‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए’ का संदेश देने वाले युवाओं के प्रेरणास्रोत, समाज सुधारक युवा युग-पुरुष ‘स्वामी विवेकानंद’ का आज जन्मदिन है. 12 जनवरी 1863 को उनका जन्म कलकत्ता में हुआ था. हर साल इसी दिन (12 जनवरी) को राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) के रूप में मनाया जाता है. स्वामी विवेकानंद अपने ओजपूर्ण और बेबाक भाषणों के कारण काफी लोकप्रिय हुए, खासकर युवाओं के बीच. यही कारण है कि उनके जन्मदिन को पूरा राष्ट्र ‘युवा दिवस’ के रूप में मनाता है. स्वामी विवेकानंद का नाम इतिहास में एक ऐसे विद्वान के रूप में दर्ज है, जिन्होंने मानवता की सेवा को अपना सर्वोपरि धर्म माना. उन्होंने मानवता की सेवा एवं परोपकार के लिए 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. इस मिशन का नाम विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रखा. स्वामी विवेकानंद का रोम रोम राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत था. स्वामी जी मानवता की सेवा एवं परोपकार को ही भगवान की सच्ची पूजा मानते थे. स्वामी विवेकानंद को यु्वाओं से बड़ी उम्मीदें थीं. उन्होंने युवाओं को धैर्य, व्यवहारों में शुद्धता रखने, आपस में न लड़ने, पक्षपात न करने और हमेशा संघर्षरत रहने का संदेश दिया. आज भी वे कई युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत बने हुए हैं. आज भी स्वामी विवेकानंद को उनके विचारों और आदर्शों के कारण जाना जाता है।
राष्ट्रीय युवा दिवस, जिसे विवेकानंद जयंती के रूप में भी जाना जाता है, 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है । 1984 में भारत सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में घोषित किया और 1985 से यह आयोजन हर साल भारत में मनाया जाता है। राष्ट्रीय युवा दिवस भारत के उन युवाओं व नौजवानों को समर्पित एक खास दिन है, जो देश के भविष्य को बेहतर और स्वस्थ बनाने का क्षमता रखते हैं। भारतीय युवा दिवस को 12 जनवरी को मनाने की एक खास वजह है। इस दिन स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था। स्वामी विवेकानंद की जयंती को देश के युवाओं के नाम पर समर्पित करते हुए हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।सवाल है कि स्वामी विवेकानंद का युवाओं से क्या नाता है, जिसके कारण उनके जन्मदिन को युवा दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। विवेकानंद जयंती को कब से राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाने की शुरुआत की गई? आखिर स्वामी विवेकानंद कौन हैं और उनका देश की उन्नति में क्या योगदान है? जानिए स्वामी विवेकानंद के बारे में सबकुछ और उनकी जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाने की वजह व इतिहास के बारे में।
कौन थे स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वह वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। छोटी उम्र से ही उन्हें अध्यात्म में रुचि हो गई थी। पढ़ाई में अच्छे होने के बावजूद जब वह 25 साल के हुए तो अपने गुरु से प्रभावित होकर नरेंद्रनाथ ने सांसारिक मोह माया त्याग दी और संयासी बन गए। संन्यास लेने के बाद उनका नाम विवेकानंद पड़ा। 1881 में विवेकानंद की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई।
स्वामी विवेकानंद की जयंती पर युवा दिवस क्यों मनाया जाता है?
