13 फरवरी को, हम भारत के इतिहास की सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में से एक, सरोजिनी नायडू की जयंती मनाते हैं। वह एक कवयित्री, एक राजनीतिक कार्यकर्ता, एक नारीवादी और एक नेता थीं जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें उनकी सुंदर और प्रेरक कविता के लिए “भारत की कोकिला” के रूप में भी जाना जाता था, जिसमें भारत की संस्कृति, विविधता और भावना का सार शामिल था। सरोजिनी नायडू एक राजनीतिक कार्यकर्ता, नारीवादी, कवयित्री और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली और भारतीय राज्य राज्यपाल नियुक्त होने वाली पहली भारतीय महिला थी| उनके जन्म दिवस को भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है| आइये जानते हैं सरोजिनी नायडू के जीवन से जुड़ी कुछ बातें और कब मनाया जाता है राष्ट्रीय महिला दिवस।
स्वतंत्रता सेनानी और भारत की कोकिला सरोजिनी नायडू के जयंती के मौके पर हर साल 13 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। महान स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू ने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। उन्होंने 12 साल की उम्र से ही कविताएं लिखने की शुरुआत की थी। नायडू ने महज 12 की उम्र में ही मैट्रिक परीक्षा पास कर ली थी। वह 16 साल की उम्र में ही हायर एजुकेशन के लिए इंग्लैंड चली गईं। वहां, उन्होंने किंग्स कॉलेज, लंदन और गिरटन कॉलेज में पढ़ाई की। उनकी शादी डॉ. गोविंद राजालु नायडू के साथ 19 साल की उम्र में हुई। उन्होंने अंग्रेजी की पढ़ाई घर पर ही की। सरोजिनी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सकी, लेकिन वह अंग्रेजी में एक प्रतिभावान रही थी।
राष्ट्रीय महिला दिवस कब मनाते हैं?
“भारत कोकिला” के नाम से मशहूर सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को हैदराबाद में हुआ था| सरोजिनी नायडू की जन्म तिथि 13 फरवरी को भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस (National Women Day) के रूप में मनाई जाती है| प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और कवयित्री सरोजिनी नायडू के सम्मान में उनकी जयंती पर यह दिवस मनाते हैं| सरोजिनी नायडू के जीवन से महिलाओं को आज भी प्रेरणा मिलती है| उन्होनें महिलाओं की शिक्षा और समाज में उन्हें हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए बहुत प्रोत्साहित किया था| इसलिए अखिल भारतीय महिला संघ ने वर्ष 2014 से सरोजिनी नायडू की 135वीं जयंती के उपलक्ष्य पर उनके जन्मदिवस को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाए जाने की शुरुआत की| इस वर्ष 2024 में सरोजिनी नायडू की 145वीं जयंती है|
कौन थीं सरोजिनी नायडू?
