रबिन्द्रनाथ टैगोर एक ऐसा व्यक्तित्व जिसे शब्दों मे, बया करना बहुत ही कठिन है . रबिन्द्रनाथ टैगोर जिनके बारे मे, कुछ भी लिखना या बताने के लिये, शब्द कम पड़ जायेंगे . ऐसे अद्भुत प्रतिभा के धनी थे, जिनके सम्पूर्ण जीवन से, एक प्रेरणा या सीख ली जा सकती है. वे एक ऐसे विरल साहित्यकारों मे से एक है जो, हर कहीं आसानी से नही मिलते . कई युगों के बाद धरती पर जन्म लेते है और, इस धरती को धन्य कर जाते है . वे एक ऐसी छवि है जो, अपने जन्म से लेकर मत्यु तक, कुछ ना कुछ सीख देकर जाते है। यह ही नही बल्कि, ऐसे व्यक्तित्व के धनी लोग म्रत्यु के बाद भी, एक अमर छाप छोड़ कर जाते है . जिसकी सीख व्यक्ति आज तक ले सकता है।
रवींद्रनाथ टैगोर भारत के सबसे पोषित पुनर्जागरण शख्सियतों में से एक हैं, जिन्होंने हमें दुनिया के साहित्यिक मानचित्र पर रखा है। वे एक कवि के कवि थे और न केवल आधुनिक भारतीय साहित्य बल्कि आधुनिक भारतीय मानस के भी निर्माता थे। टैगोर असंख्य दिमाग वाले और एक महान कवि, लघु कथाकार, उपन्यासकार, नाटककार, निबंधकार, चित्रकार और गीतों के संगीतकार थे। एक सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और सौंदर्यवादी विचारक, शिक्षा में एक नवप्रवर्तक और ‘वन वर्ल्ड’ विचार के चैंपियन के रूप में उनकी दुनिया भर में प्रशंसा उन्हें एक जीवंत उपस्थिति बनाती है। महात्मा गांधी ने उन्हें ‘महान प्रहरी’ कहा था। वह गुरुदेव के रूप में भी प्रसिद्ध थे। वैश्विक कवि के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले रवींद्र नाथ ने अपनी अविश्वसनीय रचनाओं के माध्यम से न केवल प्रकृति के लुभावने दृश्यों को प्रदर्शित किया था। फिर भी उन्होंने शेष विश्व को भी भारतीय संस्कृति के महत्व से अवगत कराया। टैगोर का लेखन पाठकों का उत्थान करता है और उन्हें जीवन में सफल होने के लिए प्रेरित करता है। पहले भारतीय कवि रवींद्र नाथ टैगोर को साहित्य, दर्शन, कला, संगीत और लेखन में उनके योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। वह पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गए और आज भी उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए उनकी प्रशंसा की जाती है। मार्गदर्शन और प्रेरणा के लिए लाखों लोग उनकी ओर देखते हैं।
रवींद्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय
जन्म – 7 मई 1861
पिता – देवेन्द्रनाथ टैगोर
माता – श्रीमति शारदा देवी
जन्मस्थान – कोलकाता के जोड़ासाकों की ठाकुरबाड़ी
धर्म – हिन्दू
राष्ट्रीयता – भारतीय
भाषा – बंगाली, इंग्लिश
उपाधि – लेखक और चित्रकार
प्रमुख रचना – गीतांजलि
पुरुस्कार – नोबोल पुरुस्कार
म्रत्यु – 7 अगस्त 1941
रबिन्द्रनाथ टैगोर का विवाह – 1883 को , म्रणालिनी देवी से हुआ।
रबिन्द्रनाथ टैगोर अपने आप मे, बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे . कोलकाता के जोड़ासाकों की ठाकुरबाड़ी मे, प्रसिद्ध और समृद्ध बंगाली परिवार मे से थे। जिसके मुखिया देवेन्द्रनाथ टैगोर जोकि, ब्रम्ह समाज के वरिष्ठ नेता थे, वह बहुत ही सुलझे हुए और सामाजिक जीवन जीने वाले व्यक्ति थे. उनकी पत्नी शारदा देवी, बहुत ही सीधी और घरेलू महिला थी. 7 मई 1861 को, उनके घर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई . जिनका नाम रबिन्द्रनाथ रखा, यह उनके सबसे छोटे पुत्र थे . बड़े होकर यह गुरुदेव के नाम से, भी प्रसिद्ध हुए। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई सन् 1861 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर और मां का नाम शारदा देवी तथा उनकी पत्नी का नाम मृणालिनी देवी था। स्कूली शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल में पूरी करने के बाद बैरिस्टर बनने के सपने के साथ 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में एक पब्लिक स्कूल में दाख़िला लिया। उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से क़ानून की पढ़ाई की लेकिन 1880 में बिना डिग्री लिए भारत लौट आए। रवींद्रनाथ टैगोर एक कवि, उपन्यासकार, नाटककार, चित्रकार, और दार्शनिक थे। रवींद्रनाथ टैगोर एशिया के प्रथम व्यक्ति थे, जिन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे। बचपन में उन्हें प्यार से ‘रबी’ बुलाया जाता था। आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था। अपने जीवन में उन्होंने एक हजार कविताएं, आठ उपन्यास, आठ कहानी संग्रह और विभिन्न विषयों पर अनेक लेख लिखे। इतना ही नहीं रवींद्रनाथ टैगोर संगीतप्रेमी थे और उन्होंने अपने जीवन में 2000 से अधिक गीतों की रचना की। उनके लिखे दो गीत आज भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान हैं। जीवन के 51 वर्षों तक उनकी सारी उपलब्धियां और सफलताएं केवल कोलकाता और उसके आसपास के क्षेत्र तक ही सीमित रही। 51 वर्ष की उम्र में वे अपने बेटे के साथ इंग्लैंड जा रहे थे। समुद्री मार्ग से भारत से इंग्लैंड जाते समय उन्होंने अपने कविता संग्रह गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद करना प्रारंभ किया। गीतांजलि का अनुवाद करने के पीछे उनका कोई उद्देश्य नहीं था केवल समय काटने के लिए कुछ करने की गरज से उन्होंने गीतांजलि का अनुवाद करना प्रारंभ किया। उन्होंने एक नोटबुक में अपने हाथ से गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद किया। लंदन में जहाज से उतरते समय उनका पुत्र उस सूटकेस को ही भूल गया जिसमें वह नोटबुक रखी थी। इस ऐतिहासिक कृति की नियति में किसी बंद सूटकेस में लुप्त होना नहीं लिखा था। वह सूटकेस जिस व्यक्ति को मिला उसने स्वयं उस सूटकेस को रवींद्रनाथ टैगोर तक अगले ही दिन पहुंचा दिया। लंदन में टैगोर के अंग्रेज मित्र चित्रकार रोथेंस्टिन को जब यह पता चला कि गीतांजलि को स्वयं रवींद्रनाथ टैगोर ने अनुवादित किया है तो उन्होंने उसे पढ़ने की इच्छा जाहिर की। गीतांजलि पढ़ने के बाद रोथेंस्टिन उस पर मुग्ध हो गए। उन्होंने अपने मित्र डब्ल्यू. बी. यीट्स को गीतांजलि के बारे में बताया और वहीं नोटबुक उन्हें भी पढ़ने के लिए दी। इसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। यीट्स ने स्वयं गीतांजलि के अंग्रेजी के मूल संस्करण का प्रस्तावना लिखा। सितंबर सन् 1912 में गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद की कुछ सीमित प्रतियां इंडिया सोसायटी के सहयोग से प्रकाशित की गई। लंदन के साहित्यिक गलियारों में इस किताब की खूब सराहना हुई। जल्द ही गीतांजलि के शब्द माधुर्य ने संपूर्ण विश्व को सम्मोहित कर लिया। पहली बार भारतीय मनीषा की झलक पश्चिमी जगत ने देखी। गीतांजलि के प्रकाशित होने के एक साल बाद सन् 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। टैगोर सिर्फ महान रचनाधर्मी ही नहीं थे, बल्कि वो पहले ऐसे इंसान थे जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी दुनिया के मध्य सेतु बनने का कार्य किया था। टैगोर केवल भारत के ही नहीं समूचे विश्व के साहित्य, कला और संगीत के एक महान प्रकाश स्तंभ हैं, जो स्तंभ अनंतकाल तक प्रकाशमान रहेगा।
रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई को, लेकिन हर साल 9 मई को मनाई जाती है क्यूं?