स्वामी विवेकानंद को ऑलराउंडर कहा जाता है। वह धर्म, दर्शन, इतिहास, कला, सामाजिक विज्ञान, साहित्य के ज्ञाता थे। शिक्षा में अच्छे होने के साथ ही वह भारतीय शास्त्रीय संगीत का भी ज्ञान रखते थे। इसके अलावा विवेकानंद जी एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। वह युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं। उन्होंने कई मौकों पर अपने अनमोल विचारों और प्रेरणादायक वचनों से युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। इसीलिए स्वामी विवेकानंद जी जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
राष्ट्रीय युवा दिवस की शुरुआत कब और कैसे हुई
स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन को युवाओं के लिए समर्पित करने की शुरुआत 1984 में हो गई थी। उन दिनों भारत सरकार ने कहा था कि स्वामी विवेकानंद का दर्शन, आदर्श और काम करने का तरीका भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत हो सकते हैं। तब से स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर मनाने की घोषणा कर दी गई।
राष्ट्रीय युवा दिवस 2025 की थीम
विश्वभर में राष्ट्रीय युवा दिवस को बढ़ावा देने के लिए हर साल यह किसी विशेष थीम पर मनाया जाता है। 12 जनवरी को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय युवा दिवस 2025 की थीम – राष्ट्र निर्माण के लिए युवा सशक्तिकरण है जो भारत के भविष्य को आकार देने में युवा व्यक्तियों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देता है। इसके साथ ही, राष्ट्रीय युवा महोत्सव 2025 विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नवाचार पर ध्यान केंद्रित करेगा, जो युवाओं को इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपने दृष्टिकोण व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करेगा।
सीबीएसई ने की स्कूलों से राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने की अपील
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने भी देश भर के सम्बद्ध सभी स्कूलों से अपील की है कि वे राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर स्वामी विवेकानंद को समर्पित विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम, सभा, वाद-विवाद या भाषण ऑनलाइन/ऑफलाइन मोड में आयोजित करें।
स्वामी विवेकानंद के बारे में
* स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को नरेंद्र नाथ दत्ता के रूप में हुआ था।
* वह एक साधु और रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे।
* उन्होंने वेदांत और योग के भारतीय दर्शन को पश्चिमी दुनिया में पेश किया और उन्हें 19वीं शताब्दी के अंत में हिंदू धर्म को विश्व मंच पर लाने के लिए अंतर-जागरूकता बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है।
वेदान्त
* यह उपनिषदों और उनकी व्याख्या पर आधारित था ।
* इसका उद्देश्य ‘ब्राह्मण’ (परम वास्तविकता) के बारे में पूछताछ करना था जो उपनिषदों की केंद्रीय अवधारणा थी ।
* उन्होंने वेद को सूचना के अंतिम स्रोत के रूप में देखा और जिसके अधिकार पर सवाल नहीं उठाया जा सकता था।
* उन्होंने बलिदान (कर्म) के विपरीत ज्ञान (ज्ञान) के मार्ग पर जोर दिया।
* ज्ञान का अंतिम उद्देश्य ‘मोक्ष’ यानि ‘संसार’ से मुक्ति था ।
* उन्होंने 1987 में अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। संस्था ने भारत में व्यापक शैक्षिक और परोपकारी कार्य किए।
* उन्होंने 1893 में शिकागो (अमेरिका) में आयोजित पहली धर्म संसद में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया।
स्वामी विवेकानंद के दर्शन के मूल मूल्य
नीति – व्यक्तिगत जीवन और सामाजिक जीवन दोनों में नैतिकता ज्यादातर सामाजिक निंदा के डर पर आधारित है।
