अगर आपके दांतों में दर्द रहता है, सांसों में बदबू आती है या दांत पीले पड़ गए हैं, तो आपको जानकर हैरानी होगी कि इन सभी समस्याओं का उपाय आधुनिक टूथपेस्ट नहीं, बल्कि 2500 साल पुराना एक नेचुरल ‘टूथब्रश’ है। आइए जानते हैं इस टूथब्रश के बारे में।
हमारे दांत और मुंह की सफाई सिर्फ सुंदरता या ताजगी के लिए नहीं, बल्कि पूरे शरीर के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। आज भले ही हम आधुनिक टूथब्रश और पेस्ट का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हजारों साल पहले भी हमारे पूर्वज दांतों की सफाई के लिए एक प्राकृतिक उपाय अपनाते थे? वह उपाय था “मिस्वाक” (Miswak) — एक हर्बल दातुन, जिसे महर्षि सुश्रुत ने करीब 2500 साल पहले अपने ग्रंथ सुश्रुत संहिता में सुझाया था।
क्या है मिस्वाक?
मिस्वाक दरअसल सल्वाडोरा पर्सिका (Salvadora Persica) नामक पेड़ की जड़, टहनी या तने से बनाई जाने वाली एक चबाने योग्य लकड़ी की स्टिक होती है। इसे अरबी में मिस्वाक या सिवाक, संस्कृत में दंतकाष्ठ, और अंग्रेजी में Toothbrush Tree कहा जाता है।
मिस्वाक के सिरे को चबाने पर इसके रेशे ब्रश की तरह फैल जाते हैं, जिससे यह दांतों और मसूड़ों की सफाई करता है। इसे बिना किसी टूथपेस्ट के इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि इसमें खुद कई औषधीय गुण पाए जाते हैं।
मिस्वाक के फायदे
आधुनिक विज्ञान भी अब मिस्वाक के फायदों को मान चुका है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन और डब्ल्यूएचओ (WHO) की रिपोर्ट्स के अनुसार मिस्वाक के ये लाभ हैं:
एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण: मुंह में बैक्टीरिया की वृद्धि को रोकता है और दांतों में कीड़ा लगने से बचाता है।
सांसों की बदबू दूर करे: इसमें मौजूद सल्वाडोरिन (Salvadorine) और बेंजिल आइसोथायोसायनेट (Benzyl isothiocyanate) मुंह की दुर्गंध को खत्म करते हैं।
दांतों का पीलापन घटाए: प्राकृतिक फ्लोराइड और कैल्शियम दांतों को सफेद और मजबूत बनाते हैं।
दांत दर्द से राहत: इसमें पाए जाने वाले सैलिसिलिक एसिड और रेजिन्स हल्के दर्दनिवारक का काम करते हैं।
मसूड़ों को स्वस्थ रखे: इसके रेशे मसूड़ों की मालिश कर उन्हें मजबूत और संक्रमणमुक्त बनाते हैं।
किफायती और पर्यावरण अनुकूल: यह प्लास्टिक ब्रश की तुलना में सस्ता, प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल है।
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
मिस्वाक का उल्लेख न केवल सुश्रुत संहिता और मनुस्मृति जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है। महर्षि सुश्रुत, जिन्हें भारतीय चिकित्सा शास्त्र का जनक कहा जाता है, ने भी लगभग 500 ईसा पूर्व अपने ग्रंथों में मिस्वाक के उपयोग की सिफारिश की थी। सिर्फ यही नहीं यह इस्लामिक परंपरा में भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। पैगंबर मोहम्मद साहब (PBUH) स्वयं मिस्वाक का नियमित उपयोग करते थे और इसे हर नमाज से पहले इस्तेमाल करने की सलाह देते थे। इसी कारण आज भी मिस्वाक का प्रचलन अरब देशों, अफ्रीका, भारत और एशिया के कई हिस्सों में जारी है।
वैज्ञानिक प्रमाण क्या कहते हैं?
कई आधुनिक शोधों में यह पाया गया है कि मिस्वाक से दांतों की सफाई करने वाले लोगों का पेरियोडॉन्टल स्टेटस (gum health) उन लोगों से बेहतर होता है जो सिर्फ टूथब्रश का इस्तेमाल करते हैं। एक अध्ययन (सूडान, 2003) में पाया गया कि मिस्वाक यूज़र्स में मसूड़ों की बीमारियों की संभावना बहुत कम थी।
हालांकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि अधिक शोध की आवश्यकता है, लेकिन अब तक के परिणाम मिस्वाक को एक प्रभावी और सुरक्षित नेचुरल विकल्प बताते हैं।
कैसे करें मिस्वाक का इस्तेमाल?