भारत के सबसे प्रसिद्ध कवियों और लेखकों में से एक रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती इस बार 9 मई को मनाई जा रही है. हालांकि उनका जन्म 7 मई, 1861 को हुआ था. ऐसे में देखा जाएं तो उनकी जयंती 7 मई को मनाई जानी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं है. ऐसे में जानते हैं कि ऐसा ना होने के पीछे क्या वजह है। रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकात्ता में हुआ था. लेकिन बंगाल में उनकी लोकप्रियता की वजह से उनकी जयंती बंगाली कैलेंडर के मुताबिक मनाई जाती है. रवींद्रनथ टैगोर की जयंती बंगाली कैलेंडर के महीने बोइशाख महीने के 25वें दिन मनाई जाती है. ऐसे में इस बार बंगाली कैलेंडर के मुताबिक बोइशाख महीने का 25वां दिन 9 मई को पड़ रहा है. इसलिए इस बार यानी की साल 2025 में रबींद्रनाथ टैगोर जयंती मंगलवार, 9 मई को मनाई जायेगी. बता दें कि इस दिन देश के कुछ राज्यों में अवकाश भी होता है।
रवींद्रनाथ टैगोर जयंती 2025 की तिथि
रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हुआ था, हालांकि रवींद्रनाथ टैगोर जयंती बंगाली कैलेंडर के अनुसार मनाई जाती है और यह बंगाली महीने बोईशाख के 25 वें दिन आती है। रवींद्रनाथ टैगोर जयंती की गणना आमतौर पर ग्रेगोरियन महीने में होती है। कैलेंडर वर्ष 2025 में रवींद्रनाथ जयंती शुक्रवार को मनाई जाएगी और 9 तारीख को इस दिन को कुछ राज्यों में राजपत्रित अवकाश के रूप में चिह्नित किया गया है।
रबीन्द्रनाथ ठाकुर या रबीन्द्रनाथ टैगोर
(7 मई, 1861 – अगस्त, 1941) विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं – भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बाँग्ला’ गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।
बनना चाहते थे बैरिस्टर, बिना डिग्री लिए लंदन से लौट आए
बंगाली परिवार में जन्में रवींद्रनाथ टैगोर बचपन से पढ़ाई में अच्छे थे. उन्होंने प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में अपनी शुरुआती शिक्षा ली. रवींद्रनाथ टैगोर बैरिस्टर बनना चाहते थे. अपने इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए उन्होंने 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजस्टोन पब्लिक स्कूल में दाखिला ले लिया. बाद में लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई की. लेकिन 1880 में बिना कानून की डिग्री लिए ही वह वापस स्वदेश आ गए।
राष्ट्रवाद से बड़ी मानवता है।
रविंद्रनाथ टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से ऊंचे स्थान पर रखते थे। गुरुदेव ने कहा था, “जब तक मैं जिंदा हूं मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा।” टैगोर गांधी जी का बहुत सम्मान करते थे। लेकिन वे उनसे राष्ट्रीयता, देशभक्ति, सांस्कृतिक विचारों की अदला बदली, तर्कशक्ति जैसे विषयों पर अलग राय रखते थे। हर विषय में टैगोर का दृष्टिकोण परंपरावादी कम और तर्कसंगत ज़्यादा हुआ करता था, जिसका संबंध विश्व कल्याण से होता था। टैगोर ने ही गांधीजी को महात्मा की उपाधि दी थी। गुरुदेव ने बांग्ला साहित्य के ज़रिये भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान डाली। वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। भारत का राष्ट्रगान जन-गण-मन और बांग्लादेश का राष्ट्रगान आमार सोनार बांग्ला गुरुदेव की ही रचनाएं हैं। ईश्वर