* लेकिन विवेकानंद ने आत्मा की आंतरिक शुद्धता और एकता पर आधारित नैतिकता का एक नया सिद्धांत और नैतिकता का नया सिद्धांत दिया।
* विवेकानंद के अनुसार नैतिकता एक आचार संहिता के अलावा और कुछ नहीं थी जो एक आदमी को एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करती है।
* हमें शुद्ध होना चाहिए क्योंकि पवित्रता ही हमारा वास्तविक स्वरूप है, हमारी सच्ची दिव्य आत्मा या आत्मा है।
* इसी तरह, हमें अपने पड़ोसियों से प्यार और सेवा करनी चाहिए क्योंकि हम सभी परमात्मा या ब्रह्म के नाम से जाने जाने वाले सर्वोच्च आत्मा में एक हैं।
धर्म – आधुनिक दुनिया में स्वामी विवेकानंद के सबसे महत्वपूर्ण योगदानों में से एक है धर्म की उनकी व्याख्या, पारलौकिक वास्तविकता के एक सार्वभौमिक अनुभव के रूप में, जो सभी मानवता के लिए सामान्य है।
* यह सार्वभौमिक अवधारणा धर्म को अंधविश्वास, हठधर्मिता, पुजारी शिल्प और असहिष्णुता की पकड़ से मुक्त करती है।
* उनका मानना था कि प्रत्येक धर्म शाश्वत सर्वोच्च – सर्वोच्च स्वतंत्रता, सर्वोच्च ज्ञान, सर्वोच्च सुख का मार्ग प्रदान करता है।
* यह PARAMATMA के हिस्से के रूप में किसी के आत्मा को महसूस करके पूरा किया जा सकता है।
शिक्षा – स्वामी विवेकानंद ने हमारी मातृभूमि के उत्थान के लिए शिक्षा पर सबसे अधिक जोर दिया।
* उनके अनुसार, एक राष्ट्र उसी अनुपात में उन्नत होता है जिस अनुपात में शिक्षा जनता के बीच फैलती है।
* उन्होंने कहा कि हमारी शिक्षा की प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए कि यह छात्रों को उनके सहज ज्ञान और शक्ति को प्रकट करने में मदद करे।
* उन्होंने मानव-निर्माण चरित्र-निर्माण शिक्षा की वकालत की।
* उन्होंने कहा कि शिक्षा को छात्रों को आत्मनिर्भर बनाना चाहिए और उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद करनी चाहिए। वह तथाकथित शिक्षितों के अत्यधिक आलोचक थे जो गरीबों और दलितों की परवाह नहीं करते हैं।
चेतना – वह आधुनिक विज्ञान की विधियों और परिणामों से पूर्णतः सहमत थे।
* उन्होंने विश्वास के पक्ष में तर्क को नहीं छोड़ा।
* उन्होंने अंतर्ज्ञान या प्रेरणा को तर्क से उच्च संकाय के रूप में मान्यता दी। लेकिन अंतर्ज्ञान से प्राप्त सत्य को तर्क द्वारा समझाया और व्यवस्थित किया जाना था।
राष्ट्रवाद – हालांकि राष्ट्रवाद के विकास का श्रेय पश्चिमी प्रभाव को जाता है लेकिन स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रवाद भारतीय आध्यात्मिकता और नैतिकता में गहराई से निहित है।
* उनका राष्ट्रवाद मानवतावाद और सार्वभौमिकता पर आधारित है, जो भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति की दो प्रमुख विशेषताएं हैं।
* पश्चिमी राष्ट्रवाद के विपरीत, जो प्रकृति में धर्मनिरपेक्ष है, स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रवाद धर्म पर आधारित है जो भारतीय लोगों का जीवन रक्त है।
उनके राष्ट्रवाद के आधार हैं:
* जनता, स्वतंत्रता और समानता के लिए गहरी चिंता जिसके माध्यम से कोई भी स्वयं को व्यक्त करता है, सार्वभौमिक भाईचारे के आधार पर दुनिया का आध्यात्मिक एकीकरण।
* “कर्मयोग” निःस्वार्थ सेवा के माध्यम से राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए नैतिकता की एक प्रणाली है।
* उनके लेखन और भाषणों ने मातृभूमि को देशवासियों के मन और दिल में पूजे जाने वाले एकमात्र देवता के रूप में स्थापित किया।
युवा – स्वामी जी का मानना था कि अगर हमारे युवा ठान लें तो उनके लिए दुनिया में कुछ भी हासिल करना असंभव नहीं है।
* उन्होंने युवाओं से सफलता प्राप्त करने के लिए समर्पण करने का आग्रह किया। हमारे युवाओं के लिए अत्यंत समर्पण के साथ चुनौती का पीछा करना वास्तव में सफलता का मार्ग है।
