शारदीय नवरात्रि इस साल 03 अक्टूबर दिन गुरुवार से शुरू हो रहे हैं। इस बार नवरात्र 03 से लेकर 11 अक्टूबर तक है और 12 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा। इस बार हस्त नक्षत्र और इंद्र योग अदभुत संयोग बन रहा है। आदि शक्ति नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की नौ दिन अलग-अलग पूजा होती है। इस दौरान भक्त अपनी सामर्थ्य के अनुसार व्रत रखकर देवी की पूजा करते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि 9 दिन पूरे परिवार के साथ विधि विधान से मां दुर्गा की पूजा अर्चना करने से धन धान्य की कमी नहीं होती और मां दुर्गा का परिवार पर आशीर्वाद बना रहता है। नवरात्रि के पहले दिन मंदिर में कलश स्थापना की जाती है। कलश स्थापना को केवल शुभ मुहूर्त में ही स्थापित किया जाना चाहिए। आइए जानते हैं नवरात्रि में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पूजा सामग्री और मंत्र….
नवरात्रि भारतीय हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। हिंदू धर्म के लोग होली और दीपावली की तरह नवरात्रि का त्यौहार भी बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं। नवरात्रि व्रत देवी दुर्गा को समर्पित है जिन्हें ऊर्जा और शक्ति के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ नौ रात से है जिस के उपलक्ष में हिंदू धर्म के लोग 9 दिनों का व्रत रखते हैं और देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा अर्चना करते हैं। वैसे तो देवी दुर्गा माता पार्वती का ही एक रूप मानी जाती हैं लेकिन दुर्गा सप्तशती में बताया गया है कि देवी दुर्गा का जन्म ऊर्जा के रूप में हुआ था। नवरात्रि के 9 दिनों में दुर्गा देवी के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती हैं जिनमें देवी दुर्गा के शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री आदि रूप शामिल हैं। तो आइए इस आर्टिकल के जरिए हम देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों पर चर्चा करते हैं साथ ही आपको इस साल नवरात्रि के शुभ मुहूर्त और कलश स्थापना के महत्व के बारे में भी बताते हैं।
कब से शुरू होगी शारदीय नवरात्रि 2024?
शारदीय नवरात्रि 2024 की शुरुआत 03 अक्टूबर से होगी और 12 अक्टूबर को दशहरा के साथ समाप्त होगी। नवरात्रि कुल 9 दिनों तक चलता है। प्रत्येक दिन को नवमी के रूप में मनाया जाता है।नवरात्रि में देवी दुर्गा की 9 रूपों में पूजा की जाती है। भक्त लोग इस दौरान व्रत रखते हैं और देवी की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है। पंचांग के अनुसार, वैसे तो पूरे साल में कुल 4 नवरात्रि आते हैं। जिनमें दो गुप्त, एक चैत्र नवरात्रि और एक शारदीय नवरात्रि शामिल हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, पितृपक्ष के तुरंत बाद यानी आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, इस साल 03 अक्टूबर से लेकर 12 अक्टूबर तक शारदीय नवरात्र रहने वाला है।
नवरात्रि पूजा का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महिषासुर बहुत ही अत्याचारी राक्षस था। ब्रह्मा जी से अमर रहने का वरदान मांगने के बाद उसने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। उसके अत्याचार से परेशान होकर सभी देवी-देवता स्वर्ग लोक को छोड़कर त्रिदेव के पास गए और वहां उनसे महिषासुर का वध करने को कहा। जब त्रिदेव को देवताओं के दुख का पता चला, तो उन्हें बहुत क्रोध हुआ उनकी भौएं तन गई। उसी समय उनके मुख से एक बड़ा ही तेज प्रकट हुआ जो नारी के रूप में बदल गया। तब सभी देवी-देवताओं ने देवी के उस रूप को प्रणाम करते हुए उन्हें अपना अस्त्र-शस्त्र प्रदान किया। तब देवी ने देवताओं को सताने वाले महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। माता के ललकार को सुनकर महिषासुर मां दुर्गा की तरफ युद्ध करने के लिए दौड़ा। यह युद्ध 9 दिनों तक चला। दसवें दिन माता ने नव दुर्गा का रूप धारण करके देवताओं को सताने वाले दुष्ट महिषासुर का वध कर दिया। ऐसी मान्यता है कि 9 दिनों तक देवताओं ने रोज मां दुर्गा की पूजा आराधना करके उन्हें बल प्रदान किया था। तब से नवरात्रि का पर्व संसार में प्रचलित हो गया।
नवरात्रि व्रत का महत्त्व