और इंसान के बीच मौजूद आदि संबंध उनकी रचनाओं में विभिन्न रूपों में उभर कर आता है। साहित्य की शायद ही ऐसी कोई विधा है, जिनमें उनकी रचना न हो – गान, कविता, उपन्यास, कथा, नाटक, प्रबंध, शिल्पकला, सभी विधाओं में उनकी रचनाएं विश्वविख्यात हैं। उनकी रचनाओं में गीतांजली, गीताली, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, शिशु भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कई किताबों का अनुवाद अंग्रेज़ी में किया। अंग्रेज़ी अनुवाद के बाद उनकी रचनाएं पूरी दुनिया में फैली और मशहूर हुईं। गुरुदेव 1901 में सियालदह छोड़कर शांतिनिकेतन आ गए। प्रकृति की गोद में पेड़ों, बगीचों और एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। टैगोर ने यहां विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। शांतिनिकेतन में टैगोर ने अपनी कई साहित्यिक कृतियां लिखीं थीं और यहां मौजूद उनका घर ऐतिहासिक महत्व का है। रविंद्रनाथ टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रविंद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी ज़्यादातर रचनाएं तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं के कई रंग पेश करते हैं। अलग-अलग रागों में गुरुदेव के गीत यह आभास कराते हैं मानो उनकी रचना उस राग विशेष के लिए ही की गई थी।
साहित्य में योगदान
टैगोर ने बांग्ला साहित्य में नए गद्य और छंद तथा लोकभाषा के उपयोग की शुरुआत की और इस प्रकार शास्त्रीय संस्कृत पर आधारित पारंपरिक प्रारूपों से उसे मुक्ति दिलाई। भारत में रवींद्रनाथ टैगोर ने 1880 के दशक में कविताओं की अनेक पुस्तकें प्रकाशित की तथा मानसी (1890) की रचना की। टैगोर की कविताओं की पांडुलिपि को सबसे पहले विलियम रोथेनस्टाइन ने पढ़ा था और वे इतने मुग्ध हो गए कि उन्होंने अंग्रेजी कवि यीट्स से संपर्क किया और पश्चिमी जगत् के लेखकों, कवियों, चित्रकारों और चिंतकों से टैगोर का परिचय कराया। उन्होंने ही इंडिया सोसायटी से इसके प्रकाशन की व्यवस्था की। शुरू में 750 प्रतियां छापी गईं, जिनमें से सिर्फ 250 प्रतियां ही बिक्री के लिए थीं। बाद में मार्च 1913 में मैकमिलन ऐंड कंपनी लंदन ने इसे प्रकाशित किया और 13 नवंबर 1913 को नोबेल पुरस्कार की घोषणा से पहले इसके दस संस्करण छापने पड़े।
रबिन्द्रनाथ टैगोर के जीवन की कार्यशैली
रबिन्द्रनाथ टैगोर कभी न रुकने वाले, निरंतर कार्य करने पर विश्वास रखते थे . रबिन्द्रनाथ टैगोर ने, अपने आप मे ऐसे कार्य किये है जिससे, लोगो का भला ही हुआ है . उनमे से एक है, शांतिनिकेतन की स्थापना . शान्तिनिकेतन की स्थापना, गुरुदेव का सपना था जो उन्होंने, 1901 मे, पूरा किया. वह चाहते थे कि, प्रत्येक विद्यार्थी कुदरत या प्रकृति के समुख पढ़े, जिससे उसे बहुत ही अच्छा माहोल मिले. इसलिये गुरुदेव ने, शान्तिनिकेतन मे पेड़-पौधों और प्राकृतिक माहोल मे, पुस्तकालय की स्थापना की . रबिन्द्रनाथ टैगोर के अथक प्रयास के बाद, शान्तिनिकेतन को विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ. जिसमे साहित्य कला के, अनेक विद्यार्थी अध्यनरत हुए।
रबिन्द्रनाथ टैगोर की उपलब्धिया
* रबिन्द्रनाथ टैगोर को अपने जीवन मे, कई उपलब्धियों या सम्मान से नवाजा गया परन्तु, सबसे प्रमुख थी “गीतांजलि” . 1913 मे, गीतांजलि के लिये, रबिन्द्रनाथ टैगोर को “नोबेल पुरुस्कार” से सम्मानित किया गया .
