धनतेरस का त्योहार देवताओं के प्रधान चिकित्सक भगवान धनवंतरि के जन्मोत्सव के रूप में पर्व मनाया जाता है। धनतेरस के दिन सोने, चांदी के आभूषण और धातु के बर्तन खरीदने की परंपरा है। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि इससे घर में सुख समृद्धि बनी रहती है,संपन्नता आती है और माता महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
हिंदू धर्म में दिवाली का बहुत अधिक महत्व होता है। हर किसी को इस महापर्व का साल भर इंतजार रहता है। धूमधाम से मनाए जाने वाले त्योहार दीपावली की शुरुआत धनतेरस से हो जाती है। लक्ष्मी जी एवम धन्वन्तरी दोनों का जन्म समुद्र मंथन से हुआ था. इस दिन इनके साथ कुबेर देवता एवम यमराज की पूजा की जाती हैं. धनतेरस का पर्व छोटी दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की तेरहवीं या त्रयोदशी तिथि पर धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस दिन धन्वंतरि देव, लक्ष्मी जी और कुबेर देव की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन कोई भी समान खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन खरीदी गई चल-अचल संपत्ति में तेरह गुणा वृद्धि होती है। कहा जाता हैं इस दिन दक्षिण दिशा में दीप दान करने से अकाल मृत्यु का योग ख़त्म होता हैं. धनतेरस के दिन चांदी एवम अन्य नये बर्तन खरीदने की प्रथा भी हैं, इन सब प्रथाओं के पीछे कई पौराणिक कथायें कही गई हैं। यही वजह है कि लोग इस दिन बर्तनों की खरीदारी के अलावा सोने-चांदी की चीजें भी खरीदते हैं। तो चलिए आज जानते हैं धनतेरस की तिथि, पूजा विधि और महत्व के बारे में…
धनतेरस कब मनाई जाती हैं?
यह कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की तेरस के दिन मनाई जाती हैं. इस दिन कुबेर, लक्ष्मी, धन्वन्तरी एवम यमराज का पूजा की जाती हैं. यह दिन दीपावली के दो दिवस पूर्व मनाया जाता हैं. इसी दिन से दीपावली महापर्व की शुरुवात होती हैं। हिंदू पंचाग में किसी भी पर्व को मनाने के लिए उदया तिथि को महत्वपूर्ण माना जाता है. त्रयोदशी तिथि 10 नवंबर को दोपहर 12.25 से आरंभ हो रही है और ये त्रयोदशी तिथि अगले दिन 11 नवंबर को दोपहर एक बजकर 57 मिनट तक रहेगी. आपको बता दें कि इस बार धनतेरस के त्योहार पर नक्षत्रों के काफी शुभ योग बन रहे हैं. इस पावन पर्व पर हस्त नक्षत्र लग रहा है. ये नक्षत्र खरीदारी के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है. इस दिन आम जनता से लेकर व्यापारी तक जमकर खरीदारी करते हैं. साथ ही इसी दिन चंद्रमा और शुक्र की युति से शशि योग भी बन रहा है. इसके अलावा इसी दिन से शनि कुंभ में मार्गी होने जा रहे हैं. ऐसे में ये दिन काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त
त्रयोदशी तिथि का आरंभ 12 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट से 1 बजकर 57 मिनट तक। प्रदोष काल शाम में 5 बजकर 30 मिनट से 8 बजकर 8 मिनट तक। इसके अलावा वृषभ लग्न शाम में 5 बजकर 47 मिनट पर वृषभ लग्न उदित होगा और 7 बजकर 43 मिनट तक रहेगा। इस दौरान पूजा करना बेहद शुभ रहेगी क्योंकि, यह स्थिर मुहूर्त है। इसलिए धनतेरस की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम में 5 बजकर 47 मिनट से 7 बजकर 43 मिनट तक रहेगा। वहीं, यम दीप दान का मुहूर्त भी इस समय तक ही है।
धनतेरस 2023 पूजा-खरीदी के शुभ मुहूर्त
10 नवंबर, शुक्रवार को धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त रात 05:47 से 07:43 तक रहेगा। यानी उसकी कुल अवधि 01 घण्टा 56 मिनट की रहेगी। यम दीपदान के लिए प्रदोष काल शाम 05:30 से 08:08 तक रहेगा। ये पूरे दिन खरीदी के लिए शुभ रहेगा। इस दिन शुभकर्तरी, वरिष्ठ, सरल, सुमुख और अमृत नाम के 5 शुभ योग बनेंगे, जिसके चलते इस पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है।
