दूध को लेकर कितने भी प्रकार के किंतु-परंतु हों, लेकिन यह सत्य है कि पूरी दुनिया में दूध का जलवा है. पीने के अलावा दूध से कई तरह के व्यंजन तैयार किए जा सकते हैं. दुनियाभर के दूध में भी गाय का दूध सर्वोपरि है. इसे शरीर के लिए अमृत समान माना गया है. यह बोन्स को तो मजबूत बनाता ही है, साथ ही इन्युनिटी को भी बढ़ाता है. गाय के दूध का सेवन डायजेशन सिस्टम को दुरुस्त रखता है तो चमकदार त्वचा (Skin) भी बनाए रहता है. भारत में तो खान-पान के साथ संस्कृति से भी जुड़ा हुआ है गाय का दूध….
दूध का इतिहास 5000 से 8000 ईसा पूर्व तक पुराना है। पुराने बरतनों पर बची रह गई दूध की खुरचन इतिहासकारों को इतिहास में इतना वापस लौटने की वजह देती है। दूध पर जितना इतिहासकारों ने लिखा है, उससे कहीं ज़्यादा लिखा है वैज्ञानिकों, डॉक्टरों और वैद्यों ने। इतिहासकारों में इस बात को लेकर बहस हो सकती है कि इंसान ने दूध पीना तभी सीख लिया था, जब वह पूरी तरह से असभ्य था या फिर उसने सभ्य होने के बाद दूध पीना सीखा। लेकिन, इस बात पर कोई बहस नहीं हो सकती कि दूध बेहद फायदेमंद होता है इंसानों के लिए। बात भारत की करें तो यहां दूध की महिमा उपनिषदों में तो मिलती ही है, चरक संहिता, अष्टांगहृदय सूत्रस्थान, भावप्रकाशनिघंटु, सुषेणनिघंटु, कैयदेवनिघंटु और राजनिघंटु जैसे प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी खूब लिखा गया है। बड़ी बात यह कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में एक दो नहीं, बल्कि लगभग आधा दर्जन प्राणियों से मिलने वाले दूध के फायदे-नुकसान भी दिए हैं। इस लेख में हम इन ग्रंथों के हिसाब से गाय के दूध से होने वाले फायदे-नुकसान तो जानेंगे ही, साथ ही इन ग्रंथों में कही गई बातों का आज के समय में कितना अर्थ बचा है, यह भी जानेंगे।
पशु पालतू बनाए गए तो दूध का स्वाद भी मिला
दूध विशेषकर गाय के दूध का विवरण ‘हरि अनंत, हरि कथा अनंता’ के समान है. माना जाता है कि मनुष्य ने जब कबीला संस्कृति से विलग होकर कृषि कार्यों में रुचि दिखाई, तब उसने कुछ जानवरों को पालतू बनाना शुरू किया तो दूध का सेवन भी शुरू हो गया. मनुष्य सालों से कई प्रकार के दूध का सेवन कर रहा है, जिनमें भैंस, गाय, बकरी, ऊंट तो हैं ही, अन्य पशुओं के दूध का भी वह रसास्वादन लेता रहा है. चूंकि गाय व बकरी का मनुष्य से जुड़ाव ज्यादा रहा है, इसलिए इनके दूध का सेवन भी वह अपनेपन से करता रहा है. भारत में गाय व उसका दूध हिंदू धर्म व संस्कृति से जुड़ा हुआ है. देश के गांवों का सामाजिक व आर्थिक ताना-बाना तो दुधारू पशुओं से जुड़ा हुआ है. अब तो बढ़ते शहरीकरण व आबादी के चलते दुधारू पशुओं को पालने का चलन कम होने लगा है, वरना हर भारतीय की एक हसरत रही है कि उसके द्वार पर गाय जरूर बंधी रहे. उसका मानना है कि यही गाय उसके लिए मोक्ष के दरवाजे खोलेगी।
आयुर्वेदिक ग्रंथों में दूध के गुणों का वर्णन
16वीं सदी में वाराणसी में भाव मिश्र हुए, जिन्हें प्राचीन भारतीय औषधि-शास्त्र का अंतिम आचार्य माना जाता है। भावप्रकाशनिघंटु उन्हीं का लिखा हुआ आयुर्वेद का ग्रंथ है। अपने ग्रंथ में वह दूध के सामान्य गुण के बारे में बताते हैं कि दूध सबके लिए शीतल तो होता ही है, जल्द से जल्द शुक्राणु बढ़ाने में भी मददगार है। इससे जीवनी शक्ति, बल और मेधा बढ़ती है। जो लोग दूध पीते हैं, उनकी जवानी ज़्यादा दिनों तक बनी रहती है। इससे आयु बढ़ती है। यह टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने वाला रसायन है। उल्टी दस्त में भी यह काम आता