गुरु नानक साहिब जो सिक्ख समाज के संस्थापक कहलाते हैं. उनके जन्म दिवस को गुरु नानक जयंती के रूप में प्रति वर्ष सिक्ख समाज बड़े उत्साह से मनाता हैं. यह पर्व पाकिस्तान में भी उत्साह से मनाया जाता हैं. गुरुनानक साहिब का जन्म स्थान वर्तमान समय में पाकिस्तान में हैं. ऐसे तो यह सिक्ख समाज के गुरु कहे जाते हैं, लेकिन इन्हें किसी धर्म जाति ने बांध कर नहीं रखा था. ये इसके खिलाफ थे. इनका मनाना था, ईश्वर कण- कण में व्याप्त हैं. जहाँ हाथ रखोगे वहीँ ईश्वर हैं. इनके अनमोल विचारों में सभी धर्मो का आधार था. इसी कारण इन्हें एक गुरु के रूप में सभी धर्मो द्वारा पूजा जाता हैं।
गुरु नानक जयंती सिख धर्म के लोगों के लिए बहुत ही लोकप्रिय पर्व है, जिसे हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. गुरु नानक साहब को सिखों का पहला गुरु माना जाता है. इस साल गुरु नानक जयंती शुक्रवार, 15 नवंबर 2024 को मनाया जा रहा है. इस वर्ष नानक देव जी की 555 वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी. गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा को पाकिस्तान में स्थित ननकाना साहिब में हुआ था। गुरु नानक देव की जयंती को गुरु पर्व और प्रकाश पर्व के रूप में मनाई जाती है। गुरु पर्व पर सभी गुरुद्वारों में भजन, कीर्तन होता है और प्रभात फेरियां भी निकाली जाती हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि कौन थे गुरुनानक देव और कैसे मनाई जाती है इनकी जयंती…
गुरु नानक देव के जीवन से जुड़ी जानकारी
जब गुरु नानक देव का जन्म हुआ था, तब कहा जाता हैं वह प्रसूति ग्रह प्रकाशवान हो गया था. इनका धार्मिक ज्ञान इस तरह प्रबल था, कि इनके शिक्षक ने इनके आगे हार मान ली थी।
जन्म – 15 अप्रैल 1469
पूण्यतिथि – कार्तिकी पूर्णिमा
जन्मस्थान – तलवंडी ननकाना पाकिस्तान
मृत्यु – 22 सितंबर 1539
मृत्यु स्थान – करतारपुर
स्मारक समाधी – करतारपुर
पिता का नाम – कल्यानचंद मेहता
माता का नाम – तृप्ता देवी
पत्नी का नाम – सुलक्खनी गुरदास पुर की रहवासी
शादी तारीख – 1487
बच्चे – श्रीचंद, लक्ष्मीदास
भाई/बहन – बहन बेबे नानकी
प्रसिद्धी – प्रथम सिक्ख गुरु
रचनायें – गुरु ग्रन्थ साहेब, गुरबाणी
गुरु का नाम – गुरु अंगद
शिष्य के नाम – मरदाना, लहना, बाला एवं रामदास
गुरु नानक जयंती 2024 में कब हैं?
यह जयंती कार्तिक मास की पूर्णिमा को बड़े उत्साह से पुरे देश में मनाई जाती हैं. इस दिन प्रभात फेरी निकाली जाती हैं. ढोल ढमाकों के साथ पूरा सिक्ख समाज इसे मनाता हैं. जश्न कई दिनों पहले से शुरू हो जाते हैं कीर्तन होते हैं, लंगर किये जाते हैं. गरीबों के लिए दान दिया जाता हैं. सबसे महत्वपूर्ण यह जयंती घर में एक परिवार के साथ नहीं पुरे समाज एवम शहर के साथ हर्षोल्लास से मनाई जाती हैं. इस वर्ष गुरुनानक जयंती 15 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी।
कैसे मनाई जाती है गुरु नानक जयंती?