* रबिन्द्रनाथ टैगोर ने, भारत को और बंगला देश को, उनकी सबसे बड़ी अमानत के रूप मे, राष्ट्रगान दिया है जोकि, अमरता की निशानी है. हर महत्वपूर्ण अवसर पर, राष्ट्रगान गाया जाता है जिसमे, भारत का “जन-गण-मन है” व बंगला देश का “आमार सोनार बांग्ला” है .
* यह ही नही रबिन्द्रनाथ टैगोर अपने जीवन मे तीन बार अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक से मिले जो रबिन्द्रनाथ टैगोर को रब्बी टैगोर कह कर पुकारते थे।
* रवींद्रनाथ टैगोर प्रतिष्ठित विश्व भारती विश्वविद्यालय के संस्थापक थे।
* रवींद्रनाथ टैगोर ने भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान की रचना की और श्रीलंका के राष्ट्रगान में योगदान दिया। वह दुनिया के एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्होंने एक से अधिक राष्ट्रों के राष्ट्रगान लिखे हैं।
* 1940 में इंग्लैंड में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने शिक्षा के क्षेत्र में उनकी कई उपलब्धियों के लिए टैगोर को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
* रवींद्रनाथ टैगोर को अंग्रेजों ने वर्ष 1915 में नाइट की उपाधि से नवाजा था।* 1930 में पेरिस और लंदन में रवींद्रनाथ टैगोर के चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई थी। वह यूरोप, रूस और संयुक्त राज्य भर में अपने काम का प्रदर्शन करने वाले पहले भारतीय कलाकार बने। उनके द्वारा 102 कार्य भारत की आधुनिक कला की राष्ट्रीय गैलरी के संग्रह में सूचीबद्ध हैं।
* रवींद्रनाथ टैगोर जापान में डार्टिंगटन हॉल स्कूल के सह-संस्थापक थे।
* 1877 में, 16 साल की उम्र में, रवींद्रनाथ टैगोर ने भिखारिनी नामक एक लघु कहानी लिखी। रवींद्रनाथ टैगोर की सबसे प्रसिद्ध लघु कथाओं में काबुलीवाला (काबुल के फल विक्रेता) शामिल हैं, जिसके आधार पर 1957 की एक बंगाली फिल्म और 1961 की एक हिंदी फिल्म बनाई गई थी।
* भारतीय डाक विभाग ने 7 मई 1961 को रवींद्रनाथ ठाकुर को अपनी श्रद्धांजलि दिखाई जब रवींद्रनाथ टैगोर के नाम पर एक डाक टिकट जारी किया गया।
* भारत सरकार, पश्चिम बंगाल सरकार और कई निजी फर्मों ने रवींद्रनाथ टैगोर के नाम पर दुनिया भर में संस्थान, स्वास्थ्य केंद्र और कई सेवा केंद्र खोलकर रवींद्रनाथ टैगोर के प्रति सम्मान दिखाया।
रवींद्रनाथ टैगोर जयंती समारोहरवींद्र जयंती का उत्सव बंगाल में लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। महान कवि- रवींद्रनाथ की स्मृति में पूरे शहर में सांस्कृतिक कार्यक्रम और कविता पाठ आयोजित किए जाते हैं। इस दिन के दौरान सभी सांस्कृतिक गतिविधियां जोरासांको ठाकुरबाड़ी में आयोजित की जाती हैं। संगीत, स्किट, नाटक, पारंपरिक गीत और नृत्य संस्थानों और थिएटरों में किए जाते हैं, जिसके बाद पुरस्कारों का वितरण किया जाता है। जोरासांको ठाकुरबाड़ी और रवींद्र सदन रवींद्र जयंती के दौरान सभी सांस्कृतिक गतिविधियों का मुख्य स्थान है। उत्सव सुबह से शाम तक जारी रहता है। यह रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा शुरू किए गए विश्वविद्यालय शांतिनिकेतन में समान उत्साह के साथ मनाया जाता है।
