अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती दोनों ही हिंदू धर्म के अत्यंत पावन पर्व हैं, जो वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाए जाते हैं। वर्ष 2025 में यह शुभ तिथि 30 अप्रैल को पड़ रही है, जब यह दोनों पर्व एक साथ मनाए जाएंगे। यह संयोग अत्यंत दुर्लभ और पुण्यदायी माना जाता है।
अक्षय तृतीया का इतिहास एवं महत्व
अक्षय तृतीया को ‘अक्ती’ या ‘अक्खा तीज’ भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। सतयुग और त्रेतायुग की संधि पर यह तिथि आती है, और इसे ‘अक्षय’ (जिसका क्षय न हो) कहा जाता है क्योंकि इस दिन किए गए पुण्य कर्म, दान आदि का फल अनंतकाल तक अक्षय रहता है।
धार्मिक मान्यताएँ
भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी का जन्म इसी दिन हुआ था।
भगवान विष्णु ने नर-नारायण और हयग्रीव रूप में इसी दिन अवतार लिया।
पांडवों को वनवास के दौरान अक्षय पात्र प्राप्त हुआ था।
श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाने हेतु इसी दिन चीर बढ़ाया था।
यह दिन विवाह, नया व्यापार, गृह प्रवेश जैसे कार्यों के लिए अबूझ (सर्वसिद्धि) मुहूर्त माना जाता है।
परशुराम जयंती का इतिहास एवं महत्व
भगवान परशुराम का परिचय
भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं, जो ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रियों के विरोध में शस्त्र धारण करने वाले थे। उनका जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था।
भगवान परशुराम को शस्त्रविद्या और न्यायप्रियता का प्रतीक माना जाता है।
उन्होंने अत्याचारी क्षत्रियों का 21 बार संहार कर समाज में संतुलन स्थापित किया।
वे आज भी अमर माने जाते हैं और कलियुग के अंत में भगवान कल्कि को शस्त्र प्रदान करेंगे।
2025 में अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती के शुभ मुहूर्त
तृतीया तिथि प्रारंभ: 30 अप्रैल 2025 को रात 03:24 बजे
तृतीया तिथि समाप्त: 1 मई 2025 को रात 01:45 बजे
पूजा एवं कार्यारंभ का शुभ समय
अभिजीत मुहूर्त: 11:51 AM – 12:44 PM
चर, लाभ, अमृत चौघड़िया: प्रातः 07:50 AM – दोपहर 01:55 PM
Lयह दिन बिना पंचांग देखे किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत हेतु आदर्श माना जाता है।
पूजा विधि एवं विधान
अक्षय तृतीया पूजन विधि:
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का पूजन करें।
पीले पुष्प, चंदन, तुलसी पत्र और नैवेद्य अर्पित करें।
श्रीहरि को खीर, फल, और मीठा दान करें।
गरीबों को जल, छाता, वस्त्र, अन्न एवं स्वर्णदान करें।
परशुराम जयंती पूजन विधि:
ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर व्रत संकल्प लें।
भगवान परशुराम की प्रतिमा या चित्र का पूजन करें।
फल, पंचामृत, कुश, तुलसी, चंदन आदि अर्पित करें।
परशुराम मंत्र का जाप करें:
“ॐ ह्रीं क्लीं परशुरामाय नमः”
ब्राह्मण भोजन, हवन एवं दान का आयोजन करें।
पर्व मनाने की परंपराएँ
ग्रामीण क्षेत्रों में इस दिन हल चलाना, बीज बोना शुभ माना जाता है।
विवाह, नामकरण, मुंडन जैसे संस्कार बिना मुहूर्त के इसी दिन संपन्न होते हैं।
स्वर्ण, भूमि, वाहन, वस्त्र, आभूषण आदि खरीदना अत्यंत शुभ होता है।
अनेक स्थानों पर परशुराम मंदिरों में विशेष झांकी, भंडारा और शोभा यात्राएं निकलती हैं।
इस दिन क्या करें और क्या न करें
क्या करें:
दान-पुण्य अवश्य करें।
जल का दान विशेष पुण्यकारी माना गया है।
तुलसी, आम, पीपल, वट जैसे पौधे लगाएं।
क्या न करें:
झूठ बोलना, क्रोध, कटु वचन और हिंसा से बचें।
मांस, मद्य, और तामसिक भोजन से परहेज़ करें।
अन्य के धन और अधिकार का अपमान न करें।
अक्षय तृतीया एवं परशुराम जयंती का एक साथ पड़ना एक दुर्लभ एवं पुण्यकारी संयोग है। यह दिन धर्म, पराक्रम और सद्कर्मों की ऊर्जा का प्रतीक है। अतः इस अवसर पर हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि अपने जीवन में सत्य, न्याय, सेवा और त्याग के पथ पर अग्रसर रहें।