है और अगर किसी को सूजन, बेहोशी, चक्कर, पीलिया, एसिडिटी और हार्ट की प्रॉब्लम है, तो उनमें भी यह फायदा करता है। इसके साथ ही, बवासीर, रक्तपित्त, अतिसार, योनिरोग में भी फायदा करता है दूध। दूध केवल स्तनधारियों में ही होता है, जो उनके बच्चे पीते हैं। जब तक बच्चा अपना चारा या खाना नहीं खा सकता, तब तक वह दूध पीता है। सिर्फ इंसान ही है, जो बचपना जाने के बाद भी दूध पीता रहता है, बाकी और किसी स्तनधारी का बच्चा भोजन करने लायक होने के बाद दूध नहीं पीता। सबसे बड़ी बात यह समझने की है कि दूध एक पूरक आहार है, ना कि पूरा आहार। आयुर्वेद में आहार आधी चिकित्सा के तौर पर यूज होता है। आहार नियंत्रण से इसमें बहुत-सी बीमारियों का इलाज किया जाता है, जिसमें से दूध एक है। 16-17 साल तक तो बच्चों को दूध ज़रूर पीना चाहिए, क्योंकि उसमें ग्रोथ हार्मोन पाया जाता है। लेकिन, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, लिपिड प्रोफाइल बढ़ा हुआ हो, तो इन मामलों में फैट फ्री दूध ही लें, वो भी थोड़ा, और ना लें तो ज़्यादा अच्छा है।
दूध में पाए जाने वाले गुण
इसके बाद आते हैं दूध के ख़ास गुण। यह गुण अष्टांगहृदय नाम के ग्रंथ में मिलते हैं, जिसे वाग्भट ने लिखा था। सन 672-695 में भारत आने वाले चीनी यात्री इत्सिंग ने लिखा है कि उनके आने से भी सौ साल पहले वाग्भट ने ऐसी संहिता बनाई, जिसमें आयुर्वेद के आठों अंगों का समावेश हो गया। दूध के ख़ास गुणों के बारे में वाग्भट बताते हैं कि गाय का दूध पाचक और काफी स्वादिष्ट होता है। पित्त और वात रोग का नाश करता है। इससे देह की कांति बढ़ती है। प्रज्ञा, बुद्धि, मेधा और अंग मजबूत होते हैं। वीर्य बढ़ता है। यह ओज और सप्त धातुओं को बढ़ाता है। गाय का दूध ख़ासतौर से जीवनी शक्ति बढ़ाने वाला है। यह घाव और चोट-मोच में भी फायदा करता है। इसे पीने से महिलाओं का दूध भी बढ़ता है, लेकिन यह साफ़ होना चाहिए कि उन्हीं महिलाओं का दूध बढ़ता है, जिनमें ऑलरेडी दूध उतर रखा है। इन दिनों सिजेरियन डिलिवरी होती है, तो ढेरों महिलाओं को दूध ही नहीं उतरता। ऐसी हालत में दूध बिलकुल काम नहीं करता है।
गाय दूध में पाए जाने वाले गुण
अष्टांगहृदय में दिया है कि गाय का दूध भ्रम, मद, खांसी, दमा वगैरह को दूर करता है और पुराने बुखार, पेशाब की दिक्कतों और रक्तपित्त को नष्ट करता है। लेकिन, यह सामान्य रंग की गाय के दूध के गुण हैं। अलग-अलग रंग की गाय के दूध के वाग्भट ने अलग-अलग गुण बताए हैं। वाग्भट के मुताबिक, सफे़द गायों का दूध पित्त की समस्या दूर करता है। काली गाय का दूध वात की समस्या दूर करता है, तो लाल रंग वाली गायों का दूध कफनाशक होता है। कपिल वर्ण वाली गाय का दूध त्रिदोष नाशक होता है। रंग-बिरंगी या मिले जुले रंगों वाली गायों का दूध वात और पित्त की समस्या दूर करता है। जो गायें चितकबरी होती हैं, उनका दूध इतना ठंडा होता है कि उसे पीने से लोगों को जुकाम भी हो सकता है। वैसे गायों के रंग का प्रैक्टिकली अब कोई महत्व नहीं रह गया। आज के समय में ऐसी चीज़ों के अर्थ बदल गए हैं। वजह यह है कि अधिकतर जगहों पर डेरी का ही दूध मिलता है, तो आप यह तय नहीं कर सकते कि गाय किस रंग की है। गाय के दूध के बाकी गुणों के बारे में अपनी किताब भोजनकुतूहलम में रघुनाथसूरि कहते हैं कि जिस गाय को पहली बार बच्चा होता है, उसका दूध वात नाशक होता है। प्रौढ़ गाय के दूध से पित्त का इलाज होता है, तो बूढ़ी गाय के दूध से कफ का। और जिस गाय का बछड़ा बड़ा हो गया हो- यानी जिसे बच्चा पैदा किए काफी दिन बीत चुके