़ा है।
पोइला बोइशाख का इतिहास
पोइला बैसाख के बारे में कई मान्यताएँ प्रचलित हैं. कहा जाता है कि मुगल काल में इस्लामी हिजरी कैलेंडर के अनुसार करों का संग्रह किया जाता था. लेकिन हिजरी कैलेंडर और चंद्र कैलेंडर के बीच असंगति थी (कृषि चक्रों के भिन्न होने के कारण). इसलिए, बंगालियों ने इस त्योहार की शुरुआत की और बंगाली कैलेंडर को बंगबाड़ा के नाम से जाना जाने लगा। बंगाली कैलेंडर की उत्पत्ति के विषय में विद्वानों के बीच विभिन्न दृष्टिकोण हैं. कुछ scholars इसे मुगल काल से जोड़ते हैं, जबकि अन्य का मानना है कि इसका आरंभ हिंदू शासन काल में हुआ, जो बंगाली नववर्ष को ‘विक्रमी हिंदू कैलेंडर’ के पहले दिन बैसाखी से संबंधित मानते हैं, जिसे मुख्यतः सिखों और हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है. कुछ बंगाली गांवों में यह मान्यता है कि इस कैलेंडर का नाम बंगाल के एक राजा
‘बिक्रमदित्तो’ के नाम पर रखा गया है।
पोइला बैशाख या बंगला नववर्ष को पश्चिम बंगाल, बंगलादेश, त्रिपुरा और अन्य उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्यों में बंगाली समुदाय द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. भारत में यह दिन भगवान गणेश, जो शुभारंभ के देवता हैं, और देवी लक्ष्मी, जो धन और समृद्धि की देवी हैं, को समर्पित होता है. लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, और मान्यता है कि ऐसा करने से समृद्धि की प्राप्ति होती है।
यह दिन मांगलिक कार्यों के लिए शुभ है।
जैसे हिंदू धर्म में कुछ विशेष दिन मांगलिक कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं, उसी प्रकार बंगाली समुदाय पोइला बोईशाख के दिन गृह प्रवेश, मुंडन, विवाह आदि मांगलिक कार्यों को करना शुभ मानता है। इसके अलावा, किसी नए कार्य की शुरुआत या नया व्यवसाय शुरू करने के लिए भी यह दिन विशेष महत्व रखता है।
पोइला बोइशाख का सांस्कृतिक महत्व
नए आरंभ का प्रतीक: इस दिन को नए आरंभ, नई उमंग और नए संकल्प के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। लोग पुराने साल की विदाई करके नए साल का स्वागत करते हैं।
सामूहिकता और मेलजोल: बंगाली समाज में इस दिन विशेष रूप से मेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। लोग पारंपरिक परिधान पहनकर एक-दूसरे से मिलते हैं, मिठाइयाँ बांटते हैं और शुभकामनाएं देते हैं।
व्यापारिक महत्व: बंगाल के व्यापारियों के लिए यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। वे इस दिन ‘हलकाता’ (नई खाता-बही) की शुरुआत करते हैं और देवी लक्ष्मी तथा गणेश की पूजा कर आर्थिक समृद्धि की कामना करते हैं।
पोइला बोइशाख की परंपराएं
स्नान और पूजा: दिन की शुरुआत पवित्र स्नान से होती है, इसके बाद घरों की साफ-सफाई और विशेष पूजा की जाती है।
पारंपरिक व्यंजन: इस दिन विशेष बंगाली व्यंजन जैसे इल्यिश माछ भात (हिल्सा मछली और चावल), पायेश, रसगुल्ला और संदेश बनाए जाते हैं।
संस्कृतिक कार्यक्रम: गीत, नृत्य, नाटक और कवितापाठ जैसे कार्यक्रम आयोजित होते हैं। रवींद्रनाथ ठाकुर की रचनाओं को विशेष रूप से प्रस्तुत किया जाता है।
मेलों का आयोजन: जगह-जगह पोइला बोइशाख मेला लगता है जिसमें हस्तशिल्प, कपड़े, आभूषण और पारंपरिक खान-पान की वस्तुएं मिलती हैं।
आधुनिक संदर्भ में पोइला बोइशाख
आज के समय में, जब वैश्वीकरण और डिजिटल युग ने पारंपरिक त्योहारों की शैली में कुछ बदलाव लाया है, तब भी पोइला बोइशाख अपनी मूल भावना को बनाए हुए है। बंगाली समाज, चाहे वह भारत में हो या विदेशों में, इस दिन को गर्व और हर्षोल्लास के साथ मनाता है। सोशल मीडिया पर बधाइयों का आदान-प्रदान, ऑनलाइन सांस्कृतिक कार्यक्रम, और डिजिटल ‘हलकाता’ जैसी नई परंपराएं इस त्योहार में नया रंग भर रही हैं।
पोइला बोइशाख केवल एक कैलेंडर का बदलाव नहीं है, बल्कि यह बंगाली संस्कृति की आत्मा है। यह दिन हर व्यक्ति को अपने जीवन में नए उत्साह के साथ आगे बढ़ने, समाज के साथ जुड़ने और अपनी परंपराओं को संजोने की प्रेरणा देता है। “शुभो नववर्ष” कहकर जब लोग एक-दूसरे को गले लगाते हैं, तो उसमें केवल एक शुभकामना नहीं, बल्कि साझा संस्कृति और प्रेम की भावना होती है – यही पोइला बोइशाख का असली संदेश है।