त्यौहार भारत देश की धरोहर हैं इनकी मान्यता दिल की भावनाओ से जुड़ी होती हैं. उगादी त्यौहार को गुडी पाडवा के नाम से भी जाना जाता है, यह हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार है. जिसे लोग बहुत ही हर्ष के साथ मानते है. गुड़ी पड़वा एक ऐसा त्यौहार होता है, जिसे हर एक हिंदू बड़ी ही श्रद्धा से और धूमधाम तरीके से मनाता है. हिंदू धर्म के अनुसार गुड़ी पड़वा चेत्र माह के पहले दिन मनाया जाता है और यही हिंदुओं का नववर्ष का पहला दिन भी कहलाता है. वैसे तो लगभग हर एक व्यक्ति चैत्र महीने के प्रथम दिन यानी कि गुड़ी पड़वा के दिन को वर्ष का प्रथम दिन होने का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है. आज हम इस लेख के माध्यम से गुड़ी पड़वा क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है और इसके पीछे प्राकृतिक और आध्यात्मिक मान्यताएं क्या है यह सब कुछ जानने का प्रयास करेंगे. यदि आप भी इस हिंदू नव वर्ष से संबंधित जानकारी को हासिल करना चाहते हैं, तो हमारे इस लेखक को अंतिम तक अवश्य पढ़ें।
गुड़ी पड़वा, चैत्र नवरात्रि या उगादी, चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है, इस दिन दान का महत्व है. साथ ही नौ दुर्गा के दिन का प्रारम्भ भी इसी गुड़ी पड़वा से होता हैं, सभी इस दिन से घरो को शुद्ध कर पूजा पाठ करते हैं. कई लोग गणगोर माता का विवाह रचते हैं. हिंदू धर्म का यह त्यौहार हर मास चैत्र महीने की शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है. चैत्र माह में हिंदू धर्म के कई पावन और धार्मिक त्यौहार, व्रत आदि अपना पदार्पण करते हैं. गुड़ी पड़वा जैसे पावन त्यौहार को महाराष्ट्रीयन समेत कई अन्य भारत के स्थानों में मनाने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है. हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ भी इसी दिन से होता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है, कि ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि समेत कई अन्य देवी-देवताओं, नर-मनुष्य और दैत्य, राक्षसों आदि का निर्माण किया था. इस त्यौहार एक बारे में पूरी जानकारी यहाँ दी जा रही है।
गुड़ी पड़वा या उगादी के बारे में जानकारी
नाम : गुड़ी पड़वा
अन्य नाम : उगादी, नवरात्र प्रारंभ, मराठी नया साल
कब होता है : चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि के दिन
2024 में कब है : 9 अप्रैल
गुड़ी पड़वा का अर्थ क्या है
गुड़ी पड़वा का अर्थ होता है ‘विजय पताका’. उसी तरह उगादी नाम मूलतः संस्कृत शब्द के युग और अदि शब्दों से बना है, जिसका अर्थ होता है नए युग की शुरुआत. त्रेता युग, द्वापर युग और कलयुग ये तीन तरह के युग है. अभी हम कलयुग में रह रहे हैं. महर्षि वेद व्यास ने इस शब्द की व्याख्या 3102 ईस्वी में की. यह द्वापर था, जोकि भगवान श्री कृष्ण के युग के बाद आता है।
गुड़ी पड़वा पर्व का हिंदू महत्व क्या है, उससे जुडी कथा ?
