आज के समय में जहां हमारी जीवनशैली पूरी तरह बदल चुकी है, वहां योग को जीवन में उतारना बहुत ही जरूरी हो चुका है. मानसिक तनाव, डिप्रेशन और एंजाइटी जैसी समस्याएं आज के समय में हर तीसरे व्यक्ति में देखने को मिल जाती है. खासकर युवा पीढ़ी और विद्यार्थी जिन्हें हमेशा कैरियर, परीक्षा और कंपटीशन का टेंशन लगा रहता है. इसी कारण मानसिक समस्याओं का शिकार बनते जा रहे हैं और जब यह मानसिक समस्या हमारे शरीर पर असर दिखाने लगती हैं तो साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर नाम की बीमारी का हम शिकार बन जाते हैं।
आपने अक्सर लोगों को कहते हुए सुना होगा कि मुझे हर पल एसिडिटी रहती है, मेरी टांगों का दर्द बढ़ रहा है या मुझे थकान महसूस हो रही है। सुनने में ऐसा लगता है कि मानो व्यक्ति किसी शारीरिक समस्या से ग्रस्त है या किसी बीमारी के शुरूआती लक्षण हैं। मगर वास्तव में ये शारीरिक नहीं बल्कि खराब मानसिक स्वास्थ्य का एक संकेत हैं, जो साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर को दर्शाता है। इससे व्यक्ति की पर्सनल लाइफ के साथ प्रोफेशनल लाइॅफ भी प्रभावित होने लगती है। साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर शारीरिक बीमारियाँ हैं, लेकिन बीमारी के लक्षण शरीर में किसी शारीरिक समस्या के बजाय तनाव या भावनाओं के कारण हो सकते हैं। ऐसी स्थिति को शारीरिक लक्षणों के साथ एक मानसिक विकार भी माना जा सकता है।साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर के लक्षण आमतौर पर बचपन या किशोरावस्था के दौरान होने वाली तनावपूर्ण घटनाओं से उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति जिसने बचपन में दुर्व्यवहार का अनुभव किया हो, बाद में जीवन में उसी तरह की दर्दनाक घटनाओं या स्थितियों का अनुभव करने के बाद मनोदैहिक विकार के लक्षण विकसित हो सकता है। जीवन में बढ़ने वाले तनाव और चिंताओं के अलावा कई कारण इस समस्या को जन्म देते हैं। आइए जानते हैं साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर के कारण और इससे बचने के उपाय भी।
क्या होता है साइको सोमेटिक डिसऑर्डर
साइको से अभिप्राय मानसिक और सोमेटिक का मतलब शरीर होता है। कभी आपने लोगों को दर्द से चीखते देखा होगा, कभी अचनाक पैरालाइसिस हो गया होगा, लेकिन जब ऐसे मरीजों को अस्पताल लेकर जाते हैं तो उनकी सारी जांचें नॉर्मल आती हैं। वहीं कुछ लोगों को ऐसा लगने लगता है कि उन्हें एसिडिटी, सिरदर्द, मांसपेशियों में ऐंठन, थकान व सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। मगर वास्तविकता में वे किसी शारीरिक रोग से ग्रस्त नहीं होते हैं। ऐसी स्थिती को साइको सोमेटिक डिसऑर्डर कहा जाता है। इसके अर्तंगत शरीर में दिखने वाली समस्याओं का कारण मनोवैज्ञानिक होता है। 2019 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में भूत विद्या का एक कोर्स शुरू किया गया था। यह कोर्स भी साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर को ठीक करने के लिए ही शुरू किया गया था। इस समस्या की जानकारी मिलने पर काउंसलिंग और दवाओं के ज़रिए उपचार किया जाता है। इसके अलावा लाइफस्टाइल में किए गए सामान्य बदलाव भी इस समस्या को दूर करने में कारगर साबित होते हैं।
महामारी में बढ़े साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर के मरीज
कोरोना महामारी में ये बीमारी तेजी से बढ़ी। इससे पहले इटली में एक शोध भी किया गया था जिसमें यह बात निकलकर आई थी कि कोरोना में मनोरोग तेजी से बढ़े हैं। किसी की सांस फूलने का मतलब हर व्यक्ति समझ ले रहा है कि उसे कोरोना हो गया है, अगर किसी को घबराहट हो रही है तो उसे लग रहा है कि उसका बीपी कम हो रहा है। जबकि उनकी शारीरिक जांचें नॉर्मल आती हैं। महामारी में ये समस्या तेजी से बढ़ी है।
साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर विकार के लक्षण क्या हैं?
साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर के कई प्रकार के शारीरिक लक्षण पैदा कर सकते हैं। सबसे आम में से कुछ में सिरदर्द, पेट दर्द, पीठ दर्द और थकान शामिल हैं।
साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर से ग्रस्त व्यक्ति को यह भी अनुभव हो सकता है: चक्कर आना, भूख का बढ़ना या कम होना, नींद में खलल, जी मिचलाना, मांसपेशियों में दर्द, गुस्सा या चिड़चिड़ापन, कब्ज़, उच्च रक्तचाप, चिंता l
साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर के अधिक लक्षणों में शामिल हैं: पाचन संबंधी समस्याएं और गैस, फोकस/एकाग्रता की कमी, तेज धडकन, छाती में दर्द, ब्रेन फ़ॉग, क्रोनिक दर्द, पसीने से तर हथेलियाँ, फूला हुआ पेट, मिजाज l
साइको सोमेटिक डिसऑर्डर के संकेत
सोशल सर्कल का कम होना : वे लोग जो हर पल अपने दर्द को उजागर करते रहते हैं। उनका सोशल सर्कल धीरे धीरे कम होने लगता हैं। ऐसे लोग किसी न किसी चिंता के कारण लोगों से मिलना जुलना बंद कर देते हैं। वे खुद को मन ही मन अकेला मान लेते हैं, जो उनकी शारीरिक समस्याएं बढ़ने का कारण बन जाते हैं।
हर वक्त गुस्से में रहना : अपने आप को किसी गंभीर बीमारी का शिकार मानकर ऐसे लोग खुद को चार दीवारी में कैद कर लेते हैं, जिससे इनके व्यवहार में चिड़चिड़ापन बढ़ने लगता है। दूसरों के अंदर गलतियां खोजना इनके व्यवहार का हिस्सा बन जाता है। वे हर दम अपनी ही चिंता में खोए रहते हैं।
बीमारी के बारे में चर्चा करना : साइको सोमेटिक डिसऑर्डर के शिकार लोग खुद को बीमार मानने लगते हैं। हर मिलने जुलने वाले व्यक्ति से केवल अपनी बीमारी के बारे में ही बात करते हैं। इनके जीवन का कोई स्पष्ट उद्देश्य नहीं रहता है। जीवन में उत्साह की कमी इन्हें हर पल परेशानी से ग्रस्त रखती है।
बार बार डॉक्टर से मिलना : ऐसे लोग मन ही मन खुद को बीमार समझ बैठते हैं, जो उनके शरीर में कई प्रकार के दर्द व हाई ब्लड प्रेशर की समस्या को बढ़ा देता है। मानसिक तौर पर स्वस्थ न होने के चलते वे अपनी समस्या से राहत पाने के लिए डॉक्टर क्लीनिक पर बार बार विज़िट करते हैं।
जानें इस समस्या से डील करने के टिप्स
क्वालिटी स्लीप है ज़रूरी : नींद पूरी न हो पाना तनाव बढ़ने का मुख्य कारण साबित होता है। ऐसे में व्यक्ति दिनभर आलस्य और थकान से चूर रहता है। शरीर में ताज़गी को बनाए रखने के लिए भरपूर नींद लें। इससे शरीर में हैप्पी हार्मोन रिलीज़ होते हैं, जिसके चलते शरीर एक्टिव रहता है। साथ ही शरीर में बढ़ने वाले तनाव का स्तर भी घटने लगता है।
पॉजिटिव थिकिंग को बनाए जीवन का आधार : हर पल जीवन में कमियों को तलाशना और दूसरों से अपनी तुलना करना नकारात्मकता को बढ़ा देता है। इससे व्यक्ति मानसिक तनाव से ग्रस्त रहने लगता है, जिसका असर उसकी विचारधारा पर भी दिखने लगता है। ऐसे लोगों का अक्सर कोई सोशल सर्कल नहीं रहता है और निगेटीविटी के शिकार होने लगते है। ऐसे लोगों को अपने विचारों को सकारात्मक बनाना बेहद आवश्यक है।