गुरु नानक जयंती खुशी के साथ मनाया जाने वाला तीन दिवसीय त्योहार है। गुरुद्वारों में अखंड पाठ का आयोजन किया जाता है। अखंड पाठ एक ऐसी प्रथा है जिसमें सिख समुदाय की आध्यात्मिक पुस्तक को 48 घंटे तक लगातार पढ़ा जाता है। इस अनमोल पर्व की पूर्व संध्या पर लोग पंज प्यारे के नेतृत्व में जुलूस निकालेंगे। सिख ध्वज को जुलूस में ले जाया जाएगा, जो पंजाब राज्य भर में आयोजित किया जाता है। त्योहार के दिन, लोग सुबह-सुबह आसा-दी-वर गाएंगे। गुरुद्वारों में पुजारियों द्वारा कविता पाठ किया जाएगा। दोपहर में लंगर तैयार किया जाता है. दोस्त, परिवार और रिश्तेदार इस खास कम्युनिटी लंच को एक साथ लेंगे। इस विशेष अवसर पर भक्तों द्वारा पवित्र गीत गाये जाएंगे।
ननकाना साहिब में उत्सव समारोह
गुरु नानक की जन्मस्थली ननकाना साहिब में यह उत्सव बेहद खास होगा। प्रबंध समिति द्वारा विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे और आशीर्वाद लेने के लिए दुनिया भर के भक्त इसमें शामिल होंगे। स्वयंसेवकों द्वारा भक्तों को लंगर परोसा जाता है। इस महान आयोजन में शामिल होने वाले लोगों को कराह प्रसाद भी बांटा जाता है। आध्यात्मिक संगीत और कीर्तन से वातावरण में खुशहाली बनी रहेगी। त्योहार के भोजन परोसने के बाद, एक आम प्रार्थना सत्र का आयोजन किया जाता है।
एक वैश्विक उत्सव है गुरु नानक जयंती
गुरु नानक जयंती यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा जैसे अन्य देशों में मनाई जाती है। समुदाय के सदस्य विशेष प्रार्थना करने और गुरु नानक की महान शिक्षाओं को श्रद्धांजलि देने के लिए निकटतम गुरुद्वारों का दौरा करेंगे।
गुरु नानक जी का जीवन परिचय
उस समय की बात करते हैं, जब चौदहवीं शताब्दी में भारत में अन्धविश्वास , छुआछूत, भेदभाव अपने चरम पर था। धर्म और आस्था के नाम पर समाज में बड़ा प्रपंच फैला हुआ था। गरीब दबे कुचले लोग अनेक आडम्बरों का शिकार होकर डर के साथ अपने जीवन का निर्वाह का रहे थें। उन्हें लगने लगा था कि भगवान सिर्फ धनी और उच्च वर्ग का ही संरक्षक है। धर्म के नाम पर लोग भोली और सरल जनता को कर्मकांडों के प्रति फैली हुई भ्रांतियों के मायाजाल में फँसाकर अपना मलतब साध रहे थें। और दूसरी तरफ़ तुर्क और मंगोलों का आगमन भी हो रहा था, जिनकी कट्टरता मानवता का विनाश करने के लिए आतुर थीं। ऐसे में मानव को सही राह दिखाने और अनाचार का अंत करने के उद्देश्य से साल 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पाकिस्तान (पंजाब) में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी (ननकाना साहब) नामक गॉंव में गुरु नानक देवजी ने जन्म लिया। इस दिन को काफी उल्लास के साथ मनाया जाता है। कहा जाता है कि, जब नानकजी का जन्म हुआ तो बच्चा जनाने वाली अंधी दाई की आँखें लौट आई थीं और तब उस दाई ने उनके परिवर को कहा था कि “कोई परमात्मा का रूप” आया है। कुछ विद्वानों का मत है कि नानक शब्द का अर्थ, ‘नान्यक’ अर्थात अद्वितीय होता है। इनके पिता मेहता कल्याण दास बेदी (मेहता कालू) और माता तृप्ता जी थे । इन्हें अपनी बहन नानकी से काफी कुछ सीखने को मिला। 