इस पावन पर्व का हिंदू धर्म में बहुत ही अत्यधिक महत्व माना जाता है. हिंदू पुराणों के मुताबिक कहा जाता है, कि इस शुभ अवसर पर भगवान श्री राम और महाभारत के योद्धा युधिष्ठिर का राज्याभिषेक किया गया था. यदि हम थोड़ा गौर करें, तो हमें पता चलता है, कि इसी पावन दिन के अवसर पर चैत्र नवरात्रि का भी शुभारंभ हिंदू धर्म में होता है. कुछ विद्वानों के अनुसार इसी शुभ दिन यानी कि गुड़ी पड़वा के दिन में सतयुग का शुभारंभ भी हुआ था. चैत्र नवरात्रि के बाद से ही दिन और रातों में फर्क समझ में आने लगता है अर्थात दिन बड़े और रातें छोटी हो जाती है. कुछ विद्वानों का मानना है, कि विष्णु पुराण के अनुसार भगवान श्री विष्णु ने अपने मत्स्य अवतार को भी इसी दिन धारण किया था. इन सभी धार्मिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार ही इस दिन को बहुत ही शुभ और लाभकारी दिवस के रूप में देखा जाता है।
गुड़ी पड़वा किन राज्यों में मनाया जाता है।
उगादी त्योहार को भारत के दक्षिण प्रांतीय राज्य आंध्रप्रदेश और कर्नाटक, महाराष्ट्र के राज्यों में बहुत धूम धाम से मनाया जाता है. इसे कन्नड़ और तेलगु समुदाय के लोग नए वर्ष के रूप में मनाते हैं।
गुड़ी पड़वा कब मनाया जाता है
हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत मास सुधा पद्मि के दिन इसको मनाया जाता है. भारत में यह विक्रम सवंत के नाम से भी जाना जाता है।
गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है, महत्व क्या है
गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाने के पीछे की कहानी यह है कि हिन्दू धर्म के अनुसार ब्रम्हा जी ने इस दिन सृष्टि की रचना की थी. इस दिन पहली बार सूर्य का उदय हुआ था. इसलिए इसे दुनिया का पहला दिन कहा जाता है. इसलिए इसे लोग नए वर्ष के रूप में मनाते हैं।
गुड़ी पड़वा या उगादी 2024 में कब है
इस त्यौहार को चैत मास के सुधा पद्ध्मी के दिन मनाया जाता है. यह मार्च या अप्रैल महीने में पड़ता है. इस समय तक बसन्त ऋतू का आगमन पूरी तरह से हो चूका रहता है. पेड़ो पर नए नए पत्ते लग चुके रहते है, वसन्त ऋतू के आगमन से ही हर जगह नयापन आ चूका होता है. इस ऋतू को ऋतुओं का राजा कहा जाता है. ऐसे समय में उगादी का त्योहार मनाया जाता है. इस वर्ष 2024 में 9 अप्रैल को मनाया जायेगा।
गुड़ी पड़वा या उगादी कैसे मनाते हैं
उगादी जोकि तेलंगाना में नव वर्ष के रूप में बहुत धूम धाम से मनाया जाता है. इस दिन के लिये लोग पहले से ही अपने घरो और उसके आस पास की साफ़ सफाई और खरीददारी में लग जाते है. इस दिन विशेष तौर पर वहाँ के लोग अपने सिर के साथ साथ पुरे शरीर पर तिल के तेल की मालिस करते है. घरों के मुख्य द्वार पर लोग आम के पत्ते को लगा कर सजाते है, साथ ही द्वार पर कलश रख कर उस पर आम के पत्ते और नारियल से सजाते है. साथ ही द्वार पर अल्पनाये भी बनाते है. पूजा के लिए लोग अपने घर में आसन लगाकर उसे सुगंधित फुल मालाओं से सजाते और पूजन करते है. इस त्योहार को लोग बहुत हर्षो उल्लास के साथ मनाते है. अपने परिजनों को नए कपड़े और मिठाइयाँ देते है।
मंगलवार, 09 अप्रैल 2024 : उगादी के दिन पूजा का शुभ समय
-* आज से तेलुगु शक संवत 1946 प्रारंभ
* चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ- 08 अप्रैल 2024, सोमवार को 03.20 पी एम से,
* प्रतिपदा तिथि का समापन- 09 अप्रैल 2024, मंगलवार को 12.00 पी एम पर होगा।
09 अप्रैल 2024, मंगलवार . दिन का चौघड़िया
* चर- 08.31 ए एम से 10.01 ए एम
* लाभ- 10.01 ए एम से 11.30 ए एम
* अमृत- 11.30 ए एम से 01.00 पी एम
* शुभ- 02.29 पी एम से 03.59 पी एम
रात्रि का चौघड़िया
* लाभ- 06.59 पी एम से 08.29 पी एम
* शुभ- 10.00 पी एम से 11.30 पी एम
* अमृत- 11.30 पी एम से 10 अप्रैल को 01.01 ए एम,
* चर- 01.01 ए एम से 10 अप्रैल को 02.31 ए एम तक।
शुभ समय
* ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 03.56 से प्रातः 04.44 तक
* प्रातः संध्या 04.20 से प्रातः 05.32 तक
* अभिजीत- 11.06 पूर्वाह्न से 11.54 पूर्वाह्न तक
* विजय मुहूर्त- 01.30 अपराह्न से 02.17 अपराह्न तक
* गोधूलि मुहूर्त- 05.26 अपराह्न से 05.51 अपराह्न तक
* सायंकाल संध्या- 05.28 अपराह्न से 06.41 अपराह्न तक
* अमृत काल- 02.08 अपराह्न से 03.34 अपराह्न तक
* निशिता मुहूर्त- 11.06 अपराह्न से 11.54 अपराह्न तक
* सर्वार्थ सिद्धि योग- प्रातः 05.32 से रात्रि 08.36 तक
* अमृत सिद्धि योग- प्रातः 05.32 से रात्रि 08.36 तक
गुड़ी पड़वा की पूजन विधि क्या है ?
