सनातन संस्कृति में देवों को पूजने की परंपरा है और उनकी पूजा से ही सभी कार्यों में सिद्धि मिलती है ऐसी शास्त्रों की मान्यता है। तिथि और त्यौहार देवी-देवताओं को समर्पित होते हैं, लेकिन एक असुर ने भी अपने शुभ कार्यो से पूज्यनीय होने का गौरव पाया था। इन असुर का नाम था महाबलि था। महाबलि का नाम केरल में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है और उनके सम्मान में हर वर्ष यहां पर ओणम का पर्व मनाया जाता है। ओणम को खासतौर पर खेतों में फसल की अच्छी उपज के लिए मनाया जाता है. ओणम का पर्व पूरे 10 दिन मनाया जाता है. इसका मुख्य पर्व रविवार, 15 सितंबर यानी आज है। ओणम इसलिए भी विशेष है, क्योंकि इसकी पूजा मंदिर में नहीं बल्कि घर में की जाती है।
ओणम केरल का एक प्रमुख त्योहार है। और केरल का एक राष्ट्रीय पर्व भी है। ओणम का उत्सव राजा महाबली के स्वागत में प्रति वर्ष आयोजित किया जाता है जो दस दिनों तक चलता है। उत्सव त्रिक्काकरा (कोच्ची के पास) केरल के एक मात्र वामन मंदिर से प्रारंभ होता है। ओणम में प्रत्येक घर के आँगन में फूलों की पंखुड़ियों से सुन्दर सुन्दर रंगोलिया (पूकलम) डाली जाती हैं। युवतियां उन रंगोलियों के चारों तरफ वृत्त बनाकर उल्लास पूर्वक नृत्य (तिरुवाथिरा कलि) करती हैं। इस पूकलम का प्रारंभिक स्वरुप पहले (अथम के दिन) तो छोटा होता है परन्तु हर रोज इसमें एक और वृत्त फूलों का बढ़ा दिया जाता है। इस तरह बढ़ते बढ़ते दसवें दिन (थिरुवोणम) यह पूकलम वृहत आकार धारण कर लेता है। इस पूकलम के बीच त्रिक्काकरप्पन (वामन अवतार में विष्णु), राजा महाबली तथा उसके अंग रक्षकों की प्रतिष्ठा होती है जो कच्ची मिटटी से बनायीं जाती है। ओणम मैं नौका दौड जैसे खेलों का आयोजन भी होता है। ओणम एक सम्पूर्णता से भरा हुआ त्योहार है जो सभी के घरों को ख़ुशहाली से भर देता है। 10 दिनों तक चलने वाला ओणम पर्व दक्षिण भारत का प्रमुख त्योहार है। केरल राज्य में ओणम को विशेष रूप से मनाया जाता है। ओणम त्योहार इस साल 6 सितंबर से शुरू हो चुका है जिसका समापन यानी पर्व का आखिरी दिन 15 सितंबर 2024 को होगा। हिंदू पंचांग के अनुसार ओणम का त्योहार भाद्रपद और आश्विन माह में मनाया जाता है। मलयालम सौर कैलेंडर के अनुसार ओणम का त्योहर चिंगम माह में शिरुवोणम नक्षत्र में माना जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसे श्रावण नक्षत्र कहते हैं। ओणम इसलिए भी विशेष है, क्योंकि इसकी पूजा मंदिर में नहीं बल्कि घर में की जाती है। आइए आपको ओणम का इतिहास और महत्व बताते हैं।
ओणम पर्व क्यों है खास, क्या है इस पर्व की मान्यता
भारत विविध धर्मों, जातियों तथा संस्कृतियों का देश है। जहां हर तरह के त्योहार को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। सर्वधर्म समभाव के प्रतीक केरल प्रांत का मलयाली पर्व ‘ओणम’ राजा बलि की आराधना का दिन, समाज में सामाजिक समरसता की भावना, प्रेम तथा भाईचारे का संदेश पूरे देश में पहुंचा कर देश की एकता एवं अखंडता को मजबूत करने की प्रेरणा देता है। वैसे तो केरल में इसकी धूम होती है, लेकिन दुनिया भर में बसे मलयाली इसे धूमधाम से मनाते हैं।
ओणम 2024 तिथि और शुभ मुहूर्त
मलयालम कैलेंडर के अनुसार ओणम का त्योहार चिंगम महीने में मनाया जाता है। इस साल इस तिथि की शुरुआत 14 सितंबर 2024 को रात 08 बजकर 32 मिनट होगा। वहीं इस तिथि का समापन 15 सितंबर शाम 06 बजकर 49 मिनट पर होगा। ऐसे में इस साल ओणम का त्योहार 15 सितंबर 2024 को मनाया जाएगा।
ओणम का 10 दिनों का त्योहार
पहला दिन – अथम
दूसरा दिन – चिथिरा
तीसरा दिन – विसाकम
चौथा दिन – विसाकम
पांचवां दिन – अनिजाम
छठा दिन – थिक्रेता
सातवां दिन – मूलम
आठवां दिन – पूरादम
नवां दिन – उथिरादम
दसवां दिन – थिरुवोणम
ओणम पर्व का महत्व
