ईद-ए-मिलाद या ईद-ए-मिलाद उन नबी का दिन इस्लाम जगत में बड़ी अक़ीदत के साथ मनाया जाता है। इस साल ईद-ए-मिलाद का पर्व 16 सितंबर को मनाया जा रहा है। यह इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार तीसरे महीने में दुनिया भर में मनाई जाती है. भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और उपमहाद्वीप के अन्य हिस्सों में आज ईद-ए-मिलाद-उन-नबी मनाई जा रही है।
ईद-ए-मिलाद या ईद-ए-मिलाद उन नबी का दिन इस्लाम जगत में बड़ी अक़ीदत के साथ मनाया जाता है। मान जाता है कि इस दिन ही इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद का जन्म हुआ था, और इसी दिन उनका इंतकाल भी हुआ था। इसलिए इस दिन को बारावफात के नाम से भी जाना जाता है। ईद-ए-मिलाद के तौर पर मनाया जाने वाला, मिलाद-उन-नबी यानि पैगम्बर मुहम्मद का जन्मदिन इस साल 2024 में 16 सितंबर को मनाया जा रहा है। यह दिन इस्लाम धर्म के संस्थापक प्रोफेट मोहम्मद की पैदाइश और उनके इस दुनिया से रुखसत होने का दिन है। अरबी भाषा में मौलिद शब्द का तात्पर्य जन्म से है और मौलिद उन नबी का मतलब हजरत मोहम्मद का जन्मदिन है। उनके इसी दिन रूख्सत (पर्दा) फरमाने के कारण इसे बारावफात भी कहा जाता है जहाँ बारा का मतलब है 12 और वफात का अर्थ है इंतकाल। इस्लाम को मानने वाले अलग-अलग फिरकों और समुदाय के लोग इस त्योहार को अलग-अलग तरह से मनाते हैं। आइए जानते हैं ईद-ए-मिलाद पर्व के रिवाज़ और इतिहास के बारे में….
ईद मिलादुन्नबी के बारे में जानकारी
नाम : ईद मिलादुन्नबी, ईद-ए-मिलाद/बारावफात
इस साल : सोमवार, 16 सितम्बर 2024 (सम्भावित)
ख़ास बात : पैगंबर मोहम्मद के जन्म और रूख्सत का दिन
मिलाद-उन-नबी कब मनाया जाता है?
मिलादुन्नबी (मिलाद-उन-नबी) यानि पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन का त्यौहार हर साल इस्लामिक कैलेंडर हिजरी के अनुसार यह दिन रबी अल-अव्वल महीने के 12वें दिन पड़ता है। 2024 में 12 रवि उल अव्वल या बारावफात 16 सितंबर को सोमवार के दिन है, इसलिए इसी दिन ईद मिलाद उन-नबी (मिलादुन्नबी) मनाया जाएगा। इस्लामिक केलेंडर चाँद के अनुसार तय किया जाता है इसलिए यह तारीख आगे-पीछे भी हो सकती है। इस दिन भारत सरकार का राजपत्रित अवकाश (Gazetted Holidays) भी होता है। सुन्नी और शिया इस्लाम में इस दिन को लेकर काफी विवाद है सुन्नी मुसलमान इस दिन को रवि अव्वल के 12 दिन मनाते हैं तो वही शिया इस्लाम इस दिन को रवि अव्वल के 17वें दिन मनाने का दावा करते हैं।
ईद-ए-मिलाद का इतिहास
बारावफात या फिर जिसे ईद- मीलाद – उन – नबी के नाम से भी जाना जाता है, यह दिन इस्लाम मजहब का एक महत्वपूर्ण दिन है। इस्लामी कैलेंडर के रबी – अल – अव्वल की 12 तारीख को इद-ए-मिलाद का पर्व मनया जाता है। इस्लामी मान्यता के मुताबिक हजरत मुहम्मद का जन्म 517 ईस्वी में हुआ था और 610 इस्वी में मक्का की हीरा गुफा में उन्हें इहलाम हुआ। लेकिन ईद-ए-मिलाद का पर्व मिश्र में मनाना शुरू हुआ था। 11 वीं शताब्दी तक आते-आते पूरी दुनिया के मुसलमान इसे मनाने लगे।मक्का में जन्म लेने वाले पैगंबर मोहम्मद साहब का पूरा नाम पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम था. उनकी माताजी का नाम अमीना बीबी और पिताजी का नाम अब्दुल्लाह था. वे पैगंबर हजरत मोहम्मद ही थे, जिन्हें अल्लाह ने सबसे पहले पवित्र कुरान अता की थी. इसके बाद ही पैगंबर साहब ने पवित्र कुरान का संदेश जन-जन तक पहुंचाया. हजरत मोहम्मद का उपदेश था कि मानवता को मानने वाला ही महान होता है।
पैगम्बर मुहम्मद का संक्षिप्त परिचय
