भारत की धरती पर कई महान गुरु हुए। जिनमें से एक थे संत रविदास। जिनके वचनों ने दुनियाभर में परचम लहराया। इनकी वाणी में इतनी ताकत थी कि जो भी उन्हें सुनता था उनका मुरीद हो जाता था। गुरु रविदास जी ने अपने वचनों और दोहों से भक्ति की ऐसी अलौकिक ज्योति जलाई जो आज भी सभी को रोशन कर रही है। इस महान संत को दुनिया आज भी याद करती हैं और उनके सम्मान में हर साल रविदास जयंती का पर्व मनाती हैं। चलिए जानते हैं इस साल रविदास जयंती कब है और इसका महत्व क्या है।
आज 12 फरवरी, मंगलवार को देश भर में संत रविदास जयंती मनाई जाएगी। मध्यकालीन भारतीय संत परंपरा में संत रविदास का विशिष्ट स्थान है. संत रविदास को संत रैदास और भगत रविदास के नाम से भी संबोधित किया जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, गुरु रविदास का जन्म वर्ष 1398 में माघ महीने की पूर्णिमा के दिन हुआ था। हालांकि उनके जन्म को लेकर कई विद्वानों का मत है कि 1482 से 1527 ईस्वी के बीच उनका जन्म हुआ था। कहा जाता है कि जिस दिन उनका जन्म हुआ, उस दिन रविवार था, इसलिए उनका नाम रविदास पड़ गया. गुरु रविदास जी का जन्म चर्मकार कुल में हुआ था. यूं तो हर वर्ग की निष्ठा गुरु रविदास जी के साथ जुड़ी हुई है, लेकिन इनके अनुयायियों में चर्मकार एवं सिख समुदाय की संख्या ज्यादा होती है।
तिथि और शुभ मुहूर्त: संत रविदास जयंती 2025 में 12 फरवरी, बुधवार को मनाई जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व माघ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। पूर्णिमा तिथि 11 फरवरी 2025 को रात 09:34 बजे शुरू होकर 12 फरवरी 2025 को रात 11:29 बजे समाप्त होगी।
संत रविदास का जीवन परिचय: संत रविदास का जन्म 1450 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम संतोष दास और माता का नाम कलसा देवी था। वे एक चर्मकार परिवार से थे और जूते बनाने का कार्य करते थे। बचपन से ही उनमें आध्यात्मिकता की झलक थी, जिसके कारण वे समाज सुधारक और भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक बने।
शिक्षा और समाज सुधार: संत रविदास ने समाज में व्याप्त जाति-पांति और भेदभाव का विरोध किया। उनका मानना था कि कोई भी व्यक्ति जन्म से नीच या उच्च नहीं होता, बल्कि उसके कर्म उसे महान या तुच्छ बनाते हैं। उनका प्रसिद्ध दोहा है:
“रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच। नकर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।”
उन्होंने अपने दोहों और भजनों के माध्यम से मानवता, समानता और प्रेम का संदेश दिया। उनकी रचनाओं में राम, कृष्ण, करीम, रघुनाथ, गोविंद, राजा रामचंद्र आदि नामों से हरि सुमिरन मिलता है, पर मूल रूप से वे उस निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे, जो सभी प्राणियों में समान रूप से व्याप्त है।
रविदास जयंती का महत्व: रविदास जयंती के दिन उनके अनुयायी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और संत रविदास के जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक घटनाओं को याद करते हैं। उनके जन्म स्थान पर लाखों की संख्या में भक्त एकत्रित होते हैं और भव्य कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिसमें उनके दोहे गाए जाते हैं और भजन-कीर्तन होते हैं।
उत्सव की तैयारी: रविदास जयंती के अवसर पर देशभर में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। लोग संत रविदास के मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं, नगर कीर्तन निकालते हैं और उनके दोहों का पाठ करते हैं। इस दिन जरूरतमंदों को भोजन और सेवा कार्य भी किए जाते हैं।
संत रविदास की शिक्षाएं आज भी समाज में प्रासंगिक हैं और हमें समानता, प्रेम और भक्ति का संदेश देती हैं। रविदास जयंती का पर्व उनके आदर्शों को याद करने और उन्हें अपने जीवन में अपनाने का अवसर प्रदान करता है।