* इसलिए स्वामीजी ने युवाओं से न केवल अपनी मानसिक बल्कि शारीरिक ऊर्जा को भी बढ़ाने का आह्वान किया। वह ‘लोहे की मांसपेशियां’ के साथ-साथ ‘इस्पात की नसें’ भी चाहता था।
* 12 जनवरी को उनका जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है और उस दिन से शुरू होने वाले सप्ताह को राष्ट्रीय युवा सप्ताह के रूप में जाना जाता है।
* राष्ट्रीय युवा सप्ताह समारोह के हिस्से के रूप में, भारत सरकार हर साल राष्ट्रीय युवा महोत्सव आयोजित करती है।
* युवा उत्सव का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता की अवधारणा, सांप्रदायिक सद्भाव की भावना, भाईचारे, साहस और साहस को युवाओं के बीच एक साझा मंच पर अपनी सांस्कृतिक शक्ति का प्रदर्शन करके प्रचारित करना है।
स्वामी विवेकानंद से जुड़ी रोचक बातें
* स्वामी विवेकानंद अक्सर लोगों से एक सवाल किया करते थे कि क्या आपने भगवान को देखा है? इसका सही जवाब किसी के पास नहीं मिला। एक बार उन्हें रामकृष्ण परमहंस से भी यही सवाल किया था, जिस पर रामकृष्ण परमहंस जी ने जवाब दिया था, हां मुझे भगवान उतने ही स्पष्ट दिख रहे हैं, जितना की तुम दिख रहे हो, लेकिन मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर पा रहा हूं।
* स्वामी विवेकानंद ने 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। वहीं 1898 में गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना भी की थी।
* 11 सितंबर 1893 में अमेरिका में धर्म संसद का आयोजन हुआ, जिसमें स्वामी विवेकानंद भी शामिल हुए थे। यहां उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत हिंदी में ये कहकर की कि ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’। उनके भाषण पर आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में पूरे दो मिनट तक तालियां बजती रहीं। जो भारत के इतिहास में एक गर्व और सम्मान की घटना के तौर पर दर्ज हो गई।
स्वामी विवेकानंद के 10 अनमोल विचार
1. उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक कि लक्ष्य न प्राप्त हो जाए.
2. जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए, नहीं तो लोगों का विश्वास उठ जाता है.
3. जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते.
4. सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा.
5. जिस दिन आपके सामने कोई समस्या न आए, आप यकीन कर सकते हैं कि आप गलत रास्ते पर सफर कर रहे हैं.
6. विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं.
7. यह जीवन अल्पकालीन है, संसार की विलासिता क्षणिक है, लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, वे वास्तव में जीते हैं.
8. जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग चाहे वह अच्छा हो या बुरा, भगवान तक जाता है.
9. हम वो हैं, जो हमें हमारी सोच ने बनाया है इसलिए इस बात का ध्यान रखिए कि आप क्या सोचते हैं. शब्द गौण हैं, विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं.
10. उठो मेरे शेरों, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, न ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है, तुम तत्व के सेवक नहीं हों.
स्वामी विवेकानंद 19वीं शताब्दी के थे, फिर भी उनका संदेश और उनका जीवन अतीत की तुलना में आज अधिक प्रासंगिक है और शायद भविष्य में भी अधिक प्रासंगिक होगा। स्वामी विवेकानंद जैसे व्यक्ति अपनी शारीरिक मृत्यु के साथ अस्तित्व को समाप्त नहीं करते हैं – उनका प्रभाव और उनका विचार, वह कार्य जो वे शुरू करते हैं, जैसे-जैसे वर्ष बीतते हैं, गति प्राप्त करते हैं, और अंततः, उस पूर्णता तक पहुंच जाते हैं जिसकी उन्होंने परिकल्पना की थी।