सरोजिनी नायडू एक राजनीतिक कार्यकर्ता, नारीवादी, कवयित्री और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली और भारतीय राज्य राज्यपाल नियुक्त होने वाली पहली भारतीय महिला थी| सरोजिनी चट्टोपाध्याय का जन्म एक बंगाली ब्राह्मण और निजाम कॉलेज, हैदराबाद के प्रिंसिपल रहे अघोरेनाथ चट्टोपाध्याय के घर हुआ| उनके पिता एक शिक्षाविद और समाज सुधारक थे और उनकी मां बंगाली कविताओं की रचना करती थीं।उन्होंने 12 साल की उम्र में मद्रास विश्वविद्यालय में प्रवेश किया और किंग्स कॉलेज, लंदन में (1895-98) और उसके बाद गिर्टन कॉलेज, कैम्ब्रिज में अध्ययन किया| सरोजिनी 1898 में भारत लौट आईं और गोविंदराजुलु नायडू से विवाह किया, और इस प्रकार वे सरोजिनी चट्टोपाध्याय से सरोजिनी नायडू बन गईं| भारत में वह औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में शामिल हो गई| शानदार वक्तृत्व कौशल के साथ धन्य, सरोजिनी नायडू ने अपने कई भाषणों में भारतीय स्वतंत्रता के कारण को बढ़ावा दिया| 1906 में, उन्होंने पूर्ववर्ती कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय सामाजिक सम्मेलन को संबोधित किया| वह 1914 में महात्मा गांधी से मिलीं और उनसे प्रेरित होकर ही वे राजनिती में सक्रिय हुई| ब्रिटिश शासन के खिलाफ गांधी के अहिंसक प्रतिरोध के आंदोलन से प्रेरित होकर, वह उनके सत्याग्रह में शामिल हुई थी| सरोजिनी नायडू भारत में असहयोग आंदोलन में भी सक्रिय भागीदार थीं। 1925 में, सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनी और कुछ साल बाद, वह अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की संस्थापक सदस्य बन गईं| 1930 में, सरोजिनी नायडू, खुरशेड नौरोजी और कमलादेवी चट्टोपाध्याय सहित कुछ अन्य महिला कार्यकर्ताओं के साथ महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में शामिल हुई| 6 अप्रैल, 1930 को गांधी की गिरफ्तारी के बाद, सरोजिनी नायडू ने इस अभियान के नए नेता के रूप में पदभार संभाला था| भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पहले गोलमेज सम्मेलन में भाग नहीं लिया था| लेकिन सरोजिनी नायडू और कुछ अन्य कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने 1931 में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया| भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए 1942 में उन्हें 21 महीने के लिए कैद किया गया था| इससे पहले भी वह कई बार जेल जा चुकी थीं| भारत ने 1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की| सरोजिनी नायडू को नव-स्वतंत्र राष्ट्र में संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) का राज्यपाल नियुक्त किया गया था| इस प्रकार वह भारत की पहली महिला राज्यपाल बनी| वह अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रही| 02 मार्च 1949 को सरोजिनी नायडू का लखनऊ में निधन हुआ|
सरोजिनी नायडू: उत्कृष्टता और सेवा का जीवन
सरोजिनी नायडू का जन्म 1879 में हैदराबाद में विद्वानों और बुद्धिजीवियों के एक बंगाली परिवार में हुआ था। वह एक प्रतिभाशाली महिला थीं, जिन्होंने शिक्षाविदों, साहित्य और भाषाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उन्होंने 12 साल की उम्र में मद्रास विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और बाद में लंदन और कैम्ब्रिज में अध्ययन किया, जहां उनकी मुलाकात प्रमुख लेखकों और विचारकों से हुई। ब्रिटेन में मताधिकार आंदोलन से प्रभावित होकर उनमें सामाजिक न्याय और महिलाओं के अधिकारों के प्रति जुनून भी विकसित हुआ।