धनतेरस पूजा विधि
* धनतेरस के दिन शाम के वक्त शुभ मुहूर्त में उत्तर की ओर कुबेर और धन्वंतरि की स्थापना करें।
* मां लक्ष्मी व गणेश की भी प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। फिर दीप प्रज्वलित करें और विधिवत पूजन करना आरंभ करें।
* तिलक करने के बाद पुष्प, फल आदि चीजें अर्पित करें।
* कुबेर देवता को सफेद मिष्ठान और धन्वंतरि देव को पीले मिष्ठान का भोग लगाएं।
* पूजा के दौरान ‘ऊँ ह्रीं कुबेराय नमः’ इस मंत्र का जाप करते रहें।
* भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न करने के लिए इस दिन धन्वंतरि स्तोत्र का पाठ जरूर करें।
धनतेरस पर क्या खरीदें
श्रीगणेश और लक्ष्मी की चांदी या मिट्टी की मूर्तियां। मूर्ति की जगह चांदी का सिक्का भी खरीद सकते हैं जिस पर गणेश-लक्ष्मी चित्रित हों। इन पर केसर का तिलक करके पूजन करें और लाल या पीले कपड़े पर रख दें। दीपावली पूजन में भी इन सिक्कों या मूर्तियों का पूजन करें और फिर इन्हें अपनी तिजोरी में रख दें।
धनतेरस का महत्व
कार्तिक माह कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को धन्वंतरी देवता का जन्म हुआ था, इनका जन्म समुद्र मंथन से हुआ था और ये अमृत कलश लेकर जन्मे थे, जिसके लिए इतना भव्य समुद्र मंथन किया गया था. इसी समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी का भी जन्म हुआ था. धन्वन्तरी के जन्म के कारण ही इसका नाम धनतेरस पड़ा. धन्वंतरी देवो के वैद्य हैं इस कारण इस दिन आयुर्वेद दिवस भी कहा जाता हैं।
धनतेरस के दिन बर्तन एवम चांदी खरीदने की प्रथा
धन्वंतरी हाथ में कलश लेकर जन्मे थे, चूँकि वह कलश महान अमृत का बर्तन था, इसलिए इस दिन घरों में नये बर्तन खरीदने का भी चलन हैं। खासतौर पर इस दिन चांदी खरीदी जाती हैं. इसके पीछे का मान्यता हैं कि इस दिन धन की देवी की पूजा की जाती हैं. यह पूजा धन प्राप्ति के उद्देश्य से की जाती हैं. कहते हैं धन देने से पहले मनुष्य को बुद्धिमता विकसित करना चाहिये. अपने तन मन को शीतल करना चाहिये. इसलिए इस दिन चन्द्रमा जो शीतलता देता हैं का प्रतीक कहे जाने वाली धातु चांदी खरीदी जाती हैं. इस प्रकार धनतेरस के दिन बर्तन एवम चांदी खरीदने की प्रथा हैं. इस प्रकार अब आधुनिक युग में इस दिन मनुष्य को जो भी खरीदना होता है, उसे लक्ष्मी पूजा के महत्व के रूप में खरीदते हैं। इस दिन धन्वंतरी देव का जन्म हुआ था, इसलिए इनकी पूजा का नियम हैं. इस दिन माता लक्ष्मी एवम मृत्यु के देवता यमराज की भी पूजा की जाती हैं. इसके पीछे कथा कही जाती हैं जो इस प्रकार हैं :
धनतेरस की पौराणिक कथा
पौराणिक युग में हेम नाम के एक राजा थे, उनकी कोई सन्तान नहीं थी. बहुत मानता मानने के बाद देव गण की कृपा से उनको पुत्र की प्राप्ति हुई. जब उन्होंने पुत्र की कुंडली बनवाई तब ज्योतिष ने कहा इस बालक की शादी के दसवे दिन इसकी मृत्यु का योग हैं. यह सुनकर राजा हेम ने पुत्र की शादी ना करने का निश्चय किया और उसे एक ऐसी जगह भेज दिया जहाँ कोई स्त्री न हो. लेकिन तक़दीर के आगे किसी की नहीं चलती. घने जंगल में राजा के पुत्र को एक सुंदर कन्या मिली, जिससे उन्हें प्रेम हो गया और दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया. भविष्यवाणी के अनुसार पुत्र की दसवे दिन मृत्यु का समय आ गया. उसके प्राण लेने के लिए यमराज के दूत यमदूत पृथ्वीलोक पर आये. जब वे प्राण ले जा रहे थे तो मृतक की विधवा के रोने की आवाज सुन यमदूत के मन में भी दुःख का अनुभव हुआ, लेकिन वे अपने कर्तव्य के आगे विवश थे. यम दूत जब प्राण लेकर यमराज के पास पहुँचे, तो बेहद दुखी थे, तब यमराज ने कहा दुखी होना तो स्वाभाविक है, लेकिन हम इसके आगे विवश हैं. ऐसे में यमदूत ने यमराज से पूछा कि हे राजन क्या इस अकाल मृत्यु को रोकने का कोई उपाय नहीं हैं ? तब यमराज ने कहा कि अगर मनुष्य कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन कोई व्यक्ति संध्याकाल में अपने घर के द्वार पर एवम दक्षिण दिशा में दीप जलायेगा, तो उसके जीवन से अकाल मृत्यु का योग टल जायेगा. इसी कारण इस दिन यमराज की पूजा की जाती हैं।
धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजा विधि का महत्व
इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती हैं. इसके पीछे भी एक कथा हैं. एक बार भगवान विष्णु ने भूलोक के दर्शन करने की सोची. तब देवी लक्ष्मी ने भी साथ चलने की इच्छा ज़ाहिर की तह विष्णु जी ने उनसे कहा आप साथ आ सकती हैं, लेकिन मैं जैसा बोलूँगा आपको वैसा करना होगा, तब ही साथ चले. देवी को इससे कोई आपत्ति नहीं थी, उन्होंने शर्त मान ली. दोनों ही भूलोक दर्शन के लिए निकल पड़े. तब ही विष्णु जी ने दक्षिण दिशा की तरफ अपना रुख किया और देवी लक्ष्मी से कहा कि देवी आप मेरे पीछे न आये यहीं रहकर मेरा इंतजार करें. उनके जाने के बाद माता लक्ष्मी के मन में ख्याल आया कि आखिर क्यूँ उन्हें इंतजार करने को कहा उन्हें जाकर देखना चाहिये, ऐसा सोचकर वे विष्णु जी के पीछे- पीछे चली गई. लक्ष्मी जी दक्षिण की तरफ बढ़ने लगी, तब ही उन्हें हरे भरे खेत दिखे जिसमे कई फूल भी लगे थे, उन्होंने कुछ फूल तोड़ लिए आगे बड़ी तो गन्ने एवम भुट्टे के खेत थे, उन्होंने वे ही तोड़ लिए. कुछ समय बाद उन्हें विष्णु जी मिल गये, उन्हें पीछे आटा देख वे क्रोधित हो गये और हाथ में रखे फुल एवम फलों के बारे में पूछा, कि यह किसने दिये तब लक्ष्मी जी ने कहा, ये तो मैंने स्वयं के लिए तोड़े है, तब विष्णु जी को क्रोध आया और उन्होंने कहा तुमने किसान के खेत से चोरी की है, तुम्हे पीछे आने को मना किया था, तुम नहीं मानी और पाप की भागी बनी. अब तुम्हे प्रयाश्चित के रूप में उस किसान के घर 12 वर्षो तक रहना होगा और उसकी सेवा करनी होगी. ऐसा बोल विष्णु जी उन्हें छोड़ कर चले गये। बारह वर्षो तक लक्ष्मी जी ने किसान के घर के सभी काम किये लक्ष्मी के घर रहने के कारण किसान की संपत्ति कई गुना बढ़ गई, तब ही वह दिन आया जब 12 वर्ष पुरे होने पर विष्णु जी लक्ष्मी जी को लेने आये, पर किसान ने भेजने से ना बोल दिया. तब विष्णु जी ने कहा यह धन की देवी हैं ऐसे ही मनुष्य के घर में नहीं रह सकती, यह तो प्रायश्चित के कारण यहाँ थी. फिर भी किसान नहीं माना. तब लक्ष्मी जी ने कहा कि अगर मनुष्य जाति प्रति कार्तिक कृष्ण पक्ष की तेरस को घी के दीपक जलाकर अपने घर को स्वच्छ कर सायंकाल मेरी पूजा करेंगे, तो मैं अदृश्य रूप से पुरे वर्ष उनके घर में निवास करुँगी, तब ही से धनतेरस के दिन लक्ष्मी जी के पूजन का महत्व पुराणों में बताया गया हैं।
श्री लक्ष्मी जी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता |
तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता || जय
डमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही हो जग-माता |
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता || जय
दुर्गा रूप निरंजन, सुख सम्पति दाता |
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाता || जय
तू ही है पाताल बसन्ती, तू ही है शुभ दाता |
कर्म प्रभाव प्रकाशक, भवनिधि से त्राता || जय
जिस घर थारो वासो, तेहि में गुण आता |
कर न सके सोई कर ले, मन नहिं धड़काता || जय
तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न कोई पाता |
खान पान को वैभव, सब तुमसे आता || जय
शुभ गुण सुंदर मुक्त्ता, क्षीर निधि जाता |
रत्त्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नही पाता || जय
आरती लक्ष्मी जी की, जो कोई नर गाता |
उर आनन्द अति उपजे, पाप उतर जाता || जय
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