ऐतिहासिक ग्रंथों के मुताबिक इस्लाम के प्रमुख पैगंबर मुहम्मद (SAW) का जन्म सन् 570 में सऊदी अरब में हुआ था। इस्लाम के जानकारों के हिसाब से आपका जन्म इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने के 12वें दिन हुआ है। पैगंबर मुहम्मद के वालिद (पिता) का नाम अब्दुल्लाह एवं माँ का नाम बीबी आमिनाह है, उन्होंने 25 साल की उम्र में खदीजा नाम की एक विधवा महिला से निकाह किया था। उनके कई बच्चे हुए, जिनमें बेटों की मृत्यु हो गई। उनकी बेटी बीबी फातिमा का निकाह हजरत अली से हुआ था। मान्यता है कि 610 ईसवीं में मक्का के पास हिरा नामक गुफा में हजरत मुहम्मद को ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद पैगंबरे-इस्लाम ने दुनिया को इस्लाम धर्म की पवित्र किताब क़ुरान की शिक्षाओं का उपदेश दिया। हजरत मुहम्मद साहब ने तालीम पर जोर दिया और सबके साथ समानता का व्यवहार करने पर बल दिया। उनका उपदेश था कि मानवता को मानने वाला ही महान होता है। अपने 62 वर्ष के जीवनकाल में आपने इस्लाम धर्म की स्थापना की और सऊदी अरब का निर्माण किया जो अल्लाह की इबादत के लिए समर्पित है। आपका इंतकाल 62 बरस की आयु में 8 जून 632 ई. को मदीना, सऊदी अरब में हुआ, अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार जन्म और इंतकाल (मृत्यु) दोनों ही 8 जून को हुआ था।
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी क्यों मनाते हैं? (महत्व)
ईद-ए-मिलाद (उर्दू) और मिलाद-उन-नबी (अरबी) के नाम से जाना जाने वाला यह त्यौहार इस्लाम के आखरी पैगंबर हज़रत मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (SAW) के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाते है। उनका जन्म 8 जून, 570 ई. को मक्काह (सऊदी अरब) में हुआ था। यह पर्व मुहम्मद के जीवन और उनकी शिक्षाओं को याद करने के अवसर के रूप में मनाया जाता है। मुसलमानों के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है, इस दिन पैगंबर के बताए गए रास्ते को याद करते हुए, इस्लाम के पवित्र ग्रंथ कुरान की तिलावत की जाती है।मान्यता है कि इस दिन को जो व्यक्ति नियम से निभाता है वह अल्लाह के और भी करीब चला जाता है, इस्लाम धर्म को मानने वालों में यह एक प्रमुख त्योहार है।
ईद-ए-मिलाद का रिवाज़
ईद-ए-मिलाद के दिन इस्लाम के मानने वाले मस्जिदों में नमाज अता करते हैं और हजरत मुहम्मद की शिक्षाओं और उपदेशों को अमल लाने का संकल्प लेते हैं। इस दिन हरे रंग के घागे बांधने या कपड़े पहनने का भी रिवाज़ है। हरे रंग का इस्लाम में बहुत महत्व होता है। इसके साथ ही इस दिन पारंपरिक खाने बनाए जाते हैं और गरीबों में बांटे जाते हैं। शिया और बरेलवी समुदाय के लोग इस दिन जुलूस भी निकालते हैं और हजरत मुहम्मद की शिक्षाओं को तख्तियों पर लिख कर सारी दुनिया को उससे रूबरू कराते हैं। जबकि सुन्नी समुदाय में ये दिन बड़ी सादगी के साथ मनाया जाता है।
ईद मिलादुन्नबी कैसे मनाते हैं?
ईद मिलादुन्नबी के दिन इस्लामिक मान्यता वाले लोग पैगम्बर मुहम्मद के एक प्रतीक को शीशे के ताबूत में रखकर जुलूस निकालते हैं और हजरत मोहम्मद के जीवन का बखान करते हुए शांति संदेश देते हैं।ईद-ए-मिलाद-उन-नबी पर लोग मिठाइयां और अन्य पकवान बांटते है, इस दिन शहद बाँटने का विशेष महत्व है। कई विद्वानों की माने तो ऐसा इसलिए क्योंकि शहद प्रोफेट मुहम्मद को सबसे ज्यादा अज़ीज था। इस मौके पर मुस्लिम मस्जिदों में जाकर अल्लाह के लिए नमाज़ पढ़ते हैं, और उपदेश सुनते है, धार्मिक कार्यक्रम करते है और गीत गाते हैं। हालाँकि मुहम्मद का जन्मदिन खुशी मनाने का अवसर होता है, लेकिन इस दिन शोक भी मनाया जाता है। जिसके पीछे की वजह रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन ही प्रॉफेट मुहम्मद का इंतकाल है।
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