हों, उसका दूध तो रसायन होता है। बच्चा होने के तुरंत बाद गाय के दूध से जो खीस बनती है, वह विभेदी और मधुर होती है और इससे जठराग्नि शांत होती है। लेकिन, इसी बारे में अपने ग्रंथ राजनिघंटु में नरहरि पंडित कहते हैं कि पहली बार प्रेग्नेंट हुई गाय के दूध में कोई गुण नहीं होता। जो गायें प्रौढ़ होती हैं, उनके दूध को सायन कहा गया है, यानी श्रेष्ठ। जो गाय बूढ़ी हो जाती हैं, उनका दूध भी दुबला हो जाता है। यह बात सही है कि गायों की नस्ल और उनके खानपान का असर उनके दूध पर पड़ता है। इन दिनों तो गायें कूड़ा-कचरा ज़्यादा खाती हैं, पॉलिथीन खाती हैं या फिर ज़्यादा दूध के लिए उनको इंजेक्शन भी लगाए जाते हैं। इसलिए अब दूध की क्वालिटी के साथ समझौता हो चुका है। ऐसे में जवान, प्रौढ़ और बूढ़ी गायों के दूध का अब कोई ज़्यादा मतलब नहीं रह गया है।
गाय के दूध में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व
गाय का दूध पौष्टिक और अमृत समान तो है ही, लेकिन यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि भौगोलिक वातावरण, चारे की उपलब्धता और क्वॉलिटी व अन्य कारणों से गाय के दूध के गुणों में फेरबदल हो सकते हैं. मोटे तौर पर पौष्टिक तत्वों की बात करें तो 100 ग्राम दूध में कैलोरी 62, प्रोटीन 3.33 ग्राम, कुल फैट 3.33 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 5.42 ग्राम, कैल्शियम 125 मिलीग्राम, सोडियम 52 मिलीग्राम, कोलेस्ट्रॉल 15 मिलीग्राम व अन्य विटामिन्स व मिनरल्स पाए जाते हैं. फूड एक्सपर्ट व न्यूट्रियन कंसलटेंट नीलांजना सिंह के अनुसार दूध का नाम लेते ही भारत में पौष्टिकता, बल और शरीरी में स्मूदनेस का आभास होने लगता है. आखिर हो भी क्यों न. दूध है ही इतना गजब, ऊपर से गाय का दूध तो सोने पर सुहागा है. इसमें आम दूध की अपेक्षा फैट कम होता है. विशेष बात यह है कि गाय का दूध पीते वक्त एक अलग ही अहसास होता है और रिसर्च कन्फर्म करते हैं कि गाय का दूध दिमाग को कूल और पॉजिटिव रखता है. गाय के दूध में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड दिमाग को क्रियाशील रखने में मदद करता है. गाय का दूध दिमाग को तेज भी करता है।
देसी गाय का दूध क्यों हैं अमृत समान।
गाय का दूध पृथ्वी पर सर्वोत्तम आहार है। उसे मृत्युलोक का अमृत कहा गया है। मनुष्य की शक्ति एवं बल को बढ़ाने वाला गाय का दूध जैसा दूसरा कोई श्रेष्ठ पदार्थ इस त्रिलोकी में नहीं है। पंचामृत बनाने में इसका उपयोग होता है। गाय का दूध पीला होता है और सोने जैसे गुणों से युक्त होता है। केवल गाय के दूध में ही विटामिन ए होता है, किसी अन्य पशु के दूध में नहीं।देसी गाय की पीठ पर मोटा सा हम्प होता है ! जिसमे सूर्यकेतु नाड़ी होती हैं, जो सूर्य की किरणों के संपर्क में आते ही अपने दूध में स्वर्ण का प्रभाव छोड़ती हैं। जिस कारण गाय के दूध में स्वर्ण तत्व समा जाते हैं। देसी गाय का दूध पीने से कभी भी कैंसर का रोग नहीं होगा। यदि गाय कोई विषैला पदार्थ खा जाती है तो उसका प्रभाव उसके दूध में नहीं आता। गाय के शरीर में सामान्य विषों को पचाने की अदभुत क्षमता है। ये ज़हर देसी गाय के गले के नीचे लटकने वाले मांस में ही रह जाता हैं। एक शोध किया गया जिस में हर रोज़ देसी गाय को और अमेरिकन गाय को भोजन में थोड़ा थोड़ा ज़हर दिया गया , और जब उनका दूध निकाला गया तो देशी गाय के दूध में कोई भी ज़हरीला तत्व नहीं मिला और अमेरिकन गाय में वही ज़हर पाया गया जो उसको खिलाया गया।
दूध तो घर में आ गया, अब उसे पकाने की शास्त्रीय विधि क्या हो?