उन्होंने जाति और धर्म की बाधाओं को तोड़ते हुए 1898 में दक्षिण भारत के एक चिकित्सक डॉ. गोविंदराजुलु नायडू से शादी की। उनके चार बच्चे थे, जिनमें से एक, पद्मजा, एक प्रमुख राजनीतिज्ञ और राजनयिक भी बनीं। सरोजिनी नायडू ने अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन को उल्लेखनीय शालीनता और समर्पण के साथ संतुलित किया।।उन्होंने 1905 में अपना पहला कविता संग्रह, द गोल्डन थ्रेशोल्ड प्रकाशित किया, जिसे आलोचनात्मक प्रशंसा और पहचान मिली। उन्होंने अंग्रेजी में लिखा, लेकिन उनकी कविता भारतीय विषयों, कल्पना और लय से ओत-प्रोत थी। उन्होंने बच्चों के लिए कविताओं के साथ-साथ देशभक्तिपूर्ण और दुखद कविताएँ भी लिखीं। उनकी कुछ प्रसिद्ध कृतियों में द बर्ड ऑफ टाइम, द ब्रोकन विंग, द विजार्ड मास्क और द फेदर ऑफ द डॉन शामिल हैं। वह 1909 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुईं और महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और स्वतंत्रता संग्राम के अन्य नेताओं की करीबी सहयोगी बन गईं। उन्होंने विभिन्न आंदोलनों और अभियानों में भाग लिया, जैसे असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन और नमक मार्च। ब्रिटिश शासन की अवज्ञा के लिए उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया और जेल भेजा गया। उन्होंने महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और सामाजिक सुधार की भी वकालत की। वह 1925 में कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली भारतीय महिला बनीं और 1947 में किसी राज्य (संयुक्त प्रांत, अब उत्तर प्रदेश) की राज्यपाल बनने वाली पहली महिला बनीं। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता और संस्कृति का संदेश फैलाते हुए पूरे भारत और विदेशों में बड़े पैमाने पर यात्रा की। उन्होंने पूर्वी अफ्रीकी भारतीय कांग्रेस, गोलमेज सम्मेलन और एशियाई संबंध सम्मेलन जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत का प्रतिनिधित्व किया। वह एक करिश्माई वक्ता, एक विपुल लेखिका और एक दूरदर्शी नेता थीं, जिन्होंने लाखों लोगों का सम्मान और प्रशंसा अर्जित की। लंबे और शानदार करियर के बाद 2 मार्च, 1949 को लखनऊ में उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें 1992 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
वो भाषण जिसने सरोजिनी को प्रभावित किया
नायडू के राजनीती में कदम रखने के लिए गोपाल कृष्ण गोखले का 1906 में कलकत्ता में हुए भाषण ने काफी प्रभावित किया था। उन्होंने भारत में हो रहे महिलाओं के खिलाफ अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई थी। साथ ही उन्होंने ने भारत के स्वतंत्रता के लिए हुए आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरोजिनी नायडू पहली बार 1914 में महात्मा गांधी से मिली और उनके कार्य से प्रभावित हो गई। तभी से वह देश के आजादी के लिए मर मिटने को तैयार हो गईं। उन्हें 1925 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था।
महात्मा गांधी ने दी थी ‘भारत कोकिला’ की उपाधि
सरोजिनी नायडू 20वीं सदी की सबसे लोकप्रिय महिलाओं में से एक मानी जाती थीं. वे बचपन से ही कविताएं लिखा करती हैं. साहित्य में उनका विशेष योगदान है. 1905 में उनकी कविताओं का पहला संग्रह ‘गोल्डन थ्रेशोल्ड’ प्रकाशित हुआ. उनकी बेहतरीन लेखनी के चलते महात्मा गांधी ने उन्हें ‘भारत कोकिला’ की उपाधि दी थी. सरोजिनी नायडू ने एक कवियित्री के तौर पर कई कविताएं लिखीं, उनमें से कुछ को पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है. साहित्य में उनका योगदान पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. सरोजिनी नायडू की प्रमुख किताबों में भारतीय बुनकर, किताबिस्तान, समय का पक्षी, द फेदर ऑफ द डॉन, भारत का उपहार, पालकी ढोने वाले आदि शामिल हैं।