शारीरिक क्रिया को न करें अवॉइड : दिनों दिन बढ़ रहे तनाव, दर्द और एसिडिटी की समस्या से बचने के लिए योग व एक्सरसाइज़ को रूटीन में शामिल करें। इससे शरीर में होने वाली प्रॉबलम्स रिवर्स होने लगती हैं। सर्दी के दिनों में आउटडोर एक्सरसाइज और रनिंग की जगह योग क्रियाओं और मेडिटेशन को अपने रूटीन का हिस्सा बनाएं।
हेल्दी डाइट को आहार में करें सम्मिलित : तला भुना और फ्राइड खाना शरीर में कई समस्याओं का कारण बनता है। ज्यादा मात्रा में सोडियम इनटेक मूड स्विंग का कारण साबित होता है, जिससे बेचैनी की समस्या बढ़ने लगती है। ऐसे में आहार में विटामिन, मिनरल और कैल्शियम समेत ज़रूरी पोषक तत्वों को शामिल करें। इससे शरीर बीमारियों की चपेट में आने से बच सकता है।
साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर का निदान कैसे किया जाता है?
साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर का निदान करना हमेशा आसान नहीं होता क्योंकि वे अन्य शारीरिक स्थितियों के समान होते हैं। इसके अलावा, पीड़ित व्यक्ति के आधार पर लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। एक व्यक्ति के जीवन में अलग-अलग समय पर या यहां तक कि एक दिन के भीतर भी विभिन्न प्रकार के मनोदैहिक लक्षण हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, आंतरिक कान की समस्याएं जो चक्कर आने का कारण बनती हैं, साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर हो सकती हैं यदि आपको ऐसा लगता है कि जब कोई आप पर चिल्लाता है तो आप बेहोश हो जाएंगे।एक डॉक्टर शारीरिक और मानसिक लक्षणों के संयोजन के आधार पर साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर का निदान करेगा। उदाहरण के लिए, यदि आपको दर्द है, तो इसका कारण निर्धारित करने के लिए पूरी जांच कराना महत्वपूर्ण है। यदि कोई अंतर्निहित शारीरिक कारण नहीं हैं, तो आपका डॉक्टर आपसे पूछ सकता है कि क्या आप हाल ही में तनाव में हैं या क्या हाल ही में कोई चीज़ आपको परेशान कर रही है। मुख्य बात यह है कि आप अपने जीवन में उन तनावों की तलाश करें जो दर्द का कारण बन सकते हैं और फिर उन्हें प्रबंधित करने के तरीके खोजें।
आपको साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर या विकारों के बारे में डॉक्टर से कब मिलना चाहिए?
मान लीजिए आप अपने शरीर और आसपास के वातावरण में लगातार बेचैनी और परेशानी महसूस कर रहे हैं। या यदि ऐसे विचार और व्यवहार पैटर्न हैं जो आपकी दक्षता को परेशान कर रहे हैं, काम या घर पर अराजकता पैदा कर रहे हैं, तो आपको इन मुद्दों से निपटने के लिए एक चिकित्सक से सहायता लेनी चाहिए। यदि आप उपचार की लागत या उपचार के दुष्प्रभावों के बारे में चिंतित हैं, तो अपने डॉक्टर से इस बारे में बात करना महत्वपूर्ण है।
डिस्क्लेमर- यह टिप्स और सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन्हें किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर नहीं लें। इसका उद्देश्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर द्वारा चिकित्सा उपचार का विकल्प नहीं है। बीमारी या संक्रमण के लक्षणों की स्थिति में योग्य चिकित्सक से परामर्श जरूर लें।