कश्मीर के राजसी खानदान के विद्वान और आयुर्वेद के महाज्ञाता नरहरि पंडित ने अपने ग्रंथ राजनिघंटु में इसका तरीका बताया है। वह कहते हैं कि कच्चा दूध रसवहा शिराओं में रुकावट पैदा करने वाला और गुरु होता है। इसे ठीक से पकाएं तो यह भारी बन जाता है। बहुत अधिक पकाने पर यह गरिष्ठ हो जाता है। नरहरि पंडित की सलाह है कि दूध में चौथा हिस्सा पानी डालकर इसे उबालना चाहिए। ऐसा दूध सभी रोगों को नष्ट करने वाला, बलकारक, पुष्टिकारक और वीर्य बढ़ाने वाला होता है। वहीं, बाकी विद्वान कहते हैं कि दूध में समान भाग पानी मिलाकर तब तक पकाएं, जब तक पानी उसमें से उड़ ना जाए। लेकिन डॉक्टर कहते हैं कि यह बात हजम नहीं होती। इसकी वजह यह है कि दूध में तो पहले से तीन चौथाई से ज़्यादा पानी होता है। भारी दूध तो सिर्फ भैंस का होता है, क्योंकि उसके दूध में वसा ज़्यादा होती है। गाय का दूध हल्का होता है, तो उसमें पानी मिलाने की ज़रूरत नहीं होती।
ओज को बढ़ाने में बेहद मददगार है गाय का दूध
आयुर्वेद में गाय के दूध की जबर्दस्त महिमा है. करीब ढाई हजार वर्ष पूर्व लिखे गए आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में तो ‘दुग्धवर्ग:’ नाम से पूरा अध्याय है और उन सभी प्रकार के दूध की विशेषताएं विस्तार से गिनाई गई हैं जिनका सेवन मनुष्य कर सकता है. यह अध्याय एक तरह से दूध का शोधपत्र है, जो बताता है कि इस ग्रंथ के लिखने से पूर्व ही भारत देश में दूध का सेवन हो रहा था. इस ग्रंथ में गाय के दूध की 10 विशेषताओं का विस्तार से वर्णन है और इस दूध को जीवन देने वाले द्रव्यों से भरपूर कहा गया है. ग्रंथ के अनुसार गाय का दूध मधुर, शीतल, स्वादिष्ट, घना, चिकना, चिपचिपा व मन को प्रसन्न करने वाला होता है. इसका सेवन शरीर में ओज (Vigour) को बढ़ाता है।
मां के दूध के बाद गाय का दूध शिशुओं के लिए सबसे अधिक लाभकारी है.
विशेष बात यह है कि आधुनिक काल में गाय के दूध का सेवन बेहद तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि यह शरीर में बल तो देता है, लेकिन फैट पैदा नहीं करता, जैसा अमूमन अन्य दुधारू पशुओं के दूध करते हैं. भारतीय जड़ी-बूटियों, फलों व सब्जियों पर व्यापक रिसर्च करने वाले जाने-माने आयुर्वेद विशेषज्ञ मानते हैं कि मां के दूध के बाद गाय का दूध शिशुओं के लिए सबसे अधिक लाभकारी है. गाय का दूध वात और पित्त दोष को शांत करता है. इसमें जीवन शक्ति बढ़ाने वाले और बुढ़ापे में होने वाले रोगों को दूर करने की शक्ति होती है।
दूध को कब पिएं कि उसका अधिक से अधिक फायदा मिल सके?