16 वर्ष की आयु में ही इनका विवाह सुलक्खनी से हो गया। इनके दो पुत्र श्रीचंद और लख्मी चंद थे। इन दोनों बच्चों के जन्म के कुछ समय बाद ही दिव्य विचारों से धन्य गुरु ने, “ईश्वर का वास्तविक संदेश” फैलाने के लिए दिव्य आह्वान को सुना और 30 वर्ष की आयु में इस संदेश को फैलाने के लिए निकल पड़े। इन्होंने पांच लंबी यात्राएं की। इस यात्रा में मरदाना और बाला भी उनके साथ गए। इन यात्राओं को पंजाबी में “उदासियाँ”(अध्यात्मिक यात्रा) कहा जाता है। अपनी पाँच उदासियों के दौरान गुरु नानक ने 28,000 किमी की पदयात्रा की। इन्हें मोरक्को के प्रसिद्ध खोजकर्ता इब्न बतूता के बाद दूसरे सबसे अधिक यात्रा करने वाले व्यक्ति के रूप में पहचाना जाता है। वर्ष 1499 से 1509 ईस्वी के बीच गुरु साहिब ने अपनी पहली यात्रा सय्यदपुर (एमिनाबाद) से आरंभ की। पहली उदासी में तालुम्बा, कुरुक्षेत्र, पानीपत, तलवंडी, पेहोवा, कुरुक्षेत्र, दिल्ली, हरिद्वार, गोरख मत्ता, बनारस, गया, बंगाल, कामरूप (आसाम), सिलहट, ढाका और जगन्नाथ पूरी आदि स्थानों पर गए। जगन्नाथ पुरी के मंदिर में उन्होंने भगवान जगन्नाथ विष्णु की आरती की और भक्तों को आरती का वास्तविक अर्थ समझाया और कहा,”ईश्वर मानव मन में निवास करता है, फ़िर बाहर की आरती करने से क्या लाभ।” पुरी से भोपाल, चंदेरी, आगरा और गुड़गांव होते हुए वे पंजाब लौट आए। इन्होंने अपनी यात्राओं के दौरान हिंदू, बौद्ध और नाथ पंथियों को प्रभावित किया तो कई जगहों पर लोगों के अंधविश्वास को तोड़कर उन्हें सत्य का मार्ग दिखाया। उनकी वाणी का ही प्रभाव था कि गोरकखमत्ता का नाम बदलकर नानकमत्ता कर दिया गया। यह भी कहा जाता है कि यहां 1510 ई में, उनकी चैतन्य प्रभु से मुलाकात हुई थी। घरेलू जीवन का नेतृत्व करने के कुछ समय बाद, गुरु नानक देव जी अपनी दूसरी उदासी पर चल पडे। जो 1510-1515 ईस्वी के बीच मानी जाती है। इस बार उन्होंने सिरसा, बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर, अजमेर, चित्तौड़, उज्जैन, अबू परबत, इंदौर, हैदराबाद, गोलकुंडा, बीदर और रामेश्वर की यात्रा की। आबू पर्वत के सुंदर जैन मंदिर में वह जैन संतों से मिले। उन्होंने सभी धर्म के लोगों को ईश्वर की महिमा का बखान और नाम का जाप करने के लिए प्रेरित किया। कोचीन, गुजरात, द्वारका, सिंध, बहावलपुर और मुल्तान से होते हुए गुरु नानक जी पंजाब वापस आ गए। इस यात्रा में लगभग 5 साल का समय लगा।
अपनी तीसरी उदासी जिसका कार्यकाल लगभग 1515-17 ईस्वी माना जाता है, उसमें गुरु नानक जी ने भारत के उत्तरी भागों की यात्रा की। वे कांगड़ा, चंबा, मंडी नादौन, बिलासपुर, कश्मीर की घाटी, कैलाश पर्वत, कुल्लू, मणिकरण, नेपाल (काठमांडू), चुंगथांग (सिक्किम) ल्हासा (तिब्बत), और मान सरोवर झील पर गए। सिक्किम और अरुणचाल प्रदेश के क्षेत्रों में सन्यासी को लामा कहने की परम्परा है। आज भी यहाँ लोग श्रद्धा भाव से नानक लामा की साधना करते हैं। इस दौरान वे कई योगियों से भी मिले। उन्होंने उनसे कहा, “एक गुणवान व्यक्ति गृहस्थ जीवन जीते हुए भी भगवान को प्राप्त कर सकता है, इसलिए घर छोड़ने और जंगल में गहन तपस्या करने का कोई लाभ नहीं है।“ उन्होंने अमरनाथ, पहलगांव, मटन, अनंतनाग, श्रीनगर और बारामूला की यात्रा की। 1517-21 ईस्वी में की चौथी उदासी में गुरु नानक जी मक्का, मदीना और बगदाद गए। उन्होंने वहाँ मुस्लिम संप्रदाय के लोगों को बताया कि “अल्लाह या ईश्वर सर्वव्यापी है।