दक्षिण भारत में विशेष रूप से केरल में ओणम का त्योहार राजा बलि के सालभर में एक बार थिरुवोणम नक्षत्र के दौरान अपनी प्रजा से मिलने के लिए पाताल लोक से पृथ्वी पर आने का उत्सव है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तीनों लोकों पर राजा बलि का राज था। महाबलि को अपनी प्रजा से विशेष लगाव था। उनके राज में प्रजा बहुत खुश थी। राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से सभी देवताओं को युद्ध में हराकर देव लोक सहित तीन लोक पर आधिपत्य हासिल कर लिया था। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर महा दानी और महाबली राजा बलि से तीन पग भूमि का वचन लेते हुए तीनों लोकों को तीन पग में नाप लिया था। भगवान विष्णु राजा बलि से प्रसन्न होकर उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया था। ऐसी मान्यता है कि ओणम के दिन राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने पृथ्वी लोक पर आते हैं और नगर-नगर का भ्रमण करते हैं। पृथ्वी लोक के वासी अपने राजा का स्वागत करने के लिए अपने घरों की साज सज्जा करते हैं।
ओणम से जुड़ी पौराणिक कथा
ऐसी मान्यता है कि एक समय में महाबली नाम का असुर राजा हुआ करता था। वह अपनी प्रजा के लिए किसी देवता से कम नहीं था। अन्य असुरों की तरह उसने तपोबल से कई दिव्य शक्तियां हासिल कर देवताओं के लिए मुसीबत बन गया था। शक्ति अपने साथ अहंकार भी लेकर आता है। देवताओं में किसी के भी पास महाबली को परास्त करने का सामर्थ्य नहीं था। राजा महाबली ने देवराज इंद्र को हराकर स्वर्ग लोक पर अपना अधिकार कर लिया। पराजित इंद्र की स्थिति देखकर देवमाता अदिति ने अपने पुत्र के उद्धार के लिए विष्णु की आराधना की। आराधना से प्रसन्न होकर श्री हरि प्रकट हुए और बोले – देवी आप चिंता ना करें। मैं आप के पुत्र के रूप में जन्म लेकर इंद्र को खोया राजपाट दिलाऊंगा। कुछ समय बाद माता अदिति के गर्भ से वामन के रूप में भगवान विष्णु ने अवतार लिया। उनके ब्रह्मचारी रूप को देखकर सभी देव ऋषि- मुनि आनंदित हो उठे। वहीं राजा बलि स्वर्ग पर स्थाई अधिकार प्राप्त करने के लिए अश्वमेघ यज्ञ करा रहे थे यह जानकर वामन रूप धरे श्रीहरि वहां पहुंचे। उनके तेज से यज्ञशाला प्रकाश में हो गई। महाबली ने उन्हें एक उत्तम आसन पर बिठाकर उनका सत्कार किया । और अंत में उसे भेंट मांगने के लिए कहा। तब वामन रूप में अवतरित भगवान विष्णु ने महाबली से तीन कदम रखने के लिए जगह मांगी। जिसे स्वीकार कर लिया तब भगवान विष्णु ने अपने एक कदम से भू – लोक तो दूसरे कदम में आकाश को नाप लिया अब महाबली का वचन पूरा कैसे हो तब उन्होंने भगवान के समक्ष अपना सिर झुका दिया। वामन के कदम रखते ही महाबली पाताल लोक चले गए। जब तक यह सूचना पहुंची तो हाहाकार मच गया। प्रजा के आगाध स्नेह को देखकर भगवान विष्णु ने महाबली को वरदान दिया कि वह वर्ष में एक बार तीन दिनों तक अपनी प्रजा से मिलने आ सकेंगे। माना जाता है कि तब से लेकर अब तक ओणम के अवसर पर महाबली केरल के हर घर में प्रजा जनों का हाल-चाल लेने आते हैं और उनके कष्टों को दूर करते हैं।
ओणम पर्व पर बनाए जाने वाले व्यंजन
ओणम पर्व का खेती और किसानों से गहरा संबंध है. किसान अपने फसलों की सुरक्षा और अच्छी उपज के लिए श्रावण देवता और पुष्पदेवी की आराधना करते हैं. फसल पकने की खुशी लोगों के मन में एक नई उम्मीद और विश्वास जगाती है। इन दिनों पूरे घर की विशेष साफ-सफाई की जाती है. इसके बाद लोग पूरे घर को फूलों से सजाते हैं। घरों को फूलों से सजाने का कार्यक्रम पूरे 10 दिनों तक चलता है. लोग अपने दरवाजों पर फूलों से रंगोली भी बनाते हैं। ओणम उत्सव के दौरान एक पारंपरिक दावत समारोह का आयोजन किया जाता है. इस समारोह में मीठे व्यंजनों के अलावा नौ स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं जिनमें पचड़ी काल्लम, ओल्लम, दाव, घी, सांभर, केले और पापड़ के चिप्स मुख्य रूप से बनाए जाते हैं. इन व्यंजनों को केले के पत्तों पर परोसा जाता है. लोग अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और परिवार वालों को इस पर्व की शुभकामनाएं देते हैं। ओणम भारत के सबसे रंगारंग त्योहारों में से एक है. इस पर्व की लोकप्रियता इतनी है कि केरल सरकार इसे पर्यटक त्योहार के रूप में मनाती है. ओणम पर्व के दौरान नाव रेस, नृत्य, संगीत, महाभोज जैसे कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
ओणम त्यौहार के 10 दिन :
अथं – यह पहला दिन होता है जब राजा महाबली पाताल से केरल जाने की तैयारी करते हैं।
चिथिरा – युवतियां फूलों का कालीन जिसे पूकलम (एक तरह की रंगोली) कहते हैं, बनाना शुरू करती हैं.