नरहरि पंडित कहते हैं कि दोपहर बारह बजे से पहले अगर दूध पीते हैं तो यह जठराग्नि बढ़ा देता है। दोपहर में अगर दूध पिएं तो इससे बल बढ़ता है, चेहरे पर लाली आती है। बचपन में पिया दूध जठराग्नि बढ़ाता है, जवानी में पिया दूध बल बढ़ाता है, तो बुढ़ापे में पिया दूध वीर्य बढ़ाता है। रात में अगर कोई दूध पीता है, तो ढेरों दोष जाते रहते हैं। उबालने के बाद अगर दूध ठंडा करके पिया जाए तो पित्त की समस्याएं जाती रहती हैं। वहीं, गर्म दूध कफ की समस्या निपटाता है। बिना पकाया हुआ ठंडा दूध त्रिदोषों को बढ़ा देता है। कच्चा और शीतल दूध त्रिदोष-वर्धक होता है, लेकिन धार से तुरंत निकले दूध को अमृत कहा गया है। कहते हैं कि दूध को बिना उबाले कभी नहीं पीना चाहिए। इसी प्रकार दूध को कभी भी नमक के साथ नहीं लेना चाहिए। आटे से बनने वाली चीज़ों, अचार, कसैली चीज़ों, मूंग, तोरी, कंद और फलों के साथ दूध नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इन सबके साथ दूध का मेल दोषकारक है। लेकिन एक बात बिलकुल साफ़ होनी चाहिए कि दूध जिस भी स्तनधारी का है, वह उसी के बच्चे के लिए ही है और सबसे ज़्यादा फायदा भी उसी को करता है। वैसे दूध संपूर्ण आहार नहीं है और ज़रूरी नहीं कि हर किसी को यह फायदा ही करे। आयुर्वेद में बल, वीर्य, त्रिदोष, वात, चोट मोच, भ्रम या जुकाम जैसी चीज़ें जिस तरह से दूध से जुड़ी बताई हैं, मेडिकल साइंस में ऐसी कोई चीज़ नहीं मानी जाती।
हर वर्ग और उम्र के लिए लाभकारी है यह दूध
गाय के दूध में कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा होती है, इसलिए यह बोन्स (हड्डियों) को सही ढंग से विकसित करता है साथ ही उन्हें मजबूत भी बनाता है. गाय का दूध शरीर की इम्यून पॉवर को भी बढ़ाता है, इसीलिए हर वर्ग और उम्र के व्यक्ति को दूध पीने की सलाह दी जाती है. गाय का दूध डायजेशन सिस्टम को भी सुचारू बनाए रखता है. उसका कारण यह है कि इसमें विटामिन बी-12 होता है, जो पाचन सिस्टम के लिए लाभकारी है. गाय के दूध में विटामिन ए भी पाया जाता है जो आंखों की रोशनी को ठीक रखने में मदद करता है. चूंकि गाय के दूध में फैट की मात्रा कम होती है, इसलिए यह हार्ट के लिए भी लाभकारी है. गाय के दूध में रेटिनॉल (Retinol) पाया जाता है. यह विटामिन ए का एक सप्लीमेंट है जो स्कीन का ग्लो बढ़ाता है, इससे चेहरा हमेशा दमकता दिखाई देता है. गाय के दूध में कोई साइड इफेक्ट नहीं है, लेकिन ज्यादा मात्रा में सेवन करने से यह पेट खराब कर सकता है. कुछ लोगों को गाय के दूध से एलर्जी की परेशानी भी हो जाती है।
गाय के दूध को संपूर्ण आहार माना जाता है. गाय का दूध अत्यंत स्वादिष्ट, स्निग्ध, मुलायम, चिकनाई से युक्त, मधुर, शीतल, रूचिकर, बुद्धिवर्धक, बलवर्धक, स्मृतिवर्धक, जीवनदायक, रक्तवर्धक, वाजीकारक, आयुष्यकारक एवं सर्वरोग को हरनेवाला है। गाय का दूध, जीर्णज्वर, मानसिक रोगों, मूर्च्छा, भ्रम, संग्रहणी, पांडुरोग, दाह, तृषा, हृदयरोग, शूल, गुल्म, रक्तपित्त, योनिरोग आदि में श्रेष्ठ है। अपने गुणों की वजह से गाय का दूध हर उम्र के लोगों को पीने की सलाह दी जाती है. शरीर के लिए अमृत माना जाने वाला गाय का दूध बेहद लाभकारी होता है।