“ ईरान, काबुल और पेशावर होते हुए गुरु साहिब सैयदपुर आ आए। जब वे वहां रुके हुए थें, तो बाबर ने कस्बे पर हमला कर दिया। सैकड़ों लोगों को कैदी बनाया गया। इन कैदियों में गुरु नानक देव जी भी थे, लेकिन गुरु जी के व्यक्तित्व, त्यागमई जीवन और शिक्षाओं से प्रभावित होकर, बाबर ने उन्हें और उनके कहने पर सैकड़ों अन्य कैदियों को मुक्त कर दिया। इसके बाद 1521-22 ईस्वी में गुरु नानक देव जी ने पांचवीं उदासी पंजाब प्रांत के भीतर की थी। हालाँकि गुरु नानक जी करतारपुर में बस गए थे, फिर भी वे करतारपुर के आसपास 100 से 200 मील के दायरे में पाकपट्टन, दीपालपुर, सियालकोट, कसूर, लाहौर और झंग आदि स्थानो पर जाकर ईश्वर के नाम का प्रचार करते रहें। इनमें से कई जगहों पर लोग गुरु के अनुयायी बन गए और उन्होंने उनके सम्मान में गुरुद्वारों की स्थापना भी की। उन्होंने कभी भी किसी धर्म की खिलाफत नहीं की, लेकिन कट्टरपंथ को नकारते हुए अपने उपदेशों से लोगों को प्रभावित करते रहे। करतारपुर में, उन्होंने संगत और पंगत (एक पंक्ति में बैठे अमीर-गरीब, उच्च- निम्न लोगों द्वारा लंगर खाना) की परंपरा स्थापित की। वह प्रतिदिन सुबह और शाम संगतो को अध्यात्मिक प्रवचन देते थें। ज्योति ज्योत(मृत्यु) समाने से पहले उन्होंने अपने एक सच्चे भक्त भाई लहिना को उत्तराधिकारी नियुक्त किया और इस तरह गुरु परंपरा को जन्म दिया।
गुरु नानक देव जी के जीवन प्रसंग मनुष्य को सत्यता का बोध कराते हुए सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। जैसे जब गुरु नानकजी कुछ बड़े हुए तो पिता कालू मेहता ने सोचा, अब इनका यज्ञोपवीत संस्कार कर देना चाहिए। उपनयन या जनेऊ पहनने के संस्कार को व्यक्ति का दूसरा जन्म कहते हैं। तब नानक जी ने जनेऊ पहनाने वाले पंडित जी से कहा कि,”यदि आपके पास ऐसा जनेऊ है, जिसमे दया की कपास हो, संतोष का सूत हो, संयम की गांठ हो और सच्चाई की पूरन हो, तो मुझे पहना दीजिए। इस प्रकार का जनेऊ न टूटता है, न गंदा होता है, न जलता है, न नष्ट होता है”। नानकजी को ये बातें सुनकर सभी को लगा जैसे उन्हें आज ज्ञान का नया प्रकाश प्राप्त हुआ है।
एक अन्य प्रेरक प्रसंग के अनुसार, गुरु नानक देव जी ने एक काज़ी को समझाते हए कहा कि “एक सच्चे मुसलमान की पहली नमाज उसकी सच्चाई है, ईमानदारी की कमाई, उसकी दूसरी नमाज है, खुदा की बंदगी, तीसरी नमाज है, मन को पवित्र रखना, उसकी चौथी नमाज है। और सारे संसार का भला चाहना उसकी पांचवीं नमाज है । जब एक दिन नानक देव जी ने सेठ दुनीचंद से कहा-” मैं तुम्हें अपनी एक सुई देता हूं। इसे तुम अपने पास रख लो। जब तुम और मैं परलोक पहुंच जाएंगे तो वहां मैं यह सुई तुमसे वापस ले लूंगा।” उनकी बात सुनकर दुनीचंद बोला-“गुरुजी जब मैं मरूंगा, तो मेरी आत्मा के सिवा, परलोक में कुछ भी नहीं जाएगा। फिर आपकी सुई भला मैं कैसे वहां ले जाऊंगा?” तब उन्होंने जवाब दिया कि, “जब तुम स्वयं कहते हो कि तुम यहाँ से एक छोटी सी सुई भी अपने साथ नहीं ले जा सकते तो अपने धन का इतना मान क्यों करते हो ?”इसलिए अपने धन का सदुपयोग करते हुए इसे लोक-कल्याण के कामों में लगाओ। जहाँ एक प्रसंग में गुरु नानक देव जी ने इबादत का सच्चा सबक दिया तो वहीं दूसरी घटना के माध्यम से दुनियावी चीजों को लेकर अहंकार न करने की भी सलाह दीं है।