नवरात्रि का व्रत शुभ फलदाई होता है खासकर जब यह व्रत कलश स्थापना के साथ रखा गया हो। विधि विधान से नवरात्रि व्रत रखकर देवी दुर्गा का पूजन और दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से उपवास रखने वाले भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उनके परिवार में सुख समृद्धि आ जाती है। नवरात्रि का व्रत रखने से धन समृद्धि में वृद्धि होती है, पुत्र धन का लाभ होता है, समाज और देश दुनिया में यश कीर्ति बढ़ती है, संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है, परिवार पर आने वाले विघ्न और भी विपत्तियों का नाश हो जाता है, दुर्घटना टल जाती है और अकाल मृत्यु नहीं होती। इस तरह नवरात्रि व्रत के अनेक महत्व है इसलिए चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र में 9 दिन का व्रत जरूर रखना चाहिए और यदि आप दोनों नवरात्र में नहीं रख सकते तो किसी एक नवरात्र में यह व्रत जरूर रखना चाहिए। नवरात्रि के दिन भारत के विभिन्न राज्यों में भव्य दुर्गा पूजा का आयोजन भी किया जाता है जिनमें पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और गुजरात आदि शामिल हैं। दुर्गा पूजा का आयोजन कर देवी दुर्गा का पंडाल बनाया जाता है और इसी पांडाल में उनकी मूर्तियां स्थापित की जाती है। मूर्ति स्थापना और कलश स्थापना के बाद देवी के नौ स्वरूपों का पूजन किया जाता है और दुर्गा सप्तशती का पाठ भी किया जाता है। 9 दिन पूरे होने के बाद दशहरे के दिन पांडाल में स्थापित देवी दुर्गा की मूर्ति को जल में विसर्जन कर दिया जाता है।
नवरात्रि पर कलश स्थापना का महत्व
हिंदू धर्म के पूजा पाठ और यज्ञ अनुष्ठान में कलश स्थापना को विशेष महत्व दिया जाता है। हिंदू धर्म के शास्त्रों में कलश को सुख समृद्धि मंगल और ऐश्वर्या का प्रतीक माना गया है बिना इसकी स्थापना के बिना कोई भी यज्ञ अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता न ही कोई पूजा फलीभूत होती है। नवरात्रि का व्रत शुरू होने के दौरान भी कलश की स्थापना की जाती है ताकि नवरात्रि का व्रत और देवी दुर्गा की पूजा अर्चना फलीभूत हो जाए। कलश को स्थापना के पूर्व हल्दी कुमकुम से रंगा जाता है और इस पर स्वास्तिक बनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कलश स्थापना के समय इस पर स्वास्तिक बनाने से भगवान सूर्य विराजमान होते हैं। कलश की स्थापना के समय वरुण देवता का आह्वान किया जाता है। कलश स्थापना के पूर्व सजाया जाता है जिसके बाद बालू की विधि बनाकर उस पर स्थापित किया जाता है। कलश को स्थापना के लिए जाते समय हल्दी की गांठ सुपारी और दूब तथा जौ का इस्तेमाल किया जाता है। इन सबके अलावा रोरी रक्षा और नारियल का उपयोग भी कलश स्थापना के लिए किया जाता है। कलश के मुख पर नारियल रखते समय आम्र पत्र लगाए जाते हैं और अक्षत को रंग कर कलश में डाला जाता है। कलश की स्थापना में जौ के उपयोग की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे सृष्टि की पहली फसल माना जाता है तथा अन्य के रूप में भी इसका प्रतिनिधित्व है जो देवी अन्नपूर्णा का आवाहन करता है। हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में कहा गया है कि कलश के मुख पर भगवान विष्णु का निवास होता है जबकि इसकी गर्दन पर भगवान शंकर विराजमान होते हैं। तथा इसके कलश के मूल यानी आधार पर में ब्रह्मा जी विराजमान होते हैं और अंदर रिक्त स्थान में सभी देवगण और देवियां विराजमान होते हैं। मूर्ति विसर्जन के समय कलश के मुख पर रखे गए नारियल को जल में बहा देना चाहिए। हालांकि बहुत से लोग इस कलश को भी ब्राह्मणों को दान कर देते हैं। कलश की स्थापना नवरात्रि व्रत के लिए शुभ फलदाई होता है। अब आप समझ गए होंगे कि आखिर यह कलश स्थापना नवरात्रि के व्रत में कितना महत्वपूर्ण है अगर आप नवरात्रि का व्रत रखते हैं तो आपको कलश स्थापना जरूर करनी चाहिए।
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
पंचांग में इस साल शारदीय नवरात्रि पर घट स्थापना के कई शुभ मुहूर्त दिए गए हैं।
घट स्थापना का सबसे पहला शुभ मुहूर्त: 3 अक्टूबर, गुरुवार को सुबह 06:14 से 07:23 मिनिट तक है।
घट स्थापना के लिए दूसरा शुभ अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:47 से दोपहर 12:34 मिनिट तक रहेगा।
चौघड़िया मुहूर्त में भी कर सकते हैं कलश स्थापना
इन मुहूर्तों के अलाव चौघड़िया मुहूर्त में भी कलश स्थापना कर सकते हैं। ये है चौघड़ियां मुहूर्त की डिटेल…
– सुबह 10:42 से दोपहर 12:11 तक
– दोपहर 12:11 से 01:39 तक
– शाम 04:35 से 06:05 तक
– शाम 06:05 से 07:37 तक
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