नोबेल और अन्य सम्मान
उनकी काव्यरचना गीतांजलि के लिये उन्हें सन् 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। वह पहले गैर यूरोपीय थे जिनको साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। नोबेल पुरस्कार गुरुदेव ने सीधे स्वीकार नहीं किया। उनकी ओर से ब्रिटेन के एक राजदूत ने पुरस्कार लिया था और फिर उनको दिया था। उनको ब्रिटिश सरकार ने ‘सर’ की उपाधि से भी नवाजा था जिसे उन्होंने 1919 में हुए जलियांवाला बाग कांड के बाद लौटा दिया था। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने उनको ‘सर’ की उपाधि वापस लेने के लिए मनाया था, मगर वह राजी नहीं हुए। उन्होंने न सिर्फ भारत बल्कि बांग्लादेश और श्रीलंका के लिए भी राष्ट्रगान लिखे। स्वामी विवेकानंद के बाद वह दूसरे व्यक्ति थे जिन्होंने विश्व धर्म संसद को दो बार संबोधित किया। प्रोस्टेट कैंसर के कारण 7 अगस्त, 1941 को उनका निधन हुआ था। टैगोर का लोगों के बीच इतना ज्यादा सम्मान था कि लोग उनकी मौत के बारे में बात नहीं करना चाहते थे।
टैगोर की रचनाओं पर बन चुकी है कई फिल्म
साल 1953 में रिलीज हुई बिमल रॉय की फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी थी. इस फिल्म की कहानी रवींद्रनाथ टैगोर की बंगाली रचना ‘दुई बीघा जोमी’ पर आधारित थी. रवींद्रनाथ टैगोर की लघु कहानी पर रितुपर्णो घोष ने साल 2003 में ‘चोखेर बाली’ बनाई. हिंदी ड्रामा फिल्म ‘बायोस्कोपवाला’ साल 2017 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म की कहानी रवींद्रनाथ टैगोर की काबुलीवाला की एक छोटी कहानी पर आधारित थी. कहानी काबुलीवाला पर बिमल रॉय ने 1961 पर फिल्म ‘काबुलीवाला’ बनाई थी।
रविंद्रनाथ टैगोर के कुछ अनमोल वचन
* यदि आप सभी गलतियों के लिए दरवाजे बंद कर देंगे तो सच बाहर रह जायेगा।* मित्रता की गहराई परिचय की लम्बाई पर निर्भर नहीं करती।
* प्रेम अधिकार का दावा नहीं करता, बल्कि स्वतंत्रता प्रदान करता है।
* समय परिवर्तन का धन है, परन्तु घड़ी उसे केवल परिवर्तन के रूप में दिखाती है, धन के रूप में नहीं ।
* हमेशा तर्क करने वाला दिमाग धार वाला वह चाकू है जो प्रयोग करने वाले के हाथ से ही खून निकाल देता है।
* प्रसन्न रहना बहुत सरल है, लेकिन सरल होना बहुत कठिन है।
* तितली महीने नहीं क्षण गिनती है और उसके पास पर्याप्त समय होता है।
* चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है।
* मित्रता की गहराई परिचय की लम्बाई पर निर्भर नहीं करती।* विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है, और गाने लगता है।
* संगीत दो आत्माओं के बीच के अनंत को भरता है।
* प्रत्येक शिशु यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है।
अपने सशक्त विचारों से जन जन को प्रेरित करने वाले महान कवि गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर को जयंती पर सादर नमन। समाज सुधार, राष्ट्रीय जागरण और अंतरराष्ट्रीय भावना के विकास हेतु उनके द्वारा दिए गए अप्रतिम योगदान के प्रति हम सदैव कृतज्ञ रहेंगे। जब-जब देश के राष्ट्रगान को गाया जाएगा तब-तब उनके नाम का उल्लेख किया जाएगा।