मिस्वाक की टहनी लगभग 6 इंच लंबी काटें। एक सिरे को 1 इंच तक चबाएं जब तक कि वह ब्रश जैसी न हो जाए। इस सिरों से दांतों को ऊपर-नीचे और गोलाई में धीरे-धीरे रगड़ें। इस्तेमाल के बाद ब्रश वाला सिरा काट दें और अगली बार नया सिरा चबाएं। इसे दिन में दो बार इस्तेमाल करना सबसे अच्छा रहता है।
कहां पाया जाता है?
मिस्वाक (Miswak) का पौधा, जिसे वैज्ञानिक रूप से साल्वाडोरा पर्सिका (Salvadora persica) कहा जाता है, एक छोटा सदाबहार पेड़ या झाड़ी है। यह मध्य पूर्व, अफ्रीका और भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है और भारत में इसे आमतौर पर पीलू, अरक, झाल या खरजल के नाम से जाना जाता है। इसकी टहनियों और जड़ों का उपयोग सदियों से प्राकृतिक टूथब्रश (मिस्वाक) के रूप में मौखिक स्वच्छता के लिए किया जाता रहा है।

मिस्वाक के पौधे की पहचान
आकार: यह एक छोटा पेड़ या झाड़ी होता है, जिसकी ऊंचाई अनुकूल परिस्थितियों में लगभग 6 मीटर तक हो सकती है। इसका तना अक्सर मुड़ा हुआ होता है।
पत्तियां: पत्तियां छोटी और सदाबहार होती हैं, जो पूरे वर्ष हरी रहती हैं।
फूल और फल: इसमें छोटे, चमकीले लाल रंग के फूल आते हैं। फल गोलाकार, मांसल होते हैं, जो पकने पर गुलाबी से लाल रंग के हो जाते हैं और खाने योग्य भी होते हैं।
विशेषता: इसकी टहनियों और जड़ों में प्राकृतिक नमक और एक खास तरह का रेज़िन पाया जाता है, जो दाँतों को साफ करने और उन्हें कीड़ों से सुरक्षित रखने में मदद करता है।
गंध/स्वाद: जब इसकी टहनी को चबाया जाता है, तो इसमें हल्की तीखी, सरसों जैसी गंध या स्वाद होता है, इसीलिए इसे “सरसों का पेड़” (Mustard Tree) भी कहा जाता है。
घर में सरलता से उगाने का तरीका
मिस्वाक का पौधा कम देखभाल वाला होता है और इसे घर पर गमले या ज़मीन में आसानी से उगाया जा सकता है।
प्रसार (Propagation): आप इसे बीज या तने की कटिंग के माध्यम से उगा सकते हैं। कटिंग से उगाना ज़्यादा आसान हो सकता है।
स्थान और धूप: यह पौधा तेज़, सीधी धूप में सबसे अच्छा पनपता है और उच्च तापमान को सहन कर सकता है। इसे ऐसी जगह रखें जहाँ इसे भरपूर धूप मिले।
मिट्टी: पौधे को अच्छी जल निकासी वाली (well-drained) मिट्टी की आवश्यकता होती है। यह नमकीन मिट्टी के प्रति भी उच्च सहनशीलता रखता है।
पानी: यह पौधा शुष्क परिस्थितियों को पसंद करता है और इसे बार-बार पानी देने की आवश्यकता नहीं होती है। मिट्टी को बहुत ज़्यादा गीला न रखें, बल्कि हल्का नम रखें।
तापमान: यह कम आर्द्रता और शुष्क जलवायु के लिए उपयुक्त है।
1देखभाल:
छंटाई (Pruning): आकार बनाए रखने और झाड़ियों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए नियमित रूप से छंटाई करें।
उर्वरक (Fertilizer): बढ़ते मौसम के दौरान संतुलित उर्वरक डाल सकते हैं।
प्राप्ति: आप ऑनलाइन नर्सरी या स्थानीय पौधों की दुकानों से मिस्वाक के पौधे या बीज आसानी से खरीद सकते हैं।
समाचार स्त्रोत : जनसत्ता