चोधी – पूक्क्लम में 4-5 तरह के फूलों से अगली लेयर बनाते हैं.
विशाकम – इस दिन से तरह-तरह की प्रतियोगिताएं शुरू हो जाती हैं.
अनिज्हम – नाव की रेस की तैयारी होती है.
थ्रिकेता – छुट्टियाँ शुरू हो जाती हैं.
मूलम – मंदिरों में स्पेशल पूजा शुरू हो जाती है.
पूरादम – महाबली और वामन की प्रतिमा घर में स्थापित की जाती है.
उठ्रादोम – इस दिन महाबली केरल में प्रवेश करते हैं.
थिरुवोनम – मुख्य त्यौहार.
ओणम पर्व क्यों है खास, जानिए…
* केरल में मनाया जाने वाला ओणम का 10 दिनी त्योहार हस्त नक्षत्र से शुरू होकर श्रवण नक्षत्र तक जारी रहता है।
* लोग घर के आंगन में महाबलि की मिट्टी की बनी त्रिकोणात्मक मूर्ति पर अलग-अलग फूलों से चित्र बनाते हैं, जितनी भी कलाकृतियां इन दिनों बनाई जाती हैं उसे महाबलि के चले के बाद ही हटाई जाती हैं।
* नई फसल के आने की खुशी में ओणम पर्व मनाया जाता है।
* ओणम पर्व पर राजा बलि के स्वागत के लिए घरों की आकर्षक साज-सज्जा के साथ फूलों की रंगोली और तरह-तरह के पकवान बनाकर उनको भोग अर्पित करते है।
* हर घर के सामने रंगोली सजाने और दीप जलाने की भी परंपरा हैं।
* इन दिन महिलाएं फूलों की रंगोली बनाती है, जिसे ओणमपुक्कलम कहते हैं।
* हर घर में विशेष पकवान बनाए जाते हैं। खास तौर पर चावल, गुड़ और नारियल के दूध को मिलाकर खीर बनाई जाती है।
* इसके साथ ही कई तरह की सब्जियां, पकवान आदि भी बनाया जाता है।
* इस अवसर पर मलयाली समाज के लोगों एक-दूसरे को गले मिलकर शुभकामनाएं देते हैं। साथ ही परिवार के लोग और रिश्तेदार इस परंपरा को साथ मिलकर मनाते हैं।
* इन दिनों फूलों की रंगोली को दीये की रोशनी के साथ सजाया जाता है और खीर (आऊप्रथमन) पकाई जाती है।
* ओणम के दिन नारियल के दूध व गुड़ से पायसम, केले का हलवा, नारियल चटनी, चावल के आटे को भाप में पका कर और कई तरह की सब्जियां मिलाकर अवियल, आदि बनाकर 64 प्रकार के पकवान बनाने की परंपरा है।
* केरल के पारंपरिक भोज को ओनसद्या कहा जाता है, जिसे केले के पत्ते पर परोसना शुभ माना गया है।
* केरल में 10 दिन तक चलने वाला ओणम उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
* ओणम की पूजा मंदिर नहीं बल्कि घर में होती है।
* इस दिन केरलवासी अपने परंपरागत लिबास में इस पर्व को मनाते हैं और देवता को लोक व्यंजन प्रस्तुत करते हैं।
* ओणम पर दक्षिण भारतीय युवतियां अपने घर की दहलीज को फूलों से सजाती है और राजा महाबलि को प्रसन्न करने के लिए खट्ठे-मीठे व्यंजनों को बनाती है। इन व्यंजनों में देसी स्वाद की महक होती है और केरल की परंपरा के रंग इसमें घुले हुए होते हैं। देवता को समर्पित करने के बाद इन व्यंजनों को सामूहिक भोज के रूप में ग्रहण किया जाता है।
* चूंकि यह त्योहार दक्षिण भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, इसलिए इसे उत्सव के रूप में मनाया जाता है। सुबह से ही घरों की साफ-सफाई कर दक्षिण भारतीय परिवारों ने आज राजा महाबलि की याद में तमाम तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं।
* मान्यता है कि राजा महाबलि के शासन में रोज हजारों तरह के स्वादिष्ट पकवान व व्यंजन बनाए जाते थे। चूंकि महाबलि साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने आते हैं, इसलिए उनके प्रसाद के लिए कई तरह के लजीज व्यंजनों को बनाया जाता हैं।
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