* इस पावन दिन के अवसर पर लोग सुबह उठकर बेसन का उबटन और तेल लगाते हैं और इसके बाद वह प्रातः काल ही स्नान करते हैं।
* जिस स्थान पर लोग गुड़ी पड़वा की पूजा करते हैं, उस स्थान को बहुत ही अच्छी तरह से स्वच्छ एवं शुद्ध किया जाता है।
* इसके बाद लोग संकल्प लेते हैं और साथ किए गए स्थान के ऊपर एक स्वास्तिक का निर्माण करते हैं और इसके बाद बालों की विधि का भी निर्माण किया करते हैं।
* इतना करने के बाद सफेद रंग का कपड़ा बिछाकर हल्दी कुमकुम से उसे रंगते हैं और उसके बाद अष्टदल बनाकर ब्रह्मा जी की मूर्ति को भी स्थापित किया जाता है और फिर विधिवत रूप से पूजा अर्चना किया जाता है।
* आखिर में लोग गुड़ी यानी की एक झंडे का निर्माण करके उसको उस पूजन स्थल पर स्थापित करते हैं।
गुड़ी पड़वा या उगादी के विशेष पकवान
उगादी पूजन के दिन लोग सुबह ही नहा – धोकर तैयार हो जाते है. इस दिन घरों में विशेष तरह के पकवान बनाये जाते हैं. जिसमे से खास कर उगादी पचडी जोकि तेलंगाना के व्यंजन का नाम है इसे बनाया जाता है. इसको बनाने में जो समाग्रियां इस्तेमाल होती है, वे है नीम, गुड, हरी मिर्च, नमक, हल्दी इत्यादि. इन सबको मिलाकर यह बनाया जाता है. वहाँ के लोगों का ऐसा मानना है, कि इस तरह के मिश्रित पकवान, जिसका स्वाद नमकीन, मीट्ठा, खट्टा और तीखा होता है, खाने से और खास कर नव वर्ष के दिन जिन्दगी में भी खट्टे, मीठे, तीखे स्वाद की तरह सुख दुख का आगमन होते रहता है. पुरन पोली आंध्रप्रदेश प्रदेश और तेलंगाना की सबसे खास व्यंजनों में शामिल है।
हिंदू धर्म का कोई भी त्यौहार अपने आप में अपनी महत्वता को लेकर ही आता है और उसे बस लोगों को सही प्रकार से समझने की आवश्यकता होती है. हम कहीं ना कहीं पर अंग्रेजी सभ्यताओं के चक्कर में पड़कर अपने प्राचीन एवं पुरुषों की सभ्यताओं को भूलते जा रहे हैं. हमारे इस लेख को प्रस्तुत करने का उद्देश्य आप सभी लोगों को हमारे प्राचीन त्योहारों और पावन अवसरों से अवगत कराना था. हमें सदैव अपने हिंदू धर्म और अपने भारतीय सांस्कृतिक सभ्यताओं को भूलना नहीं चाहिए. जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, पुष्प देता है, संवेदना देता है और हमें दया भाव सिखाता है उसी तरह यह नव वर्ष हमें हर पल ज्ञान दे और हमारा हर दिन, हर पल मंगलमय हो।
Disclaimer: ”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”