आज जीवन का हर क्षेत्र समस्याओं से घिरा हुआ है। दैनिक जीवन में अत्यधिक तनाव व दबाव महसूस किया जा रहा है। हर आदमी संदेह, अंतर्द्वंद्व और मानसिक उथल-पुथल की जिंदगी जी रहा है। मानसिक संतुलन अस्त-व्यस्त हो रहा है। मानसिक संतुलन का अर्थ है विभिन्न परिस्थितियों में तालमेल स्थापित करना, जिसका सशक्त एवं प्रभावी माध्यम योग ही है। योग एक ऐसी तकनीकी विज्ञान है जो हमारे शरीर, मन, विचार एवं आत्मा को स्वस्थ करती है। यह हमारे तनाव एवं कुंठा को दूर करती है। योग मनुष्य की चेतना शुद्ध एवं बुद्ध करने की प्रक्रिया है, यहां हम आपको कुछ ऐसे आसन से परिचित कराते है। जो आपके अंतस चेतना की वृद्धि करने हेतु उपयुक्त आसन है।
योग साधना में यूं तो 84 से ज्यादा आसन माने गए हैं। परंतु न तो ये सारे हमसब के लिए उपयोगी है और न ही इन सब का वर्णन और व्याख्या करना ही संभव है। हमारे लिए इनमें से 4 आसन ही उचित है, जिनका अभ्यास प्रत्येक साधक को करना चाहिए।
1. स्वस्तिकासन : स्वस्ति का अर्थ होता है, शुभ, कल्याण युक्त। इसमें जानू और जंघा के मध्य में दोनों पाद तलो को भली प्रकार स्थापित किया जाता है। इस आसन में बाया पैर नीचे और दाहिने पैर ऊपर रहता है। एड़ी को जानू और जांघों के बीच में रखनी चाहिए साथ ही गर्दन, सीना और मेरुदंड पूरी तरह से सीधा करके बैठना चाहिए। यह आसन सुखदायक, आसान और देर तक सुविधा से बैठने के लिए उचित है। धारणा, ध्यान, समाधि आदि के लिए यह आसन उपायुक्त है, क्योंकि इसमें चित् एकाग्र होता है तथा तनाव की स्थिति कम होती है।
2. समासन : कुछ लोग इसे गुप्तासन भी कहते हैं। इसमें बाएं पैर का पंजा अंडकोषों के नीचे रखें। यह ध्यान रहे कि टखना भूमि को स्पर्श करता हो। फिर बाएं पैर के ऊपर दाएं पैर का टखना रख दिया जाए। इसमें और स्वस्तिकासन में भेद यह है कि स्वस्तिकासन में एड़ीया बराबरी पर नहीं रखी जाती, परंतु इसमें दोनों एड़ियों को बराबरी में एक के ऊपर एक रखी जाती है। हाथ सीधे हो, नेत्र सामने हो। गुप्त रोगों के निवारण में यह अत्यधिक उपयोगी है।
3. सिद्धासन : इस आसन को अंतसचेतना जागृत करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। दाएं पैर की एड़ी को गुदा के मध्य भाग में दृढ़ता के साथ लगावे, फिर बाएं पैर की एड़ी गुप्तेन्द्रीय पर सावधानी के साथ रखें, जिससे कि मूत्रेन्द्रिय को बाधा न पहुंचे। दोनों घुटने भूमि को स्पर्श करते रहेंगे। रीढ़ की हड्डी सीधी हो तथा तर्जनी को मोड़कर अंगूठे के साथ लगा ले। इस आसन के अभ्यास से मूलबंध स्वत: ही खुल जाता है, एवं प्राण ऊर्ध्वगमन करने लगते हैं तथा धीरे-धीरे सुषुम्ना का मार्ग खुलने लगता है।
4. पद्मासन : पद्मासन को योगी जन सर्वश्रेष्ठ आसन मानते हैं। इसे करने से सभी मनोरथ स्वत ही सिद्ध होते हैं। बाएं पैर को दाहिनी जांघ पर तथा दाहिने पैर को बाएं जांघ पर इस प्रकार लगावे की नाभि के नीचे दोनों एड़ियां जुड़ जाए। फिर मेरु, गर्दन, सिर को सीधा रखकर श्वास प्रश्वास को क्रियाशील करें और दृष्टि को नाक के अग्रभाग पर स्थिर कर सीधा बैठ जाएं। यह आसन अनेक व्याधियों को मिटाने में सहायक और श्वसन क्रिया को नियमित करने में समर्थ है। यह आसन सर्वाधिक अनुकूल सुखदायक एवं सफलता दायक होता है। अंतस चेतना जागृत एवं विस्तृत करने के लिए इसी आसन का प्रयोग करना चाहिए। अभ्यास के बाद साधक बारह घंटे इस आसन पर बैठ जाते हैं।