हरेली तिहार इस साल 4 अगस्त रविवार को मनाया जायेगा, इस पर्व को पूरे छत्तीसगढ़ में धूमधाम से मनाया जाता है, हरेली तिहार छत्तीसगढ़ के सबसे पहला त्यौहार है, ये त्योहार प्रकृति से जुड़ा है, हरेली तिहार छत्तीसगढ़ के जन-जीवन में रचा-बसा खेती-किसानी से जुड़ा हुआ त्यौहार है। इसमें अच्छी फसल की कामना के साथ खेती-किसानी से जुड़े औजारों की पूजा की जाती है। इस त्यौहार के दिन वहीं कहीं-कहीं मुर्गे और बकरे की बलि देने की भी परम्परा है।
हिंदू धर्म में हरियाली अमावस्या का बहुत महत्व है, जिसे सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है, इस साल हरियाली अमावस्या 04 अगस्त 2024 दिन रविवार को मनाई जाएगी. वहीं इस दिन छत्तीसगढ़ का प्रमुख त्योहार हरेली मनाया जाता है जो मुख्यतः किसानों और कृषि और प्राकृतिक से जुड़ा होता है. इस हरेली त्योहार में किसान अच्छी फसल की कामना के साथ खेती-किसानी से जुड़े औजारों की पूजा करते है, छत्तीसगढ़ में हरेली का मतलब ‘हरियाली’ होता है जिसे ‘हरियाली अमावस्या’ के नाम से भी जाना जाता है. इस त्योहार के पूर्व तक किसान अपनी फसलों की बोआई या रोपाई कर लेते हैं और इस दिन कृषि संबंधी सभी यंत्रों जो कृषि में उपयोग होते है जैसे हल, नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा, साबर आदि की अच्छे से पानी से धोकर साफ-सफाई करते हैं. सभी को एक स्थान पर रखकर उसकी विधि पूजा-अर्चना करते हैं. इस दिन घर में महिलाएं चावल आटे और गुड़ से बने छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाती हैं. जिसे गुढ़ा चीला भी कहते है, इसी चीला को पूजा में भोग लगाया जाता हैं, इस हरेली के दिन घरों में बैल, गाय और भैंस को बीमारी से बचाने के लिए बगरंडा और नमक खिलाने की परंपरा है. तो आइए जानते हैं हरेली त्योहार में और क्या-क्या किया जाता है…
कब मनाया जाता है हरेली तिहार
हरेली त्योहार श्रावण मास में कृष्ण पक्ष अमावस्या को मनाया जाता है। ज्यादातर जुलाई के महीने में यह त्यौहार पड़ता है। पानी बरसने के बाद खेतों में फसल हरी-भरी हो जाती है तब यह त्यौहार मनाते हैं। इस वर्ष हरेली त्यौहार 4 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा।
हरेली तिहार पर किसान खेती के औजारों की करते हैं पूजा
हरेली तिहार पर किसान नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि में काम आने वाले औजारों की साफ-सफाई करते हैं। इस अवसर पर घरों में गुड़ का चीला बनाया जाता है। बैल, गाय व भैंस को बीमारी से बचाने के लिए बगरंडा और नमक खिलाने की परपंरा है। हरेली तिहार पर कुल देवता व कृषि औजारों की पूजा करने के बाद किसान अच्छी फसल की कामना करते हैं।
गांवों में रहता है सुबह से उत्सव का माहौल
ग्रामीण क्षेत्रों में सुबह से शाम तक उत्सव जैसी धूम रहती है. इस दिन बैल, भैंस और गाय को बीमारी से बचाने के लिए बगरंडा और नमक खिलाने की परंपरा है. लिहाजा, गांव में यादव समाज के लोग सुबह से ही सभी घरों में जाकर गाय, बैल और भैंसों को नमक और बगरंडा की पत्ती खिलाते हैं. इस दिन यादव समाज के लोगों को भी स्वेच्छा से दाल, चावल, सब्जी और अन्य उपहार दिए जाते हैं।
गांव में कई तरह के प्रतियोगिता होती है
हरेली पर्व में गांव और शहरों में नारियल फेंक प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है. सुबह पूजा-अर्चना के बाद गांव के चौक-चौराहों पर युवाओं की टोली जुटती है और नारियल फेंक प्रतियोगिता खेली जाती है. नारियल हारने और जीतने का यह सिलसिला देर रात तक चलता है. इसी तरह नारियल जीत की धूम शहरों में भी होती है।