जब गुरु नानक जी सय्यदपुर पहुँचे थें तो उनकी मुलाकात एक स्थानीय बढ़ई लालो से हुई थीं। बहुत गरीब होने के बावजूद, उन्होंने गुरु नानक जी और भाई मरदाना को अपने घर में अपने साथ रहने के लिए कहा। और जब यह बात सय्यदपुर के धनी व्यक्ति मलिक भागो को पता चली तो उसने गुरु नानक जी से पूछा कि “उन्होंने लालो जैसे गरीब व्यक्ति के साथ रहने का विकल्प क्यों चुना जबकि वह उनके साथ रहने का विकल्प चुन सकते थे?” तब गुरु नानक ने एक हाथ में लालो की बनाई रोटियां और दूसरे में मलिक द्वारा दी गई रोटियों को पकड़कर निचोड़ दिया। लालो की रोटी से दूध निकल गया जबकि मलिक की रोटी से खून बह गया। गुरु नानक देव जी ने मलिक को समझाते हुए कहा कि,”लालो की रोटी प्यार और ईमानदारी की आय से बनाई गई थी और तुम्हारी रोटी दूसरों का शोषण करके बनाई गई थी। इस तरह उन्होंने मेहनत की कमाई खाने का उपदेश लोगों को दिया।
गुरु नानक देव जी ने आध्यात्मिक और धार्मिक रूप से उलझे सामान्य जन को ‘नाम जपो , कीरत करो और वंड चखो’ का महामंत्र प्रदान किया। अर्थात प्रतिदिन ईश्वर का नाम जपो, मेहनत करके ईमानदारी से कमाओ और अर्जित की गई वस्तुओं का सबके साथ मिलकर उपभोग करो। गुरु नानक देव जी ने ही सिखी(गुरु-शिष्य) की स्थापना की थीं। पर सिख धर्म के विराट रूप का उदय गुरु गोबिंद सिंह जी ने किया था। वास्तव में गुरु का संसार में आना केवल मनुष्य को इस संसार रूपी भवसागर से पार कराना है। अगर मनुष्य उनके दिए गए सन्देश को अपने जीवन में उतार ले तो समाज में हिंसा, लड़ाई-झगड़े, ऊंच-नीच आदि भेदभाव समाप्त हो जायेंगे।
गुरु नानक देव जी को संस्कृत, अरबी, फ़ारसी, पंजाबी आदि अनेक भाषाओं का ज्ञान था। वे संगीत के भी ज्ञाता थें, और काव्य रचना द्वारा अपने उपदेश प्रकट करने में समर्थ थें। उनकी रचनाओं में सिधगोसाटि, ओंकार, बारहमासा और आसा दी वार आदि शामिल है। नानक ने सर्वशक्तिमान रब का स्मरण करते हुए लिखा हैं, “यह जगत निश्चित मेरा है, पर तू ही इसका अकेला मालिक है, तू ही इसे बनाता और नष्ट करता है। सारे सुख-दुख तेरे ही हुक्म से आते और जाते हैं।”
गुरु नानक देव जी की महिमा को शब्दों के दायरे तक सीमित नहीं किया जा सकता है। जिस तरह श्रीकृष्ण की बाँसुरी का जादू सिर्फ वृंदावन को प्रभावित नहीं करता, बल्कि देश से बाहर भी उनके कई भक्त है। उसी तरह नानक जी को भी दुनिया परमात्मा का रूप मानती है। हालाँकि कई विद्वानों ने उन्हें सिखों का प्रथम गुरु मान लिया है, पर उनकी यात्राएँ यह स्पष्ट करती है कि गुरु नानक देव जी केवल पंजाब या पंजाबियों के नहीं है। बाबा नानक सब का सांझा है। हिंदू हो चाहे मुसलमान, सिख हो चाहे ईसाई सब मानवता से जुड़े हुए हैं। हमेशा से ही सम्पूर्ण अखंड राष्ट्र उनके लिए अपना था और वे पूर्ण राष्ट्र और मानवता के सुधार के लिए प्रयत्नशील रहे। वे ऐसे दिव्य महापुरुष थें, जिन्होंने अज्ञान और आडम्बर की धुंध और अँधेरे को हटाते हुए हिन्दू और मुसलमान सभी के जीवन पथ को अवलोकित किया। उनके जीवन की विलक्षण घटनाओं को केवल चमत्कार के रूप में देखने की अपेक्षा उनके पीछे छुपे गहरे अर्थो व संकेतों को ग्रहण करने की आवश्यकता है। उन्होंने लोगों को बताया है, “हमें सदा उस ईश्वर का गुणगान करते रहना चाहिए, जिसकी प्राप्ति हमें सतगुरु के द्वारा ही होती है।“ श्री गुरु नानक देव जी की जन्म जयंती पर हम उनके उपदेशों को श्रद्धा पूर्वक जीवन में ग्रहण कर सकें, ऐसी उस सच्चे पातशाह से अरदास है।
”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”