ब्रिटिश सरकार ने ‘केसर-ए-हिंद’ से सम्मानित किया
सरोजिनी को ब्रिटिश सरकार द्वारा 1928 में उन्हें ‘केसर-ए-हिंद’ से सम्मानित किया गया। यह मेडल उन्हें भारत में प्लेग की महामारी के दौरान उनके काम के लिए दिया गया था। लेकिन, जलियांवाला बाग हत्याकांड क्षुब्ध होकर उन्होंने ने सन्मान लौटा दिया था। भारत की कोकिला सरोजिनी ने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी खूब संघर्ष किया। वे भारत की पहली महिला राज्यपाल बनी थीं।
हार्ट अटैक से हुआ निधन
सरोजिनी को 2 मार्च 1949 को लखनऊ में हार्ट अटैक आया और उनका निधन हो गया। भारत की कोकिला सरोजिनी नायडू की 135 वीं जयंती के दिन से यानी 13 फरवरी 2014 से भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत की गई।
भारत कोकिला सरोजिनी नायडू की प्रकाशित पुस्तकें
सरोजिनी नायडू का लेखन के प्रति प्यार शुरु से ही था| उन्होंने ज्यादातर अंग्रेजी में कविता की रचना की, जिसमें आमतौर पर बच्चों की कविता, रोमांस, देशभक्ति और त्रासदी की शैलियों में लिरिकल पोएट्री होती थी| उनकी कविताओं की पहली पुस्तक, 1905 में लंदन में प्रकाशित हुई थी, जिसका शीर्षक “द गोल्डन थ्रेशोल्ड” था| सरोजिनी नायडू को एक कवयित्री के रूप में प्रशंसा 1912 में मिली, जब उनकी कविताओं की दूसरी पुस्तक, “द बर्ड ऑफ टाइम”, प्रकाशित हुई| उनकी 1927 में प्रकाशित पुस्तक, “द ब्रोकन विंग”, उनके जीवनकाल में जारी हुई कविताओं का अंतिम संग्रह था| एक कवयित्री के रूप में, सरोजिनी नायडू का बहुत सम्मान किया जाता था और उन्हें “भारत कोकिला” या “नाइटिंगेल ऑफ़ इंडिया” के रूप में जाना जाता था| उनकी सभी कविताओं का एक संग्रह, जिसमें पूर्व में अप्रकाशित कविताएं भी शामिल थीं, 1961 में मरणोपरांत प्रकाशित हुई थीं| “द फेदर ऑफ द डॉन” नामक इस पुस्तक का संपादन उनकी बेटी पद्मजा नायडू ने किया था|
सरोजिनी नायडू की जयंती कैसे मनाएं?
* सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu in Hindi) की जयंती मनाने और उनकी विरासत को श्रद्धांजलि देने के कई तरीके हैं। यहाँ कुछ सुझाव हैं:
* उनकी कविताएँ और लेख पढ़ें और साझा करें, और उनके शब्दों की सुंदरता और ज्ञान की सराहना करें।
उनके जीवन और उपलब्धियों तथा भारत के इतिहास और संस्कृति के बारे में और जानें जिसका उन्होंने प्रतिनिधित्व किया।
* उन आयोजनों और गतिविधियों में भाग लें जो महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा और सशक्तिकरण को बढ़ावा देते हैं, और उन कारणों का समर्थन करते हैं जिनका उन्होंने समर्थन किया।
* कविता, कला, संगीत या किसी अन्य माध्यम से अपनी रचनात्मकता और प्रतिभा को व्यक्त करें और भारत की संस्कृति की विविधता और समृद्धि का जश्न मनाएं।
* राष्ट्रीय महिला दिवस 2024 में उनके उदाहरण का अनुसरण करें और अपने समुदाय और देश में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करें और स्वतंत्रता, न्याय और शांति के मूल्यों को बनाए रखें।
सरोजिनी नायडू एक उल्लेखनीय महिला थीं जिन्होंने भारत के इतिहास और संस्कृति पर अमिट छाप छोड़ी। भारत कोकिला सरोजिनी नायडू ने महिलाओं के विकास में महत्वपूर्ण योगदान निभाया है. उन्होंने भारतीय समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई. आम महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया. उनका मानना था कि यदि पुरुष देश की शान है तो महिला उस देश की नीव है. वह एक कोकिला (Nightingale of India) थीं जिन्होंने भारत की महिमा और आशा का गीत गाया। वह एक ऐसी नेता थीं जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता और सम्मान के लिए लड़ाई लड़ी। वह एक नारीवादी थीं जिन्होंने महिलाओं को सशक्त बनाया और समाज का उत्थान किया।