घरों के बाहर नीम के पत्ते लगाए जाते हैं
यह भी माना जाता है कि श्रावण कृष्ण पक्ष की अमावस्या यानी हरेली के दिन से तंत्र विद्या की शिक्षा देने की शुरुआत की जाती है. इसी दिन से प्रदेश में लोकहित की दृष्टि से जिज्ञासु शिष्यों को पीलिया, विष उतारने, नजर से बचाने, महामारी और बाहरी हवा से बचाने समेत कई तरह की समस्याओं से बचाने के लिए मंत्र सिखाया जाता है. हरेली के दिन गांव-गांव में लोहारों की पूछ परख बढ़ जाती है. इस दिन लोहार हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्ती लगाकर और चौखट में कील ठोंककर आशीर्वाद देते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट से रक्षा होती है. इसके बदले में किसान उन्हें दान स्वरूप स्वेच्छा से दाल, चावल, सब्जी और नगद राशि देते हैं।
गेड़ी पर लोग चलते हैं
हरेली तिहार के साथ गेड़ी चढ़ने की परंपरा अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग सभी परिवारों द्वारा गेड़ी का निर्माण किया जाता है। परिवार के बच्चे और युवा गेड़ी का जमकर आनंद लेते है। गेड़ी बांस से बनाई जाती है। दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाई जाती है। एक और बांस के टुकड़ों को बीच से फाड़कर उन्हें दो भागों में बांटा जाता है। उसे नारियल रस्सी से बांध़कर दो पउआ बनाया जाता है। यह पउआ असल में पैर दान होता है जिसे लंबाई में पहले कांटे गए दो बांसों में लगाई गई कील के ऊपर बांध दिया जाता है। गेड़ी पर चलते समय रच-रच की ध्वनि निकलती हैं, जो वातावरण को औैर आनंददायक बना देती है। इसलिए किसान भाई इस दिन पशुधन आदि को नहला-धुला कर पूजा करते हैं। गेहूं आटे को गूंथ कर गोल-गोल बनाकर अरंडी या खम्हार पेड़ के पत्ते में लपेटकर गोधन को औषधि खिलाते हैं। ताकि गोधन को विभिन्न रोगों से बचाया जा सके। गांव में पौनी-पसारी जैसे राऊत व बैगा हर घर के दरवाजे पर नीम की डाली खोंचते हैं। गांव में लोहार अनिष्ट की आशंका को दूर करने के लिए चौखट में कील लगाते हैं। यह परम्परा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान है। हरेली में जहां किसान कृषि उपकरणों की पूजा कर पकवानों का आनंद लेते हैं. वहीं युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का मजा लेते है. लिहाजा सुबह से ही घरों में गेड़ी बनाने का काम शुरू हो जाता है. ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो इस दिन 20 से 25 फीट ऊंची गेड़ी बनवाते हैं।
बंद रहता है खेती का कार्य
अमावस्या के दिन खेती का कार्य करना वर्जित है। इसलिए इस दिन कोई भी किसान अपने खेतों में कार्य नहीं करते हैं। हरेली त्यौहार को गेड़ी चढ़ने का त्यौहार भी कहा जाता है। क्योंकि इस दिन लोग बांस की लकड़ी से गेड़ी बनाकर गेड़ी चढ़ते हैं। गेड़ी चढ़ने का आनंद ही अलग है लोग इस दिन गेड़ी चढ़कर आनंद उत्सव मनाते हैं। इस दिन पुजारी बैगा को अन्न भेंट किया जाता है। हरेली अमावस्या को गांव के पुजारी बैगा घर-घर जाकर दशमूल पौधा एवं भिलवा पत्ते आदि को घर के मुख्य दरवाजे पर बांधते हैं।
हरेली का अर्थ होता है हरियाली. इस दिन छत्तीसगढ़ वासी पूजा अर्चना कर पूरे विश्व में हरियाली छाई रहने की कामना करते हैं. उनकी कामना होती है कि विश्व में हमेशा सुख शांति बनी रहे. इस त्यौहार को इन्हीं कामनाओं के साथ अच्छे से पवित्र मन के साथ मनाया जाता है।
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