छठ पूजा पर भगवान सूर्य और छठी माता की पूजा होती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सूर्य देव की कृपा मिलती है। साथ ही संतान से जुड़ी सभी समस्याएं दूर होती हैं। इस साल छठ पूजा की शुरुआत आज यानी 5 नवंबर 2024 से शुरू हो गई ही है तो चलिए इस महापर्व से जुड़ी कुछ प्रमुख बातों को जानते हैं।
छठ पूजा हिंदू धर्म का बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इस साल इस महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ आज यानी 5 नवंबर से हो गई है। इस चार दिवसीय त्योहार में 36 घंटे का कठोर उपवास रखा जाता है, जो सूर्य देव और उनकी बहन छठी माता को समर्पित है। छठ पूजा बिहार और यूपी के सबसे बड़े और प्रमुख त्योहारों में से एक है, जहां घरों की सफाई से लेकर पूजा सामग्री, सूप खरीदने तक की तैयारी कई दिन पहले ही शुरू हो जाती है। यह पर्व वैदिक युग से चला आ रहा है, तो आइए इस महत्वपूर्ण पर्व से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं, जो इस प्रकार हैं।
नहाय-खाय परंपरा
दिवाली के चौथे दिन यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय की परंपरा होती है। इस दिन कुछ खास रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है। इस साल छठ पूजा 5 नवंबर नहाय-खाय से शुरू हो रही है। इस दिन घर का शुद्धिकरण किया जाता है। इसके बाद छठ व्रती स्नान कर शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण कर अपना व्रत शुरू करते हैं। नहाय-खाय में व्रती चावल के साथ लौकी की सब्जी, छोले और मूली आदि का सेवन करते हैं। उपवास करने वाले व्रती के भोजन करने के बाद ही परिवार के बाकी सदस्य इस महाप्रसाद का सेवन करते हैं।
नहाय-खाय का धार्मिक महत्व
नहाय-खाय को छठ पूजा की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति किसी पवित्र नदी या तालाब में स्नान करते हैं और प्रसाद के रूप में कच्चे चावल, चने और लौकी की सब्जी भोजन के तौर पर ग्रहण करते हैं। यह भोजन शुद्ध और पवित्र माना जाता है। इस दिन नमक वाला भोजन केवल एक बार ही किया जाता है। नहाय-खाय का सार पवित्रता से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इस शुभ दिन पर व्रती खुद को शुद्ध करते हैं और सात्विक और पवित्र तरीके से छठ व्रत शुरू करते हैं।
छठ पूजा का पहला दिन
छठ पूजा का पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है. नहाय-खाय 5 नवंबर 2024 को है. इस दिन से छठ पर्व की शुरुआत मानी जाती है. इस दिन व्रतधारी सुबह पवित्र नदी में स्नान कर नए वस्त्र धारण करती है और सात्विक भोजन ग्रहण करती है. नहाय-खाय के दिन मुख्य तौर पर चने की दाल, कद्दू या लौकी और अरवा चावल का भात बनाया जाता है. इन सभी भोजन को पवित्र अग्नि में घी और सेंघा नमक से तैयार किया जाता है. नहाय-खाय में बनने वाला कद्दू-भात का प्रसाद शरीर, मन और आत्मा के शुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
छठ पूजा का दूसरा दिन
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहते हैं, जोकि 6 नवंबर 2024 को है. खरना के दिन व्रती केवल शाम के समय खीर और मीठी रोटी का प्रसाद ग्रहण करती है. यह प्रसाद भी शुद्ध लकड़ी के चूल्हे में ही तैयार किया जाता है. खरना करने के बाद व्रती पूर्ण संकल्प के साथ 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत करती है. खरना के प्रसाद को बहुत पवित्र माना जाता है. दूर-दूर से लोग प्रसाद ग्रहण करने आते हैं।
छठ पूजा का तीसरा दिन
छठ पूजा के तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य कहा जाता है, जोकि छठ पर्व का सबसे अहम दिन होता है. इस साल संध्या अर्घ्य 7 नवंबर 2024 को है. इस दिन अस्तचलागामी यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की पंरपरा है. आमतौर पर हम उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं, लेकिन छठ एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का उद्देश्य सूर्य देव के साथ उनकी पत्नी प्रत्यूषा को सम्मान देना है।
छठ पूजा का चौथा दिन
छठ पूजा का अंतिम और चौथा दिन 8 नवंबर 2024 को है. इस दिन उदयगामी यानी उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसे उषा अर्घ्य भी कहते हैं. क्योंकि ऊषा सूर्य देव की पत्नी का नाम है. छठ पर्व में डूबते और उगते सूर्य को इसलिए अर्घ्य दिया जाता है, क्योंकि भगवान सूर्य की पत्नियां यानी ऊषा और प्रत्यूषा की उनकी शक्तियों का मुख्य स्त्रोत है. उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पर्व का समापन हो जाता है।
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